पीटीआर दक्षिणी प्रमंडल मेदिनीनगर के उप-निदेशक, कुमार आशीष के आरोपों का, ग्राम प्रधान लालू उरांव ने दिया जवाब.

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रिपोर्ट- संजय वर्मा…

लातेहारः पीटीआर में बाघों को बसाने के लिए राष्ट्रीय व्याघ्र संरक्षण प्राधिकार के गाईडलाईन के मुताबिक कोर एरिया में बसे गांव लाटू, कुजरुम, हेनार, विजयपुर, पंडरा, गुटवा और गोपाखांड के लोगों को पुनर्वासित करने के लिए विभागीय कोशिशें जारी है। लेकिन कुछ असमाजिक तत्व ग्रामीणों को गुमराह कर रहे हैं, जिससे बाधा उत्पन्न हो रही है। उक्त बातें पीटीआर दक्षिणी प्रमंडल के उप-निदेशक, कुमार आशीष ने मीडिया के माध्यम से कही है।

उप-निदेशक द्वारा मीडिया में दिये बयान पर कुजरुम गांव के ग्राम प्रधान लालू उरांव ने आरोपों पर तिखी प्रतिक्रिया व्यक्त करते हुए प्रेस विज्ञप्ति जारी किया है। लालू उरांव ने कहा कि आदिवासियों को पुनर्वास के बहाने विस्थापन का दंश झेलने के लिए वन विभाग और झारखंड सरकार मजबूर कर रही है। लालू उरांव ने आगे कहा कि अगर वन विभाग राष्ट्रीय व्याघ्र संरक्षण प्राधिकार के निर्देशानुसार, सही तरीके से पुनर्वास योजना का पालन करती, तो शायद यह पुनर्वास योजना अन्य गांवों और कस्बों के लिए एक उदारहरण साबित होता।

वन विभाग, विशेष कर उप निदेशक, कुमार आशीष ने इस पुनर्वास सम्बंधित जो बयान मीडिया में दिया है, उस पर टिप्पणी करना जरुरी है। कुजरुम के ग्राम प्रधान लालू उरांव ने कहा है कि लाटू और कुज़रुम के ग्रामीण बहुत सीधे-साधे हैं, और उन्हें कुछ असामाजिक तत्व भ्रमित कर रहे हैं। इस बात की व्याख्या की जानी ज़रूरी है। वर्ष 2021 में, वन विभाग के साथ बैठक में हमें यह स्पष्ट तौर पर बताया गया था कि, पुनर्वास हेतु सभी परिवार को 15 लाख रुपए और 5 एकड़ ज़मीन (रजिस्ट्र करके) दी जाएगी। इस बाबत हमने लाई और पैलापत्थल में ज़मीन भी पसंद की थी। हमें पुनर्वास हेतु दोनों विकल्पों के बारे भी बताया गया था, जिसमें दूसरे विकल्प के तहत, ज़मीन के साथ मकान, सड़क, बिजली, पानी, स्कूल एवं अस्पताल की बात कही गयी थी। इन्हीं वादों के भरोसे हममें से कई ग्रामीणों ने दूसरे विकल्प को चुना था। इस व्याख्या को हमने 13 फ़रवरी 2021 के अपने पत्राचार (प्रधान सचिव, पर्यावरण एवं जलवायु परिवर्तन विभाग को सम्बोधित था) में ज़िक्र किया है। इस पत्र की प्रति संलग्न की गयी है। अब, जब पुनर्वास का समय नज़दीक आने को है, तो हमें वन विभाग से यह बताया जाता है कि परिवारों को 5 एकड़ भूमि नहीं दी जाएगी, और जो मूल सुविधाओं की बात कही गयी थी (जैसे की मकान), उस पर भी संशय बना हुआ है। ऐसी स्थिति में वन विभाग यह बताने की कृपा करे, की हमें भ्रमित कौन कर रहा है? कौन है जो हम से वादा खिलाफ़ी कर रहा है? और ऐसी स्थिति में हम अपने घर और ज़मीन को छोड़कर क्यूँ जाएँ?

