सारण्डा के 8 गांवों को अंग्रेजों ने बसाया था, अब तक नहीं दिया गया राजस्व गांव का दर्जा.

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रिपोर्ट- संजय वर्मा…

116 साल पहले अंग्रेजों ने बसाया था सारंडा के 8 गांवों को।

अब तक नहीं दिया गया राजस्व गांव का दर्जा।

रैयतों का नाम पंजी-2 में अंकित नहीं।

रैयतों को करना पड़ रहा है परेशानियों का सामना।

रांचीः सारंडा वन प्रक्षेत्र स्थित 8 गांवों को अंग्रेजों ने अपने लाभ के लिए बसाया था, लेकिन दुर्भाग्य ये कि आजादी के 7 दशक बाद भी इन 8 गांवों को राजस्व गांव सरकार ने अब तक घोषित नहीं किया है।  शनिवार को सारण्डा वन प्रक्षेत्र के थोलकोबाद में गुमिदा जातरमा की अध्यक्षता में ग्रामीणों की एक बैठक आयोजित की गई। इस बैठक में “आस” के संयोजक सुशील बारला भी उपस्थित रहें।

बैठक में उपस्थित 8 गांवों के ग्रामीण और नेतृत्वकर्ता

पंजी-2 में नाम दर्ज करवाने के लिए संघर्ष ही एकमात्र उपायः सुशील बारला

बैठक को सम्बोधित करते हुए सुशील बारला ने कहा कि थोलकोबाद सहित सात(7) गाँवों को 116 साल पहले 1905 में अंग्रेजों द्वारा बसाया गया था, लेकिन दुर्भाग्य कि अब तक उक्त 8 गाँवों, तिरिलपोसी-1906, नयागाँव-1908, करमपदा-1910, दीधा-1911, बिटकिलसोय-1914, बालिबा-1917 एवं कुमडी-1927 को राजस्व गाँव का दर्जा नहीं दिया गया है, जिसके कारण रैयतों का नाम पंजी-2 (जमाबंन्दी)में अंकित नहीं किया गया है। पंजी-2 में नाम अंकित नहीं रहने के कारण यहाँ के लोगों को कई समस्याओं का सामना करना पड़ रहा है। वनाधिकार अधिनियम-2006 के तहत सरण्डा के गुण्डीजोड़ा-20, राटामाटी-10, नुरदा-18, दुमागदिरी-14 को पट्टा तो दिया गया, लेकिन पंजी-2 में रैयतों का नाम अंकित नहीं किया गया है। इसलिए अब बड़े पैमाने पर आंदोलन करके ही सरकार को इन गांवों के रैयतों का नाम पंजी-2 में दर्ज करने के लिए बाध्य करना होगा। इसके लिए सभी गांव के ग्रामीणों को संगठित होकर संघर्ष करना है। इसके लिए ग्राम-सभा को सशक्त बनाना होगा।

बैठक को सेवानिवृत शिक्षक, बेनेडिक्ट लुगुन, गंगाराम होनहग्गा, बोरटो होनहग्गा, सानियारो नाग, सानिका हेम्ब्रम, ओडेया देवगम ने भी सम्बोधित किया। और सभी ने आंदोलन से ही सरकार को बाध्य करने की बात कही।

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