पलामू व्याघ्र परियोजना-  लाटू और कुजरूम गांव के आदिवासियों को बदहाली, गृहहीनता और बेरोजगारी जैसी परिस्थिति पर लाकर खड़ा किया वन विभाग….

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रिपोर्ट- जेरोम जेराल्ड कुजूर/रिचर्ड टोप्पो…

लातेहारः पलामू व्याघ्र परियोजना, गारू प्रखंड के दो आदिवासी गाँव, लाटू और कुजरूम के लिए आपदा का कारण बनता जा रहा है। भारत सरकार द्वारा 2006 में गठित राष्ट्रीय व्याघ्र संरक्षण प्राधिकार के अंतर्गत कोर जोन से ग्रामीणों के स्वेच्छिक पुनर्वासन हेतु निर्गत दिशा निर्देश एवं वन विभाग द्वारा इन निर्देशों की अवहेलना, ने इन आदिवासी गाँवों की जीविका पर प्रश्न चिन्ह खड़ा कर दिया है। वन विभाग ने लाटू और कुजरूम गांव के आदिवासियों को आने वाले दिनों में, बदहाली, गृहहीनता एवं बेरोज़गारी जैसी परिस्थिति में ला कर खड़ा कर दिया है।

2017 में वन विभाग ने 8 गांवो के ईको विकास समिति को विस्थापन एवं पुनर्वास हेतु भेजा था प्रस्तावः

इस परिस्थिति की जड़ें 2017 के वन विभाग (पलामू व्याघ्र परियोजना, दक्षिणी भाग) द्वारा निर्गत पत्र की ओर इंगित करती है, जिसे लातेहार जिले में स्थित 8 वन गाँव – लाटू, कुजरूम, रमनदाग, हेनार, विजयपुर, पंडरा, गुटवा और गोपखाड़ के ‘ईको विकास समीति’ को भेजा गया था। इस पत्र में वन विभाग ने इन आठ गावों को विस्थापन एवं पुनर्वास हेतु प्रस्तावना भेजा था।  इस प्रस्तावना के तार भारत सरकार द्वारा बाघों के संरक्षण हेतु प्रयासों से जुड़े हैं। राष्ट्रीय व्याघ्र संरक्षण प्राधिकार के अध्ययन अनुसार, बाघों के लिए न्यूनतम 800-1000 वर्ग कि०मी० का कोर एरिया चाहिए, जो मनुष्यों के अतिक्रमण से परे हो। पलामू व्याघ्र परियोजना, जिसकी स्थापना केंद्र सरकार ने वर्ष 1974 में की थी, का कुल दायरा 1129.93 वर्ग कि.मी. है। वर्तमान में पलामू व्याघ्र आरक्षित के 414.08 वर्ग कि.मी. को कोर एरिया घोषित किया, जिसके अंतर्गत उपरोक्त 8 वन गाँव आते हैं। वन विभाग का पुनर्वास सम्बंधित प्रस्ताव इन 8 वन गाँवों को कोर एरिया से हटाने का है।

कुजरुम गांव के ग्रामीणों को पैकेज की जानकारी देते वन विभाग के अधिकारी.

100 वर्ष से भी अधीक समय से निवास कर रहे हैं 8 गांव के लोगः

एतिहासिक दस्तावेज़ों के अनुसार इन 8 वन गावों को अंग्रेज़ी हुकूमत ने 1910-1920 के आसपास बसाया था। इन गावों के अधिकांस निवासी आदिवासी समुदाय से आते हैं। वर्ष 2006 में वन अधिकार क़ानून पारित होने के पश्चात इन सभी निवासियों के पास इस क्षेत्र में रहने का औपचारिक हक़ है। इन लोगों ने अपने-अपने गावों में रहने लायक घर, खेती लायक ज़मीन, परम्परा अनुसार सरना मसना स्थापन, बनाया है। इन क्षेत्रों में इनका निवास 100 वर्षों से ऊपर हो चला है।

