सत्ता में आते ही सरकार अपना वादा भुल चुकी हैः विस्थापन विरोधी जनविकास आंदेलन

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रिपोर्ट- ताजा खबर झारखंड ब्यूरो…

रांची विस्थापन और दमन पर आधारित अर्थनीति और झारखण्ड की आतंकित जनता के भविष्य’ विषय पर एक दिवसीय संगोष्ठी का आयोजन विस्थापन विरोधी जनविकास आन्दोलन, झारखण्ड इकाई द्वारा एस. डी. सी. सभागार, रांची में किया गया। अध्यक्ष मंडली में शैलेन्द्र नाथ सिन्हा, बच्चा सिंह, बेबी तुरी और नरेश भुइयां शामिल रहें।

कार्यक्रम की शुरुआत पिंटू राम भुइयां (भारतीय भुइयां परिषद सचिव, पलामू प्रमंडल) के गीत से हुई. संगोष्ठी का विषय प्रवेश दामोदर तुरी द्वारा किया गया। उन्होंने बताया किस तरह आज़ादी के बाद से ही विस्थापन पर आधारित आर्थिक मॉडल चला आ रहा है, जो कई सरकारों के बदलने पर भी नहीं बदला। झारखण्ड के इतिहास में कई बड़े गोलीकांड इसी आर्थिक निति को थोपने के लिए पुलिस द्वारा किये गए। यह भी बताया गया कि, झारखण्ड गठन के बीस साल पश्चात भी स्थिति ज्यों की त्यों बनी हुई है। हेमंत सरकार ने चुनाव से पहले कई ऐसे वादे किये जैसे इचा खरकई बाँध को नहीं बनाया जायेगा, या पारसनाथ में सी.आर.पी.एफ़ कैम्प नहीं बनाये जायेंगे, लेकिन सत्ता में आने के एक वर्ष पश्चात भी हेमंत सरकार ने इन मुद्दों पर कोई ठोस कदम नहीं उठाया हैं।

गढ़वा – पलामू के नरेश भुइयां ने संगोष्ठी को संबोधित करते हुए बताया कि, किस तरह से उनके क्षेत्र में दलित-आदिवासियों पर दिन प्रतिदिन प्रशासनिक जुल्म बढ़ता ही जा रहा है। कई सी.आर.पी.एफ़ कैम्प बनाने से जनता के बीच आतंक का माहौल है। उनपर भी झूठे मुक़दमे लगा कर कई महीने तक जेल में बंद रखा गया और यातनाएं दी गयीं। इसके विरोध में गढ़वा पलामू इलाके में आन्दोलन लगातार जारी है। फादर स्टेन स्वामी और अन्य राजनीतिक बंदियों की रिहाई की मांग को लेकर वहां के लोग लगातार धरना किये हैं।

गिरिडीह से पहुंचे भगवान किस्कू ने भी कुछ ऐसी ही भयावह स्थिति बयां किया। पारसनाथ पहाड़ी को 12-14 सी.आर.पी.ऍफ़ कैम्प से घेर दिया गया है और दिन प्रतिदिन दलित आदिवासियों और महिलाओं पर पुलिसिया दमन के खबर आ रहे हैं। गुमला-सिमडेगा से अमरनाथ सिंह ने भी पुलिस द्वारा एक पैरा शिक्षक की मार पीट की खबर बताई। जनता ने वहां आन्दोलन करके दोषी पुलिसकर्मी को सजा देने की मांग की है। वक्ताओं ने इन जिलों से जंगल पर निर्भर जनता के भी दमन का जिक्र किया। कई जगह वन अधिकार पट्टा नहीं दिया जा रहा है या अनुचित तरीके से अयोग्य लोगों को दिया जा रहा है। वन्य जीव आश्रयणी बनाने हेतु विस्थापन और फारेस्ट गार्ड द्वारा दमन के मामलें भी सामने आयें।

रामगढ़ के स्वतंत्र पत्रकार रुपेश सिंह ने विकास के नाम पर होने वाले विस्थापन का मुद्दा उठाया। रुपेश ने हेमंत सरकार द्वारा प्रचारित ‘इमर्जिंग झारखण्ड’ के जुमले पर भी सवाल उठाये। उन्होंने याद दिलाया किस तरह पारसनाथ में फर्जी एनकाउंटर में मारे गए डोली मजदूर मोतीलाल बास्के के फर्जी इंकाउंटर को चुनाव से पहले राजनितिक दलों ने अपने फायदे के लिए मुद्दा बनाया और सत्ता में आते ही भूल गएं।

हजारीबाग से विजय हेम्ब्रोम और रांची से लिक्स ने भी विस्थापन, दमन और आर्थिक नीतियों से जुड़े कई सवाल उठाये। लिक्स ने संगोष्ठी में बताया की विस्थापन भी एक प्रकार की हिंसा है।  इसे मानसिक हिंसा या सामाजिक हिंसा कहा जा सकता है। रांची से बेबी तुरी ने बताया की विस्थापन का सबसे बड़ा दर्द महिलाओं को ही झेलना पड़ता है। पलामू की सुचित्रा सिंह ने महिलाओं के कई मुद्दों को उठाया। उन्होंने बताया की चुनाव आने पर सभी राजनितिक दलों के लिए सभी जातियां एक समान हो जाती हैं (वोट बैंक) लेकिन चुनाव के बाद भेद-भाव और अस्पृश्यता समाज में वापस आ जाती हैं। आजादी के 70 सालों बाद भी हमारे समाज में दहेज़ जैसी कुरीति के खिलाफ कोई ठोस निति नहीं है। विस्थापन के मुद्दे पर उन्होंने बताया की पलामू में कोयला खदान की वजह से वहां भुइयां जाति के 100 घर बर्बादी की कगार में हैं और प्रतिदिन ब्लास्टिंग के समय उनपर घर गिर जाने का खतरा बना रहता है।

मजदूर नेता बच्चा सिंह ने विस्थापन और दमन के सिलसिले को साम्राज्यवाद और डब्लूटीओ से जोड़कर यह बताया की किस तरह किसान विरोधी बिल के साथ-साथ मोदी सरकार श्रमिक विरोधी बिल भी ला चुकी है, जिसका खामियाजा मेहनतकशों को भुगतना पड़ेगा।

संगोष्ठी का समापन सुचित्रा सिंह, केश्वर सिंह और विश्वनाथ सिंह के गीतों के साथ वरिष्ठ अधिवक्ता शैलेन्द्र नाथ सिंह के धन्यवाद ज्ञापन के साथ हुआ। कार्यक्रम के संयोजन और संचालन में ज्योति, प्रताप और रिषित ने भूमिका निभाई।

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