धान के फसल की तरह हुई है अफीम की खेती, तुंजु मोड़ से दशमफॉल तक कश्मीर सा नजारा…
रिपोर्ट- संजय वर्मा…
रांचीः झारखंड के खूंटी और आसपास के जिलों में इस बार बड़े पैमाने पर अफीम की खेती हुई है। अफीम की खेती करने वालों को ये नहीं पता कि इसका उपयोग किस-किस कार्यों में होता है, लेकिन इन्हें ये जरुर पता है कि अफीम ही वह फसल है, जिसमें सबसे ज्यादा मुनाफा है। इसलिए बेरोजगारी की मार झेल रहे खूंटी और आसपास के जिलों में बेरोजगार युवकों में बड़े पैमाने पर अफीम की खेती की ओर रुझान बढ़ा है।
झारखंड अलग राज्य बनने के बाद, खूंटी जिले में नक्सल प्रभावित ईलाकों तक पुलिस की पहुंच नहीं होने के कारन सुदूर ग्रामीण ईलाकों में चतरा और हजारीबाग जिले के अफिम माफियों द्वारा ग्रामीणों से अफीम की खेती करवाई जाती थी। खेती के लिए बीज से लेकर खाद और कीट नाशक दवा भी इनके द्वारा ही उपलब्ध करवाया जाता था। फसल तैयार हो जाने के बाद प्रति एकड़ के हिसाब से इन्हें रुपये का भुगतान किया जाता था। उस दौरान जिले में अफीम की खेती करने वालों को घर से पूंजी नहीं लगाना पड़ता था। तीन महिने घर बैठे काम करने के एवज में इन्हें अच्छी खाशी कमाई हो जाती थी।
दूसरे जिले के अफीम माफियाओं से सीखा खेती करना, अब स्वयं पूंजी लगा कर, कर रहे हैं खेतीः
अफिम माफियाओं से अफीम की खेती करने का गुढ़ सीखने के बाद अब यहां के सुदूर ग्रामीण क्षेत्रों में बड़े पैमाने पर अफीम की खेती की जा रही है। अफीम की खेती का आंकड़ा वर्ष प्रति वर्ष बढ़ता ही जा रहा है। खाश कर बेरोजगार युवाओं का रुझान अफीम की खेती की ओर ज्यादा है। कम समय में अधीक कमाई इनका उद्देश्य है, जो अफीम की खेती कर ये पुरा कर पाते हैं।
सिर्फ खूंटी जिले में कम से कम 4,000 एकड़ भू-भाग में हुई है अफीम की खेतीः स्थानीय पंचायत जनप्रतिनिधि
वर्ष 2021-22 में खूंटी जिले में रिकॉर्ड तोड़ अफीम की खेती हुई है। जिले के 6 में से कोई भी प्रखंड ऐसा नहीं, जहां अफीम की खेती नही की गई है। सबसे ज्यादा अफीम की खेती जिले के मुरहू, अड़की और खूंटी प्रखंड में हुई है। बीते शुक्रवार को “ताजा खबर झारखंड” की टीम ने रांची और खूंटी जिला के बोर्डर पर स्थित तुंजु मोड़ से लेकर दशमफॉल के मुख्य गेट से होते हुए तैमारा घाटी तक कूल 18 किलोमीटर का दौरा किया। दौरे के क्रम में हमारी टीम ने इस सड़क पर 50 से भी अधीक प्रतिबंधित अफीम के खेतों की तस्वीर अपने कैमरे में कैद की। इससे आप अनुमान लगा सकते हैं कि, कितने बड़े पैमाने पर इस सीजन में अफीम की खेती की गई है।
नामकुम प्रखंड अंतर्गत तुंजु नाला के पश्चिम दिशा में सड़क से ही 6 अफीम के खेत दिखाई पड़ रहे हैः