लाई और पैलापत्थल में दूसरे गांव के भी लोग पुनर्वासित किये जाएंगे, तो अतिरिक्त ज़मीन की व्यवस्था कहाँ से की जाएगीः लालू उरांव, ग्राम प्रधान

उनकी दूसरी बात जिसमें वो कहते हैं कि लाई और पैलापत्थल की ज़मीन सिर्फ़ कुज़रुम गाँव के निवासियों के लिए चिन्हित नहीं की गयी है (यह त्रुटिवश वन विभाग के पत्राचार में ज़िक्र किया गया था)। उनके अनुसार इस गाँव में लाटू गाँव के लोगों को भी पुनर्वासित किया जाना है। इस बात की भी व्याख्या करना महत्वपूर्ण है। लाई, पैलापत्थल और पोलपोल में जो 300 हेक्टर भूमि के लिए आवेदन की बात कही जा रही है, वह केवल कुज़रुम गाँव के लोगों को ध्यान में रखकर ली गयी थी। इस बात को समझना ज़रूरी है। इन 300 हेक्टर की भूमि में, लाई और पैलापत्थल के 166 हेक्टर भूमि का आवेदन दिया गया था। इस हिसाब के पीछे की गणित कुज़रुम गाँव से सम्बंधित है। कुज़रुम गाँव के 120 परिवारों में से 70 परिवारों ने दूसरे विकल्प को चुना, जिसके तहत इन प्रत्येक परिवारों को 5 एकड़ (2 हेक्टर) भूमि मिलनी थी (मूल सुविधाओं के साथ)। इस लिहाज़ से 70 परिवारों के लिए 140 हेक्टर भूमि आवंटित होनी थी, और बाक़ी के 26 हेक्टर ज़मीन पर मूल सुविधाओं के लिए उपयोग होना था (कुल 166 हेक्टर)। इस बात का स्पष्ट ज़िक्र वन विभाग के स्वयं के पत्राचार में वर्णित है, जिसकी एक प्रति इसके साथ संलग्न है। अब अगर उप-निदेशक जी यह कहते हैं की, लाई और पैलापत्थल में दूसरे गाँव के लोग भी पुनर्वासित किए जाएँगे, तो वह यह भी बताने की कृपा करें कि, उनके लिए अतिरिक्त ज़मीन की व्यवस्था कहाँ से की जाएगी। लिहाजा सवाल फिर से उठता है, यहाँ कौन किसे भ्रमित कर रहा है?

न्यायालय के किसी भी फ़ैसले में राशि या भूमि के आपस में साझा करने की बात नहीं कही गयी हैः लालू उरांव, ग्राम प्रधान, कुजरुम

इसके अतिरिक्त, उप निदेशक का ये भी कहना है कि सर्वोच्च न्यायालय के प्रतिबंधों के अनुसार लोगों को राशि एवं भूमि आपस में साझा करना होगा। यह बता दें की इस मामले में निर्देश स्पष्ट है – जिन परिवारों ने पहला विकल्प चुना, उन्हें 15 लाख दिया जाएगा, और जिन्होंने दूसरा विकल्प चुना, उन्हें 5 एकड़ भूमि के साथ मूल सुविधाएँ दी जाएगी। न्यायालय के किसी भी फ़ैसले में राशि या भूमि के आपस में साझा करने की बात नहीं कही गयी है। रही बात न्यायालय के प्रतिबंध की, तो जिस फ़ैसले का हवाला दिया गया है, उसमें न्यायालय एवं मंत्रालय ने स्पष्ट तौर पर केवल यह कहा है कि, जिस जगह पर लोगों का पुनर्वास किया जाना है, उस जगह का कुल क्षेत्रफल ख़ाली करायी गयी ज़मीन के क्षेत्रफल से ज़्यादा नहीं होनी चाहिए। इससे सम्बंधित दस्तावेज़ भी संलग्न किए गए हैं। अब वन विभाग यह बताने की कृपा करें कि वह पुनर्वास नीतियों का अनुपालन क्यों नहीं कर रहा है? और सबसे गम्भीर बात, वन विभाग लोगों को क्यों भ्रमित कर रहा है? ऐसी स्थिति में हम सभी अपने गाँव को छोड़कर नहीं जाएँगे।