मौलिक सुविधाओं से वंचित हैं लाटू और कुजरुम गांव के ग्रामीणः

2017 में वन विभाग द्वारा विस्थापन एवं पुनर्वास हेतु प्रस्तावना भेजा गया तो अधिकांस गावों ने इसका प्रत्यक्ष रूप से पुरज़ोर विरोध किया। इस बाबत केंद्रीय जनसंघर्ष समिति (लातेहार-गुमला) ने लोगों की जनभावना का सम्मान करते हुए, इस प्रस्ताव पर अपना विरोध दर्ज किया। हालाँकि दो गाँव, लाटू और कुजरूम ने वन विभाग के इस प्रस्ताव को बोझिल मन से स्वीकारा। लाटू और कुजरूम, दोनो गाँव गारू प्रखंड के सुदूर वन क्षेत्र में बसे हैं। इन गावों तक जाने के लिए न सड़क है और न ही बिजली। बाड़ेसार के मुख्य मार्ग तक आने के लिए यहां के ग्रामीणों को 10-13  कि.मी. का लम्बा सफ़र पैदल तय करना पड़ता है। बारिश के मौसम में इन गावों को जोड़ती कच्ची सड़क भी जवाब दे देती है। इन गावों में न तो प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्र है और ना ही मोबाइल टावर। किसी भी प्रकार की स्वास्थ्य समस्या होने पर मदद मिलना नामुमकिन हो जाता है।

ग्रामीणों की जरुरतों को अनदेखा कर, वन विभाग ने जन उपयोगी कार्यों पर लगा रखा है रोकः

यह कहना उचित होगा की लाटू और कुजरूम के इस परिस्थिति का ज़िम्मेदार वन विभाग है। वन विभाग ने इन सुदूरवर्ती क्षेत्रों में विकास का कोई काम होने नहीं दिया है। चूँकि ये दोनो गाँव वन विभाग के अधिकार क्षेत्र में आते हैं, इसलिए यहाँ किसी भी प्रकार के विकास कार्य हेतु वन विभाग की अनुमति चाहिए होती है। वन विभाग ने लोगों की जरूरतों को अनदेखा कर, वन्यजीवों की सुरक्षा की आड़ में, यहाँ किसी भी जन उपयोगी कार्य को आगे बढ़ने नहीं दिया। इस क्रम में वन विभाग शायद यह भूल गया कि, इंसान और प्रकृति को साथ लेकर चलना होता है, जो यहाँ रह रहे आदिवासियों के मूल में है। वन विभाग द्वारा इन गावों में ऐसी सामाजिक-आर्थिक परिस्थितियाँ बनाई गयी, जहाँ लोग खुद गाँव छोड़कर जाने के लिए विवश हो गएं। इन गाँव से आने जाने के एक मात्र रास्ते में ही इनक्लोजर निर्माण कर रास्ते को ही वन विभाग बंद करना चाहती है। परन्तु ग्रामीणों के विरोध के कारण वर्तमान में निर्माण कार्य बंद है।

वन विभाग ने गांव में कैद कर दिया है ग्रामीणों कोः

गाँव वालों को गाँव से बाहर आने पर भी वन विभाग ने रोक लगा दिया है। गाँव वालों के अनुसार पिछले दिनों उनके घर आने वाले मेहमानों को भी वन विभाग द्वारा गाँव में प्रवेश करने नहीं दिया गया। स्थिति ये है कि, पत्रकारों को भी गाँव की ओर जाने से वन विभाग मना कर रही है। इससे इस बात का अंदाजा लगाया जा सकता है कि, अंदर ही अंदर वन विभाग कोई ना कोई खिचड़ी जरुर पका रही है।

खतियानी दस्तावेज नहीं रहने के कारन जाति एवं आवासीय प्रमाण पत्र से वंचित हैं लाटू और कुजरुम के आदिवासीः

चूँकि ये दोनो गाँव वन क्षेत्र में हैं, जिसके परिणाम स्वरूप लोगों के पास खतियानी दस्तावेज़ ना होकर वन पट्टा है। खतियानी दस्तावेज़ ना होने के कारण यहाँ निवास कर रहे आदिवासियों का ना ही जनजातीय प्रमाण पत्र बन पाया है और ना ही उन्हे झारखंड के स्थाई निवासी होने का प्रमाण पत्र उपलब्ध हो पाया है। इन प्रमाण पत्रों के नहीं होने के कारण यहाँ के लोग राज्य एवं केंद्र सरकार की कई सारी योजनाओं से वंचित रह जाते हैं।

लाटू और कुजरुम गांव के लोग बोझिल मन से गांव छोड़ने के लिए हामी भरे थेः

2017 के पुनर्वास प्रस्तावना के पीछे, एक तरफ़ वन विभाग द्वारा संरचित परिस्थितियाँ थी, तो दूसरी तरफ़ वन विभाग द्वारा गाँव वालों को किए गए अनौपचारिक वादे थें। वन अधिकारियों ने ना सिर्फ पक्के मकान, अच्छी शिक्षा एवं उज्जवल भविष्य का सपना दिखाया, वरन लोगों को जाती प्रमाण पत्र तक दिलाने का वादा कर डाला। इस संदर्भ में लाटू और कुजरूम के लोगों ने बोझिल मन से अपने घर छोड़ने के लिए हामी भर दी।

