Categories
Education Latest News पर्यटन मुद्दा

राजधानी रांची के आनंद व अंजनी ने एवरेस्ट बेस कैंप पर लहराया तिरंगा…

रिपोर्ट- वसीम अकरम…

5364 मीटर की ऊंचाई पर माउंट एवरेस्ट के दक्षिणी बेस कैंप पर फहराया तिरंगा।

80 किलोमीटर की यात्रा कर 2900 मीटर की ऊंचाई पैदल यात्रा कर मिली सफलता।  

रांची(कांके प्रखंड)- राजधानी रांची के कांके प्रखंड निवासी आनंद व अंजनी ने एवरेस्ट बेस कैंप पर तिरंगा फहरा कर कांके प्रखंड सहित समस्त झारखंड का नाम रौशन किया है। अंजनी कुमारी ने अपने पति आनंद गौतम के साथ 13 मार्च को एवरेस्ट बेस कैंप पर तिरंगा झंडा लहराया।

अंजनी कुमारी पेशे से डाटा साइंटिस्ट है और शेल नामक एमएनसी में कार्यरत हैं। अंजनी के पिता विरेन्द्र प्रसाद, रांची यूनिवर्सिटी में इकोनॉमिक्स के प्रोफेसर रह चुके हैं। वहीं आनंद गौतम पेसे से कंसलटेंट हैं और केपीएमजी नामक एमएनसी में कार्यरत हैं।

गौरतलब है कि एवरेस्ट बेस कैंप की ऊंचाई समुंद्र तल से 17598 फीट (5364 मी) है। इतनी उंचाई पर ऑक्सीजन की मात्रा 50 फीसदी ही रहती है। मार्च के महीने में वहां का तापमान लगभग शून्य से 20 डिग्री सेल्सियस रहता है। अंजनी और आनंद ने इस ट्रेक की तैयारी 4 महीने पूर्व से की थी। दोनों ने इस ट्रेक की शुरुआत 6 मार्च को लुक्ला नामक स्थान से की थी जो नेपाल में स्तिथ है। लुक्ला एयरपोर्ट विश्व के खतरनाक एयरपोर्ट में से एक है। दोनों ने इस ट्रेक की शुरुआत लुक्ला से की और 7 किलोमीटर की दूरी तय करने के बाद दोनों अगले दिन फकडिंग पहुंचे। फकडिंग की ऊंचाई 2610 मी है। यहाँ रात गुजारने के बाद दूसरे दिन 7 मार्च को नामचे बाजार के लिए निकल पड़े। नामचे बाजार 3440 मी पर स्थित है, जिसकी दूरी फकड़िंग से 10 किलोमीटर है। अगले दिन दोनो देबुचे के लिए निकल पड़े, जिसकी ऊंचाई 3860 मी है और नामचे से 9 किलोमीटर दूर है और वहां खुखू छेत्र का सबसे विशाल बौद्ध मठ स्तिथ है। उसके अगले दिन 11 किलोमीटर की दूरी तय करके दोनो डिंगबोचे पहुंचे, जिसके ऊंचाई 4360 मी है। अब तक ऑक्सीजन का स्तर 75 फीसदी हो चुका था। अगले दिन 18 किलोमीटर की दूरी तय करके दोनों लोबुचे पहुंचे, जो कि 4940 मी की ऊंचाई पर है। इसके बाद अगले दिन लोबूचे से गोरक्षेप होते हुए दोनो एवरेस्ट बेस कैंप पहुंचे और वहां भारत का झंडा लहराया। इस तरह से 80 किलोमीटर की दूरी एवं 2900 मी की ऊंचाई पैदल यात्रा तय करके 5364 मीटर की ऊंचाई पर माउंट एवरेस्ट के दक्षिणी बेस कैंप पर भारत का झंडा अंजनी और आनंद ने फहराया।

गौरतलब है कि, यह रास्ता बेहद कठिन है और इन सभी कठिनाईयों को पार करते हुए दोनों ने एक मानसिक एवं शारीरिक साहस का कीर्तिमान स्थापित किया। दोनों ने बताया कि यह एवरेस्ट बेस कैंप ट्रेक, जीवन भर के लिए एक अनोखा अनुभव बन गया और यह उन्हें जिंदगी की दूसरी मुश्किल परिस्थितियों से लड़ने का भी जज्बा देती है। यह चढ़ाई कई तरह से बहुत ही कठिन मानी जाती है। उन्होंने बताया कि यात्रा शुरू करने से पहले ही ट्रेकर्स पर इसका प्रभाव पड़ सकता है। इस यात्रा के लिए कई महीनों कि तैयारी करनी पड़ती है।

