खनन और लकड़ी माफियाओं की गोद में झारखंड का वन विभाग….

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रिपोर्ट- संजय वर्मा…

रांचीः ये कहना अतिश्योक्ति नहीं होगी कि, पुरा का पुरा झारखंड खनन माफियाओं की गिरफ्त में है। कोयला माफिया, पत्थर माफिया, बालू माफिया, बॉक्साईट माफिया, आयरन ओर माफिया, लकड़ी माफिया, ये सभी सरकारी तंत्र की छत्र-छाया में फल फूल रहे हैं। निरीह जनता इनके अत्याचारों से करहा रही है, लेकिन इनके करहाने की आवाज सरकार के कानों तक नहीं पहुंच पा रही है, क्योंकि खनन माफियाओं के उपर जिन संवैधानिक संस्थाओं को कार्रवाई करनी है, ये सभी खनन माफियाओं की गोद में बैठ कर भ्रष्टाचार की गंगोत्री में डुबकी लगा रहे हैं। यानि मील बांट कर झारखंड के खनीज संपदाओं को लूट रहे हैं।

ताजा मामला है झारखंड के गुमला जिला, बिशुनपुर प्रखंड अंतर्गत गुरदरी पंचायत का। इस पंचायत के कुजाम समेंत अन्य गांव के रैयतों की निजी जमीन से माफियाओं द्वारा बॉक्साईट का उत्खनन करने के साथ साथ वन भूमि में भी बॉक्साईट का अवैध उत्खनन किया जा रहा है। सैंकड़ों जगहों पर अवैध खनन कर वन क्षेत्र में लगे साल के पेड़ों को भी काट कर गीरा दिया जा रहा है। जब स्थानीय ग्रामीण विरोध करते हैं, तो माफियाओं के इशारे पर रात के अंधेरे में इनकी पीटाई करवाई जाती है। भयवश असुर आदिम जनजाति के ग्रामीण अपने आंखों के सामने हर गलत काम होते देखने के लिए विवश हैं।

बीते 1 अगस्त 2022 को ताजा खबर झारखंड की टीम ने गुरदरी पंचायत का दौरा कर  वन क्षेत्र में चल रहे अवैध माईनिंग स्थलों का दौरा किया। दौरे के क्रम में पीयूसीएल के सदस्य हफीजुर्र रहमान और सीपीआई(एमएल)रेड स्टार के राज्य सचिव, वशिष्ठ तिवारी भी मौजुद थें। दौरे के क्रम में सैंकड़ों स्थल पर अवैध उत्खनन पाया गया। बड़ी बात ये है कि वन भूमि में भी अवैध उत्खनन धड़ल्ले से जारी है। साल के बड़े-बड़े पेड़ों को काटा जा रहा है, लेकिन इस ओर वन विभाग के अधिकारियों का ध्यान नही है।

वन विभाग के अधिकारी क्षेत्र भ्रमण नही करतेः ग्रामीण

ग्रामीण बताते हैं कि हमलोग काफी कमजोर हैं, हमारे क्षेत्र के वन क्षेत्र में अवैध माईनिंग वर्षों से हो रहा है, लेकिन हमलोग कुछ कर नही सकतें। पूर्व में गांव के कुछ लोगों ने विरोध किया था, तो उनलोगों को काफी पीटा गया। वन विभाग के लोग जहां अवैध खनन हो रहा है, उस क्षेत्र में कभी भी नही आते हैं। जंगल के अंदर सैंकड़ों जगह से बॉक्साईट निकाला जा रहा है। साल के बड़े-बड़े पेड़ों को काट कर गिरा दिया जा रहा है, जिससे जंगल खत्म हो रहा है। जंगल कटने से हमलोगों को परेशानी हो रही है। पीने के पानी के लिए पहाड़ से नीचे उतर कर पानी लाना पड़ता है।

वन विभाग की दोहरी नीतिः

ग्रामीण बताते हैं कि, हमलोग जब जंगल से सुखी लकड़ियां लाते हैं, तो हमें वन विभाग के कर्मचारियों द्वारा पीटा जाता है। वे कहते हैं कि तुमलोग जंगल से लकड़ी चोरी करते हो, पेड़ काट रहे हो, ये कह कर थाना में केस करने की धमकी देते हैं। लेकिन जो लोग जंगल के अंदर से बॉक्साईट खोद-खोद कर निकाल रहे हैं, साल के बड़े-बड़े पेड़ों को जड़ काट कर गिरा दे रहे हैं, उनके उपर कोई कार्रवाई नही कर रहे है। थाना जाने पर हमलोगों को ड़ांट कर भगा दिया जाता है।

वन अधिकारी को जानकारी देने पर भी कोई कार्रवाई नही होतीः स्थानीय पंचायत जनप्रतिनिधि

इस क्षेत्र के वार्ड पार्षद से लेकर जिला परिषद् सदस्य, पवन उरांव तक को ये जानकारी है कि, कुजाम के साथ-साथ और भी कई पंचायतों के जंगल में बॉक्साईट का अवैध उत्खनन हो रहा है। जिप सदस्य और  मुखिया बताते है कि, कई बार डीएफओ(जिला वन अधिकारी) तक अवैध खनन की सूचना दी गई है, लेकिन कोई कार्रवाई नही हुई। वर्तमान में भी वन क्षेत्र के अंदर अवैध खनन जारी है। कई साल के पेड़ जंगल के अंदर खनन स्थल पर गीरे पड़े हैं। दबे जुबान जनप्रतिनिधि ये भी बताते हैं कि, ये क्षेत्र नक्सल प्रभावित क्षेत्र है, जिसके कारन भी हम लोग खुल कर अवैध खनन का विरोध नही कर पा रहे हैं। अवैध खनन रोकने का काम विभाग को करना चाहिए, क्योंकि उनके पास सभी सुविधा मौजुद है, लेकिन विभाग के अधिकारी अवैध खनन रोकने में कोई दिलचस्पी नही दिखाते हैं, मानों उनके जानकारी में ही ये अवैध खनन हो रहा है।

