राजधानी रांची के आनंद व अंजनी ने एवरेस्ट बेस कैंप पर लहराया तिरंगा…
रिपोर्ट- वसीम अकरम…
5364 मीटर की ऊंचाई पर माउंट एवरेस्ट के दक्षिणी बेस कैंप पर फहराया तिरंगा।
80 किलोमीटर की यात्रा कर 2900 मीटर की ऊंचाई पैदल यात्रा कर मिली सफलता।
रांची(कांके प्रखंड)- राजधानी रांची के कांके प्रखंड निवासी आनंद व अंजनी ने एवरेस्ट बेस कैंप पर तिरंगा फहरा कर कांके प्रखंड सहित समस्त झारखंड का नाम रौशन किया है। अंजनी कुमारी ने अपने पति आनंद गौतम के साथ 13 मार्च को एवरेस्ट बेस कैंप पर तिरंगा झंडा लहराया।
अंजनी कुमारी पेशे से डाटा साइंटिस्ट है और शेल नामक एमएनसी में कार्यरत हैं। अंजनी के पिता विरेन्द्र प्रसाद, रांची यूनिवर्सिटी में इकोनॉमिक्स के प्रोफेसर रह चुके हैं। वहीं आनंद गौतम पेसे से कंसलटेंट हैं और केपीएमजी नामक एमएनसी में कार्यरत हैं।
गौरतलब है कि एवरेस्ट बेस कैंप की ऊंचाई समुंद्र तल से 17598 फीट (5364 मी) है। इतनी उंचाई पर ऑक्सीजन की मात्रा 50 फीसदी ही रहती है। मार्च के महीने में वहां का तापमान लगभग शून्य से 20 डिग्री सेल्सियस रहता है। अंजनी और आनंद ने इस ट्रेक की तैयारी 4 महीने पूर्व से की थी। दोनों ने इस ट्रेक की शुरुआत 6 मार्च को लुक्ला नामक स्थान से की थी जो नेपाल में स्तिथ है। लुक्ला एयरपोर्ट विश्व के खतरनाक एयरपोर्ट में से एक है। दोनों ने इस ट्रेक की शुरुआत लुक्ला से की और 7 किलोमीटर की दूरी तय करने के बाद दोनों अगले दिन फकडिंग पहुंचे। फकडिंग की ऊंचाई 2610 मी है। यहाँ रात गुजारने के बाद दूसरे दिन 7 मार्च को नामचे बाजार के लिए निकल पड़े। नामचे बाजार 3440 मी पर स्थित है, जिसकी दूरी फकड़िंग से 10 किलोमीटर है। अगले दिन दोनो देबुचे के लिए निकल पड़े, जिसकी ऊंचाई 3860 मी है और नामचे से 9 किलोमीटर दूर है और वहां खुखू छेत्र का सबसे विशाल बौद्ध मठ स्तिथ है। उसके अगले दिन 11 किलोमीटर की दूरी तय करके दोनो डिंगबोचे पहुंचे, जिसके ऊंचाई 4360 मी है। अब तक ऑक्सीजन का स्तर 75 फीसदी हो चुका था। अगले दिन 18 किलोमीटर की दूरी तय करके दोनों लोबुचे पहुंचे, जो कि 4940 मी की ऊंचाई पर है। इसके बाद अगले दिन लोबूचे से गोरक्षेप होते हुए दोनो एवरेस्ट बेस कैंप पहुंचे और वहां भारत का झंडा लहराया। इस तरह से 80 किलोमीटर की दूरी एवं 2900 मी की ऊंचाई पैदल यात्रा तय करके 5364 मीटर की ऊंचाई पर माउंट एवरेस्ट के दक्षिणी बेस कैंप पर भारत का झंडा अंजनी और आनंद ने फहराया।
गौरतलब है कि, यह रास्ता बेहद कठिन है और इन सभी कठिनाईयों को पार करते हुए दोनों ने एक मानसिक एवं शारीरिक साहस का कीर्तिमान स्थापित किया। दोनों ने बताया कि यह एवरेस्ट बेस कैंप ट्रेक, जीवन भर के लिए एक अनोखा अनुभव बन गया और यह उन्हें जिंदगी की दूसरी मुश्किल परिस्थितियों से लड़ने का भी जज्बा देती है। यह चढ़ाई कई तरह से बहुत ही कठिन मानी जाती है। उन्होंने बताया कि यात्रा शुरू करने से पहले ही ट्रेकर्स पर इसका प्रभाव पड़ सकता है। इस यात्रा के लिए कई महीनों कि तैयारी करनी पड़ती है।