Categories
Latest News पर्यटन मुद्दा

मानव श्रृंखला बना कर जैन धर्मावलंबियों ने पारसनाथ पहाड़ी को पर्यटन स्थल बनाने का किया गया विरोध…

रिपोर्ट- बिनोद सोनी…

रांचीः जैन धर्म ग्रंथों के अनुसार झारखंड में स्थित सम्मेद शिखर तीर्थ स्थल, पारसनाथ का अस्तित्व सृष्टि के समानांतर है, इसलिए इसे शाश्वत माना जाता है। यही कारण है कि जब सम्मेद शिखर तीर्थ यात्रा शुरू होती है, तो हर तीर्थयात्री का मन तीर्थ करो का स्मरण कर अपार श्रद्धा, आस्था, व उत्साह से भरा होता है। काफी प्राचीन समय से पूर्ण सात्विकता के साथ यहां आने वाले जैन धर्मावलंबी तीर्थ करते हैं। लेकिन झारखंड सरकार की ओर से यह घोषणा की गई है, कि पारसनाथ के क्षेत्रों को पर्यटन स्थल के रूप में विकसित किया जाएगा, जिसका जैन धर्मावलंबी विरोध कर रहे हैं। जैन धर्मावलंबियों ने पर्यटन स्थल के रुप में विकसित किए जाने का विरोध किया है।

शुक्रवार को राजधानी रांची के ह्रदय स्थली, अल्बर्ट एक्का चौक पर जैन धर्मावलंबी और शहर के प्रबुद्ध नागरिकों द्वारा शांतिपूर्वक मानव श्रृंखला बना कर सांकेतिक रूप से झारखंड सरकार के घोषणा का विरोध किया है। मानव श्रृंखला में शामिल महिला जैन धर्मावलंबी का कहना है कि, पारसनाथ पहाड़ी झारखंड का ऐतिहासिक धरोहर है। पारसनाथ पर्यटन स्थल नहीं धार्मिक स्थल है और यदि इस धार्मिक स्थल को पर्यटन स्थल के रूप में विकसित किया गया, तो जो भी पर्यटक पर्यटन की दृष्टि से वहां जाएंगे, तो जैन धर्मावलंबियों के सात्विकता का हनन होगा।

वहीं एक दूसरी जैन धर्मावलंबी सह स्वतंत्रता सेनानी महिला का कहना है कि पारसनाथ पर्वत और शिखर जी महाराज का पूरा क्षेत्र हमारे लिए आस्था का केंद्र बिंदु है। शिखर में स्थित मंदिर के दर्शन के बाद ही जैन धर्मावलंबी जल का ग्रहण करते हैं। लेकिन जब इसे पर्यटन स्थल के रुप में इसे विकसित किया जाएगा तो यहां पहुंचने वाले पर्यटक सात्विक नहीं होंगे, उनका खानपान अलग होगा। इसलिए सरकार को चाहिए कि पारसनाथ पहाड़ी के क्षेत्र के धार्मिक स्थल ही रहने दिया जाए, इसे पर्यटन स्थल ना बनाया जाए।

Categories
Corona पर्यटन ब्रेकिंग न्‍यूज

कोविड-19 की वजह से बाबा बैद्यनाथ धाम में नहीं लगेगा मेला, सिर्फ ऑनलाइन दर्शन कर सकेंगे श्रद्धालु-Highcourt

