पूर्व में बिना नक्शा पास करवाए मकान बनवा चुके मकान मालिकों के लिए अच्छी खबर…..

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रिपोर्ट- बिनोद सोनी…

राँची: विगत कुछ दिनों से राँची शहर में जिला प्रशासन और राँची नगर निगम द्वारा अतिक्रमण हटाने का काम जारी है। साथ ही शहर में अवस्थित वैसे भवन जो पूर्व में बने हुए है, लेकिन जिसका नक्शा पास नही है, उन्हें भी नोटिस दिया जा रहा है, जिससे राँची शहर की जनता भय के माहौल में जीने को विवश हो चुके हैं।

झारखंड उच्च न्यायालय द्वारा नदी- नालों को अतिक्रमण मुक्त करने का फरमान जारी किया गया है, लेकिन हाईकोर्ट के इस आदेश की आड़ में प्रशासन द्वारा राँची शहर में पूर्व में से बने मकान जिसका नक्शा पास नहीं हैं, उसे भी तोड़ने को लेकर नोटिस जारी किया जा रहा है।

रांची जिले में 1 लाख 80 हजार भवन बिना नक्सा पास किए बनाया गया हैः

गौरतलब है की राँची शहर में लाखों ऐसे मकान हैं, जो की भूंईहरी, खास महल और आदिवासी जमीन में बनाया गया है, जिसका नक्शा पास नहीं किया जा सकता है, ऐसे लगभग 1 लाख 80 हजार मकान हैं जिसे तोड़ने का खतरा मंडरा रहा है। लेकिन सवाल ये खड़ा होता है कि, क्या सरकार राँची शहर के 1 लाख 80 हजार घरों को तोड़ने में सक्षम है?  अगर नहीं तो इस तरह का भय का माहौल बनाना उचित नहीं हैं। ये कहना है रांची के उपमहापौर और रांची नगर निगम के सभी 54 पार्षदों का।

झारखंड उच्च न्यायालय में दायर किया जाएगा पीआईएलः

इस गंभीर विषय को लेकर उपमहापौर संजीव विजयवर्गीय की अध्यक्षता में 33 वार्ड पार्षदों की एक महत्वपूर्ण बैठक हुई। बैठक में भवन मालिकों को भवन तोड़ने के लिए दिए जा रहें हैं नोटिस की समीक्षा की गयी, जिसमें सर्वसम्मति से निर्णय लिया गया कि, रांची के उपमहापौर संजीव विजयवर्गीय के नेतृत्व में सभी पार्षद PIL के माध्यम से राँची शहर के सभी भवनों को Regularize कराने के लिए न्यायालय की शरण में जाएंगे। इसमें डिप्टी मेयर के साथ सभी पार्षद, पार्टी बनेंगे, साथ ही राँची शहर के कई स्वयंसेवी संस्था, सामाजिक संस्था के साथ बुद्धिजीवी वर्ग पीआईएल के Petitioner बनेंगे।

स्थाई समाधान के लिए राज्य सरकार ने अब तक नहीं किया कोई प्रयासः

कई वर्षों से राज्य के नगर विकास विभाग से पूर्व में बने भवनों को Regularize कराने का प्रयास किया जा रहा है, लेकिन झारखण्ड सरकार द्वारा अब तक भवनों को Regularize कराने हेतु किसी तरह की गाईड लाईन बनाया गया है। यही कारन है कि राँची शहर के जनप्रतिनिधि न्यायालय की शरण में जाने के लिए बाध्य हो गये हैं,  जिससे की इस गंभीर विषय का समाधान त्वरित गति में किया जा सकें।

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