रिपोर्ट- संजय वर्मा…
रांचीः 15 नवंबर 2021 को झारखंड का 20वां स्थापना दिवस मनाया जाएगा। इस दौरान सरकारी स्तर पर कई कार्यक्रम भी आयोजित किए जाएंगे, लेकिन संभव है कि इन सरकारी कार्यक्रमों में वे आंदोलनकारी नजर नहीं आएंगे, जिनके लंबे संघर्षों के बाद झारखंड अलग राज्य का निर्माण हुआ। झारखंड अलग राज्य मांग की लड़ाई में हजारों आदिवासी-मुलवासियों ने आंदोलन किया, जिनमें से कुछ लोग काल के गाल में समां गएं और कुछ अब भी दो वक्त की रोटी के लिए जद्दोजहद करते नजर आ रहे हैं, और कई गंभीर बिमारी से ग्रसीत हो कर अपने घर या अस्पताल के बेड पर कर्रहा रहे हैं, लेकिन इनकी सुध लेने के लिए ना ही सरकारी स्तर पर कोई प्रयास किया जा रहा है और ना ही कोई सामाजिक संगठन ही आगे आ रही हैं। पिछले दिनों “ताजा खबर झारखंड” की टीम ने पश्चिम सिंहभूम जिले के कुछ प्रमुख आंदोलनकारियों से बात कर उनसे झारखंड आंदोलन और आंदोलन के बाद मिले झारखंड राज्य के बारे में विशेष बातचीत की। इस दौरान कुछ आंदोलनकारियों के आंसू बहने लगें तो किसी ने ये कह कर अफसोस जताया कि आंदोलन के क्रम में लाठी खाई, जेल गएं, मेरे कारन परिजनों को परेशानी हुई, और थाने में आंदोलनकारी नहीं बल्कि उपद्रवी बता कर मामला दर्ज किया गया। राज्य की वर्तमान स्थिति को देख कर अब अफसोस हो रहा है कि, क्या इसी लूट-खसोट, और झारखंडियों के बदहाली के लिए हजारों- हजार आंदोलनकारियों ने अपना सुख-चैन छोड़ कर आंदोलन किया था? ये सोंच वर्तमान में सिर्फ एक आंदोलनकारी की नही, बल्कि उन सभी आंदोलनकारियों की है, जिन्होंने आंदोलन के क्रम में अपना बहुत कुछ खोया है।
20 वर्षों में हर पार्टी ने झारखंड को लूटा, झामुमो ने भी उम्मीद तोड़ाः झारखंड आंदोलनकारी
प. सिंहभूम जिले से झारखंड आंदोलनकारी, मंगल सिंह बोबोंगा विश्वजीत सामद, बंधन उरांव, केपी सेठ सोय, और आंदोलनकारी आसमान बताते हैं कि, हमलोगों ने एक खुशहाल झारखंड के लिए अलग राज्य झारखंड के लिए लंबी लड़ाई लड़ी और कामयाबी भी मिली, लेकिन वर्तमान में झारखंड की जो स्थिति है, उसे देख कर हम आंदोलनकारियों को काफी दुख होता है। हमलोगों ने अपनी जान की परवाह ना करते हुए अपन बच्चों के भविष्य को दांव पर लगा कर अलग राज्य हांसिल किया, लेकिन अब यहां आंदोलन की सोंच के विपरित कार्य हो रहा है। यहां अब तक जितनी भी सरकारें बनी, सभी ने अपने लाभ के लिए काम किया। झारखंड मुक्ति मोर्चा से हमलोगों को काफी उम्मीद थी, लेकिन हेमंत सोरन के नेतृत्व में बनी सरकार ने अपना असली चेहरा दिखा दिया। ये पार्टी भी बाहरी लोगों की गुलामी कर रही है और सिर्फ और सिर्फ अपने स्वार्थ की पूर्ति कर रही है। यहां के युवक-युवती आज भी रोजी रोजगार के लिए महानगरों की ओर पलायन कर रहे हैं। यहां के जल जंगल और जमीन पर बाहरी लोगों का कब्जा होता जा रहा है और यहां के आदिवासी-मुलवासी भूमिहीन होते जा रहे हैं। स्वास्थ्य और शिक्षा जैसी मुलभूत सुविधाओं की स्थिति बेहद खराब है, यहां के कई क्षेत्रों में ग्रामीण अब भी नदी-नालों का पानी पीने के लिए विवश हैं। भाजपा और कांग्रेस ने मिल कर झारखंड को सिर्फ और सिर्फ लूटने का काम किया। झारखंड मुक्ति मोर्चा से हमलोगों को काफी उम्मीद थी, कि आंदोलन से उपजी झामुमो के सत्ता में आने के बाद शायद झारखंड की स्थिति में कुछ सुधार होगा, लेकिन ये पार्टी भी बाहरी लोगों के इशारे पर काम कर ही है। आदिवासी-मुलवासियों का शोषण, जमीन लूट हेमंत सरकार में भी जारी है। यहां की भाषा और संस्कृति में हमले अब भी जारी है।
