स्वामित्व योजना का विरोध अब पुरे झारखंड में होगा, राजनीतिक दल के प्रतिनिधियों ने भी दिया समर्थन…

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रिपोर्ट- संजय वर्मा

रांचीः राजधानी रांची स्थित गोस्सनर कॉलेज कंपाउंड के एचआरडीसी सभागार में आदिवासी अस्तित्व रक्षा मंच के बैनर तले पांचवी अनुसूची के प्रावधान, सीएनट/एसपीटी एक्ट, पेशा कानून को कड़ाई से लागू करने की मांग और केन्द्र सरकार के स्वामित्व योजना को रद्द करने की मांग को लेकर संघर्ष संकल्प गोष्ठी का आयोजन किया गया। इस गोष्ठी में रक्षा मंच से जुड़े आदिवासी संगठनों के साथ-साथ आदिवासी मुलवासी संगठन के लोग और विभिन्न वामपंथी दलों के प्रतिनिधि समेत कई सामाजिक संगठऩों के कार्यकर्ताओं  सैंकड़ों की संख्या में उपस्थित हुएं।

संपत्ति कार्ड सिर्फ उसी जमीन का बनेगा, जिस जमीन का लगान रशीद कट रहा हैः

संकल्प गोष्ठी में शामिल लोगों ने एक स्वर में कहा कि, झारखंड राज्य अलग बनने के बाद से यहां जिस तरह सत्ताधारी सरकारों द्वारा जल, जंगल और जमीन को लूटने का काम किया जा रहा है, उससे राज्य की स्थिति बद से बदतर होते जा रही है। सरकार के क्रिया-कलाप झारखंड की मूलभूत संस्कृति और यहां के आदिवासी-मूलवासी के हित में नहीं है। झारखंड में सीएनटी-एसपीटी एक्ट में छेड़छाड़ कर आदिवासियों की जमीन गैर आदिवासी और कॉर्पोरेट घरानों को दे दिया जा रहा है। वर्तमान में स्वामित्व योजना लाकर केन्द्र सरकार आदिवासियों के सामुदायिक जमीन अपने कब्जे में करना चाहती है। अगर ऐसा हुआ तो झारखंड के करोड़ों आदिवासी-मुलवासी और किसानों पर इसका बुरा प्रभाव पड़ेगा। क्योंकि, सरकार स्वामित्व योजना के तहत सिर्फ उसी जमीन का संपत्ति कार्ड बनाएगी, जिस जमीन का लगान सरकार को दिया जा रहा है। जिस सामुदायिक जमीन का लगान सरकार को नही दिया जा रहा है, उसे सरकार अपने कब्जे में लेगी।

क्यों आदिवासी-मुलवासियों के लिए हितकर नहीं है स्वामित्व योजनाः

सरकार, स्वामित्व योजना लागू कर आदिवासियों के पास मौजुद सामुदायिक जमीन को अपने कब्जे में लेने के लिए लाई है। इस योजना के लागू हो जाने से सीएनटीएसपीटी एक्ट, पांचवीं अनुसूचि, मुंडारी, खूंटकटी अधिकार, झारखंड के कोल्हान प्रमंडल में हो समुदाय के विलकिन्सन रुल के प्रावधान, पुरी तरह खत्म हो जाएंगे। इसी के मद्दे नजर झारखंड के खूंटी जिले से स्वामित्व योजना के विरोध में झारखंड की आयरन लेडी, दयामणि बारला के नेतृत्व में विरोध का स्वर मुखर किया गया, जिसके परिणाम स्वरुप फिलहाल हेमंत सोरेन सरकार ने द्रोन से सर्वे का काम रोक रखा है, लेकिन योजना की समीक्षा के बाद इस योजना को फिर से झारखंड में लागू करने के लिए सर्वे का काम शुरु कर दिया जाएगा। इसी खतरे को भांपते हुए अब इस योजना का विरोध पुरे झारखंड में करने की तैयारी है, ताकि इस योजना को रद्द कराया जा सके।

जब-जब राज्य में सर्वे हुआ है, आदिवासियों की जमीन कम हुई हैः कानूनविद्

संकल्प गोष्ठी में उपस्थित कानूनविद् , धनिक गुडिया ने पूर्व में हुए सर्वे की जानकारी देते हुए कहा कि अब तक देश में तीन बार सर्वे हुआ है। सन् 1869, सन् 1902-3 और सन् 1932 में। प्रथम सर्वे में जिस आदिवासी के पास 250 एकड़ जमीन था, 1932 के सर्वे के बाद उसके पास मात्र 50 एकड़ जमीन ही रह गया। आदिवासियों के नामसमझी और अशिक्षित होने का फायदा उस समय के जमीनदार और लगान वसूलने वाले लोगों ने उठाया। इसी तरह स्वामित्व योजना के तहत होने वाले सर्वे के बाद भी यही होने वाला है। जिस जमीन पर गांव के पुरे समुदाय का हक् है, वो जमीन सरकार अपने कब्जे में कर लेगी। जिसका असर आदिवासी-मुलवासी और किसानों पर पड़ेगा।