बीते शुक्रवार को नामकुम प्रखंड स्थित रिंग रोड़ से होते हुए जब ताजा खबर झारखंड की टीम तुंजू नाला(तुंजु नदी)के समीप पहुंची, जो नामकुम प्रखंड में ही पड़ता है। यहां तुंजु ब्रिज के पश्चिम दिशा में सड़क से ही दूर तलक अफीम के सफेल फूंलों से लदी फसल दिखाई पड़ रही है। रास्ते से गुजर रहे राहगीर भी कुछ देर रुक कर ये समझने की कोशिश करते नजर आते हैं कि ये कौन सी फसल खेतों में लही हुई है? यहां एक लाईन से अफीम के आधा दर्जन से भी अधीक खेत सड़क से ही दिखाई पड़ रही है। इन खेतों में पटवन के लिए नदी किनारे तीन पंप सेट भी लगे दिखें, और पास में अफीम का उत्पादन करने वाले युवक एक जगह जमा हो कर ताश खेलने के साथ साथ खेतों की निगरानी करते हुए भी दिखें। यहां खेतों तक जा कर वीडियो बनाना संभव नही था। क्योंकि तुंजु नाला के पास बाईक रोक कर खड़े होने पर ही ताश खेल रहे लड़के घुरने लगें।
तुंजु चौक से दशम फॉल चौराहा के बीच रेमता, सान्डासोम, मगुवारा और कुजराम में सैंकड़ो एकड़ भू-भाग में लगी है अफीम की फसलः
तुंजु मोड़ से जैसे ही आप पुरब दिशा की ओर बढ़ते हैं, यहां सबसे पहले रेमता डैम मिलती है और ठीक इससे आगे रेमता नाला है। इस नाले के उत्तर और दक्षिण दिशा में बड़े पैमाने पर अफीम की खेती की गई है। जैसे-जैसे आप नाला के किनारे-किनारे दोनों ओर बढ़ते जाएंगे यहां अफीम के खेत आपको नजर आते जाएगी। यहां नाले के उपर बने ब्रीज से लगभग आधा दर्जन अफीम के खेत दिखाई पड़ रहे हैं।
सान्डासोम में भी सड़क के किनारे से ही अफिम के खेत दिख रहे हैं। यहां अफीम उत्पादकों ने फसल को राहगीरों से छुपाने के लिए पुटुस की झांड़ी से खेत के चारो ओर घेरा बंदी कर रखी है, ताकि सड़क से गुजरने वाले राहगीर अफीम की फसल को ना देख सकें।
इस सड़क पर जहां मगुवारा नाम से माईल स्टोन लगा हुआ है, यहां खड़े होकर आप कश्मीर सा नजारा देख सकते हैं। मगुवारा माईल स्टोन के दक्षिण दिशा में सफेद और गुलाबी रंग के फूलों से पुरा घाटी अटा पड़ा है। यहां सड़क से ही आप 2 दर्जन से भी अधीक अफीम के खेत देख सकते हैं।
मगुवारा से आगे बढ़ने पर कुजराम नामक गांव मिलता है, जो सड़क के किनारे ही दोनो ओर स्थित हैं। यहां घरों की संख्या लगभग दो दर्जन होगी। इस गांव से पहले और गांव से आगे बढ़ने पर भी अफीम के खेत सड़क से ही दिखाई पड़ रहे है। अनुमानतः यहां भी लगभग 10 एकड़ भू-भाग में अफीम की फसल लगाई गई है।
रांची जिला के दशम फॉल थाना के ठीक बार्डर पर एक नाला बह रहा है, यहां भी नाले के दोनों ओर उत्तर और दक्षिण दिशा में अफीम की फसल लगी हुई है।
अफीम की फसल देख कर भी पुलिसकर्मी कर रहे हैं नजर अंदाजः