आंदोलनकारियों का जमीन भी लैंड बैंक में किया गया शामिलः विश्वजीत सामद, आंदोलनकारी
झारखंड अलग राज्य के आंदोलनकारी विश्वजीत सामद बताते हैं कि आंदोलन के दौरान एक बड़ी घटना हुई थी। आंदोलनकारियों द्वारा झारखंड बंद का आह्वान किया गया था। बंद कराने के लिए हमलोग जब सड़क पर उतरे थें, उसी दौरान भाजपा और विश्व हिन्दू परिषद् के लोगों ने हमलोगों पर हमला किया, फिल पुलिस हमलोगों को पकड़ कर जेल में डाल दिया, लेकिन पुलिस ने जो एफआईआर दर्ज किया, उसमें हम लोगों को झारखंड आंदोलनकारी नहीं, बल्कि उपद्रवी बता कर केस दर्ज किया था। आंदोलन जब पीक पर था, उस समय मैं इंटर का छात्र था। लगातार आंदोलन में सक्रिय रहने के कारन मेरी पढ़ाई भी छुट गई। पूर्व में मेरे नाम से गैरमजरुआ जमीन की बंदोबस्ती हुई थी, जिसे रघुवर सरकार ने लैंड बैंक में शामिल कर मुझे और मेरे परिवार को भूमिहीन बना दिया, ये सिला मिला है मेरे आंदोलनकारी होने का।
आंदोलनकारी अगर सत्ता में शामिल रहतें, तो राज्य के विकास का खाका स्पष्ट होताः आसमान सुंडी, आंदोलनकारी
आंदोलनकारी आसमान सुंडी बताते हैं कि झारखंड का सही विकास तभी हो पाता जब, सत्ता में आंदोलनकारी भी शामिल रहतें। क्योंकि झारखंड अलग राज्य मांग के पीछे जो कारन था, वो कारन ही यहां क्रमवार सत्ता में काबिज रहे नेताओं को पता नही है। यहां की सत्ता में ज्यादातर बाहरी लोग ही काबिज रहे हैं, जिनका झारखंड के विकास से कोई लेना देना नही है। ये लोग सिर्फ और सिर्फ अपना और अपने लोगों का विकास करने के लिए सत्ता में काबिज रहे हैं।
राज्य के विकास में आंदोलनकारियों से भी सहयोग लिया जाना चाहिएः आसमान सुंडी, आंदोलनकारी
आंदोलनकारी आसमान सुंडी बताते हैं की, राज्य में विकास की रुपरेखा तैयार करने में आंदोलनकारियों की भी सहभागिता होनी चाहिए थी, उनसे सुझाव लिया जाना चाहिए था, लेकिन किसी भी सरकार ने आंदोलनकारियों को तरजिह नही दिया। यहां विकास की रुपरेखा बाहरी लोग तैयार करते हैं, जिन्हें यहां के भौगोलिक स्थिति, भाषा-संस्कृति और निवासियों की जानकारी तक नही है। ये लोग विकास की जो रुपरेखा तैयार करते है, इसमें यहां के अधिकारी और नेताओं का स्वार्थ छुपा रहता है, जिसके कारन राज्य का अब तक सही विकास नही हो पाया है।
रघुवर दास के ही नक्शे कदम पर चल रही है हेमंत सरकार, पुरानी शराब को नई बोतल में परोसा जा रहा हैः मंगल सिंह बोबोंगा, के.पी. सेठ सोय, आंदोलनकारी
