पिछले 4 सालों से गुवा के पंचायत भवन में जानवरों की तरह जीने को विवश हैं 12 विस्थापित परिवार.
रिपोर्ट- संजय वर्मा….
नोवामुंडीः झारखंड के किसी भी जिले में सरकार या फिर प्राईवेट कंपनी द्वारा जमीन अधिग्रहण की जाती है, तो वहां के लोग विरोध करना शुरु कर देते हैं। अधिग्रहण वाले क्षेत्र में विरोध का एक सामुहिक स्वर सुनाई पड़ता है “जान देंगे, लेकिन जमीन नहीं देंगे”। जमीन अधिग्रहण के विरोध में धरना-प्रदर्शन शुरु कर दिया जाता है, आखिर क्यों? लोग जान देने के लिए तैयार रहते हैं, लेकिन जमीन देने के लिए नहीं। इसके पीछे कई कारन हैं, जिसे समझना जरुरी है।
4 साल पूर्व विस्थापित करने के दौरान जिला प्रशासन ने 15 दिनों के अंदर आवास उपलब्ध करवाने का किया था वादाः
ताजा उदाहरण है पश्चिम सिंहभूम जिला, नोवामुंडी प्रखंड के गुवा पंचायत का। यहां 30 परिवार पिछले चार सालों से भेंड़ बकरियों की तरह एक ही पंचायत भवन में सेल के अधिकारी और प्रखंड विकास पदाधिकारी द्वारा लाकर रखे गए थें। इस आश्वासन पर कि 15 दिन बाद आवास मुहैया करवा दिया जाएगा। लेकिन 4 साल बाद भी सेल के अधिकारी और जिला प्रशासन का 15 दिन पुरा नहीं हुआ। इस पंचायत भवन में अब भी 12 परिवार अपने सर पर छत और दो वक्त की रोटी के लिए जद्दोजहद करते नजर आ रहे हैं।
30 परिवारों को चार साल पूर्व तात्कालीन बीडीओ ने पंचायत भवन में लाकर रखवाया थाः
यहां पंचायत भवन के एक हॉल में रहने वाले 12 परिवारों में से एक, मंगल हेम्ब्रम बताते हैं कि, हमारे पूर्वजों को कंपनी ने वर्षों पूर्व खदान में काम करने के लिए गुवा स्थित उपरधौड़ा जिसे बिरसा नगर के नाम से भी जाना जाता है, वहां बसाया था। यहां हमलोगों की तीन पीढ़ी गुजर गई। मैं लगभग 65 साल का हूं। मेरा जन्म उपरधौड़ा(बिरसा नगर) में ही हुआ था। चार साल पहले उपरधौड़ा पहाड़ के उपर जहां हमलोगों का घर था वहां से हटने के लिए कहा गया, क्योंकि सेल कंपनी को वहां लौह अयस्क का खुदाई करना था। उस दौरान वहां लगभग 250 परिवार रहते थें। कंपनी ने 160 परिवारों को आवास बना कर दूसरे जगह पर बसा दिया, लेकिन हमलोगों को बोला आप लोग यहां से हटो 15 दिनों के अंदर बचे हुए लोगों को भी आवास दे दिया जाएगा। उस वक्त सेल कंपनी के अधिकारी और बीडीओ पुलिस लेकर हमलोगों को हटाने के लिए पहुंचे थें। जब हमलोगों ने विरोध किया तो जबरन 30 परिवारों को वहां से लाकर इस पंचायत भवन में जानवरों की तरह ठूंस दिया गया और कहा कि जल्द ही आपलोगों को घर दे दिया जाएगा। लेकिन साल दर साल गुजरते गया, ना ही बीडीओ हमलोगों की सुध लेने कभी पहुंचे ना ही कंपनी के अधिकारी।
