रिपोर्ट- संजय वर्मा…
रांचीः देश और राज्य की अर्थव्यवस्था, राजनीति, संस्कृति और समाज में अहम योगदान होने के बावजूद घरेलू कामगारों की सामाजिक, आर्थिक स्थिति सुधारने की दिशा में केन्द्र और राज्य सरकार द्वारा अब तक कोई कारगार कदम नही उठाया गया है। घरेलू कामगारों का नियोक्ता द्वारा लगातार आर्थिक और शारीरिक शोषण किया जा रहा है, इनके लिए काम के घंटे निर्धारित नही है, न्यूनतम मजदूरी भी इन्हें नही दिया जा रहा है। इन्हें ना ही साप्ताहिक अवकाश दिया जाता है, ना ही पौष्टिक भोजन और पानी। आर्थित स्थिति दयनीय होने के कारन इनके बच्चे अनपढ़ ही रह जाते हैं। जब ये काम करने में असमर्थ हो जाते हैं तो मजबुरी में भीख मांग कर भी अपना गुजारा करते देखे गए हैं। अन्य कामगारों की तरह इनके लिए पेंशन की सुविधा नही है। इतनी कठिनाई से अनवरत कार्यरत्त इन कामगारों को लाभ दिलाने के लिए ना ही केन्द्र सरकार द्वारा कोई पहल की गई है और ना ही राज्य सरकार द्वारा।
राज्यपाल को सौंपा गया मांग पत्रः
सरकार का ध्यान इन समस्याओं की ओर आकृष्ट कराने के लिए बुधवार को राष्ट्रीय घरेलू कामगार मंच के बैनर तले सैंकड़ों महिला घरेलू कामगारों ने राजभवन के समिप एक दिवसीय धरना दिया। मंच की ओर से मांग की गई है कि आईएलओ कन्वेंशन-189 का सरकार अनुसमर्थन करे। केन्द्र सरकार जल्द से जल्द घरेलू कामगारों के लिए अलग राष्ट्रीय कानून बनाए। घरेलू कामगार मजदूरी के हिसाब से अधिसूचित किए जाएं। घरेलू कामगारों को बीपीएल सूचि में शामिल किया जाए और घरेलू कामगारों के लिए शहर में आवास की व्यवस्था की जाए। एक दिवसीय धरने के बाद महामहिम राज्यपाल के नाम एक मांग पत्र भी मंच द्वारा सौंपा गया। आईएलओ कन्वेंशन-189 में घरेलू काम को परिभाषित करते हुए घरेलू कामगरों के लिए जिन अधिकारों की रक्षा के बारे में कहा गया है वह है, मर्यादापूर्ण कार्य, उचित मजदूरी, साप्ताहिक छुट्टी, कार्य स्थल में सुरक्षा प्रदान किया जाना। इसके अलावे घरेलू कामगारों को रोजगार की शर्तों के बारे में लिखित रुप से जानकारी देना भी शामिल हैं।
क्या है आईएलओ कन्वेंशन-189?
16 जून 2011 को जनेवा में अंतर्राष्ट्रीय श्रम संगठन के सम्मेलन-189 के तहत घरेलू काम को एक मर्यादापूर्ण काम का दर्जा दिया गया। इसके तहत कई दिशा निर्देश भी जारी किए गएं। अंतर्राष्ट्रीय श्रम संगठन के इस निर्णय का स्वागत करते हुए भारत समेत कई देशों ने इस निर्णय पर सहमति जताते हुए हस्ताक्षर भी किए। लेकिन दुर्भाग्य की बात है कि भारत सरकार ने आज तक अंतर्राष्ट्रीय श्रम संगठन के इस निर्णय पर कार्य करते हुए घरेलू कामगारों के काम को मर्यादापूर्ण काम का दर्ज नहीं दिया।