रिपोर्ट- बिनोद सोनी…

राँची: सावन के पवित्र महीने में बाबा बैद्यनाथ धाम मंदिर में अब ऑनलाइन दर्शन श्रद्धालुओं को कराया जाएगा। सावन के पवित्र महीने में पूजा को लेकर हाई कोर्ट ने आदेश दिया है। मुख्य न्यायाधीश डॉ रवि रंजन, न्यायाधीश सुजीत नारायण प्रसाद की अदालत में मामले पर सुनवाई हुई। अदालत ने सभी पक्षों को सुनने के पश्चात सरकार के पक्ष को देखते हुए यह माना है कि, वर्तमान स्थिति इतने बड़े मेले के आयोजन का नहीं है। लेकिन उन्होंने याचिकाकर्ता के आग्रह को देखते हुए मंदिर में वर्चुअल जिसे ऑनलाइन दर्शन कहते हैं, वैष्णो देवी और बालाजी की तर्ज पर शुरू करने का आदेश दिया है। अदालत ने सरकार को कहा कि इसमें तो कोई कठिनाई नहीं होनी चाहिए। उन्होंने श्रद्धालुओं की भावना को देखते हुए उनके धर्म के प्रति आस्था को देखते हुए उन्हें ऑनलाइन दर्शन पूरे सावन माह तक कराने का आदेश दिया है।

Categories
कारोबार पर्यटन मुद्दा राजनीति

झारखण्ड में उपलब्ध संसाधनों से समृद्धि का मार्ग…

रिपोर्ट- अरुण महतो.

रांचीः हमारे सपनों कर झारखण्ड महज जमीन का एक टुकड़ा भर नहीं है, बल्कि प्रकृति ने इसे बहुत नजाकत से संवारा है। झारखंड में जहाँ चारों तरफ हरे-भरे जंगल, पर्वत-पहाड़, नदी-नाला, तालाब और झरने मौजुद हैं, वहीं झारखण्ड के गर्भ में कोयला, लोहा, सोना, तांबा, अभ्रक, बॉक्साइट, ग्रेनाइट, अभ्रक और यूरेनियम जैसे खनिज संसाधनो का अकूत भंडार है। इसके बावजूद झारखण्ड गठन के बीस साल बाद भी झारखण्ड की गणना गरीब राज्यों में की जाती है। क्या कारण है कि तमाम दावों के बावजूद आज भी झारखण्ड का विकास नहीं हो पाया है?

कृषि क्षेत्र में संभावनाः

सबसे पहले बात करते हैं, झारखण्ड की अर्थव्यवस्था का आधार कृषि की। झारखण्ड की 76% जनसंख्या गाँव में निवास करती है और 65% ग्रामीण सीधे तौर पर कृषि कार्य से जुड़े हैं। परंतु, झारखण्ड की अर्थव्यवस्था में कृषि का योगदान महज 14% है। वर्तमान में, राज्य के लगभग 38 लाख हेक्टेयर कृषि योग्य भूमि में से महज 25 लाख हेक्टेयर भूमि पर ही खेती होती है, जबकि सिंचाई के अभाव में शेष 13 लाख हेक्टेयर एकड़ जमीन परती रह जाती है। अगर सरकार छोटे छोटे तालाब, चेकडैम और नालों के माध्यम से पानी की पर्याप्त व्यवस्था करे, किसानों को सस्ते दर पर आधुनिक कृषि उपकरण उपलब्ध कराये तो कृषि क्षेत्र में जबरदस्त सुधार देखने को मिल सकता है। कृषि के साथ पशुपालन, मत्स्य पालन जैसे उद्योग अगले पांच सालों में किसानों की आय वृद्धि में कारगर साबित होंगे। गाँवों के शेष 10% लोग लौह उपकरण, मिट्टी के बर्तन, बाँस और अन्य लकड़ी के सामान बनाने का परम्परागत व्यवसाय करते हैं। लेकिन, निजी कंपनियों की घुसपैठ और सरकारी उदासीनता की दोहरी मार ने परम्परागत उद्योगों को क्षति पहुंचाई है। इन उद्योगों को सरकार द्वारा संरक्षण दिये जाने की आवश्यकता है ताकि इनसे जुड़े कारीगरों को रोजगार के अभाव में पलायन करना ना पड़े।

