मई दिवस पर ट्रेड यूनियन सेंटर आफ इंडिया, दिल्ली एनसीआर कमेटी ने सरकार से की ये मांग….

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रिपोर्ट- ताजा खबर झारखंड ब्यूरो…

रांचीः पिछले वर्ष जब अंतरराष्ट्रीय मजदूर दिवस, मनाया जा रहा था तब भी देश में कोरोना महामारी फैली हुई थी, और इस बार भी जब मई दिवस मनाया जाना है, देश कोरोना महामारी की चपेट में है।   वर्तमान में ये महामारी विकराल रूप धारण कर भयंकर तबाही मचा रही है।

मोदी सरकार, आपदा को अवसर में बदलते हुए, कारपोरेट घरानों, दवा कम्पनियों और निजी अस्पतालों की स्वार्थ पूर्ति करने में लगी हैः ट्रेड यूनियन सेंटर आफ इंडिया, दिल्ली एनसीआर कमेटी

पूंजीवादी व्यवस्था ने श्रम के शोषण के साथ साथ, दुनिया के पर्यावरण को इतनी बुरी तरह क्षतिग्रस्त कर दिया है कि, यह धरती मानव जाति के रहने लायक नहीं रही। ऊपर से इस संकट के सारे बोझ को मजदूर वर्ग और मेहनतकश जनता की पीठ पर लाद दिया गया है। महामारी से पहले ही दुनिया की अर्थव्यवस्था संकट से जूझ रही थी। उस संकट को मजदूरों, किसानों व आम मेहनतकश जनता पर लादने के लिए चार श्रम संहिता (लेबर कोड़), किसान विरोधी तीन कृषि कानून, बिजली विधेयक जैसे अन्य कानून तैयार किए गएं, जो मजदूरों, किसानों व आम जनता के शोषण को तेज करने वाले हैं। फिर कोविड आपदा की आड़ में इन्हें कानूनी रूप दे दिया गया। मोदी सरकार ने पिछले एक साल में इससे निपटने के लिए कोई कदम नहीं उठाया, उल्टे आपदा को अवसर में बदलते हुए, कारपोरेट घरानों, दवा कम्पनियों और निजी अस्पतालों की स्वार्थ पूर्ति करने में लगी रही। इस समय अस्पतालों, डाक्टरों, स्टाफ, दवा, ऑक्सीजन आदि का इंतजाम करना था और इनकी संख्या बढ़ानी थी, और निजी अस्पतालों का अधिग्रहण कर सार्वजनिक चिकित्सा व्यवस्था को मजबूत करना था, मगर यह सब न करके,   निजी क्षेत्र को लूटने और सामानों की कालाबाजारी की छूट मिली हुई है।

मजदूर, किसान वर्ग ने सरकार को गलत साबित कर दियाः ट्रेड यूनियन सेंटर आफ इंडिया, दिल्ली एनसीआर कमेटी

सरकार ने सोचा था कि महामारी और इसकी वजह से लागू प्रतिबंध के कारण आम जनता इसका विरोध नहीं कर पाएगी। मगर किसानों ने, मजदूरों के समर्थन से, जूझारू और ऐतिहासिक संघर्ष छेड़कर, सरकार को गलत साबित कर दिया है। इस बहादुराना जन प्रतिरोध के बावजूद, केन्द्र व राज्य सरकारों द्वारा संकट के बोझ को मेहनतकश आबादी पर लादने का लगातार प्रयास किया जा रहा है। पिछले साल के अनुभव से सबक न लेकर, मजदूरों व किसानों पर नए सिरे से लाकडाउन लगाने की कोशिश की जा रही है। विश्व व्यापी संकट की इस घड़ी में मजदूर वर्ग को अपनी भूमिका निभाने के लिए आगे आना होगा। मजदूर वर्ग इसके लिए तैयार है, मगर उसके साथ मानवीय व्यवहार होना चाहिए, जो पिछले वर्ष नहीं हुआ था। इस महामारी के समय भी जब मजदूर, अपने और परिवार की जान जोखिम में डालकर, कारखानों का पहिया चला रहे हैं।

ट्रेड यूनियन सेंटर आफ इंडिया, दिल्ली एनसीआर कमेटी सरकार से निम्नलिखित मांग करती हैः

