राजनीतिक बंदियों की रिहाई और यूएपीए(UAPA)सहित सभी दमनकारी क़ानून रद्द करने की मांग को लेकर चरणबद्ध आंदोलन.

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ब्यूरो रिपोर्ट…

रांचीः झारखण्ड जन संघर्ष मोर्चा ने प्रेस बयान जारी कर गिरिडीह के भगवान दास किस्कु, समरू खड़िया, राजनीतिक, सामाजिक कार्यकर्ता एवं स्वतंत्र पत्रकार रूपेश कुमार सिंह को रिहा करने की मांग सरकार से की है।

प्रेस बयान में जन संघर्ष मोर्चा ने कहा है कि, भारत में जिस तरह से गैरकानूनी गतिविधियों की रोकथाम अधिनियम Unlawful Activities Prevention Act(UAPA), 1967 के तहत देश के अनेकानेक सजग नागरिकों की गिरफ़्तारी की जा रही है, वह काफी चिंतनीय है। यूएपीए(UAPA )के तहत गिरफ्तार लोगों में कोई किसान है, कोई जमीनी कार्यकर्ता है, कोई लेखक है, कोई फिल्मकार हैं, कोई पत्रकार है, तो कोई अपनी जल–जंगल-ज़मीन की सुरक्षा के लिए लड़ाई लड़ रहे हैं।

देश की जनता सरकार से ये जनना चाहती है कि, क्या खेती-किसानी और अपने जल-जंगल-जमीन की सुरक्षा के लिए लोकतांत्रिक तरीके से मांग करना गैर-कानूनी गतिविधि है? यह सोचने की बात है कि यूएपीए (UAPA) सहित अन्य दमनकारी कानूनों का सामान्यीकरण क्यों हो रहा है। एक तरफ जहाँ Abolish Prisons, यानी जेलों को ख़त्म करने की वैश्विक मांग उठ रही है, उसी जगह भारत में आम जनता को किसी भी गतिविधि पर बेवजह गिरफ्तार किया जा रहा है।

झारखण्ड में हाल के दिनों में ही छात्र भगवान दास किस्कू की गिरफ्तारी हुई, बलदेव मुर्मू को 36 घंटे थाना में रखा गया, सत्यम और अनूप महतो की गिरफ्तारी की गई। ये सभी झारखण्ड जन संघर्ष मोर्चा के सक्रीय सदस्य हैं। हाल में ही जन जागरण वनाधिकार संघर्ष समिति के समरू खड़िया और उनके दो साथियों की गिरफ़्तारी हुई है। स्वतंत्र पत्रकार रूपेश कुमार सिंह, जो झारखण्ड में जल जंगल ज़मीन के मुद्दों पर तत्परता से लिखते रहे हैं, की भी गिरफ्तारी हुई। झारखण्ड जन संघर्ष मोर्चा की संयोजक, प्रोफेसर रजनी मुर्मू को बिना शो कॉज़ के जबरन कॉलेज से छुट्टी पर भेज दिया गया है। साथ ही साथ उन्हें उपद्रवी लड़कों के द्वारा धमकी दी जा रही है और प्रोफेसर मुर्मू द्वारा किए गए FIR वापस लेने का दबाव बनाया जा रहा है।

ऐसी ही गिरफ्तारियाँ पूरे देश में हो रही हैं। जनता के हक में आवाज उठाने वालो को चुन-चुन कर गिरफ्तार किया जा रहा है। अत्याचार झेल रहे आदिवासियों का साथ देने के कारण हिमांशु कुमार पर जुर्माना थोपा गया। फिल्मकार अविनाश दास, पत्रकार मोहम्मद ज़ुबैर, सामजिक कार्यकर्ता तीस्ता सेतलवाड समेत कई लोगों को बंदी बनाया गया। इनका जुर्म बस ये है, कि सच तथा न्याय के पक्ष में खड़े रहते थें। छत्तीसगढ़ के सुकमा जिले के एक सौ इक्कीस (121) आदिवासियों को दोषमुक्त होने पर 5 साल बाद रिहा किया गया। या ये कहा जाए कि निर्दोष होने के बावजूद एक सौ इक्कीस (121) आदिवासियों को पाँच वर्ष के लम्बे समय के लिए जेल में रखा गया। क्या कोई भी सरकार 121 नागरिकों के जीवन के पाँच साल लौटा सकती है? ज़मीनी स्तर पर ग्रामीण कार्यकर्ताओं को गिरफ्तार कर लेने पर उनकी शिक्षा, परिवार या भविष्य पर जो असर पड़ता है, क्या उसका कोई खाता है? देश भर में ही सामजिक एवं राजनैतिक कार्यकर्ताओं पर पुरजोर सरकारी दमन हो रहा है।

यूएपीए (UAPA) जैसे दमनकारी क़ानून का सामान्यीकरण हो रहा है। केंद्र में भाजपा सरकार का दमन देखने को मिलता है जहाँ लम्बी चार्ज शीटें फाइल कर यूएपीए (UAPA) की धारा लगाकर दमन किया जा रहा है तो झारखण्ड में झामुमो के शासन में भी आक्रामक रूप से सामाजिक कार्यकर्ताओं को गिरफ्तार कर उनके मनोबल तोड़ने का प्रयास लगातार किया जा रहा है। केंद्र एवं राज्य का संयुक्त दमनचक्र शर्मनाक है। झारखण्ड जन संघर्ष मोर्चा, गाँव तथा जंगल क्षेत्रों में रहने वाले आम जनता की मुक्त जीवन पर सशस्त्र बलों द्वारा हमला करने के सख्त खिलाफ है।

झारखण्ड जन संघर्ष मोर्चा केन्द्र और राज्य सरकार के इस रवैये की कड़ी निंदा करती है और प्रतिरोध में निम्नलिखित माँग करती हैः-

  1. सभी राजनीतिक बंदियों को अविलम्ब रिहा किया जाए।
  2. यूएपीए(UAPA)सहित सभी दमनकारी क़ानून रद्द किये जाए।

जनसंघर्ष मोर्चा की जनता से आह्वानः

उक्त मांगों को लेकर आगामी 19 अगस्त को राजभवन रांची, 21 अगस्त को गुमला, 22 अगस्त को धनबाद 25 अगस्त को गिरिडीह और 31 अगस्त को बोकारों में धरना प्रदर्शऩ किया जाएगा। झारखँड जन संघर्ष मोर्चा ने मजदूर-किसानों, छात्र-छात्रों, प्रगतिशील बुद्धिजीवियों, पत्रकारों, कलाकारों, मेहनतकश महिलाओं, रंगकर्मियों एवं समस्त शोषित उत्पीड़ित जनता से अपील की है कि, उपरोक्त कार्यक्रम में शामिल होकर जन विरोध कानूनों को रद्द करवाने में मोर्चा की मदद करें।

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