स्व. स्टेन स्वामी के प्रथम पुण्य तिथी पर पीयूसीएल ने आयोजित किया व्याख्यान माला, “क्यूं जरुरी है मानव अधिकार और उनके रक्षक” विषय पर वक्ताओं ने रखी राय….

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रिपोर्ट- संजय वर्मा…

 

फादर स्टेन स्वामी वो दिदावर थें, जो शायद ही कहीं पैदा होते हैः प्रो. फैजान मुस्तफा

धर्म प्रधान राष्ट्र में धर्म के उपर राष्ट्र हावी हो जाता हैः प्रो. फैजान मुस्तफा

डेमोक्रेसी में डायलॉग का स्पेस होना जरुरी हैः प्रो. रमेश शरण

मानवाधिकार कार्यकर्ता सिर्फ अपने लिए नहीं, बल्कि औरों के हक्-अधिकार के लिए आवाज उठाते हैं, लडाई लड़ते हैं, भले ही उन्हें बहुत कुछ खोना पड़ जाएः प्रो. फैजान मुस्तफा

 

रांचीः फादर स्टेन स्वामी एक ऐसे व्यक्तित्व थें, जिन्होंने दूसरों को अधीकार दिलाने के लिए अपने आप को खाक में मिटा डाला, मैं सलाम करता हूं ऐसे हस्ती को…. मौलिक अधिकारों की लड़ाई किसी राजनीतिक पार्टी या सरकार से नही होती। ये लड़ाई जिस किसी भी पार्टी की सरकार सत्तासीन होती है, उससे होती है। क्योंकि मानवाधिकार कार्यकर्ता स्टेट का पावर कुतरने का काम करते हैं, और स्टेट नही चाहती है कि उसके पावर को कोई कम करने का काम करे, इसलिए स्टेट को मौलिक अधिकारों की मांग करने वाले मानवाधिकार कार्यकर्ता पसंद नही होती हैं। स्टेट के पास शक्ति होती है। वो अपने हित में कानून बनाती है और उसी कानून का उपयोग अपने खिलाफ आवाज उठाने वाले लोगों पर करती है। टाडा, पोटा जैसे कानून का उपयोग कई मानवाधिकार कार्यकर्ताओं पर किया गया है, जिसके कई उदाहरण झारखंड में मौजुद हैं। फादर स्टेन जीस तरह डट कर शोषित-पीड़ित दलित और आदिवासियों की आवाज लंबे समय से उठा रहे थें, उससे स्टेट भयभीत थी, इसलिए अपनी शक्तियों का उपयोग कर उन्हें जेल भेजा गया, जहां उनकी मृत्यु हो गई….ये कहना है नालसार यूनिवर्सिटी हैदराबाद के वाईस चान्सलर, प्रोफेसर फैजान मुस्तफा का।

प्रो. फैजान मुस्तफा, फादर स्टेन स्वामी के पहली पुण्य तिथी पर पीयूसीएल द्वारा आयोजित स्टेन मेमोरियल व्याख्यान माला कार्यक्रम में “क्यूं जरुरी है मानव अधिकार और उनके रक्षक” विषय पर आयोजित कार्यक्रम में मुख्य वक्ता के रुप में शामिल हुएं।

दरअसल ये कार्यक्रम फादर स्टेन स्वामी की पहली पुण्य तिथी 5 जुलाई को होनी थी, लेकिन समयाभाव के कारन ये कार्यक्रम 1 जुलाई को ही आयोजित किया गया। इस कार्यक्रम में कई जन संगठनों के साथ-साथ काफी संख्या में मानवाधिकार कार्यकर्ता, छात्र और बुद्धिजिवी उपस्थित हुएं और अपने-अपने विचार रखें।

कार्यक्रम आयोजित करने का उद्देश्य उन मुद्दों को जीवंतता प्रदान करना है, जिनके लिए स्टेन स्वामी आजीवन सक्रिय और संघर्षशील रहेः अरविंद अविनाश