12 परिवारों में दो बुजूर्गों की स्थिति काफी दैनियः
दो साल पूर्व लोकडाउन के समय तात्कालीन बीडीओ पंचायत भवन पहुंचे थें। हमलोगों को राशन दे कर चले गएं। जब हमलोगों ने नोवामुंडी जा कर बीडीओ से पुछा कि हमलोगों को आवास कब मिलेगा? तो बीडीओ ने कहा की आप लोग अपना व्यवस्था खुद कर लिजिये। इसके बाद जो लोग सक्षम थें, वे अपने परिवार लेकर यहां से चले गएं। वर्तमान में 12 परिवार(रानी बेंकुड़ा, सुनिता चंपिया, डुका चंपिया, सुमति पान, मंगल हेम्ब्रम, जेमा पिंगुवा, कुवांरी केरकेट्टा, राउतु पुर्ति, संगीता नायक, यामी तुबिद, जयमणी बागे, बुधु कुम्हार) इसी पंचायत भवन में चार सालों से रह रहे हैं। हमलोगों के पास कोई रोजगार नही है। यहां के कई पुरुष कहीं मजदुरी मिलने पर मजदुरी कर लेते हैं और ज्यादातर महिलाएं सेल के अधिकारियों और कर्मचारियों के घरों में घरेलू नौकरानी का काम करती है। यहां शरीर से लाचार दो बुजूर्ग भी रखे गए हैं, जिनके परिवार में कोई सदस्य नहीं हैं। उन्हें भी बेबस हालत में मरने के लिए छोड़ दिया गया है। चुंकि उपरधौड़ा में हम लोग आसपास ही एक परिवार की तरह रहते थें, इसलिए हमलोग जो थोड़ा बहुत मेहनत मजदुरी करके कमाते है, उसी से इन दोनों असहाय बुजुर्गों को भी खाना खिलाते हैं।
बीडीओ ने पंचायत भवन में हमलोंगो को रहने के लिए जगह दिया था, अब पंचायत के कर्मी हमलोगों को कर रहे हैं प्रताड़ितः विस्थापित
एक हादसे में अपने पति को खो चुकी रानी बेंकुड़ा बताती है कि, मैं घरों में नौकरानी का काम करके किसी तरह गुजर बसर कर रही हूं। बारिश के मौसम में हमलोगों को खाना बनाने में बहुत दिक्कत होती है। हमलोगों को पंचायत भवन के अंदर खाना बनाने नहीं दिया जाता। हमलोग लकड़ी में खाना बनाते हैं और बारिश में लकड़ी नहीं जलती है। इतने सारे लोगों के बीच अपनी जवान बेटी को लेकर रहते हैं। उसे पढ़ने में बहुत दिक्कत होती है। विधवा महिला, रानी बेंकुड़ा अपनी पीड़ा बताते हुए रोने लगती है और कहती है कि, हमलोगों के सर पर पहले छत हुआ करता था, जिसमें जैसे चाहे वैसे रहा करते थें, लेकिन कंपनी और बीडीओ ने हमलोगों को बेघर कर दिया। हमलोगों को सरकार से कोई सुविधा नहीं मिलता है। पंचायत भवन के कर्मचारी भी हमलोगों को डांटते रहते हैं कि, तुमलोग यहां से भागो, जबकि उस समय के बीडीओ, समरेश भंडारी सर ने हमलोगों को यहां रखा है। ऐसे में हमलोग जाएं तो कहां जाएं?