डीएफओ विशुनपुर और डीफओ लोहरदगा का पक्षः

चुंकि ये वन क्षेत्र गुमला जिले में पड़ता है, इसलिए जिले के डीएफओ, श्रीकांत से बात कर अवैध उत्खनन मामले में जानकारी लेने की कोशिश की गई। डीएफओ गुमला ने बताया कि, गुरदरी पंचायत का कुजाम क्षेत्र लोहरदगा डीफएओ देख रहे हैं, उनसे बात करें।

लोहरदगा डीएफओ, डा. अरविन्द कुमार ने बताया कि अवैध खनन की जानकारी मुझे पूर्व से है, चुंकि उस ईलाके में फोरेस्ट लैंड का मार्किंग नही किया गया है, जिसके कारन ये स्पष्ट पता नही चल रहा है कि, जहां अवैध उत्खनन किया गया है, वो क्षेत्र वन विभाग के अंतर्गत आता है या नहीं, लेकिन अवैध उत्खनन की जानकारी मिलने के बाद जांच की जा रही है। जब डीएफओ से ये सवाल किया गया कि, जांच कितने दिनों से चल रहा है? जांच टीम में कौन-कौन अधिकारी शामिल हैं? जांच रिपोर्ट कब तक सौंपी जाएगी? इस पर उन्होंने बताया कि पूर्व में सूचना मिलने के बाद फोरेस्टर को जांच करने के लिए कहा गया है। वे 4-5 वनरक्षियों के साथ जाकर जांच कर रहे हैं।

जांच कर रहे फोरेस्टर राजेन्द्र पंडित का पक्ष हास्यास्पदः

सवालः आप (राजेन्द्र पंडित, फोरेस्टर), कब से जांच कर रहे हैं और आपके साथ जांच टीम में कितने सदस्य हैं?

जवाबः पिछले दस दिनों से जांच कर रहा हूं, मेरे साथ 4-5 वनरक्षी जांच में जाते हैं।

सवालः अब तक की जांच में क्या पाया है आपने?

जवाबः मात्र 40 डिसमील जमीन वन क्षेत्र में पाया गया है, जहां अवैध उत्खनन हुआ है।

सवालः सिर्फ कुजाम(गुरदरी पंचायत) में तीन दर्जन से अधीक जगह, साल जंगल के अंदर उत्खनन हुआ है, दर्जनों साल के बड़े-बड़े पेड़ गीरे पडें हैं। ये वीडियो है मेरे पास, क्या आप पुरे क्षेत्र में गए थें?

जवाबः नहीं मैं सिर्फ एक दिन गया था, उसके बाद नही गया हूं, कुछ जरुरी काम है उसे करके फिर से जांच करुंगा।

सवालः इस तरह जांच चलेगी, तो एक साल में भी आपकी जांच पुरी नही होगी।

जवाबः नही सर, 20 दिन के अंदर मैं रिपोर्ट सौंप दुंगा।

सरकारी तंत्र, खनन प्रभावित क्षेत्र के लोगों को उनके संवैधानिक अधिकारों से वंचित कर रखा हैः

खनन क्षेत्र में रह रहे लोगों को देश के अन्य नागरीकों की तरह समान अधीकार नही दिया जा रहा। यहां के लोग पीने के शुद्ध पानी, भोजन, शिक्षा, और स्वास्थ्य सुविधा से वंचित हैं। प्रभावित लोगों के लिए न्याय का दरवाजा बंद है, मानों ये देश के नागरिक नहीं या इनके लिए न्याय व्यवस्था ही नही है। ग्रामीणों की जमीन पर कब्जा करने के लिए इन्हीं के बीच से कंपनियों द्वारा दलाल खड़ा कर इनके बीच कायम बंधुत्व  की भावना को समाप्त  किया जा रहा है। कूल मिला कर देखें तो भारतीय संविधान के सभी मुल्यों का उल्लंघन, संवैधानिक मुल्यों की रक्षा करने वाले संस्थाओं के छत्र-छाया में ही हो रहा है।

आदिम जनजातियों के जीवन स्तर में दिन प्रतिदिन गिरावट:

जानकारी देते चलें कि, गुरदरी पंचायत के कुजाम गांव में लगभग 50 घर है, जिसमें 300 से अधीक असुर आदिम जनजाति के लोग निवास करते हैं। झारखंड में असुर जनजाति की सबसे अधीक जनसंख्या गुमला और लोहरदगा जिले के पाट क्षेत्र(पहाड़ियों के उपर) में ही निवास कर रहे हैं। 1980 से पूर्व इस क्षेत्र में आदिम जनजाति, असुर का जीवन स्तर काफी अच्छा था। घने जंगलों से इन्हें इनके जरुरी खाद्य पदार्थ आसानी से उपलब्ध हो जाते थें। लेकिन 1980 से जैसे ही इस क्षेत्र में बड़े-बड़े कंपनियों ने बॉक्साईट का खनन करना शुरु किया, इनके जीवन स्तर में दिन-प्रतिदिन गिरावट आते चली गई।

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