खनन उद्योग में रोजगार की अकूत संभावनाः

बात करते हैँ खनिज संसाधनों की। देश के कुल खनिज संसाधनों का 40% हिस्सा झारखण्ड में मिलता है। झारखण्ड सरकार को कोयला एवं अन्य खनिज उत्खनन से सालाना 3000 करोड़ का राजस्व प्राप्त होता है, वो भी तब जबकि आधे से ज्यादा खदानों में खान माफियाओं द्वारा अवैध उत्खनन का काम होता है। खान माफिया स्थानीय मज़दूरों द्वारा अवैध खनन और माल ढुलाई कराते हैं। झारखण्ड के सभी तरह के खदानों में पुलिस प्रशासन की सांठगांठ से अवैध उत्खनन कार्य होता है। इससे सरकार को राजस्व की हानि तो होती ही है, अक्सर दुर्घटनाओं का भी खतरा बना रहता है। वर्तमान में सरकार राजस्व बढ़ाने के लिए कोल ब्लॉकों की नीलामी की बात कर रही है। नीलामी होती है, तो बड़ी-बड़ी कोल कंपनियों को उत्खनन का ठेका मिलेगा। अगर सरकार नीलामी में ये शर्त जोड़ दे कि नीलामी के पहले से जो स्थानीय लोग उत्खनन कार्य में लगे हैँ, उन्हें संबंधित कंपनियों द्वारा नियमित किया जाएगा। तो इससे बड़े पैमाने पर स्थानीय लोगों को रोजगार उपलब्ध हो सकेगा।

खनन कंपनियां कच्चा माल बाहर ना भेज कर झारखंड में ही उद्योगों की करें स्थापनाः

सिर्फ, राजस्व प्राप्ति ही नहीं, खनन उद्योग रोजगार सृजन का भी सबसे महत्वपुर्ण स्रोत है। झारखण्ड में खनन क्षेत्र में लगभग 50,000 मज़दूरों को प्रत्यक्ष रोजगार मिला है, जिसमे सबसे ज्यादा 10000 मज़दूर कोयला उत्खनन से जुड़े हैं। अगर अवैध खनन के आंकड़ों को शामिल करें, तो ये संख्या लगभग चार गुनी हो जाती है। ये हमारा दुर्भाग्य है कि सबसे ज्यादा कोयला झारखण्ड से निकलता है, पर कोल इंडिया का मुख्यालय कोलकाता में हैं। जिसके कारण झारखंडियों का रोजगार का हक छीनकर बाहरियों को दिया जा रहा है। झारखण्ड सरकार को कोल इंडिया का मुख्यालय झारखण्ड में शिफ्ट करने की माँग करनी चाहिए। खनन क्षेत्र में रोजगार बढ़ाने का एक और उपाय है कि जो कंपनियां झारखण्ड से कोयला, लोहा और अन्य खनिज संसाधन दूसरे प्रदेशों में ले जाते हैं, उन्हे रोका जाए। सभी कंपनियों को झारखण्ड में फैक्ट्रियाँ लगाने के लिए बाध्य किया जाए, ताकि यहाँ के ज्यादा से ज्यादा लोगों को रोजगार मिल सके।

झारखंड का प्राकृतिक संपदाओं में दूसरा स्थान, उत्पादन के अनुरुप प्रोसेसिंग यूनिट की हो स्थापनाः

खनिज संसाधनों के बाद झारखण्ड की प्राकृतिक सम्पदाओ में दूसरा स्थान है, वनोत्पाद का। वर्तमान में राज्य के 33.21% क्षेत्र में वन हैं, जो कि राष्ट्रीय औसत से अधिक है। प्रदेश के जंगलों में लाह, तसर, महुआ, करंज, चिरौंजी जैसे वनोपज बहुतायत में मिलते हैं, जो ग्रामीण अर्थव्यवस्था की मजबूती के केन्द्र हैं और रोजगार का विकल्प भी। तसर उत्पादन में झारखंड देश में पहले स्थान पर है और विश्व में दूसरे स्थान पर। वर्तमान में, राज्य में हर वर्ष लगभग 3000 मीट्रिक टन तसर का उत्पादन होता है। और लगभग 2.5 लाख लोगों को तसर उद्योग से प्रत्यक्ष और परोक्ष रूप से रोजगार मिला है। उसी तरह, देश के 60% लाह का उत्पादन सिर्फ झारखण्ड में होता है और 30-40 हज़ार परिवार प्रत्यक्ष रूप से लाह उत्पादन से जुड़े हैं। परंतु, उत्पादन के अनुपात में प्रोसेसिंग यूनिट ना होने के कारण बड़े पैमाने पर कच्चे लाह की बिक्री दूसरे प्रदेशों में की जाती है। अगर झारखण्ड के हर जिले में लाह प्रोसेसिंग यूनिट की स्थापना की जाए, तो इससे लाखों लोगों को प्रत्यक्ष और परोक्ष रूप से रोजगार मिलेगा। झारखण्ड सरकार महुआ, करंज, चिरौंजी जैसे वनोत्पाद के उत्पादन और प्रसंस्करण को प्रोत्साहित करे तो ये उत्पाद भी रोजगार और आय वृद्धि के उपयोगी विकल्प बन सकते हैं।

