झारखंड राज्य सहकारी बैंक लिमिटेड के निदेशक पर्षद पर गंभीर आरोप, जांच कमेटी गठीत, लेकिन जांच पर सवाल…

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रिपोर्ट- संजय वर्मा…

रांचीः सिमडेगा जिला निवासी समाजिक कार्यकर्ता, नील जस्टीन बेक ने मुख्यमंत्री, हेमंत सोरेन, मंत्री कृषि पशुपालन एवं सहकारिता विभाग, सचिव कृषि पशुपालन एवं सहकारिता विभाग, निबंधक सहयोग समितियां झारखंड रांची, क्षेत्रिय निदेशक भारतीय रिजर्व बैंक और नाबार्ड के क्षेत्रिय मुख्य महाप्रबंधक को पत्र लिख कर झारखंड राज्य सहकारी बैंक लिमिटेड के निदेशक पर्षद द्वारा किए जा रहे भ्रष्टाचार के बारे में दिनांक 14 जून 2020 को अवगत करवा चुके हैं।

मामले के शिकायतकर्ता नील जस्टीन ने सहकारी बैंकों में व्याप्त भ्रष्टाचार को उजागर करते हुए भ्रष्टाचार के कुछ मुख्य बिन्दुओं पर ध्यान आकर्षित करवाया है, जो निम्नलिखित हैः

निदेशक पर्षद का बैंक के हितों के प्रतिकूल मनमाना रवैयाः

निदेशक पर्षद का चुनाव सहकारिता विभाग के भ्रष्ट पदाधिकारियों के मातहत करवाया गया है, जिसमें तीन सदस्य चयनित और एक नामित हैं। इनमें बास्को बेसरा, नगीना सिंह, रघुनाथ यादव और सुधीर कुमार हैं, जो समिति के ऋण डिफोल्टर हैं, बावजुद इसके निर्वाचन पदाधिकारी द्वारा इन्हें चुनाव लड़ने की स्वीकृति दी गई। सुधीर कुमार भाजपा से जुड़े हुए है, इसलिए नियम विरुद्ध बोर्ड द्वारा इनका नाम मनोनित किया गया। उपरोक्त तथ्य नाबार्ड के निरीक्षण प्रतिवेदन में भी दर्शाया गया है साथ ही निदेशक सुरेन्द्र यादव और प्रभात कुमार पर निबंधक, सहयोग समितियां के कार्यालय में परिवाद विचाराधीन है, परंतु बोर्ड एवं निबंधक कार्यालय द्वारा इन डिफॉल्टर निदेशकों पर कोई कार्रवाई नहीं की जा रही है। वर्तमान में ये लोग अपने क्षेत्राधिकार से बाहर जाकर निर्णय लेते हुए बैंक के दैनिक कार्यों में हस्तक्षेप कर अपना व्यक्तिगत हित साधने में लगे हुए हैं।

बिना किसी जांच प्रतिवेदन के किया 3 करोड़ 76 लाख का भुगतानः

सिग्मा सोल्यूशन के विपत्र भुगतान की संचिका में निदेशक पर्षद के निदेशक शंभू चरण कर्मकार और सुरेन्द्र यादव द्वारा 3 करोड़ 76 लाख रुपये भुगतान करने का निर्देश बिना किसी जांच प्रतिवेदन के समर्पित किए बिना ही किया गया है, जो अनुचित और वित्तिय अनियमितता है।

रजिस्ट्रार द्वारा दिया गया जांच का आदेश की कॉपी.

निदेशक परिषद् सदस्य, रघुनाथ यादव ने लिया व्यक्तिगत लाभः

निदेशक परिषद् के सदस्य रघुनाथ यादव ने कम ब्याज दर पर स्कार्पियो वाहन बैंक से फाईनेन्स करवाया है, जो बैंक बायलॉज के अनुदेशकों की धज्जियां उड़ाता है। इनके द्वारा बोर्ड से प्रस्ताव पारित करवाकर व्यक्तिगत लाभ लिया गया है।

पर्षद सदस्य नगीना सिंह ने अपने रिश्तेदार का 20 लाख ऋण स्वीकृत करवायाः

निदेशक पर्षद के सदस्य नगीना सिंह ने अपने पद का दुरुपयोग करते हुए अपनी अनुशंसा पर अपने एक रिश्तेदार को 20 लाख का ऋण स्वीकृत करवाया है, जो बैंक बायलॉज के विरुद्ध है।