नियामगिरी के तर्ज पर काम किया जा रहा हैः जेरोम जेराल्ड कुजूर

लगभग तीन दशक पूर्व से नेतरहाट फिल्ड फायरिंग रेंज के विरोध में आंदोलन कर रहे केन्द्रीय जन संघर्ष समिति के सचिव, जेरोम जेराल्ड कुजूर ने कहा, कि झारखंड के जल-जंगल और जमीन को बचाने के लिए लंबी लड़ाई लड़ी जा रही है। कूछ माह पूर्व 200 किलोमीटर पदयात्रा कर राजभवन में मांग पत्र सौंपा गया था, लेकिन ठीक इसके बाद सेना द्वारा फिर से अवधि विस्तार के लिए सरकार को लिखा गया है। इसलिए अब जन संघर्ष समिति नियामगिरी में चले आंदोलन की तरह ही यहां भी काम कर रही है। फायरिंग रेंज के लिए चिन्हित क्षेत्र के 246 गांव के ग्राम प्रधानों ने ग्रामसभा में ये प्रस्ताव पास किया है कि ग्रामसभा अपनी जमीन सेना को फायरिंग रेंज के लिए नही देगी। सभी ग्राम प्रधानों द्वारा राज्यपाल को पत्र सौंप दिया गया है।

कोल्हान के 112 अनुसूचित प्रखंड को अधिसूचित क्षेत्र घोषित किया गया:

कोल्हान प्रमंडल के सामाजिक कार्यकर्ता, रमेश जेराई ने बताया कि हमारे यहां विलकिन्सन रुल के प्रावधानों को दरकिनार करते हुए, 112 अनुसूचित प्रखंडों को अधिसूचित क्षेत्र में शामिल कर दिया गया है, जिसका विरोध लगातार जारी है। विलकिन्सन रुल के तहत राज्य सरकार को ऐसा करने का अधिकार नही है। कोल्हान क्षेत्र में जमीन का सभी दस्तावेज गांव के मुंडा के पास रहता है और मुंडा ही लगान वसूल कर सरकार के पास जमा करने का काम करती है, लेकिन कुछ समय पूर्व जिलाधिकारी द्वारा आदेश निकाल कर सभी मुंडाओं से गांव के जमीन का सभी कागजात अंचल कार्यालय में जमा करने का फरमान जारी किया है, जिसे किसी भी हाल में नही माना जाएगा। विरोध जारी है।

स्वामित्व योजना के विरोध में खूंटी जिले से शुरु हुआ आंदोलन अब पूरे झारखंड में होगाः

आदिवासी अस्तित्व रक्षा मंच की नेत्री, दयामणि बारला ने केन्द्र सरकार के स्वामित्व योजना के विरोध में हुंकर भरते हुए कहा, कि खूंटी जिले से शुरु हुआ आंदोलन अब पुरे झारखंड में होगा। आगामी 3 अगस्त को सभी जिलों के प्रतिनिधियों के साथ बैठक होगी, जिसमें राजनीतिक दलों के प्रतिनिधि भी शामिल रहेंगे। इस बैठक में धारदार आंदोलन के लिए रणनीति बनाई जाएगी। दयामणि बारला ने जमीन लूट के कई उदाहरण देते हुए जानकारी दी कि, खूंटी के कर्रा प्रखंड में 70 प्रतिशत जमीन असली रैयतों के नाम से दर्ज नही है। लैंड बैंक बनाने के दौरान रघुवर सरकर ने झारखंड के प्रमुख नदियों जैसे, कारो नदी, कोयल नदी समेत अन्य और कई नदियों के भू-भाग को भी लैंड बैंक में दर्ज करवा दिया है। वहीं दिउड़ी गांव का उदाहरण देते हुए बताया गया कि, इस गांव का 83 प्रतिशत जमीन लैंड बैंक में शामिल कर लिया गया है। दयामणि बारला ने आगे कहा कि अगर यही हाल रहा, तो आदिवासी-मुलवासी पुरी तरह जमीन विहीन हो जाएंगे। सामुदायिक जमीन जिसका उपयोग लोग विभिन्न कार्यों में करते हैं, वो नहीं कर पाएंगे। स्थिति ये हो जाएगी की आदिवासी-मुलवासी परिवार और किसान दाने-दाने के मोहताज हो जाएंगे। राज्य से आदिवासी-मुलवासियों को जमीन लूट कर पलायन के लिए बाध्य कर दिया जाएगा, और सिर्फ और सिर्फ पूंजीपतियों को बसाया जाएगा, जो यहां के संसाधनों पर राज करेंगे। इसलिए इस स्थिति से बचने और अपने हक-अधिकारों की रक्षा के लिए हमें एकजुट हो कर स्वामित्व योजना को किसी भी हाल मे रद्द करवाना ही पड़ेगा।

इन्होने भी रखे अपने विचारः

संकल्प गोष्ठी कार्यक्रम में बड़कागांव, हजारीबाग से सामाजिक कार्यकर्ता मिथिलेश दांगी, गोड्डा में अडानी पावर के खिलाफ संघर्ष कर रहे चिंतामणि जी, साहेबगंज से फादर टॉम, खूंटी से शिव शरण मिश्रा, सिमडेगा के सामाजिक कार्यकर्ता नील जस्टिन बेक, भाकपा माले के अजय सिंह, सीपीआई माले के प्रफुल लिंडा, झारखंड आंदोलनकारी राजू महतो और गुमला से सामाजिक कार्यकर्ता अनिल और जया ने भी अपने-अपने विचार रखें।

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