पर्यटन उद्योगों को रोजगार की असीम संभावनाः

झारखण्ड में रोजगार सृजन और विकास में पर्यटन उद्योग का भी महत्वपूर्ण योगदान रहा है। कुदरत ने झारखण्ड को असीम खूबसूरती से नवाजा है। एक तरफ हुँडरु फॉल, दशम फॉल, पंचघाघ, केलाघाघ जैसे प्राकृतिक झरने तो दूसरी तरफ पारसनाथ, नेतरहाट, त्रिकूट जैसे पर्वत-पहाड़। वहीं हजारीबाग, बेतला, दलमा और बिरसा जैविक अभ्यारण्य तो दूसरी तरफ जुबली पार्क, नक्षत्र वन, टैगोर हिल, रॉक गार्डन जैसे मानव निर्मित पर्यटन स्थल। साथ ही, प्रदेश में बाबा धाम, रामरेखा धाम, पहाड़ी मंदिर, दिउड़ी मंदिर, सूर्य मंदिर, इटखोरी मंदिर, जगन्नाथ मंदिर जैसे धार्मिक स्थलों की भी भरमार है। यही कारण है कि झारखण्ड में पर्यटन उद्योग तेजी से विकास कर रहा है। पर्यटन के क्षेत्र में लगभग 75 हज़ार लोगों को रोजगार मिला है। सरकारी आंकड़ों के अनुसार 2018-19 में झारखण्ड में लगभग 3.5 लाख पर्यटक आये जिसमे 1.5 लाख विदेशी पर्यटक थे। पर्यटकों की संख्या में दिनोंदिन इजाफा हो रहा है, परंतु कुछ अपवादों को छोड़कर अधिकांश पर्यटन स्थल आज भी सरकारी उपेक्षा के शिकार है। रोड कनेक्टिविटी और पर्याप्त सुरक्षा व्यवस्था न होने के कारण पर्यटक सुदूरवर्ती स्थलों में जाने से कतराते हैं। अगर सरकार इन पर्यटन स्थलों के सौंदर्यीकरण और सुरक्षा पर ध्यान दें, तो पर्यटन उद्योग झारखण्ड के विकास में मील का पत्थर साबित हो सकता है।

कुल मिलाकर देखा जाए तो झारखंड की समृद्धि का द्वार खोलने और विकास के पथ पर अग्रसर करने के लिए राज्य में प्राकृतिक संसाधनों के पर्याप्त भंडार है। जरूरत है तो बस सरकार द्वारा झारखंडी जनता को भरोसे में लेकर ईमानदार प्रयास करने की। वर्तमान में लॉक डाउन के कारण देश के कोने कोने से लाखों प्रवासी मजदूर अपने घर लौट रहे हैं। सरकार के सामने एक बड़ी चुनौती है इन्हे रोजगार उपलब्ध कराने की। ऐसे समय में सरकार को विदेशी कंपनियों पर निर्भरता छोड़ स्थानीय उद्यमों को प्रोत्साहित करना चाहिए, ताकि राज्य के संसाधनों का समुचित उपयोग हो सके और झारखंड तथा झारखंडियों को आत्मनिर्भर बनाया जा सके।

Categories
मनोरंजन जीवनशैली पर्यटन

प्रकृति पर्व, सरहुल को लगी कोरोना की नजर, सोशल डिस्टेन्सिंग के कारन महात्मा गांधी पथ पर नहीं निकाला गया शोभायात्रा…

रिपोर्ट- बिनोद सोनी…

प्रकृति पर्व, सरहुल को लगी कोरोना की नजर, सोशल डिस्टेन्सिंग के कारन महात्मा गांधी पथ पर छाया रहा विराना…  

