कसमार प्रखंड के दुर्गापुर गांव में 150 वर्षों से ग्रामीण नहीं मना रहे हैं होली का त्योहार…

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रिपोर्ट- राकेश कुमार…

बोकारोः रंगो का त्योहार होली, पुरे भारतवर्ष में हर्षोउल्लास के साथ मनाया जाता है। इस दिन बच्चों से लेकर बुजूर्ग तक रंग, अबीर और गुलाल से सराबोर रहते हैं। लेकिन झारखंड में एक गांव ऐसा भी है, जहां लगभग 150 वर्षों से लोग रंगो के इस त्योहार से दुरी बनाए हुए हैं।

होली के दिन यहां के राजा दुर्गा प्रसाद की हुई थी हत्याः

जी हां हम बार कर रहे हैं बोकारो जिला कसमार प्रखंड के दुर्गापुर गांव के बारे में, जहां पिछबे 150 वर्षों से ग्रामीण होली का त्योहार नही मना रहे हैं। ग्रामीण बताते हैं कि इस गांव के 11 टोलों में होली नहीं खेली जाती है। क्योंकि जब-जब यहां लोगों ने होली खेली है, तब-तब बड़ी घटनाएं हुई है।गांव के बुजूर्ग बताते हैं कि, इस गांव के सभी टोले दुर्गा पहाड़ी के आसपास बसे हैं। जो यहां के राजा दुर्गा प्रसाद का क्षेत्र था। जिस दिन उनकी हत्या हुई, वो दिन होली का था। इसलिए यहां के लोग इस दिन होली नही मनाते हैं।

होली के दिन को शॉक दिवस के रुप में मनाते हैंः

राजा दुर्गा प्रसाद के ह्त्या का कारन ये बताया जा रहा है कि, एक बार रामगढ़ राजा की रानी के लिए उनके सैनिक झालदा से तसर की साड़ी खरीदकर ला रहे थें, तभी राजा दुर्गा प्रसाद की नजर उस साड़ी पर पड़ी और उन्होंने उस साड़ी को खोल कर देख लिया, लेकिन साड़ी को अच्छी तरह समेट नही पाएं। ये खबर सैनिकों ने रामगड़ के राजा को दी। रामगड़ राजा को यह बात अच्छी नही लगी और इसी बात को लेकर दोनों में दुश्मनी हो गई। फिर कुछ समय बाद रामगढ़ राजा ने दुर्गा प्रसाद की हत्या कर दी। जिस दिन उनकी हत्या हुई, वो दिन होली का था। इसी से नाराज उनके रैयतों ने होली के त्योहार का बहिष्कार कर दिया और इस दिन को शोक दिवस के रुप में मनाते हैं।

होली का त्योंहार यहां जब भी किसी ने मनाया, दूसरे ही दिन हुई बड़ी घटनाः

ग्रामीण ये भी बताते हैं कि कुछ वर्षों पूर्व गांव में मल्हार परिवार के कुछ सदस्य सामान बेचने पहुंचे थें, उस परिवार को नहीं पता था कि यहां होली का त्योहार नहीं मनाया जाता है। अनजाने में उस परिवार ने होली खेली, जिसके दूसरे दिन ही उस गांव मं तीन लोगों की मौत हो गई थी। वहीं एक बार गांव ही एक टोले में कुछ लोगों ने होली का त्योहार मनाया, लेकिन होली के बाद इसी टोले में 1 दर्जन से भी अधीक पशुओं की मौत हो गई थी।

कूल मिला कर रंगो के त्योहर के इस दिन को दुर्गापुर गांव के निवासी मातम दिवस के रुप में मनाते है। इसके पीछे जो किंवदंति है, उसी का यहां के ग्रामीण अनुशरण करते आ रहे हैं।

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