बारिश के दौरान भी खुले में खाना बनाती हूं, मुझे पढ़ने में परेशानी होती हैः छात्रा
10वीं कक्षा में पढ़ाई कर रही रानी बेंकुड़ा की बेटी, शिवानी कुमारी बताती है कि, यहां रहने में बहुत दिक्कत होती है। मां जब घरों में काम करने जाती है, तो मुझे पंचायत भवन में अकेले ही रहना पड़ता है। बाहर खुले में बैठ कर मैं लकड़ी से खाना बनाती हूं। यहां मैं पढ़ाई भी नहीं कर पाती हूं। स्कूल का फीस भी मां समय पर नहीं दे पाती है, मैं आगे भी पढ़ना चाहती हूं, लेकिन मां के पास पैसा नहीं रहने के कारन मुझे परेशानी हो रही है। घरों में काम करके मां को जो पैसा मिलता है, उसी से हमलोगों का खाना-पीना होता है।
दतुवन और पत्ता बेच कर गुजारा करती थी, अब शरीर से लाचार हूः विस्थापित बुजूर्ग
पंचायत भवन में ही पिछले चार वर्षों से रह रही महिला सुमति पान बताती है कि, मैं अकेली बुजुर्ग महिला हूं। मेरे परिवार में कोई नहीं है। मैं दतुवन और पत्ता बेच कर अपना गुजारा किया करती थी। लेकिन अब हांथ पैर भी नहीं चलता है। मुझे 1 हजार मेंशन मिलता है, उसी से मैं अपना गुजारा करती हूं। मेरे पास राशन कार्ड भी नहीं है, कई बार आवेदन दे चुकी हूं लेकिन अब तक मेरा राशन कार्ड नहीं बना है। यहां रह रही सभी विस्थापित महिलाएं घरों में जा कर नौकरानी का काम करती है, उसी से इनके परिवार का गुजारा चलता है।
लाचार विस्थापित परिवारों की दया पर जिंदा है 2 बुजूर्गः
इसी पंचायत भवन में लगभग 90 वर्षीय बुजूर्ग भी रहते हैं जो देखने और सुनने में सक्षम नही है। ये बुजुर्ग यहां रहने वाले लोगों की दया पर जिंदा है। बुजुर्ग बताते हैं कि मेरे परिवार में कोई सदस्य नही हैं। कोई लाकर खाना देता है, तो हम खा लेते हैं। कभी-कभी तो भूखे पेट ही सोना पड़ता है।
निहायत ही गरीब परिवारों को दिया गया हरा कार्डः
उपरधौड़ा से विस्थापित हुए लोगों में से एक संगीता नायक बताती हैं कि, चार सालों से मेरा सामान पंचायत भवन में पड़ा हुआ है। हमलोगों को तात्कालीन बीडीओ समरेश भंडारी ने कहा था कि 15 दिनों के अंदर घर दे दिया जाएगा, लेकिन इस बारे में अधिकारी 4 साल बाद भी मौन साधे हुए हैं। इन सभी के पास राशन कार्ड नही था। मैंने इन सभी का आवेदन स्वयं जा कर कार्यालय में जमा किया और इनमें से कुछ लोगों ने खुद भी जमा किया था। जब लिस्ट में इनलोगों का नाम आया, तो देखा गया कि सभी का नाम हरा कार्ड की सूची में शामिल है। इस बाबत जब मैंने कार्यालय जा कर जानकारी मांगी तो मुझे बताया गया कि, लाल कार्ड का कोटा खत्म हो गया है। जब आएगा, तब इनलोगों का लाल कार्ड बना दिया जाएगा। लेकिन आज तक इन लोगों का लाल कार्ड नहीं बना है। जबकि लाल कार्ड उनलोगों को देना है, जो गरीबी रेखा से नीचे हैं, जो झोपड़ी या मिट्टी से बने कच्चे मकान में रह रहे हैं। इन गरीब आदिवासियों से पहले इनका घर, जमीन, खेती-बारी लूट लिया गया, ये कह कर कि आप सभी को रहने के लिए आवास दिया जाएगा। लेकिन हम सभी लोग सेल के अधिकारी और जिला प्रशासन द्वारा ठगे गए हैं। हमलोगों से हमारा जीने का अधिकार ही छिन लिया गया है। इससे तो बेहतर होता कि हमलोगों को वहीं गोली मार दिया जाता। सिर्फ हमारी जमीन लूटने के लिए उस समय हमलोगों से झुठा वादा किया गया था।