वन विभाग ने लाटू और कुजरुम के ग्रामीणों को दिया था दो विकल्पः

वन विभाग द्वारा प्रस्तावित पुनर्वास राष्ट्रीय व्याघ्र संरक्षण प्राधिकार के दिशा निर्देश के अनुसार किया जाना था। इन निर्देशों के अनुरूप लाटू और कुजरूम गांव के निवासियों को दो विकल्प दिए गएं। पहले विकल्प के अंतर्गत लोग 10 लाख का मुआवजा लेकर अपने घरों से विस्थापित हो जाएँगे, और अपने पुनर्वासन की ज़िम्मेदारी वे ख़ुद उठाएँगे। इस विकल्प के तहत, 10 लाख की राशि देने के पश्चात, वन विभाग की पुनर्वास के प्रति कोई ज़िम्मेदारी नहीं रहेगी। झारखंड सरकार ने प्रथम विकल्प को और आकर्षित बनाने हेतु इसमें 5 लाख की अतिरिक्त राशि जोड़ दी। आसान शब्दों में, लोग 15 लाख लेकर अपने घर से बेदख़ल हो जाएँ और अपने पुनर्वास की व्यवस्था खुद करें।

कुजरुम और लाटू के ग्रामीणों को वन विभाग द्वारा दिये गए विकल्प.

दूसरे विकल्प में यह कहा गया कि, समुचित 10 लाख की राशि लोगों को ना देकर, वन विभाग उनके पुनर्वास से सम्बंधित कार्य करेगी। इस कार्य के तहत, वन विभाग लोगों को 5 एकड़ ज़मीन दिलाएगी, खतियानी हक़ दिलाएगी, उनके लिए मकान बनवाएगी, और सामूहिक सुविधाएँ (जैसे की सड़क, पेयजल, शौचालय, मोबाइल, बिजली इत्यादि) उपलब्ध कराएगी।

कूल 210 परिवारों में से 127 परिवारों ने चुना था दूसरा विकल्पः

इन विकल्पों का अध्ययन करने के बाद, कुजरूम गाँव के 120 परिवारों में से 70 परिवार ने दूसरे विकल्प को चुना, वहीं लाटू गाँव के 90 परिवारों में से 57 परिवार ने दूसरे विकल्प को चुना। कुजरूम गाँव वालों की सहमति से उनके विस्थापन की जगह लाई और पैलापत्थल गाँव में चुना गया, जो की एक आरक्षित वन भूमि है। लाटू गाँव वालों के लिए विस्थापन की जगह पोलपोल में चुना गया।  हालाँकि इस चिन्हित जगह पर लोगों की सहमति नहीं बन पाई थी, जिसे वन विभाग ने नज़रंदाज कर दिया।

पुनर्स्थापित क्षेत्र का दायरा 250 एकड़ से ज़्यादा होने पर सामूहिक सुविधाएँ उपलब्ध कराना वन विभाग की ज़िम्मेदारीः

राष्ट्रीय व्याघ्र संरक्षण प्राधिकार के निर्देशानुआर, वन विभाग ने लाई और पैलापत्थर में 70 परिवारों के लिए 350 एकड़ (सामूहिक सुविधाएँ हेतु अतिरिक्त 65 एकड़), और पोलपोल में 57 परिवारों के लिए 285 एकड़ (सामूहिक सुविधाएँ हेतु अतिरिक्त 48 एकड़, अनुमानित) ज़मीन मुहैया कराने की अनुसंशा की। सामूहिक सुविधाओं के लिए जो अतिरिक्त भूमि मुहैया करायी जा रही है, वह झारखंड पुनर्स्थापन एवं पुनर्वास नीति 2008 के अधीन है। इस नीति के तहत अगर पुनर्स्थापित क्षेत्र का दायरा 250 एकड़ से ज़्यादा होता है, तो सामूहिक सुविधाएँ मुहैया कराना अनिवार्य होगा, इसलिए लाटू और कुजरूम से पुनर्वासित हो रहे लोगों के लिए (जिन्होंने दूसरे विकल्प को चुना है) सामूहिक सुविधाएँ उपलब्ध कराना वन विभाग की ज़िम्मेदारी बनती है।

राज्य वन विभाग ने स्वीकार किया है कि, पुनर्वास कराए जा रहे जमीन का क्षेत्र, खाली कराए जा रहे जमीन के क्षेत्र से कम हैः  