बिते रविवार(6 मार्च) को भी ताजा खबर झारखंड की टीम उस क्षेत्र में समाचार संकलन के लिए गई हुई थी। यहां खूंटी पुलिस को तुंजु चौक और दशमफॉल चौक के पास वाहन चेकिंग करते हुए देखा गया। तुंजु चौक के पास पुलिस जवानों का नेतृत्व कर रहे एसआई से हमने पुछा, कुछ विशेष सूचना पर चेकिंग अभियान चला रहे हैं या रुटीन वर्क है? इस पर उन्होंने कहा कि कुछ विशेष ही समझ लिजिए। मैंने कहा अफीम की तलाशी हो रही है क्या? इस पर एसआई महोदय हंसने लगें। मैने कहा आप जहां खड़े हैं, जरा वहीं से दक्षिण दिशा की ओर नजर उठा कर देख लिजिए। एसआई महोदय ने कहा देख चुके हैं सर, लेकिन नामकुम प्रखंड में पड़ता है। फिर मैने कहा यहां से तीन किलोमीटर आगे बढ़िए, वो आपका क्षेत्र पड़ता है। इस पर उन्होंने फिर हंसते हुए कहा। क्या किजिएगा सर बाप-दादा के जमाने से कर रहा है, कितनो झाड़ दिजिए वो अगले साल फिर लगाएगा।
हां सर, अब अफीम की खेती करने वाले नहीं डरते हैंः स्थानीय जनप्रतिनिधि
इस पूरे मामले पर मैंने तुंजु मोड़ से तैमारा घाटी के बीच स्थित गांव के एक जन प्रतिनिधि से बात की। नाम नहीं छापने की शर्त पर उन्होंने मुझ से इस पुरे मामले पर बात की। बातचीत का अंश मैं हुबहु लिख रहा हूः-
सवालः जिस तरह बरसात के मौसम में धान की खेती ग्रामीण करते हैं, उसी तरह इस बार अफीम की खेती हुई है, ऐसा क्यों? जबकि ये प्रतिबंधित है? पकड़े जाने पर एनडीपीएस एक्ट के तहत 10 साल तक की सजा और 1 लाख का जुर्माना भी लग सकता है?
जनप्रतिनिधिः ये सवाल तो आप उन युवाओं से पुछिए, जो अफीम की खेती कर रहे हैं।
सवालः युवा तो जागरुक नहीं हैं। जिला और पुलिस प्रशासन ने आप जनप्रतिनिधियों को विशेष जिम्मेवारी सौंपी है, युवाओं को इसके प्रति जागरुक करने की और जहां भी अफीम की खेती हुई है, उसकी सूचना भी आप लोगों को पुलिस और जिला प्रशासन को देना है।
जनप्रतिनिधिः ये आदेश देना बहुत आसान है। हमलोग किस तरह क्षेत्र में काम करते हैं, ये प्रशासन को नही पता। ऐसा नही है कि हमलोग ग्रामीणों को जागरुक नही करते हैं। पूर्व में कई बार कर चुके हैं, लेकिन वे लोग मुझे ही कहते हैं की नौकरी लगवा दो खेती नहीं करेंगे। मैं कहां से दुं गांव वालों को नौकरी? गांव में कोई एक व्यक्ति करे तो उसे रोका जा सकता है, लेकिन यहां तो बहुत सारे लोग करने लगे हैं। किस-किस को रोकूं। ये लोग मुझे ही धमकाते हैं, कि पुलिस को खबर करने पर अंजाम बुरा होगा, ऐसे मे मैं क्या कर सकती हूं। सिर्फ मैं नहीं और भी लोगों को धमकी मील चुकी है।
सवालः प्रशासन आप लोगों को सुरक्षा नहीं देती है क्या?
जनप्रतिनिधिः अगर सुरक्षा देती तो, जनप्रतिनिधियों पर हमला नही होता। एक जनप्रतिनिधि को तो ये लोग मार भी चुका है।
सवालः पुलिस तो लगातार इस क्षेत्र में वाहन चेकिंग करते नजर आती है?