पीयूसीएल झारखंड के राज्य सचिव, अरविंद अविनाश ने फादर स्टेन स्वामी के संघर्ष, मानव अधिकारों के प्रति उनकी गहरी सोंच और उनके कार्य करने की शैली के बारे में जानकारी देते हुए कहा कि, 2015 में जब लातेहार जिले के सतबरवा में 12 लोगों की हत्या कर दी गई थी, जिसमें 5 नाबालिग बच्चे भी शामिल थें। इस घटना की जानकारी जैसे ही फादर स्टेन स्वामी को हुई उन्होंने घटना के प्रति संवेदनशीलता दिखाते हुए सतबरवा की ओर निकल पडें और रात के 10 बजे तक मृतक के परिजनों से उनके घर-घर जाकर उनकी सामाजिक, आर्थिक स्थिति और घटना के बारे में संपूर्ण जानकारी हांसिल करते रहे हैं। वहीं अरविंद अविनाश ने बताया कि ये कार्यक्रम आयोजित करने का उद्देश्य उन मुद्दों को जीवंतता प्रदान करना है, जिनके लिए स्टेन आजीवन सक्रिय रहे। लेकिन स्टेट ने सांस्थानिक साज़िश कर फादर स्टेन को हम सबों से छिन्न लिया। हम सब ये प्रण लेते हैं कि उनके बताए मार्ग पर चलते रहेंगे, चाहे स्टेट कितना भी जुल्म क्यों ना कर ले।

राज्य की शक्तियों पर अंकुश लगाने के लिए मानव अधिकारों का कंसेप्ट लाया गयाः प्रो. फैजान मुस्तफा  

मुख्य वक्ता को तौर पर प्रो. मुस्तफा ने अपने वक्तव्य में आगे कहा कि, अगर मुझे बोलने का, किसी भी धर्म को मानने का अधिकार है, तो राज्य को इस पर रोक लगाने का अधिकार नही है। लेकिन सबसे ज्यादा शक्ति राज्य के पास है, राज्य से ज्यादा खतरा है। इसलिए मानव अधिकार डिफेन्डर्स पुरे विश्व में सबसे ज्यादा आवाज राज्य के खिलाफ उठाते हैं। जो बेसिक मौलक अधिकार है, वो हर व्यक्ति के पास हमेशा के लिए रहता है। उसे ना ही कोई छिन्न सकता है और ना आप ये कह सकते हैं कि मुझे नही चाहिए। उदाहरण के तौर पर अगर आपको अभिव्यक्ति की आजादी है तो आप व्यक्त करें, अन्यथा मौन धारन किए रहें, अगर आपको देश के किसी भी कोने में जाने का अधिकार है तो आप जाएं, अन्यथा अपने घर में ही रहें, लेकिन आप ये नही कह सकते हैं कि मुझे बेसिक मौलिक अधीकार नही चाहिए, क्योंकि ये सरेंडर हो ही नही सकता। बच्चे के जन्म से लेकर मरण तक मौलिक अधिकार उसके साथ रहता है। कूल मिला कर सभी मौलिक अधिकार यूनिवर्सल है। इसे किसी के लिए कम या अधीक नही किया जा सकता है।

धर्म प्रधान राष्ट्र में धर्म के उपर राष्ट्र हावी हो जाता हैः

वहीं धर्म की राजनीति पर प्रो. मुस्तफा ने कहा कि, सच्चाई सामने लाने के लिए असहमति व्यक्त करना काफी जरुरी है। हर साईंटीफिक इंवेन्शन असहमति से होता है। विश्व में जितने भी धर्म बनें सभी असहमति से बने है। हर जमाने में हर राजा ने अपने रुल को जस्टिफाई करने के लिए धर्म का सहारा लिया है। सारे धर्मों को सबसे ज्यादा नुकशान स्टेट ने पहुंचाया है। जो लोग ये समझते हैं धर्म प्रधान राष्ट्र बनने से धर्म का फायदा होगा, तो वे लोग मुगालते मे हैं। क्योंकि इतिहास गवाह है कि धर्म के उपर राज्य हावी हो जाता है, फिर धर्म वो होता है जो राज्य कहता है, धर्म वो नही होता जो ईश्वर कहता है। इसलिए मेरा मानना है कि किसी भी धर्म के क्रिमिनल लॉ को पढ़ाने की कोई जरुरत नही, क्योंकि देश का एक सामान्य क्रिमिनल लॉ है, और वो है इंडियन पिनल कोड़, इसे पढ़ाने की जरुरत है। पब्लिक स्कवायर में धर्म का जिक्र नही होना चाहिए।

डेमोक्रेसी में डायलॉग का स्पेस होना जरुरी हैः

मौके पर विनोबा भावे यूनिवर्सिटी के पूर्व वाईस चांसलर प्रोफेसर रमेश सरण ने कहा कि, किसी भी मुद्दे पर डेमोक्रेसी में डायलॉग, असहमति और प्रतिवाद का स्पेस होना चाहिए। मानव अधिकार डिफेन्डर्स के लिए ये काफी जरुरी है।

इस अवसर पर पीयूसीएल द्वारा प्रकाशित बुलेटिन का लोकार्पण भी किया गया।

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