विकास योजनाओं से वंचित ग्रामीणों पर पुलिसिया अत्याचार, भय से अब तक सैंकड़ों ग्रामीण कर चुके हैं महानगरों में पलायनः सीडीआरओ

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रिपोर्ट- “ताजा खबर झारखंड” ब्यूरो

गिरिडीहः गिरिडीह जिला के पारसनाथ पर्वत के आसपास स्थित तीन थाना क्षेत्रों में, माओवादियों के नाम पर पुलिस आम जनता पर अत्याचार कर रही है, जिसके कारन जनता के जीने के अधिकार के साथ मौलिक अधिकारों का हनन हो रहा है। सरकार को इन अति पिछड़े क्षेत्रों में विकास योजनाओं पर जो देना चाहिए था, लेकिन रघुवर सरकार के बाद वर्तमान हेमंत सोरेन की सरकार में भी इस क्षेत्र में रहने वाले आम जनता पर दमनात्मक कार्रवाई चल रही है, ये कहना है सीडीआरओ के सदस्य, तापस चक्रवर्ती का।

तापस चक्रवर्ती ने पारसनाथ पर्वत के आसपास स्थित तीन थाना क्षेत्रों के लगभग 16 गांवों का दौरा करने के बाद गिरिडीह में मीडिया को संबोधित करते हुए उक्त बातें कही। उन्होंने आगे कहा कि इस क्षेत्र में कई पुलिस पिकेट बनाने की योजना पर काम हो रहा है, लेकिन पुलिस पिकेट के लिए चिन्हित किए गए जगहों के लिए किसी भी ग्रामसभा से प्रमिशन नहीं लिया गया है। ग्रामीण लगातार पुलिस पिकेट का लोकतांत्रिक तरीके से विरोध कर रहे हैं, लेकिन स्थानीय प्रशासन ग्रामीणों की बात नहीं सुन रही है, बल्कि विरोध करने पर उनकी आवाज को कुचलने का काम किया जा रहा है।

सिर्फ शक् के आधार पर पारा मिलिट्री फोर्स और स्थानीय पुलिस ग्रामीणों को प्रताड़ित कर रही हैः सीडीआरओ

विगत् 5-6 मार्च 2021 को सीडीआरओ, एचआरएलएन और मानवाधिकार कार्यकर्ताओं की फैक्ट फाईन्डिंग टीम ने गिरिडीह जिले के तीन थाना क्षेत्र, मधुवन, डुमरी और पीरटांड का दौरा किया, जहां केंद्र सरकार ने पारा मिलिट्री फोर्स के लिए कई कैंप स्थापित करने का निर्णय लिया है। इसके लिए जिला प्रशासन और पारा मिलिट्री फोर्स द्वारा स्थल निरीक्षण भी किया जा रहा है। इसे देखते हुए ग्रामीणों द्वारा बड़े पैमाने पर विरोध प्रदर्शन किया गया है। फैक्ट फाईन्डिंग टीम ने इस मामले में ग्रामीणों से मुलाकात कर पूरे मामले की जानकारी हांसिल की।

ज्ञात हो कि देश के प्रमुख समाचार पत्र और ईलेक्ट्रोनिक मीडिया में दिसंबर 2020 और जनवरी 2021 में बताया गया था कि, गिरिडीह जिले में कई सीआरपीएफ शिविरों का निर्माण किया जा रहा है, जिसका विरोध यहां के ग्रामीण जोरदार तरीके से कर रहे हैं। विरोध-प्रदर्शन के दौरान ग्रामीणों और प्रशासन के बीच कई बार टकराव भी हुई, जिसके बाद कई लोगों की गिरफ्तारी की गई और एफआईआर भी दर्ज किए गएं।

पुलिसिया दमन और क्षेत्र में विकास कार्य नहीं होने के कारन ग्रामीण कैंप का कर रहे हैं विरोधः

फैक्ट फाईन्डिंग टीम ने अपनी जांच में ये पाया कि, डुमरी, पीरटांड़ और मधुवन थाना क्षेत्रों में रहने वाले ग्रामीण मुख्यतः आदिवासी हैं, जो समृद्ध प्राकृतिक वन और खनिज संसाधनों के साथ पहाड़ी इलाकों में रहते हैं। यहां वन, भूमि और पारंपरिक शासन प्रणाली के साथ रह रहे आदिवासियों के अधिकारों को सरकार ने हमेशा से नजरअंदाज किया है। अब तक यहां के ग्रामीणों को  वन अधिकार अधिनियम-2006 के तहत व्यक्तिगत और सामुदायिक पट्टा नही दिया गया हैं। यहां के स्थानीय निवासियों के लिए रोजगार का कोई साधन नहीं है मनरेगा जैसी महत्वपूर्ण योजना भी इन क्षेत्रों में सही तरीके से नहीं चलाई जा रही है। चिकित्सा और शिक्षा व्यवस्था इन क्षेत्रों में पूरी तरह चौपट है।

