आदिवासियों के संवैधानिक अधिकारों से छेड़छाड़ ना करे हेमंत सरकार, अन्यथा रघुवर दास की तरह अंजाम भुगतने के लिए रहे तैयारः संयुक्त ग्रामसभा संघर्ष समिति

0
4

रिपोर्ट- संजय वर्मा…

रांचीः झारखंड मुक्ति मोर्चा आंदोलनकारियों की पार्टी है, जिससे झारखंड के आंदोलनकारी और आदिवासी समुदाय को काफी उम्मीदें है। हमलोगों ने काफी उम्मीद के साथ रघुवर दास की सरकार को सत्ता से बाहर करते हुए झामुमो को सत्ता पर आसीन किया है, लेकिन वर्तमान मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन भी, रघुवर दास के नक्शे कदम पर चल रहे हैं।  जिस तरह उन्होंने एक के बाद एक कई संशोधन कर आदिवासियों के संवैधानिक अधिकारों को कुचलने का काम किया उसी तरह अब हेमंत सोरेन के नेतृत्व में चल रही महागठबंधन की सरकार भी पांचवी अनुसूची क्षेत्रों में आदिवासियों के अधीकारों का हनन कर रही है। अगर हेमंत सरकार इसी तरह काम करते रही तो आने वाले समय में हेमंत सोरेन का भी जुता-चप्पल से स्वागत करते हुए बाहर का रास्ता दिखाने का काम किया जाएगा। ये कहना है कोल्हान प्रमंडल के झारखंड आंदोलनकारी सह सदस्य संयुक्त ग्रामसभा संघर्ष समिति, डेमका सोय का।

आदिवासी बहुल मानगो(पूर्वी सिंहभूम) के 12 मौजा में नगर निगम का चुनाव असंवैधानिकः डेमका सोय

डेमका सोय ने गुरुवार को एचपीडीसी सभागार में संवाददाता सम्मेलन को संबोधित करते हुए कहा कि, कोल्हान प्रमंडल पांचवी अनुसूची क्षेत्र है, जहां बिना किसी संशोधन के कोई भी नया कानून लागू नहीं किया जा सकता, बावजुद इसके पूर्वी सिंहभूम जिला के आदिवासी बहुल मानगो के 12 मौजा में नगर निगम का गठन किए जाने की तैयारी हेमंत सरकार कर चुकी है, बकायदा इसके लिए गजट भी जारी कर दिया गया है। जबकि बिते 2 अगस्त को संयुक्त ग्रामसभा संघर्ष समिति का प्रतिनिधि मंडल इस मुद्दे को लेकर मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन से मुलाकात कर उन्हें इस मामले से अवगत भी करवा चुकी है। प्रतिनिधि मंडल से मुलाकात के दौरान सीएम हेमंत सोरेन ने आश्वासन दिया था कि, सरकार संविधान के विरुद्ध को भी काम नही करेगी, आप लोग निश्चिंत रहें। लेकिन हेमंत सोरेन अपने वादे पर खरे नही उतरें, जिसका खामियाजा उन्हें भुगतना पड़ेगा। डेमका सोय ने सरकार को चेतावनी भी दी है कि, अगर मानगो के 12 मौजा को नगर निगम के दायरे में लाया जाता है, तो संयुक्त ग्रामसभा संघर्ष समिति सरकार के इस फैसले के विरोध में हाईकोर्ट से लेकर सुप्रीम कोर्ट तक जाने का काम करेगी, लेकिन इससे पहले इस मामले को राज्यपाल के समक्ष रखा जाएगा और अगर राज्यपाल के यहां भी न्याय नहीं मिला तो कोर्ट का दरवाजा खुला है और अगर इससे भी बात नही बनी तो कोल्हान के आदिवासी एक और उलगुलान करने के लिए बाध्य हो जाएंगे।

संयुक्त ग्रामसभा संघर्ष समित के सदस्य, डेमका सोय ने दी सीएम, हेमंत सोरेन को चेतावनी…

संयुक्त ग्रामसभा संघर्ष समिति ने निम्नलिखित बातों को मीडिया के समक्ष रखाः

1-राष्ट्रपति, भारत के संविधान की पांचवी अनुसूची के पैरा 6 के उप पैरा (2) द्वारा प्रदत शक्तियों का प्रयोग करते हुए, अनुसूचित क्षेत्र झारखंड, आदेश-2007 द्वारा पूर्वी सिंहभूम जिले को अनुसूचित क्षेत्र घोषित किया गया है।