पंचायत भवन का काम विस्थापितों के रहने से बाधित हो रहा हैः अनुज बांडो, बीडीओ, नोवामुंडी
इस पुरे मामले में नोवामुंडी प्रखंड के प्रखंड विकास पदाधिकारी, अनुज बांडों से बात की गई। इन्होंने पंचायत भवन में पिछले चार सालों से रह रहे 12 परिवारों के लिए सेल(STEEL ATHORITY OF INDIA LIMITED)के अधिकारियों को दोषी ठहराया। प्रखंड विकास पदाधिकारी ने कहा कि पंचायत भवन में लोगों को रखे जाने से पंचायत का काम बाधित हो रहा है। हमलोग स्वयं चाहते हैं कि सभी परिवारों को जल्द से जल्द सेल आवास उपलब्ध करवा दे।
30 में से 18 परिवारों का कोई अता-पता नहीं, कहां गएः
मेरे सवाल पर कि, उपरधौड़ा से तात्कालीन प्रखंड विकास पदाधिकारी, समरेश भंडारी ने कूल 30 परिवारों को पंचायत भवन में ला कर रखा था। समरेश भंडारी ने ही विस्थापित परिवारों से वादा किया था कि आपलोगों को 15 दिनों के अंदर आवास उपलब्ध करवा दिया जाएगा। फिर उन्होंने वादा पुरा क्यों नहीं किया। दूसरा ये कि सभी विस्थापित 1 साल बाद प्रखंड कार्यालय जा कर तात्कालीन बीडीओ के समक्ष अपनी मांग भी रखी थी, उस समय उन्हें जवाब दिया गया कि आप लोग अपने रहने की व्यवस्था स्वयं कर लो, जिसके बाद 30 में से 18 परिवार, जो सक्षम थें कहीं और रहने के लिए चले गएं। जिनता तीन साल बाद कोई पता नहीं है। इस पर बीडीओ अनुज बांडों ने कहा कि, वो जानकारी मुझे नही है, लेकिन एक माह पूर्व मैं पंचायत भवन गया था और विस्थापित परिवारों से बात भी की।
जल्द आवास मुहैया करवाने के लिए सेल को लिखा गया है पत्रः बीडीओ
बीडीओ अनुज बांडो ने आगे बताया कि, मैंने स्वयं सेल प्रबंधक को पत्र लिख कर जल्द से जल्द आवास उपलब्ध करवाने के लिए कहा है और ये भी बताया है कि विस्थापितों के वहां रहने से पंचायत का काम बाधित हो रहा है। इस मामले से मैंने अपने वरीय अधिकारियों को भी अवगत करवाया है। अनुज बांडों ने उम्मीद जताई है कि जल्द ही उन परिवारों को सेल द्वारा आवास उपलब्ध करवा दिया जाएगा।
कूल मिला कर सेल मैनेजमेंट और जिला प्रशासन के अधिकारी विस्थापितों के संवैधानिक मुल्यों का हनन करते नजर आ रहे हैं। विस्थापन से पूर्व इन विस्थापित परिवारों के मुआवजे का भुगतान और पुनर्वास किया जाना चाहिए था। ये लोग तीन पीढियों से उपरधौड़ा(बिरसा नगर) में रह रहे थें और सेल ने ही खदान में काम करने के लिए वर्तमान में विस्थापित हुए परिवारों को वहां ले जाकर बसाने का काम किया था। तात्कालीन प्रखंड विकास पदाधिकारी के आश्वासन के बाद ही विस्थापित हुवे लोग उपरधौड़ा से हटने के लिए तैयार हुए थें और लंबे समय के बाद जिला प्रशासन इस मामले में कछुवे की गति से कार्रवाई कर रही है।
“भूमि अधिग्रहण कानून-2013” में स्पष्ट कहा गया है कि, रैयतों और प्रभावित लोगों को विस्थापित करने से पूर्व ही पुनर्वास और पुनर्स्थापन की उपयुक्त व्यवस्था करनी है। यह अधिनियम पूरी प्रक्रिया में पारदर्शिता की बात करता है।