फर्जी संस्था चलाने वाले को पर्षद सदस्यों का संरक्षणः

समाजिक कार्यकर्ता सह शिकायतकर्ता, नील जस्टिन बेक के अनुशार सहकारिता अध्ययन मंडल नामक फर्जी संस्था चलाने वाले विजय कुमार सिंह कई घोटालों में लिप्त हैं और वर्तमान में बैंक के पदाधिकारियों एवं कर्मचारियों का भयादोहण करते हुए अनाप-शनाप शिकायत एवं मीडिया में अनर्गल ब्यान देते रहते हैं। विजय कुमार सिंह का साठगांठ बैंक के निदेशक पर्षद के सदस्य सुरेन्द्र यादव के साथ है। यहां ये भी उल्लेखनीय है कि सुरेन्द्र यादव सहकारिता अध्ययन मंडल के सचिव हैं, निसंदेह ये बैंक के खिलाफ हैं लिहाजा उनके खिलाफ भी कार्रवाई किया जाना चाहिए।

नियम कानूनों को ताक पर रख कर सगे संबंधियों को किया गया बहालः

बैंक में नियम कानूनों को ताक पर रख कर अपने सगे संबंधियों को डाटा इंट्री ऑपरेटर के पद पर बहाल किया गया, जबकि सरकार द्वारा इन्हें हटाने का निर्देश दिया जा चुका है, लेकिन निदेशक पर्षद के सदस्य सुरेन्द्र यादव, शोभू चरण कर्मकार अपने निहित स्वार्थ के लिए डाटा इंट्री ऑपरेटरों के संरक्षक बने हुए हैं। उक्त होनों पदाधिकारी डाटा इंट्री ऑपरेटरों के हड़ताल के दौरान उनका नेतृत्व कर रहे थें साथ ही बैंक प्रशासन के खिलाफ उन्हें उकसा रहे थें। यहां ये भी उल्लेखनीय है कि बैंक के निदेशक, शंभू चरण कर्मकार के पुत्र और भाई अवैध रुप से बैंक में बहाल किए गए हैं।

घोटाले के आरोपी उमेश चन्द्र सिंह और मनोज कुमार गिरफ्त से बाहरः

बैंक के निदेशकों द्वारा भ्रष्टाचार के बढ़ावा दिया जा रहा है। घोटाले के आरोपी उमेश चंद्र सिंह और मनोज कुमार गुप्ता जो नामजद अभियुक्त हैं वे अब तक गिरफ्तार नही किए गए हैं, जबकि बैंक के निदेशक मंडल पर इनका पूरा दबदबा रहता है और पैसे के बल पर सदस्यों से मनचाहा निर्णय निकलवाते रहते हैं।

फर्जी ऋण लेने वाले के ड्राईवर का भी नियम विरुद्ध 2 करोड़ 50 लाख का फर्जी तरीके से ऋण स्वीकृत किया गयाः

निदेशक पर्षद द्वारा बैंक के तात्कालीन महाप्रबंधक सुशील कुमार से मिलीभगत करते हुए बैंक के 50 करोड़ से अधिक फर्जी ऋण लेने वाले संजय कुमार डालमिया के ड्राईवर विजय कुमार सिंह को 11 मार्च 2019 को बिल परचेज के नाम पर 2 करोड़ 50 लाख रुपये का ऋण नियम विरुद्ध स्वीकृत कर दिया गया।इसी कारन बोर्ड द्वारा अब तक इस ऋण की वसूली नहीं होने पर भी कोई ठोस कार्रवाई दोषी अधिकारियों पर नहीं किया जा रहा है। इस ऋण वितरण में बैंक के अध्यक्ष एवं बोर्ड के सदस्य शंभू चरण कर्मकार, सुरेन्द्र यादव और सुधीर कुमार की मिलीभगत है। इसकी जांच होनी चाहिए।

बोर्ड के सदस्य मेहनताना और टीए/डीए लेने के लिए नियम विरुद्ध हर माह करते हैं बैठकः

निदेशक पर्षद द्वारा सभी सदस्यों का प्रति बैठक मेहनताना एवं टीए/डीए मनमाने ढंग से बिना किसी आधार के बढ़ा लिया गया है, और बैंक के नियमानुशार बोर्ड की बैठक 3 माह में एक बार होनी चाहिए, लेकिन टीए/डीए लेने के लिए बोर्ड की बैठक हर महिने रखी जाती है, जबकि बैठक में नीति निर्धारण हेतू निर्णय भी नही लिए जाते हैं। यही कारन है कि बैंक के पास आज तक अपना एचआर पॉलिसी, सर्विस रुल आदि नही है।

