रमजान के महीने में जकात और फितरे का है खास महत्व : मोजिबुल अंसारी

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ब्यूरो रिपोर्ट-
रांची(कांके प्रखंड) जकात हर साहिबे निसाब पर फर्ज है, जिसके पास साढ़े बावन तोला चांदी या साढ़े सात तोला सोना या इतनी रकम हो। वह शख्स पूरे साल साहिबे निसाब रहा, तो अब अपने माल का हिसाब कर जकात अदा करे। जकात तीन तरह के माल पर फर्ज है- पहला नकद रुपए बैंक में हो या घर पर, दूसरा सोने चांदी और इनके जेवर पर और तीसरा तिजारत के माल पर जकात फर्ज है। उक्त बातें पूर्व जीप सदस्य, मोजिबुल अंसारी ने कही।

आगे उन्होंने बताया कि, अल्लाह ने इंसान को बेपनाह नेअमतें अता की हैं. उसे हर वह चीज़ दी है, जो ज़िन्दगी गुज़ारने के लिए काफ़ी है। इनमें बहुत से लोग ऐसे हैं, जिनके पास हर चीज़ बेहिसाब है। मगर दुनियाभर में बहुत से लोग ऐसे भी हैं, जिन्हें दो वक़्त का पेट भर खाना भी नहीं मिल पाता। ये लोग अभाव में ज़िन्दगी बसर करते हैं। इस्लाम में ऐसे ही लोगों को ज़कात, फ़ितरा और सदक़ा देने का हुक्म दिया गया है।

क़ुरआन करीम में बार-बार ज़कात का ज़िक्र आता है। अल्लाह तआला फ़रमाता है- “नेकी सिर्फ़ यही नहीं है कि तुम अपना रुख़ मशरिक़ और मग़रिब की तरफ़ फेर लो, बल्कि असल नेकी तो ये है कि कोई शख़्स अल्लाह और क़यामत के दिन और फ़रिश्तों और अल्लाह की किताब और नबियों पर ईमान लाए, अल्लाह की मुहब्बत में अपना माल क़राबतदारों, यानी रिश्तेदारों और यतीमों और मिस्कीनों और मुसाफ़िरों और साइलों यानी मांगने वालों पर और ग़ुलामों को आज़ाद कराने में ख़र्च करे और पाबंदी से नमाज़ पढ़े और ज़कात देता रहे और जब कोई वादा करे, तो उसे पूरा करे और तंगी और मुसीबत और जंग की सख़्ती के वक़्त सब्र करने वाला हो। यही लोग सच्चे हैं और यही लोग परहेज़गार हैं।

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