जनप्रतिनिधिः सब दिखावा है। इनलोगों को पता है कि कहां-कहां अफीम का खेत है। लेकिन जानबुझ कर ये लोग कार्रवाई नही करते हैं। अफीम का जितना अधीक खेती होगा, इनको उतना लाभ होगा।
सवालः पुलिस को लाभ कैसे होगा?
जनप्रतिनिधिः सर रहने दिजिए आप सब जानते हैं।
सवालः नहीं, मुझे नहीं पता कैसे होगा लाभ?
जनप्रतिनिधिः गांव में जितने भी लोग अफीम की खेती कर रहे हैं, सभी लोग मील कर पैसा देते हैं, इसलिए अब बेखौफ ये लोग खेती कर रहे हैं।
सवालः इस हालात में कैसे रुकेगा अफीम का खेती? यही रवैया रहा तो लोग आने वाले समय में और भी ज्यादा अफीम की खेती करेंगे।
जनप्रतिनिधिः हां सर, अब कोई भी नहीं डरता है।
सवालः लेकिन कभी-कभी तो पुलिस अफीम झाड़ते नजर आती है। वो भी विशेष अभियान चला कर। खूंटी में पिछले दो माह से लगातार अभियान चल रहा है।
जनप्रतिनिधिः सब दिखावा है, झाड़ेगा एक डिसमिल में अखबार में छपेगा एक एकड़ में।
सवालः इस हालात में कैसे रुकेगा अफीम का खेती? अभी तो लोग अफीम का सेवन नही कर रहे हैं, लेकिन आने वाले समय में तो सेवन भी करने लगेगा लोग, कितने घर बर्बाद होंगे पता है आपको?
जनप्रतिनिधिः सर इनलोगों को ये पता नही है कि अफीम से क्या बनता है या इसका क्या होगा। इनलोगों को सिर्फ इतना पता है कि अफीम का लस्सा महंगा बिकता है। इतना कमाई किसी भी फसल में नहीं होता है। इसलिए लोग इसका खेती करते हैं।
सवालः खरीदता कौन है?
जनप्रतिनिधिः सब सेटिंग है सर। इनलोगों को बेचने के लिए कहीं जाना नहीं पड़ता है। खरीददार गांव में ही आ जाते हैं। कई लोग तो एडवांस में पैसा लेकर खेती करते हैं। अभी देखिएगा ना, गांव में कितना नया-नया बाईक नजर आएगा।
सवालः नया नया बाईक, नहीं समझें?
जनप्रतिनिधिः अफिम बेच कर जो पैसा मिलेगा, उससे लड़का लोग बाईक खरीदेगा।
सवालः अच्छा, तो बाईक खरीदने के लिए लड़का लोग अफीम का खेती करता है?
जनप्रतिनिधिः हां लड़का लोग तो खरीदबे करता है।
सवालः आपलोग कोई सुझाव क्यों नही देते हैं पुलिस या जिला प्रशासन को, ये गलत काम रोकने के लिए।
जनप्रतिनिधिः देखिए सर, हमलोग अपनी समस्या बता चुके हैं। अब मरना नही है ना, जिन्दा रहेंगे तभी ना कुछ होगा।
सवालः ये तो ठीक है, लेकिन गलत दिशा में गांव-समाज को जाने से रोकना तो होगा ना?
जनप्रतिनिधिः सर हमलोग से भी बड़े-बड़े जनप्रतिनिधि भी हैं ना, उनलोगों को पुलिस क्यों नही बोलती है सूचना देने के लिए। सांसद, विधायक क्या सिर्फ कुर्सी तोड़ेगा। उनके लोग(कार्यकर्ता) भी तो कर रहे हैं खेती। प्रशासन को समझना होगा ना।
संवाददाताः चलिए, अच्छा लगा आप से बात करके, आपने पुरी बात अच्छे तरीके से रखा, धन्यवाद….