झारखंड अलग राज्य के आंदोलन में प. सिंहभूम जिले के आंदोलनकारियों की पहचान उग्र आंदोलन करने वालों में रही है। रेलवे मार्ग अवरुद्ध करना, ट्रेन की पटरियों को विस्फोट कर उड़ा देने के साथ-साथ आंदोलन के जरिये केन्द्र सरकार को वार्ता के लिए बाध्य करने में यहां के आंदोलनकारियों की महत्वपूर्ण भूमिका रही है। यहां के आंदोलनकारियों के नेतृत्वकर्ताओं में से एक मंगल सिंह बोबोंगा और के.पी. सेठ सोय ने कई मुद्दों पर अब तक सत्ता में काबिज रहे सरकारों को घेरते हुए कहा कि, राज्य के विकास में सबसे बड़ी बाधा यहां की सरकारें रही है। 20 वर्षों में अब तक सही तरीके से स्थानीय निती और नियोजन निती नही बना पाया, जिसके कारन यहां के युवा पढ़-लिख कर भी बेरोजगार हैं, मजबुरी में महानगरो की ओर पलायन कर रहे हैं। रघुवर सरकार ने लैंड बैंक बना कर आदिवासी-मुलवासियों की जमीन को लूटा और अब हेमंत सरकार लैंड पुल बना कर लूट रही है। पांचवी अनुसूची क्षेत्रों में पंचायत और नगर निगम का चुनाव कराना बिल्कूल सरकार का गलत कदम है। सरकार इस तरह यहां गांव की सत्ता अधिकारियों की हांथ में सौंप रही है। विकास योजनाओं का निर्धारण गांव वाले नहीं अधिकारी कर रहे हैं, जिससे ग्रामीण भाषा-संस्कृति और अर्थव्यवस्था नष्ट हो रही है। बालू घाटों और पत्थर पर माफियाओं का कब्जा हो रहा है, जबकि पांचवी अनुसूची क्षेत्रों में बालू और पत्थर पर पेशा कानून के तहत ग्रामसभा का अधीकार है। यहां की सरकार आदिवासी-मुलवासियों को मिले संवैधानिक अधिकारों की भी धज्जियां उड़ा रही है।
सोने की चीडियां झारखंड को कंगाल बना डालाः के.पी. सेठ सोय, आंदोलनकारी
झारखंड अलग राज्य के आंदोलन में स्व. देवेन्द्र मांझी के साथ अग्रीम पंक्ति में खड़े रहने वाले आंदोलनकारी के.पी. सेठ सोय ने कहा कि आंदोलन के समय, हम आंदोलनकारी ये सपना संयोए हुए थें कि, खनीजों से भरपुर इस भु-भाग से अलग राज्य बनने के बाद यहां के मुल निवासियों का अच्छी तरह से विकास करेंगे। लेकिन झारखंड अलग राज्य बनने के बाद यहां की सत्ता मे वैसे लोग बैठ गएं, जिनका आंदोलन से कोई लेना देना नहीं था, जिसके कारन हमलोगों का सोंच सपना ही रह गया और इन लोगों ने सिर्फ झारखंड को लूटने का काम किया।
आंदोलनकारी चिन्हितिकरन आयोग में है त्रुटी, नये सीरे से हो गठनः मंगल सिंह बोबोंगा, आंदोलनकारी
आंदोलनकारियों के नेतृत्वकर्ता, मंगल सिंह बोबोंगा की मानें तो आदोलनकारियों के चिन्हितिकरन के लिए जिस आयोग का गठन किया गया है, वो पुरी तरह त्रुटीपूर्ण है। आयोग ने आंदोलनकारियों को चिन्हित करने के लिए जो मानदंड निर्धारित किया है, उसमें कई खामियां है। आयोग गठन करने से पूर्व आंदोलनकारियों से राय लिया जाना चाहिए था, लेकिन ऐसा नही किया गया। अभी जो भी लोग अपने आप को आंदोलनकारी बता रहे हैं, वे सभी सत्ता के इर्द-गिर्द नाचने वाले लोग है, जबकि सही आंदोलनकारियों को दरकिनार कर दिया गया है। आयोग के मानदंड में से एक ये है कि, आंदोलनकारी का नाम आंदोलनकारी के रुप में थाने में दर्ज होना जरुरी है, जबकि उस दौरान आंदोलन करने के वक्त पुलिस ने पकड़े गए आंदोलनकारियों को उपद्रवी बता कर थाने में केस दर्ज किया था। कई साथी ऐसे भी हैं, जो अंडरग्राउंड रह कर आंदोलन को चलाते रहें। मंगल सिंह बोबोंगा ने उदाहरण देते हुए बताया कि, जब मैं गिरफ्तार कर लिया गया था, उस वक्त आंदोलन रुका नहीं, बल्कि मेरे दर्जनों साथी अंडर ग्राउंड रह कर आंदोलन को आगे बढ़ाते रहें, तो क्या वे आंदोलनकारी नही हैं?