ये सभी प्रक्रिया क़ानूनी विधि के अनुरूप की जा रही है, जिसका व्याख्यान ख़ुद वन विभाग अपने पत्राचार, जो की केंद्र सरकार के पर्यावरण, वन और जलवायु परिवर्तन मंत्रालय को सम्बोधित था (दिनांक 1/04/2022), में किया है। इस पत्राचार में राज्य वन विभाग ये स्पष्ट करता है कि पुनर्वास हेतु जो ज़मीन मुहैया करायी जा रही है, उसका कुल क्षेत्र (क़रीबन 750 एकड़) खाली करायी जा रही ज़मीन के कुल क्षेत्र (क़रीबन 827 एकड़) से कम है; अतः यह पुनर्वास पर्यावरण मंत्रालय द्वारा जारी दिशा निर्देश (दिनांक 22/05/2019) का अनुपालन करता है।

वर्तमान में जिम्मेदारी से बचते हुए दोहरा चरित्र अपना रही है वन विभागः

जैसे-जैसे पुनर्वास का समय नज़दीक आता जा रहा है, वन विभाग का दोहरा चरित्र देखने को मिल रहा है। कुछ दिनों पूर्व, वन विभाग ने विकल्पों को दरकीनार करते हुए, ऐसे ग्रामीणों (जिन्होंने दूसरा विकल्प चुना था) को प्रथम विकल्प के तहत 15 लाख रुपये उनके अकाउंट में 5 साल के लिए फिक्स कर दिया गया है। ग्रामीणों की मांग है कि हमें रुपया नहीं चाहिए, हमें 5-5 एकड़ जमीन और जो वादा किया गया था उसे पुरा करे वन विभाग। ऐसे में वन विभाग अपने निर्धारित ज़िम्मेदारियों से बचता दिख रहा है। दूसरी ओर, वन अधिकारी लाटू और कुजरूम के ग्रामीणों को, पर्यावरण मंत्रालय के 2019 के दिशानिर्देश का ग़लत हवाला देते हुए, यह कह रहे हैं कि उनकी पुनर्स्थापित ज़मीन 5 एकड़ ना होकर केवल उतनी ही मिलेगी जितना उनका तत्कालीन वन पट्टा है। यह बात स्पष्ट करना ज़रूरी है कि वन पट्टा में उल्लिखित भूमि, माँगी गई भूमि से अक्सर कम रहती है।

5 साल के लिए 15 लाख रुपये वन विभाग ने किया फिक्स.

क़ानूनी विधि की अवहेलना कर रहा है वन विभाग, पिस रहे हैं लाटू और कुजरुम के गरीब आदिवासीः

अगर आंकलन किया जाए तो वन विभाग अपनी सामूहिक सुविधाएँ (बिजली, पेयजल इत्यादि) उपलब्ध करने की ज़िम्मेदारियों से भी बचता फिर रहा है। झारखंड पुनर्स्थापन एवं पुनर्वास नीति 2008 के अनुसार यह जिम्मेदारियाँ तभी लागू होती हैं जब पुनर्स्थापित क्षेत्र का दायरा 250 एकड़ से ज़्यादा हो। परंतु, वन विभाग द्वारा वन पट्टा के समकक्ष पुनर्स्थापित ज़मीन मुहैया कराना, कुल पुनर्स्थापित क्षेत्र की सीमा को 250 एकड़ से कम पर ले आता है। ऐसी परिस्थिति में वन विभाग न केवल अपने वादों से मुकरता दिख रहा है, परंतु क़ानूनी विधि की भी अवहेलना कर रहा है। ऐसे में लाटू और कुजरूम के ग़रीब आदिवासी पिसते दिख रहे हैं, जिन्हें हर दिन एक नया सपना दिखाया जाता, और दूसरे दिन उस सपने को तोड़ दिया जाता है।

बदलती परिस्थितियों में गाँव वालों ने अपने के हक़ के लिए रखी दो माँगे :-

  • अगर विस्थापन होता है, तो सम्पूर्ण ग्रामीणों की सहमति से हो, और हर उस वादे को पूरा किया जाय जो वन विभाग ने ग्रामीणों से किया है। वन विभाग कुजरूम गांव के 70 और लाटू गांव के 57 परिवारों के लिए प्रति परिवार 5 एकड़ ज़मीन, मकान, प्रोत्साहना राशि, खतियानी दस्तावेज़ एवं सामूहिक सुविधाएँ (जैसे बिजली, पानी, मोबाइल, सड़क इत्यादि) उपलब्ध कराए।
  • अगर वन विभाग अपने पुनर्वास के वादे को पूरा नहीं करती है, तो वह लाटू और कुजरूम में रह रहे ग्रामीणों की पीड़ा को समझे, और उन्हें भारत के आम नागरिक को मिलने वाली सभी सरकारी लाभ से वंचित ना करें।

 

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