केन्द्रीय जनसंघर्ष समिति, लातेहार-गुमला के सचिव, जेरोम जेराल्ड कुजूर ने जिला स्तरीय समिति का किया विरोध…

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ताजा खबर ब्यूरो रिपोर्ट…
लातेहारः केन्द्रीय जनसंघर्ष समिति, लातेहार-गुमला के सचिव, जेरोम जेराल्ड कुजूर ने प्रेस विज्ञप्ति जारी कर यह जानकारी दी है कि, पलामू व्याघ्र परियोजना के उप निदेशक ने मुख्य मीडिया और सोशल मीडिया के माध्यम से सांसद सुनील कुमार सिंह, चतरा संसदीय क्षेत्र, मनिका विधायक, रामचन्द्र सिंह, जिला परिषद् अध्यक्ष, लातेहार पूनम देवी, जिला परिषद सदस्य, गारु,/बरवाडीह पूर्वी,/ बरवाडीह पश्चिम,/ महुआडाँड़ और मेरे नाम (जेरोम जेराल्ड कुजूर, सचिव, केन्द्रीय जनसंघर्ष समिति, लातेहार-गुमला) से एक पत्र जारी किया है (जिसमें मेरा पता ही गलत है) जिसका पत्रांक- 959, दिनांक- 28,11,2023 है।

उप निदेशक महोदय ने जारी पत्र में संबोधित जनप्रतिनिधियों से कुजरूम और लाटू गाँव के पुनर्वास के लिए ज़िला स्तरीय समिति बनाने की अनुशंसा कर रहे हैं, जबकि इन दोनों गाँव के पुनर्वास की जिम्मेदारी पलामू व्याघ्र परियोजना और जिला पुनर्वास कमिटी की है। उप निदेशक महोदय, मंत्रालय द्वारा जारी दिशा-निर्देश का उल्लेख करते हुए कहते हैं कि, “जितनी भूमि ख़ाली होगी, उतनी ही वन भूमि का उपयोग हो सकता है”। उप निदेशक महोदय का कहना है कि समिति बनाकर इस बात का हल निकाला जाए कि किसे कितनी भूमि और राशि दी जाएगी।

जेरोम जेराल्ड कुजूर ने कहा है कि, मेरा इसके विरोध का कारण दो महत्वपूर्ण विंदुओं पर केंद्रित है। पहला- यह एक स्वैछिक पुनर्वास योजना है, जिसके तहत लाटू और कुजूरूम के ग्रामीणों ने स्वेच्छा से पुनर्वास की शर्तों को माना था। इन शर्तों के अनुसार, सरकार ग्रामीणों (जिन्होंने ने पुनर्वास का दूसरा विकल्प चुना था) को 5 एकड़ भूमि (खेती करने योग्य बनाकर एवं उनके नाम पर रजिस्ट्री करवा कर) और मूल-भूत सुविधाएँ मुहैया कराएगी। इन शर्तों का ज़िक्र ख़ुद वन विभाग के तात्कालीन उप निदेशक,पलामू व्याघ्र परियोजना, के मुकेश कुमार ने अपने पत्राचार में केंद्र सरकार के वन, पर्यावरण एवं जलवायु परिवर्तन मंत्रालय, भारत सरकार को भेजा है। इसी पत्र के आधार पर केन्द्रीय मंत्रालय ने कुजूरूम एवं लाटू गाँव को पुनर्वासित करने की अनुमति दी है। उपर्युक्त दस्तावेज https://forestsclearance.nic.in/online_status.aspx में देखा जा सकता है। अगर, सरकार इन किसी भी शर्तों को बदलती है, तो ग्रामीणों द्वारा दी गयी सहमति स्वयं वापस हो जाती है। अर्थात, वह स्वेच्छा मान्य नहीं रहेगी।

दूसरा- वन विभाग ने इस पुनर्वास की प्रक्रिया को आगे बढ़ाने के लिए जिन दस्तावेज़ों पर मुहर लगायी थी (पत्राचार के मध्यम से केंद्रीय पर्यावरण मंत्रालय को भेजा था), उसमें ये स्पष्ट ज़िक्र है कि, प्रत्येक पुनर्वासित परिवार को 5 एकड़ एवं मूल सुविधाएँ दी जाएगी (जिसमें घर का नक़्शा भी शामिल है)। इन दस्तावेज़ों के उपरांत ही वन विभाग को पुनर्वास के लिए सहमति मिली थी। इस पत्राचार में यह भी वर्णित था कि, ख़ाली करायी जा रही ज़मीन का कुल क्षेत्रफल 331 हेक्टर है, जो की बसायी जाने वाली ज़मीन के कुल क्षेत्रफल (300 हेक्टर) से ज़्यादा है। इसलिए यह मंत्रालय के दिशा निर्देशों के अनुरूप है। इस वर्णन के बाद ही वन विभाग को पुनर्वास की प्रक्रिया आगे बढ़ने के लिए केंद्रीय मंत्रालय से सहमति मिली। अगर वन विभाग अब इन मूल मुद्दों से भटकती है, तो पुनर्वास की सारी प्रक्रिया (जिसमें केंद्र से सहमति शामिल है) निराधार हो जाती हैं। इन हालातों में ज़िला स्तरीय समिति बनाने का कोई तर्क नहीं है। जब वन विभाग ना ही अपने क़ानूनी प्रक्रिया को मान रहा है और ना ही लोगों की स्वेच्छा को। अतः इस परिस्थिति मे मैं जेरोम जेराल्ड कुजूर जिला स्तरीय समिति बनाने के आदेश का विरोध करता हूं।

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