वन विभाग के वादा खिलाफी से परेशान कुजूरूम के लोग अब गाँव नहीं करेंगे खालीः लालू उरांव, ग्राम प्रधान

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रिपोर्ट- जेरोम जेराल्ड कुजूर…
लातेहारः पलामू व्याघ्र परियोजना व वन विभाग के रवैये से परेसान होकर आखिरकार कुजूरूम गाँव के लोगों ने गांव नहीं खाली करने का निर्णय लिया है। ग्रामीणों ने दिनांक 24 नवंबर 2023 को गाँव खाली करने से साफ मना कर दिया। उक्त आशय की जानकारी कुजूरूम गाँव के ग्राम प्रधान लालू उरांव ने दी।
जीपीएस से मापी करवाने पर लाई और पाईलापत्थर में जमीन का क्षेत्रफल कम निकलाः
लालू उरांव ने कहा कि वन विभाग के लोग कुजूरूम गाँव के लोगों को लाई और पाइलापत्थर, जो पुनर्वास स्थल के लिए चिन्हित है, वहां ले गए थे। उक्त स्सथल पर जीपीएस मशीन से स्थल की मापी की गई। मापी की गई जमीन का कुल क्षेत्रफल ‘राष्ट्रीय व्याघ्र संरक्षण प्राधिकार’ के निर्देशानुसार पुनर्वास पैकेज के ऑप्शन 2 के तहत तय मापदंडों के आधार पर जमीन को पूरा नहीं करता। लालू उरांव कहते हैं कि जयगीर गाँव को बसाने के लिए कुजूरूम गाँव के लोगों का हक छीन रही है वन विभाग। कुजरूम गाँव के 120 परिवारों में से 70 परिवार ने दूसरे विकल्प को चुना है। ‘राष्ट्रीय व्याघ्र संरक्षण प्राधिकार’ के निर्देशानुसार पुनर्वास के दूसरे विकल्प में यह कहा गया कि, समुचित 10 लाख की राशि लोगों को ना देकर, वन विभाग उनके पुनर्वास से सम्बंधित कार्य करेगी। इस कार्य के तहत, वन विभाग लोगों को 5 एकड़ ज़मीन दिलाएगी, खतियानी हक़ दिलाएगी, उनके लिए मकान बनवाएगी, और सामूहिक सुविधाएँ (सड़क, पेयजल, शौचालय, मोबाइल, बिजली इत्यादि) उपलब्ध कराएगी। कुज़रोम गाँव के निवासियों के लिए दूसरा विकल्प चुनने का मुख्य कारण, अथवा उनके पुनर्वास हेतु सहमति का मुख्य कारण, स्पष्ट तौर पे उनको दी जाने वाली 5 एकड़ ज़मीन थी।

वायदे के अनुशार 5 एकड़ जमीन देने से अब मना कर रही है वन विभागः लालू उरांव, ग्राम प्रधान
कुजूरूम गाँव के ग्रामप्रधान लालू उरांव बताते हैं कि इस पुनर्वास योजना के धरताल पर उतरने से पहले ही, पलामू व्याघ्र परियोजना से सम्बंधित वन विभाग एवं ज़िला प्रशासन ने उच्चतम न्यायालय के 28 जनवरी 2019 (WP (Civil) – 202/1995; IA No. 3934/2015) के फ़ैसले का हवाला देकर लाटू और कुज़रोम के ग्रामीणों को 5 एकड़ ज़मीन देने से मना कर रही है। प्रशासन का कहना है कि विस्थापित ग्रामीणों को केवल उतनी ही ज़मीन मिलेगी जितनी ज़मीन (व्यक्तिगत) से वे बेदख़ल किए जा रहे हैं। उदाहरण के तौर पे अगर, किसी व्यक्ति का लाटू गाँव में 0.5 एकड़ ज़मीन है, तो उसे विस्थापित जगह पे उतनी ही ज़मीन मिलेगी (ना की 5 एकड़) ज़मीन।

वन विभाग कुजरुम के ग्रामीणों को 750 एकड़ जमीन उपलब्ध करवा रही है, जबकि ग्रामीणों के कब्जे में 827 एकड़ जमीन कुजरुम में हैः
क्या यह न्यायालय का आदेश जिसके आधार पर प्रशासन उक्त बातें कर रहा है? उच्चतम न्यायालय अपने 28 जनवरी 2019 के आदेश में, केंद्रीय पराधिकृत समिति (CEC) के सिफ़ारिशों को माना जिसमें यह उल्लिखित था कि ‘the extent of land de-reserved/de-notified for resettlement shall not be more than the extent vacated by the settlers in the core area’. अर्थात, आसान शब्दों में, जिस जगह पर लोगों का पुनर्वास किया जाना है, उस जगह की कुल सीमा (क्षेत्रफल अनुसार) ख़ाली किए गए जगह (लाटू और कुज़रोम गाँव) की कुल क्षेत्रफल सीमा से अधिक नहीं हो सकती है। इस आदेश में कहीं भी ग्रामीणों के व्यक्तिगत ज़मीन का ज़िक्र नहीं है। यह बात ख़ुद वन विभाग अपने पत्राचार, जो की केंद्र सरकार के पर्यावरण, वन और जलवायु परिवर्तन मंत्रालय को सम्बोधित था (दिनांक 1/04/2022), में स्वीकार करता है। इस पत्राचार में राज्य वन विभाग ये स्पष्ट करता है कि पुनर्वास हेतु जो ज़मीन मुहैया करायी जा रही है, उसका कुल क्षेत्र (क़रीबन 750 एकड़) खाली करायी जा रही ज़मीन के कुल क्षेत्र (क़रीबन 827 एकड़) से कम है, अतः यह पुनर्वास पर्यावरण मंत्रालय द्वारा जारी दिशा निर्देश (दिनांक 22/05/2019) का अनुपालन करता है।

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