जिला स्तर पर आंदोलनकारी चिन्हितिकरन टीम का हो गठनः मंगल सिंह बोबोंगा
मंगल सिंह बोबोंगा ने सुझाव देते हुए कहा कि, आंदोलनकारियों को सही तरीके से चिन्हित करने के लिए जिला स्तर पर चिन्हितिकरन टीम का गठन किया जाना काफी जरुरी है। कई आंदोलनकारियों की मृत्यु हो चुकी है, कई लोग गंभीर रुप से बीमार है, कई आंदोलनकारियों की वर्तमान में माली हालत काफी खराब है। इसलिए जिला स्तर पर चिन्हितिकरन टीम का गठन किया जाना और इस टीम का लीडर उसी जिले का आंदोलनकारी होना चाहिए, जो ये सही तरीके से बता सके कि आंदोलन में जिले के कौन-कौन लोग आंदलन के क्रम में उनके साथ जुड़े हुए थें।
विकास योजनाओं में 25 प्रतिशत आरक्षण आंदोलनकारियों को मिलना चाहिएः
आंदोलनकारियों को रुपया नहीं सम्मान चाहिए। क्योंकि झारखंड अलग राज्य की मांग आंदोलनकारियों ने रुपया पैसे की लालच में नहीं किया था, बल्कि प्रदेश का विकास यहां के लोगों का विकास के लिए किया था। इसलिए अब ये जरुरी और राज्य सरकार की जिम्मेवारी भी बनती है। कि जिन आंदोलनकारियों की मृत्यु हो चुकी है, उन्हें भी सम्मान दें और जो लोग अभी जिन्दा हैं, उन्हें सम्मान देने के साथ साथ राज्य के विकास योजना की रुप रेखा तैयार करने में भी उनकी मदद ली जाए। मृत आंदोलनकारी के परिजन अपने आप को उपेक्षित ना समझें, इसके लिए मृत आंदोलनकारियों के परिजनों को विकास योजनाओं में 25 प्रतिशत आरक्षण दिया जाना चाहिए।
झारखंड बचाओ अभियान, सरकार को आईना दिखाने का काम कर रही हैः
आंदोलनकारी मंगल सिंह ने आगे बताया कि झारखंड के आंदोलनकारी सरकार की उपेक्षा से त्रस्त होकर झारखंड बचाओ अभियान की शुरुआत की है। इस अभियान में काफी संख्या में आंदोलनकारी हैं, जो सरकार को आईना दिखाने का काम कर रहे है। आंदोलनकारियों का चिन्हितिकरन कैसे हो, कैसे आंदोलनकारियों को सम्मान दिया जाए और आंदोलनकारियों ने जिस सोंच को लेकर अलग राज्य झारखंड के लिए लंबी लड़ाई लड़ी, उस सोंच को कैसे धरातल पर उतारा जाए, ये सब इस अभियान के माध्यम से सरकार को बताया जा रहा है।