कितनी भूमि लाटू और कुजरुम में खाली हो रही है? पहले ये जानना जरुरीः उप निदेशक

वहीं दूसरी ओर पीटीआर दक्षिणी प्रमंडल के उप-निदेशक, कुमार आशीष ने लाटू और कुजरुम के ग्रामीणों के पुनर्वास को लेकर सांसद सुनील कुमार, मनिका विधायक रामचन्द्र सिंह, लातेहार के जिला परिषद् अध्यक्ष पुनम देवी, जिला परिषद् सदस्य गारु/बरवाडीह पूर्वी/बरवाडीह पश्चिमी/महुआडांड़ और महुआडांड़ निवासी सामाजिक कार्यकर्ता जेरोम जेराल्ड कुजूर को संबोधित करते हुए पत्र जारी किया है। उप निदेशक़ कुमार आशीष द्वारा जारी पत्र में कहा गया है कि, विभाग द्वारा कुजरुम के 120 परिवार एवं लाटू के 90 परिवारों के पुनर्वास हेतु प्रस्ताव समर्पित किया गया। प्रति परिवार 15 लाख रुपये प्रदान करने हेतु विभाग को आवंटन प्राप्त है। वर्तमान में वन भूमि उपयोग पर मंत्रालय द्वारा यह शर्त लगाया गया है कि, जितनी भूमि खाली होगी, उतनी ही भूमि का उपयोग हो सकता है। इसलिए लाटू एवं कुजरुम के पुनर्वास के लिए 166 हेक्टेयर एवं 133.64 हेक्टेयर भूमि के उपयोग के पूर्व ये तय करना होगा कि, कितनी भूमि लाटू और कुजरुम में खाली हो रही है। खाली भूमि की मापी जी.पी.एस. से हो सकती है। सामुदायिक पट्टा जंगल का मिलता है, खाली जमीन का नहीं। अधोहस्ताक्षरी कहते हैं कि माननीय सर्वोच्च न्यायालय का आदेश एवं मंत्रालय का दिशा निर्देश इस तथ्य पर निर्भर है कि उतनी ही वन भूमि का नुकशान किया जाए, जितना वन रोपण के लिए खाली भूमि उपलब्ध हो।

हमारे उपर कम भूमि देने का आरोप लग रहा है, भविष्य में और भी आरोप लगाए जाएंगेः उप निदेशक

उप निदेशक आगे कहते हैं कि हमारे उपर कम भूमि देने का आरोप लग रहा है। भविष्य में हमारे उपर ये भी आरोप लगेगा कि, नियमों की अवहेलना कर जंगल की जमीन लाटू और कुजरुम के ग्रामीणों के बीच बांट दिया गया। लाटू एवं कुजरुम के ग्रामाण भूमिहीन हैं। सरकार द्वारा इन्हें रैयती भूमि प्रदान करने की कोई योजना नहीं है। उप-निदेशक, कुमार आशीष ऐसे परिवारों के लिए स्वयं से बेहतर विकल्प बताते हुए कहते हैं कि कुजरुम में कुछ परिवारों में 5 से अधीक लाभूक हैं। ग्राम प्रधान लालू उरांव के परिवार में 6 लाभुक हैं। अगर इन 6 परिवारों में 4 लाभुक को विकल्प -1 एवं 2 लाभुक को विकल्प 2 में रखा जाए, तो ऐसी परिस्थिति में लालू उरांव के परिवार के खाते में 60 लाख रुपये, 10 एकड़ रैयती भूमि तथा मकान निर्माण तथा सुविधाओं के विकास के लिए 30 लाख रुपये अलग से खर्च किये जाएंगे। क्या, किसी भूमिहीन आदिवासी परिवार के विकास के लिए सरकार के पास इससे बेहतर योजना है?
अंत में उप निदेशक, कुमार आशीष ने संबोधित जन प्रतिनिधियों से अनुरोध करते हुए कहा है कि आप सभी समिति का निर्माण कर उपलब्ध भूमि एवं उपलब्ध राशि को लाटू और कुजरुम के ग्रामीणों के बीच किस तरह से बांटा जाए, इस पर निर्णय लेने के लिए निवेदन किया है। समिति जो भी निर्णय लेगी वह मान्य होगा।

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