राँची: सरहुल के दिन राजधानी रांची के मुख्य पथ, महात्मा गांधी पथ पर झारखंडी परंपरा और संस्कृति की अद्भुत झलक देखने को मिलती थी, ढ़ोल-नगाड़ा और मांदर के साथ अन्य पारंपरिक वाद्य यंत्रों की मधुर आवाज पुरे राजधानी रांची वासी को झारखंडी होने का अहसास कराता था, यहां निकलने वाले शोभा यात्रा में राजधानी रांची के कोने-कोने से आदिवासी समुदाय के लोग अपने-अपने अखड़ा से सैंकड़ों की संख्या में पहुंचे थें, जिनकी संख्या महात्मा गांधी पथ पहुंच कर लाखों में हो जाती है और ये नजारा देखते ही बनता था, लेकिन इस वर्ष कोरोना वायरस के प्रकोप के कारन सभी कार्यक्रम स्थगीत कर दिया गया है। पर्व त्योंहरों में ढ़ोल मांदर की थाप पर थिरकने वाले कदमों में मानों बेड़ियां जकड़ चुकी है। हर चेहरे मायुस हैं।

प्रकृति पर्व सरहुल के बारे में ऐसी मान्यता है कि इसी दिन धरती और आकाश का विवाह हुआ था, इस लिए इस दिन प्रकृति के इन देवताओं से आदिवासी समाज सुख, शांति और समृद्धि की कामना करता है, साथ ही प्रकृति की रक्षा के लिए भी संकल्प लेता है।

https://youtu.be/APKVqcSI0R0

कोरोना वायरस के भय के कारन इस वर्ष सरना स्थलों पर पूजा पाठ के दौरान भी भीड़ नही जुटी। किसी किसी सरना स्थल पर पाहन के अलवा चार-पांच लोग ही पूजा करते नजर आएं वो भी दूरी बना कर। हातमा स्थित सरहुल चौक पर भी कुछ इसी तरह का नजारा देखने को मिला, जहां केंद्रीय सरना समिति के मुख्य पाहन द्वारा पूरे विधि विधान के साथ पूजा सम्पन्न कराया गया। पूजा सम्पन्न कराने के बाद मुख्य पाहन ने कहा की कोरोना मुक्त देश और झारखंड प्रदेश की कामना करते हुए पूजा सम्पन्न की गयी है, ताकि हमारा समाज इस विश्व व्यापी संकट से निकल सके।

जानकारी देते चलें कि आदिवासियों की जीवन की शुरुआत ही प्रकृति के बीच होती है, इनके हर संस्कार में सबसे पहले प्रकृति की पूजा होती है, यूं कहें कि आदिवासी समाज प्रकृति के सबसे ज्यादा नजदीक है। ये पर्व एकता और भाई चारे का भी सन्देश देता और झारखण्ड में न सिर्फ जनजातीय समाज बल्कि सारे समाज के लोग इसमें पुरे उत्साह और उमंग के साथ भाग लेते हैं।

Categories
पर्यटन Latest News

बिरसा जैविक उद्यान में हुआ बड़ा हादसा, जैविक उद्यान को किया गया सील…

रिपोर्ट- बिनोद सोनी…

बिरसा जैविक उद्यान में हुआ बड़ा हादसा, जैविक उद्यान को किया गया सील…

रांचीः राजधानी रांची के ओरमांझी स्थित बिरसा जैविक उद्यान में एक बड़ा हादसा हुआ, जहां बाघिन के हमले में एक युवक की मृत्यु हो गई।

घटना के बारे में बताया जा रहा है, कि जैविक उद्यान में पहुंचे युवक ने बाघिन के बाड़े के समीप पहुंच कर पहले एक पेड़ पर चढ़ गया और फिर बाघिन के बाड़े में छलांग लगा दी, जिसके बाद उसने बाघिन को नमस्‍ते करने की कोशिश की, तभी बाघिन ने उस पर हमला कर दिया, जिससे उसकी मौत बाघिन के बाड़े में ही हो गई।

युवक असामान्य हरकत कर रहा थाः प्रत्यक्षदर्शी

प्रत्यक्षदर्शियों के अनुसार युवक जिस तरह की हरकत कर रहा था, उससे उसकी मानसिक स्थिति सामान्य नही लग रही थी। इस घटना के संबंध में उद्यान के अधिकारी कुछ भी बोलने से बच रहे हैं।

घटना के बाद उद्यान को किया गया सीलः

इस घटना के बाद चिड़ियांघर में अफरा-तफरी का माहौल कायम हो गया। घटना की सूचना पाकर चिड़ियां घर के अधिकारी, कर्मचारी और वन विभाग के अधिकारी मौके पर पहुंचे। फिलहाल सभी सैलानिओं को बाहर निकाल कर चिड़ियां घर को सील कर दिया गया है।