2)-झारखंड सरकार का नगर विकास विभाग अधिसूचना  अधि. सं.8यगठनय110य2016 न.वि.आ.-5460 रांची, दिनांक-23-08-2017 इसके संदर्भ में कहना है कि झारखंड के अनुसूचित क्षेत्रों में नगर निगम, नगर पंचायत के लिए अधिसूचित नहीं है, ये सामान्य क्षेत्रों के लिए है। अनुसूचित क्षेत्रों में संवैधानिक प्रावधान है, उसके दृष्टिगत नही है।

3)-संविधान के अनुच्छेद 244 में पांचवी अनुसूची वाले क्षेत्र में ये व्यवस्था है कि किसी भी कानून को क्षेत्र  लागू करने के पूर्व राज्यपाल इसे आदिवासी सलाहकार परिषद् को भेज कर अनुसूचित जनजातियों पर उसके दुष्प्रभावों का आंकलन करवाएंगे, इसके बाद कानून में फेर-बदल कर उसे लागू किया जाएगा। मानगो मौजा के 12 गांवों में नगर निगम चुनाव करवाने से पूर्व ग्रामीण क्षेत्र का सामाजिक, आर्थिक और राजनीतिक आंकलन जनजातिय सलाहकार परिषद्(TAC) से क्यों नहीं करवाया गया, जबकि मानगो के 12 मौजा में शत् प्रतिशत भूमि का राजस्व अभिलेख आदिवासियों के नाम पर दर्ज है, और एस.ए.आर. कोर्ट के द्वारा इन क्षेत्रों में अनुसूचित जनजातिय भू-धारकों के भू-वापसी का आदेश माननीय न्यायालय द्वारा जारी किया जा चुका है।

4)मानगो में प्रस्तावित निगम में वार्डों का गठन जिस आबादी को आधार मान कर  परिसीमन किया जा रहा है वहां सीएनटी एक्ट 1908 का उल्लंघन कर बड़ी आबादी बसी हुई है।

5)-भारत के संविधान के अनुच्छेद 243 भाग य और ग में प्रावधान है कि इस भाग का कतिपय क्षेत्रों को लागू न होना-(1) इस भाग की कोई बात अनुच्छेद 244 के खण्ड(1) में निर्दिष्ट अनुसूचित क्षेत्रों और इसके खण्ड (2) में निर्दिष्ट जनजाति क्षेत्रों को लागू नही होगी, अर्थात नगर निगम/नगर पालिका का गठन अनुसूचित क्षेत्रों में नहीं किया जा सकता है।

6)-भारतीय संविधान के 74वें संविधान संशोधन अधिनियम 1992 संसद द्वारा नगर पालिका का गठन एवं विस्तार को संवैधानिक दर्जा दिया गया लेकिन अनुसूचित क्षेत्रों में इसका विस्तार एवं गठन हेतू अभी तक संसद द्वारा कोई भी अधिनियम/कानून नहीं बनाया गया है।

7)- शहरी विकास मंत्रालय भारत सरकार ने सूचना अधिकार अधिनियम-2005 के तहत जानकारी दिया है कि अब तक अनुसूचित क्षेत्रों पर नगर पालिका विस्तार या गठन से संबंधित किसी प्रकार का अधिनियम या कानून नहीं बना है, इससे ये साफ हो जाता है कि, झारखंड के अनुसूचित क्षेत्रों में नये नगर पालिका/निगम का गठन, वार्डों का परिसीमन और चुनाव करना संविधान विरुद्ध और गलत है।

आयोजित संवाददाता सम्मेलन में कुमार चन्द्र मार्डी, डेमका सोय, दीपक मुर्मू, रमेश चन्द्र मुर्मू, कैलाश बिरुआ, मदन मोहन सोरेन, दुर्गा मुर्मू, सनातन टुडू, लवकुश हांसदा, कार्तिक मार्डी, बिरेन मुर्मू और सुषमा विरुली उपस्थित रहें।  

Leave A Reply

Your email address will not be published.