जेलों में बढ़ते विचाराधीन कैदियों की संख्या चिंता का विषय, सर्वोच्च न्यायालय के दिशा-निर्देशों पर CSNR ने आयोजित किया जागरूकता कार्यशाला
रिपोर्ट- संजय वर्मा
रांचीः 25 नवंबर 2023, शनिवार को राजधानी रांची के पुरुलिया रोड़ स्थित सत्य भारती सभागार में सेंटर फोर दा सस्टेनेबल यूज ऑफ नेचुरल एंड सोशल रिसोर्सेज संस्था ने सर्वोच्च न्यायालय द्वारा जारी गिरफ्तारी दिशा निर्देशों पर लोगों के बीच जागरूकता लाने के लिए कार्यशाला का आयोजन किया गया।
जैसा की ज्ञात है भारत के 1,3,78 जेलों में लगभग 6,10,000 कैदी बंद हैं। इन कैदियों में 80 प्रतिशत कैदी विचाराधीन हैं। ये सभी 80 प्रतिशत कैदी समाज के सबसे कमजोर वर्गों से हैं। ये विचाराधीन कैदी अपने गरिमा के साथ जीवन जीने के अधिकार से पुरी तरह वंचित हैं। इनमें से कई कैदी जंगल से लकड़ी काटने के आरोप में तो कोई छोटे-मोटे चोरी की घटना को लेकर गिरफ्तार करने के बाद से एक लंबे अवधी से जेलों में बंद हैं। वहीं कई मामलों में वैसे लोगों को भी जेलों में बंद किया गया है, जो निर्दोष हैं। गिरफ्तारी के दौरान पुलिस ने इमानदारी से काम नहीं किया।
जेलों में ऐसे विचाराधीन कैदियों की बढ़ती संख्या चिंता का विषय है। सुप्रीम कोर्ट ने भी कहा है कि अनावश्यक गिरफ्तारी से बचना चाहिए। सुप्रीम कोर्ट ने इस संबंध में सभी हाईकोर्ट और राज्यों के डीजीपी को दिशा-निर्देशों का सर्कुलर जारी करने का आदेश भी दिया था। सुप्रीम कोर्ट ने निचली अदालतों और पुलिस प्रशासन को इस संबंध में 8 सप्ताह के अंदर आगाह करने के लिए कहा है।
इसी कड़ी में सुप्रीम कोर्ट द्वारा जारी गिरफ्तारी दिशा-निर्देशों के बारे में लोगों को जागरुक करने और सशक्त करने के उद्देश्य से CSNRINDIA द्वारा जागरूकता कार्यशाला का आयोजन शनिवार को रांची के सत्यभारती सभागार में किया गया था। कार्यशाला में प्रख्यात आपराधिक वकील, अब्दुल कलाम रशीदी, डॉ. श्रीमांशु दास, डा. रामचन्द्र उराँव (प्रोफेसर, नेशनल लॉ यूनिवर्सिटी), डा. शालिनी साबू (प्रोफेसर, रांची विश्वविद्यालय), बिरसा संस्था से अजिता जॉर्ज वक्ता के रूप में शामिल रहीं। वहीं CSNR के प्रतिनिधि के रूप में अधिवक्ता चंद्रनाथ दानी और पल्लीश्री दास उपस्थित थें।
ये है दिशा निर्देशः
1- गिरफ्तारी के समय एक मेमो तैयार करना जरुरी है, जिस पर गिरफ्तारी का समय और दिनांक अंकित रहेगा। इस मेमों पर वैसे व्यक्ति या गवाह का हस्ताक्षर होना अनिवार्य है, जो उस क्षेत्र का प्रतिष्ठित व्यक्ति हो या गिरफ्तार व्यक्ति के परिजन, या मित्र हों।
2- गिरफ्तार व्यक्ति को ये अधिकार है कि वह अपनी गिरफ्तारी की सूचना अपने परिजन या शुभ चिंतकों को दे सके। पुलिस उसे सूचना देने से रोक नही सकती है।
3- पुलिस द्वारा गिरफ्तार किया गया व्यक्ति किसी दूसरे जिले में हो तो उस व्यक्ति के गिरफ्तारी के समय और रखे जाने के स्थान की जानकारी जिले के विधिक सहायता संगठन और संबंधित क्षेत्र के पुलिस स्टेशन के जरिए गिरफ्तारी के आठ से बारह घंटे के अंदर तार से देना जरुरी है।
