आदिवासियों की भुंईहरी जमीन(पुंदाग) पर जमीन कारोबारी कर चुके हैं अवैध कब्जा….

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रिपोर्ट- संजय वर्मा…

रांचीः अगर ये कहा जाए, कि विकास की हर बुनियाद आदिवासियों के विनाश की नींव पर खड़ी है तो शायद ये कहना गलत नही होगा। क्योंकि विकास कार्यों के लिए किए गए भू-अधिग्रहण से सबसे ज्यादा आदिवासी समुदाय ही प्रभावित हुए हैं। वहीं दूसरी ओर जिस क्षेत्र में भी विकास कार्यों की बुनियाद रखी जाती है, वहां आदिवासियों की जमीन लूट भी बढ़ जाती है।

ताजा मामला है राजधानी रांची के पुंदाग मौजा का, जहां विधानसभा समेत कई सरकारी भवन बनने की सूचना मात्र के बाद से ही आदिवासियों की जमीन लूट की घटना काफी बढ़ी हुई है। इस जमीन लूट में जमीन कारोबारी और अंचल कार्यालय के अधिकारी मिले हुए हैं। क्योंकि वैसे जमीन की भी डीड तैयार कर दी जा रही है, जिसे स्वयं जमीन मालिक भी बेच नही सकतें। ये भी सर्वविदित है की पुंदाग मौजा में आदिवासियों के रैयती भूमि के साथ-साथ गैर-मजरुआ जमीन की भी सबसे अधीक लूट हुई है। जिसमें कई अधिकारी भी जांच के घेरे मे हैं। इस मौजा के गैरमजरुआ जमीन पर कई आलिशान अपार्टमेंट शान से खड़े हैं, जिस पर जांच तो शुरु हुई थी, लेकिन फिलहाल ठंडे बस्ते में है।

आदिवासी परिवार के 17.33 एकड़ जमीन में से लगभग 15 एकड़ जमीन पर दूसरे लोगों का कब्जाः

वहीं पुंदाग मौजा में नए विधानसभा भवन के पिछे, सेल सिटी के समिप कई आदिवासी परिवार ऐसे हैं, जो स्वयं मिट्टी के झोपड़ीनुमा घर मे रह रहे हैं, और पास ही स्थित उनके भुंईहरी रैयती जमीन पर गैरआदिवासी धड़ल्ले से पक्का मकान का निर्माण करने में लगे हैं। यूं कहें की पूरी एक कॉलोनी का निर्माण इनके भुंईहरी जमीन पर हो रहा है। यहां कई बड़े जमीन गरीब आदिवासियों को बहला फुसला कर एकड़ो-एकड़ जमीन अपने नाम पर एग्रीमेंट और रजिस्ट्री करवा कर लाखों रुपये डिसमील रेट पर गैर आदिवासियों को बेचने का धंधा कर रहे हैं। पीड़ित जमीन मालिक पंचु मुंडा ने बताया कि पप्पु सिंह नामक जमीन कारोबारी, स्थानीय जमीन दलाल सूरज महतो के माध्यम से 2.50 एकड़ जमीन अपने नाम करवा लिया है, जमीन कारोबारी ने 15 लाख रुपये देने की बात कही थी, लेकिन वर्तमान में उसे तीन वर्षों में लगभग तीन लाख रुपये ही दिया गया है, वो भी छोटे-छोटे किस्तों में। वहीं सुरेश मुंडा, रंजीत मुंडा, राजेश मुंडा, तेतरा मुंडा, संजय मुंडा समेत और भी कई भुक्तभोगी हैं, जिनका जमीन धोखे से प्रलोभन देकर कई जमीन कारोबारी अपने कब्जे में कर चुके हैं। इनकी मानें तो गरीबी के कारन मजबुरी में जमीन कारोबारियों को कुछ हिस्सा देना पड़ा था, लेकिन अब वे लोग पैसा ही नही दे रहे हैं, और जमीन की बिक्री कर रहे है। मना करने पर मारपीट कर भगा देते हैं। यानि पूरी तरह यहां जमीन लूट गैरकानूनी तरीके से जारी है। वर्तमान में इनके 17.33 एकड़ जमीन में से लगभग 15 एकड़ जमीन पर दूसरे लोगों का कब्जा है।

भुंईहरी जमीन की बिक्री जमीन मालिक भी नही कर सकते हैः

बताते चलें कि आदिवासियों की जमीन बचाने के लिए सीएनटी, एपीटी एक्ट जैसे कई कानून पूर्व से ही बने हुए हैं। बावजुद इसके जमीन का हस्तांतरण गैर कानूनी तरीके से गैर आदिवासियों के बीच धड़ल्ले से हो रहा है। कानून के जानकार बताते हैं कि भुईंहरी जमीन की खरीद बिक्री आदिवासियों के बीच भी नही हो सकती है। अगर किसी सार्वजनिक कार्य के लिए किसी को जमीन दी जाती है, तो इसके लिए उपायुक्त की स्वीकृति अनिवार्य है। बावजुद इसके उपायुक्त के प्रमिशन से जमीन का जो पट्टा तैयार किया जाता है, उसमें जमीन के उपयोग का टर्म कंडीशन स्पष्ट रुप से लिखा जाना अनिवार्य है। भुंईहरी जमीन का उपयोग दूसरे कार्यों में नही किया जा सकता है। सार्वजनिक कार्य बंद होने की स्थिति में वो जमीन स्वतः जमीन मालिक को वापस हो जाती है।

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