जन प्रतिनिधि के जवाब से स्पष्ट हो चुका है कि, अफीम की खेती, खेती करने वाले ग्रामीणों के साथ-साथ कई लोगों के लिए अवैध कमाई का जरीया बन चुका है। इसमे अफीम उत्पादक किसान, स्थानीय अपराधी, पुलिस और अफीम तस्कर शामिल हैं। जब इतने सारे लोगों के लिए अफीम की खेती विलासीतापूर्ण जीवन जीने का रास्ता आसान कर रहा है, तो कोई कारन नहीं कि इस प्रतिबंधित खेती पर रोक लगाने का प्रयास संबंधित विभाग के लोग करें।
क्या कहती है एनडीपीएस एक्ट की धारा-17:-
एनडीपीएस एक्ट की धारा-17 के तहत जो कोई भी व्यक्ति अफीम का उत्पादन करता है, कब्जे में रखता है, खरीद-बिक्री करता है, तो ऐसा करने वाले को दंडित किया जाएगा, जो इस प्रकार हैः-
1)छोटी मात्रा में अफीम के साथ पकड़े जाने पर व्यक्ति को 1 साल के कारावास की सजा और 10,000 रुपये जुर्माने का प्रावधान है।
2) 1 किलोग्राम से अधीक, व्यापारिक मात्रा के साथ पकड़े जाने पर 10 से 20 साल तक की सजा और जुर्माने की राशि 1 से 2 लाख रुपये हो सकती है।
नक्सलियों पर लगता रहा है अफीम की खेती को बढ़ावा देने का आरोप, लेकिन वर्तमान में खूंटी जिला नक्सली विहीन हैः
पूर्व में देखा गया है कि जिन-जिन ईलाकों में पुलिस की पहुंच नही थी, जहां नक्सलियों की पकड़ थी, उन क्षेत्रों में अफीम की खेती ज्यादा करते देखा गया है। शायद यही वजह रही कि प्रशासन द्वार ये कहा जाता रहा है कि, लेवी उगाही के लिए नक्सली अफीम की खेती को बढ़ावा दे रहे हैं। लेकिन खूंटी जिला के परिदृश्य में नजर डालें, तो सन् 2008 में खूंटी जिला का निर्माण किया गया। जिले के प्रथम एसपी प्रभात कुमार बनाए गएं। एसपी, प्रभात कुमार ने ही सबसे पहले खूंटी जिला में अफीम की खेती रोकने के लिए जागरुकता अभियान शुरु किया और अफीम की फसल को रौंदने का भी काम किया। लेकिन 13 वर्षों बाद खूंटी जिला में नक्सलियों का लगभग सफाया हो चुका है, लेकिन अफीम की खेती में कम से कम 10 गुणा अधीक बृद्धि हुई है। इससे स्पष्ट होता है कि अफीम की खेती का ठीकरा नक्सलियों पर फोड़ना बिल्कूल गलत साबित हुआ है।
कहीं ना कहीं क्षेत्र में मौलिक सुविधाओं का नहीं पहुंच पाना, रोजगार का कोई साधन नही होना, खेती के लिए सिंचाई की व्यवस्था का नही होना, लोगों के बीच शिक्षा का सही साधन नही होना, अफीम की खेती की ओर रुझान का मुख्य कारक है। यहां के लड़के-लड़कियां रोजगार के लिए महानगरों की ओर पलायन करते हैं। वर्तमान में अफीम की खेती, जो कम समय और कम पूंजी में अच्छा मुनाफा दे रहा है। इसलिए प्रतिबंधित होने के बावजुद यहां के युवाओं का रुझान अफीम की खेती की ओर बढ़ा है। अगर सरकार इन्हें मौलिक सुविधा उपलब्ध कराने के साथ साथ रोजगार उपलब्ध कराने की दिशा में बेहतर कदम उठाती है, तो इस अवैध कार्य को रोका जा सकता है।