स्व. प्रधानमंत्री, पंडित जवाहर लाल नेहरू के साथ मंच साझा करने वाली बुधनी नही रही, पंडित नेहरू को माला पहनाने की सजा बुधनी को भुगतनी पड़ी थी.

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रिपोर्ट- अशोक कुमार, धनबाद…

82 वर्षीय बुधनी मंझियाइन नहीं रही, शनिवार को दी गई अंतिम विदाई।
देश की पहली महिला मजदुर जिसने तात्कालीन प्रधान मंत्री स्व. जवाहर लाल नेहरु के साथ मंच साझा कर पंचेत डैम का उद्घाटन किया था।
पंडित नेहरु से हाथ मिलाने और माला पहनाने के कारन संथाल समाज ने बुधनी को समाज से किया था बहिष्कृत।
तंगहाली में जीवन गुजार रही थी बुधनी।
गांधी परिवार से एक घर और बेटे के लिए नौकरी मांगी थी, लेकिन वो भी नहीं मिला।
हाथ मिलाने और माला पहनाने की सजा जीवन भुगतती रही बुधनी।

धनबाद : देश के प्रथम प्रधान मंत्री, पंडित जवाहर लाल नेहरू के साथ मंच साझा करने पर ताउम्र सजा भुगतनी होगी, इस बात का अंदाजा धनबाद के पंचेत में रहने वाली संथाल आदिवासी महिला, बुधनी मझियाइन् को कतई नही थी। पंचायत की सजा भुगतते-भुगतते अंततः 82 वर्षीय बुधनी की आज मौत हो गई।

दरअसल पंडित नेहरू ने दामोदर घाटी निगम के पंचेत डैम में काम करने वाली महिला मजदूर बुधनी मझियाइन् के हाथों ही डैम का उद्घाटन कराया था। कार्यक्रम के दौरान मंच पर पंडित नेहरू को माला पहनाने और हाथ मिलाने की सजा बुधनी को उसके समाज के लोगो ने दे डाली । आदिवासी संथाल समाज के ठेकेदारो ने बुधनी का गैर आदिवासी पंडित नेहरू से विवाह होने (माला पहनाये जाने पर) और बुधनी का नेहरू परिवार का सदस्य होने का फरमान जारी कर बुधनी का सामाजिक बहिष्कार कर दिया था। जिसके बाद से बुधनी की शादी नहीं हुई। लंबे समय बाद वहीं के एक युवक ने बुधनी का हाथ थामा और पत्नी का दर्जी दिया। दामोदर घाटी निगम के पंचेत डैम का उद्घाटन कर चर्चा में आई बुधनी “ना राम मिली ना माया” वाली कहावत को चरितार्थ करते हुए जिंदगी गुजार रही थी, लेकिन शनिवार को बुधनी ने हमेशा के लिए दुनिया को अलविदा कह दिया।

6 दिसम्बर 1959 के दिन बुधनी का सर ऊँचा था। देश के प्रधानमन्त्री के साथ मंच साझा करते हुए बुधनी के हाथो पंचेत डैम का उद्घाटन हुआ था। पंडित नेहरू ने एक महिला मजदूर के हाथो डैम का उद्घाटन करा कर एक इतिहास रच डाला था, लेकिन किसे पता था कि इसके साथ एक और इतिहास की पृष्ठ भूमि तैयार हो रही है। कार्यक्रम समाप्त होने के बाद जो रात आई, वह काली रात बुधनी की जिंदगी पर एक ग्रहण लगा गया। धनबाद के “खोरबोना” गांव में उसी रात आदिवासी संथाल समाज की बैठक हुई। बुधनी द्वारा एक गैर आदिवासी पुरुष को माला पहनाये जाने और हाथ मिलाने की सजा का फरमान जारी हुआ। बुधनी के पुरे परिवार का समाज से बहिष्कार कर दिया गया। संथाल रीति के मुताबिक समाज की कुवांरी लड़की अगर किसी गैर पुरुष को माला पहनाती है या उसका हाथ पकड़ती है, तो वह उसका पति हो जाता है। इस अन्धविश्वास की शिकार बुधनी हो गई थी। गुजरते समय के साथ बुधनी एक पुरुष के संपर्क में आई, जिससे बुधनी की एक संतान भी हैं, लेकिन बुधनी विधिवत् वैवाहिक जीवन नही जी सकी। बुधनी जिंदगी भर काफी आक्रोश में रही। बुधनी मझियाइन को गांधी परिवार से अपने लिए एक मकान और बेटा को नौकरी चाहिए था, लेकिन मरने के बाद भी उसका सपना पूरा नहीं हो सका।

बुधनी मझियाईन भारत की पहली मज़दूर थीं, जिनके हाथों किसी परियोजना का उद्घाटन कराया गया था। बुधनी के छोटे बेटे कि माने तो आज भी गांव वाले उन्हें नेहरू खानदान के होने का ताना मारते है। इतने साल बीत जाने के मैं अपने समाज में सर उठा कर नहीं चल पाता हूं। मैंने नेहरू के वंशज, सोनिया गांधी और राहुल गांधी से इतने दुखो के बदले एक घर और एक नौकरी की मांग की, ताकि उनकी बाकी की जिन्दगी शान्ति से कट सके, लेकिन वह सपना भी सपना बन कर ही रह गया।

उस वक्त देश के प्रथम प्रधानमंत्री पंडित जवाहर लाल नेहरू और बुधनी मंझियाइन साथ मंच साझा करने वालो में यहीं के निवासी रावोण मांझी ने उस वक्त की सारी कहानी बयान करते हुए कहा कि, समाज से बहिष्कार किये जाने के बाद से बुधनी दर-बदर की ठोकरें खा रही थी। उद्घाटन के दौरान पंडित नेहरू ने स्थानीय लोगों से वादा किया था, कि स्थानीय लोगों को मुफ़्त बिजली और आवास दिया जाएगा। लेकिन आज तक ये वादा वादा ही रहा।

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