सर्च ऑपरेशन के दौरान निर्दोष ग्रामीणों के साथ मारपीट करते हैं जवानः ग्रामीण

डुमरी, मधुवन और पीरटांड थाना क्षेत्र में झारखंड अलग राज्य बनने के बाद से ही लगातार ग्रामीणों के साथ मारपीट और झुठे मुकदमें लगा कर जेल भेजे जाने की कार्रवाई हो रही है। लेकिन इन क्षेत्रों में पारा मिलिट्री फोर्स की तैनाती के बाद ऐसी घटनाओं में और भी ज्यादा वृद्धि हुई है। ग्रामीण बताते हैं कि उन्हें नहीं पता कि, सरकार यहां के निर्दोष आदिवासी ग्रामीणों पर इस तरह की दमनात्मक कार्रवाई क्यों कर रही है?  इस तरह की कार्रवाई से ग्रामीण खौफ के माहौल में जीने के लिए विवश हैं। अनगिनत युवा इस तरह की कार्रवाई से भयभीत हो कर रोजी-रोटी के लिए महानगरों में पलायन कर चुके हैं। फैक्ट फाईन्डिंग टीम ने तीन थाना क्षेत्र के कूल 16 गांवों का दौरा किया, जिनमें चिंगिया पहाड़ी, टेसाफुली, बरियारपुर, जीतपुर, बानपुरा, करिपाहारी, बेलथान और ताराटांड क्षेत्रों के कुल 16 गांवों की महिलाओं और बच्चों सहित ग्रामीणों से जानकारी प्राप्त की। इन गांवों के ग्रामीणों ने निम्नलिखित जानकारी दीः

1)बलात्कार – टेसाफुली गांव में सुरक्षा बलों द्वारा बलात्कार महिला के साथ दुष्करम किया गया।

2)यौन उत्पीड़न- बानपुरा गांव की 7 नाबालिग लड़कियों का सुरक्षा बलों ने यौन शोषण किया।

3) फर्जी इंकाउंटर- डोलकट्टा में एक मजदूर को फर्जी मुठभेड़ में मार गिराया गया।

4)कस्टोडियल डेथ- पीरटांड़ थाना क्षेत्र के झरहा गांव निवासी एक युवक की पुलिस हिरासत में हत्या कर दी गई।

5)हिरासत में यातनाएँ – ताराटांड़ गाँव के दो युवकों को पुलिस ने हिरासत में लिया और एसपी ऑफिस, गिरिडीह में अमानवीय तरीके से पीटा।

6) मनरेगा कार्यकर्ता की पिटाई- कारीपारी गाँव के एक मनरेगा कार्यकर्ता को पुलिस ने हिरासत में लेकर बेरहमी से पीटा फिर उसके मोबाइल, बाइक, बैंक पासबुक और 15 मनरेगा कर्मियों के मस्टर रोल पुलिस ने छीन लिए। इस घटना के कारन 15 मनरेगा श्रमिकों को अब तक 2 सप्ताह का वेतन नहीं मिल पाया है।

7)निर्दोषों पर फर्जी मामले दर्ज- फैक्ट फाईन्डिंग टीम की जांच में पाया गया कि, 6 लोग अभी भी फर्जी मामलों में जेल में बंद हैं, वहीं 2 अज्ञात लोगों के खिलाफ फर्जी मामले सामने आए हैं, लेकिन अब तक कोई गिरफ्तारी नहीं हुई है। कई लोगों को फर्जी मामले में जेल भेज दिया गया था, जो फिलहाल जमानत पर बाहर है।

8)इन स्थानों पर यूएपीए और सीएलए का दुरुपयोग कर निर्दोष ग्रामीणों पर अत्याचार किया गया है जिसके कारन ग्रामीणों में भय का माहौल पैदा हुआ है।