4- गिरफ्तार व्यक्ति को अगर उनके अधिकारों की जानकारी नहीं है तो उसे आवश्यक रुप से अधिकारों का ज्ञान कराया जाए, ताकि वह गिरफ्तारी की सूचना अपने शुभचिंतकों तक पहुंचा सके।
5- बंदी रखे जाने के स्थान पर केस डायकी में यह दर्ज करना जरुरी है कि बंदी द्वारा बताए गए किस वयक्ति को उसके गिरफ्तारी की सूचना ही गई और बंदी कि किन पुलिस अधिकारियों की कस्टडी में रखा गया है।
6- गिरफ्तारी के समय उसका शारीरिक परीक्षण कराया जाना चाहिए। यदि उसके शरीर पर कोई चोट के निशान है, तो उसे दर्ज किया जाना चाहिए। पुलिस कस्टडी में रखे गए व्यक्ति का प्रत्येक 48 घंटों में एक बार प्राघिकृत चिकित्सक से जांच कराना अनिवार्य है।
7- गिरफ्तारी के मेमे सहित सभी संबंधित प्रपत्रों की प्रतिलिपियां इलाके के दण्डाधिकारी के पास भेजना अनिवार्य है।
8- पुछताछ के दौरान गिरफ्तार व्यक्ति को अपने वकील से मिलने की अनुमति देना जरुरी है।
9- सभी प्रदेश के जिलों व प्रदेश मुख्यालयों में एक ऐसा पुलिस कंट्रोल रुम होना अनिवार्य है, जहां प्रत्येक व्यक्ति के गिरफ्तारी की सूचना में रखे जाने के स्थान की जानकारी बारह घंटे के अंदर एस ऐसे नोटिस बोर्ड पर अंकित की जाए, जिससे कोई भी आसानी से देख सके।
कार्यशाला में अपनी बातों को रखते वक्ता.
वहीं डा. रामचंद्र उराँव ने मॉडल पुलिस एक्ट के बारे में विस्तार से जानकारी दी। झारखंड के खूंटी जिला में पत्थलगड़ी आंदोलन के दौरान खूंटी पुलिस ने लगभग 10,000 लोगों पर शेडिशन का चार्ज लगाया था। इस पर डा. उरांव ने कहा कि पुलिस मनमानी तरीके से काम करते दिखी है। पुलिस सत्ता के हाथ की कठपुतली बन कर काम करते रही, जिसके कारन लोगों का भरोषा पुलिस से उठा है। पुलिस व्यवस्था लोगों की सुरक्षा के लिए है, लेकिन पत्थलगड़ी आंदोलन के समय देखा गया कि पुलिस संविधान को दरकिनार कर कार्य कर रही है। पुलिस विभाग में महिलाओं की कम संख्या होने पर भी उन्होंने कहा कि 2022 के सर्वे में ये स्पष्ट है कि मात्र 12 प्रतिशत महिलाएं ही पुलिस विभाग में काम कर रही है।
कार्यशाला में उपस्थित अन्य प्रतिष्ठित वक्ताओं ने भी पुलिस के कार्यों पर कई उदाहरण देते हुए सवाल खड़ा करते हुए कहा कि लोगों को उनके अधिकारों को लेकर जागरुक करना जरुरी है। खास कर जब पुलिस उन्हें गिरफ्तार करती है, तो गिरफ्तारी के दौरान उनके जो अधिकार है, उसकी जानकारी उन्हें होनी चाहिए, तभी उन्हें पुलिस की मनमानी से छुटकारा मिलेगा और न्याय मिलने में आसानी होगी।
कार्यशाला के अंत में झारखंड राज्य में पुलिस सुधार की दिशा में मिलकर काम करने के जरुरत पर जोर दिया गया। इस दौरान 10 सदस्यों के एक कमेटी का भी गठन किया गया।
CSNR की ये पहल कानूनी प्रक्रियाओं के बारे में अच्छी तरह से जानकारी रखने वाले समाज को बढ़ावा देने की प्रतिबद्धता को दर्शाती है। सम्मानित पेशेवरों की उपस्थिति ने न्याय को कायम रखने और व्यक्तिगत अधिकारों की सुरक्षा में निरंतर शिक्षा के महत्व को रेखांकित किया। इस कार्यशाला में लॉ यूनिवर्सिटी के दर्जनों छात्र-छात्रा, सामाजिक संगठनों के प्रतिनिधि, अधिवक्ता, मानवाधिकार कार्यकर्ता और अन्य लोग उपस्थित रहें। CSNR के प्रतिनिधि, अधिवक्ता चंद्रनाथ दानी ने धन्यवाद ज्ञापन दिया।