बोर्ड के अध्यक्ष और सदस्यों ने गलत तरीके से की सीओ की बहालीः

बैंक के सभी कार्यों के निष्पादन हेतु बोर्ड के सदस्यों का ही कमेटी बना दिया जाता है, जबकि बैंक का डायरेक्टर बैंक के दैनिक कार्यों में हस्तक्षेप नही कर सकते हैं। आरबीआई/नाबार्ड/झारखंड सरकार के निर्देशानुसार बोर्ड को सीईओ की नियुक्ति हेतु नई परिपत्र अनुशार फिट एंड प्रोपर क्राईटेरिया के तहत आवश्यक सुधार को अंगीकार किया जाना था। लेकिन बोर्ड के अध्यक्ष और सदस्यों ने जानबुझ कर पुराने फिट एंड प्रोपर क्रईटेरिया के अनुशार ही सीईओ की बहाली का निर्णय लिया। पुराने क्राईटेरिया के अनुसार सीईओ की बहाली प्रकाशित करना वोर्ड री अनुशासनहीनता और गैर जिम्मेदाराना रवैए को दर्शाता है। इससे किसी षडयंत्र के तहत किसी व्यक्ति विशेष को लाभ पहुंचाया जा सकता है।

अनुकंपा पर बहाल जूनियर अधिकारी को बनाया गया बैंक का मुख्य कार्यपालक पदाधिकारीः

निदेशक पर्षद द्वारा एक जूनियर स्तर के अधिकारी, जो अनुकंपा पर बैंक में बहाल किए गए थें, उन्हें मुख्य कार्यपालक पदाधिकारी का प्रभार दिया गया है। यहां ये भी उल्लेख करन जरुरी है कि जिस जूनियर अधिकारी को प्रभार दिया गया है, वे पद का दुरुपयोग करते हुए मनमाने ढंग से अपना सैलरी गलत निर्धारित करते हुए फिक्स करने का आरोपी है। मामला उजागर होने के बाद उनके वेतन से अतिरिक्त वेतन की वसूली बिना सूद के ही किया जा रहा है। इस प्रकार यहां भी बोर्ड द्वारा एक दोषी करार व्यक्ति को मुख्य कार्यपालक पदाधिकारी का प्रभार दिया गया। स्वाभाविक है कि इस कार्य में भी बैंक के निदेशक पर्षद का स्वार्थ छिपा हुआ है।

उपरोक्त बिन्दुओं का जिक्र करते हुए समाजिक कार्यकर्ता सह शिकायतकर्ता नील जस्टीन बेक ने बताया है कि, निदेशक पर्षद पूरी तरह भ्रष्टाचारियों के चंगुल में फंसा हुआ है। उनकी कार्य शैलियों से बैंक की साख प्रभावित हो रही है।

अंत में नील जस्टिन बेक ने निदेशक मंडल की कार्य विधियों की जांच कर उसे भंग करने का अनुरोध किया है, ताकि बैंक का भविष्य बेहतर हो और लोगों को इसका लाभ सही तरीके से मिल सके।

जानकारी देते चलें कि इस मामले पर शिकायतकर्ता नील जस्टीन बेक द्वारा परिवाद दायर करने के बाद दिनांक 17 जुलाई 2020 को एक जांच कमेटी का गठन किया गया है। जांच कमेटी को शिकायतकर्ता नील जस्टीन बेक द्वारा लगाए गए सभी आरोपों की जांच कर एक सप्ताह के अंदर रिपोर्ट सौंपनी है, लेकिन अब तक किसी भी आरोपी से जांच कमेटी द्वारा पुछताछ नहीं की गई है। इस बात की जानकारी शिकायतकर्ता नील जस्टीन बेक ने “ताजा खबर झारखंड” से बात करते हुए दी।

जांच कमेटी मात्र एक आईवॉश, मामले की लिपापोती करने की कोशिश की जा रही हैः शिकायतकर्ता

नील जस्टीन बेक ने जांच कमेटी पर सवाल खड़ा किया है। उन्होंने बताया कि जांच कमेटी को एक सप्ताह के अंदर जांच रिपोर्ट सौंपना था, लेकिन जांच में काफी विलंब की जा रही है। रजिस्ट्रार द्वारा अब तक सिर्फ मुझ से मामले की जानकारी ली गई है। जिससे स्पष्ट होता है कि, जांच कार्य में विलंब कर मामले की लीपापोती की जा रही है। इस मामले में मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन भी गंभीर नही हैं, क्योंकि पत्र लीख कर उन्हें भी पूरे मामले से अवगत करवाया गया है, फिर रिमाईन्डर भी सीएमओ में भेजा गया, लेकिन अब तक कोई जवाब नही दिया गया।

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