9)लगभग सभी गांवों में सुरक्षा बलों ने दिन और रात दोनों समय घरों में छापेमारी की है। घरों से पैसे और गहने लूटने की भी घटनाएं हुई हैं, जो ग्रामीणों ने बताया। छापामारी के दौरान अक्सर, घरों में रखे अनाजों को भी नष्ट कर दिया जाता है। इस तरह की छापेमारी टीम में कोई महिला पुलिस अधिकारी नहीं रहती है। छापे के दौरान महिलाओं के साथ छेड़छाड़ और बदसलूकी की घटनाएं भी हुई है।

सब्जी बिक्रेता ने थाना प्रभारी से बकाया रुपया मांगा, तो थाना प्रभारी ने झुठा मुकदमा दर्ज कर भेजा जेलः

फैक्ट फाईन्डिंग टीम को एक ग्रामीण ने बताया कि मैं थाना के सामने बाजार में सब्जी बेजने का काम करता हूं। थाना प्रभारी उधार में सब्जी ले जाया करता था, जब मैंने थाना प्रभारी से रुपये की मांग की, तो उसने मेरे साथ मारपीट किया और मेरे उपर यूएपीए का झूठा केस लगा कर जेल भेज दिया। लंबे समय के बाद मैं जमानत पर बाहर निकला हूं।

फैंक्ट फाईन्डिंग टीम ने अपनी जांच में पाया कि, ग्रामीण महिला और पुरुषों से लगातार हो रहे मारपीट की घटना और झुठे मुकदमें में फंसा कर जेल भेज दिए जाने की घटना के कारन ग्रामीणों में स्थानीय पुलिस और पारा मिलिट्री फोर्स के खिलाफ खाशा आक्रोश है। यही कारन है कि ग्रामीण इन क्षेत्रों में स्थापित होने वाले पुलिस कैंप के खिलाफ मे खड़े हैं और लगातार विरोध प्रदरेशन कर रहे हैं। ग्रामीणों का कहना है कि, सरकार उनके पैसे का इस्तेमाल उनका शोषण करने के लिए कर रही है। ग्रामीण सुरक्षा शिविरों के बजाय अस्पताल, स्कूल, रोजगार और विकास की मांग कर रहे हैं। ग्रामीणों ने ये भी बताया कि सीआरपीएफ ने ग्रामीणों के पारंपरिक पूजा स्थलों पर जबरन सीआरपीएफ शिविर का निर्माण किया है। पाँचवीं अनुसूचित क्षेत्र होने के बावजूद, शिविर लगाने से पूर्व ग्राम सभा से अनुमति नहीं ली गई है। पीड़ितों को क्षेत्र में किसी भी प्रकार की कानूनी सहायता नहीं मिलती है। ग्रामीण इतने भयभीत हैं कि अपने जरुरत की वस्तु(वन उत्पाद) लाने के लिए जंगलों में जाने से डरने लगे हैं।

सभी समस्याओं को देखते हुए फैक्ट फाईन्डिंग टीम ने सरकार से निम्नलिखित मांग की हैः

1)जितने भी निर्दोष ग्रामीणों पर झूठा मुकदमा दर्ज किया गया है, उसे तुरंत वापस लिया जाए और बिना शर्त जेल से रिहा किया जाए।

2)ग्रामीणों पर हो रहे हिंसात्मक कार्रवाई पर अविलंब रोक लगाया जाए। सर्वोच्च न्यायालय और राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग द्वारा दिए गए निर्देशों के अनुसार कस्टोडियल डेथ की स्वतंत्र एजेंसी द्वारा जांच की जानी चाहिए।

3)सामाजिक प्रगति और विकास पर संयुक्त राष्ट्र घोषणा के हस्ताक्षरकर्ता होने के नाते, सरकार को सामुदायिक विकास के लिए अपने दायित्वों को पूरा करना चाहिए।

4)वन अधिकार कानून के तहत, सरकार अविलंब ग्रामीणों को जमीन का निजी और सामुदायिक पट्टा निर्गत करे।

5)5वीं अनुसूची क्षेत्र में, कोई भी कार्य ग्राम सभा की सहमति के बिना नहीं किया जाना चाहिए और सरकार को पेशा कानून के प्रावधानों का पालन करना चाहिए।

6)सभी पीड़ितों को मुफ्त कानूनी सहायता दी जानी चाहिए साथ ही न्यायमूर्ति डी.के.बसु के दिशा निर्देशों का कड़ाई से पालन किया जाना चाहिए।

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