1) महामारी व लाकडाउन के नाम पर, किसी प्रकार की कटौती किए बिना, मजदूरों को पूरे वेतन का भुगतान किया जाए।

2) लाकडाउन के बहाने मजदूरों को काम से बर्खास्त या निकाला न जाए।

3) सभी मजदूरों व उनके परिजनों को कोरोना पीड़ित होने पर, प्राथमिकता देकर, मुफ्त व अनिवार्य इलाज किया जाए और देहांत होने पर 50 लाख रुपए क्षतिपूर्ति दिया जाए।

4) मजदूरों को घर से कार्यस्थल तक आवागमन की सुविधा दी जाए। उक्त बातें अस्थाई, कैजुअल, ठेका, बदली, सभी मजदूरों के लिए लागू हों।

5) जहां सीधे तौर पर कोई नियोक्ता नहीं है, जैसे कि घरेलू कामगार, फुटकर विक्रेता, ऑटो चालक आदि, उन्हें 10,000 रुपए की सहायता दी जाए। सभी मजदूरों को सस्ता राशन प्रदान किया जाए। सरकार बेघर लोगों के लिए रहने की उचित व्यवस्था करें।

अगर केन्द्र व राज्य सरकारों द्वारा मजदूरों की रोजी-रोटी और जीवन की सुरक्षा की गारंटी की जाती है, तो पिछले वर्ष जैसा मंजर नहीं होगा। लेकिन हम देख रहे हैं कि नियोक्ता द्वारा कोरोना वायरस से पीड़ित मजदूरों की न तो देखभाल की जा रही है, न मृतकों को मुआवजा ही दिया जा रहा है।

महामारी के समय न केवल नर्स, अस्पताल स्टाफ जैसे चिकित्सा कर्मी ही, बल्कि नगर निगम के सफाई कर्मचारी, ट्रांसपोर्ट कर्मचारी, हमारे लिए रोजमर्रा की जरूरतों का उत्पादन करने वाले फैक्ट्री मजदूर और निश्चित ही किसानों ने महामारी के समय अब तक बेमिसाल, बहादुराना भूमिका निभाई है। किन्तु केन्द्र व राज्य सरकारों द्वारा अपनी नाकामी का ठीकरा एक दूसरे पर और जनता पर फोड़ा जा रहा है, जिनकी संवेदनहीनता, कुप्रबंधन, जन विरोधी नीतियों की वजह से हजारों लोगों की मौत हो रही है। कुंभ जैसे आयोजनों में लाखों की भीड़ जमा कर धार्मिक नेताओं ने साफ तौर पर गैर जिम्मेदाराना व्यवहार किया है। अमीर कोरोना महामारी से बचने के लिए विदेश की सैर पर जा रहे हैं। चुनाव आयोग ने बड़ी रैलियां और रोड़ शो करने दिया। एक साल का वक्त मिलने के बाद भी सरकारों ने कोई इंतजाम नहीं किया, न अस्पताल, न आक्सीजन, सब पहले जैसा चलता रहा। इन सब में मजदूरों व मेहनतकशों का कोई दोष नहीं है। मगर मजदूरों, मेहनतकश जनता को कोई श्रेय नहीं दिया गया, उल्टे पिछले वर्ष हजारों किलोमीटर पैदल चलकर घर वापसी करने वाले मजदूरों के साथ जानवरों सा व्यवहार किया गया और जिस प्रकार कोरोना के नाम पर सीएजी विरोधी आन्दोलन को कुचला गया था, वैसे ही केन्द्र सरकार इस बार किसान आंदोलन के साथ करने की कोशिश कर रही है।

हम सभी मजदूर संगठन इस मई दिवस के अवसर पर जनता से अपील करते हैं कि कोरोना महामारी से निपटने के लिए आपस में सहयोग करें, मजदूरों, मेहनतकश जनता के रोजी-रोजगार के सवालों पर संघर्ष करें, किसान विरोधी कृषि कानूनों को रद्द करवाने के लिए हो रहे इस आन्दोलन का समर्थन करें और केन्द्र व राज्य सरकारों की जन विरोधी, कॉरपोरेट परस्त नीतियों के खिलाफ आवाज उठाएं।

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