स्थानीय नीति का मुद्दा बना चोचो का मुरब्बा , राजद और कांग्रेस ने 1932 के खतियान का किया है विरोधः प्रदेश भाजपा

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रिपोर्ट- बिनोद सोनी…

राँची : झारखण्ड में एक बार फिर से स्थानीय नीति को लेकर वाक युद्ध जारी हो चुका है। मुख्यमंत्री, हेमंत सोरेन द्वारा स्थानीय नीति पर ब्यान दिए जाने के बाद से ही मामला गरमा चुका है। कहीं ऐसा ना हो कि एक बार फिर बाबूलाल मरांडी के मुख्यमंत्री रहते जो स्थिति खड़ी हुई थी, उसी तरह की स्थिति एक बार फिर बन जाए।

पूर्व में रघुवर दास के स्थानीय नीति का किया जा चुका है विरोधः

जानकारी देते चलें कि पूर्व की रघुवर सरकार ने 1985 को आधार मानकर स्थानीय नीति तय किया था, जिसके बाद जेएमएम सहित विभिन्न आदिवासी और सामाजिक संगठनों ने इस स्थानीय नीति क विरोध में सड़कों पर उतर कर आंदोलन भी किया था। इतना ही नहीं 2019 विधानसभा चुनाव में जेएमएम ने इसे राजनीतिक मुद्दा बनाते हुए अपने चुनावी घोषणा पत्र में इसमें सुधार की बात कही थी।

मुख्यमंत्री जो भी निर्णय लेंगे राजद उनके साथ हैः राजद

वहीं गठबंधन सरकार के घटक दल भी रघुवर दास के स्थानीय नीति में संशोधन को लेकर एकमत हैं। घटक दल राजद और कांग्रेस का कहना है कि पूर्ववर्ती सरकार के द्वारा घोषित स्थानीय नीति में कई खामियां है, जिसे दूर किया जाना जरुरी है। राजद कोटे से मंत्री सत्यानंद भोक्ता का कहना है कि मुख्यमंत्री जो भी निर्णय लेंगे राजद उनके साथ है।

स्थानीय लोगों को लाभ पहुंचाने के लिए बदलाव जरुरीः कांग्रेस

कांग्रेस के कार्यकारी प्रदेश अध्यक्ष राजेश ठाकुर का साफ तौर पर कहना है कि, नीति में कई गंभीर खामियां है। इन खामियों को बिना दूर किये झारखण्ड के स्थानीय लोगों को इस स्थानीय नीति से कोई लाभ नहीं मिलने वाला है।

स्थानीय नीति चोचो का मुरब्बा हो गया है, राजद और कांग्रेस ने 1932 के खतियान का किया है विरोधः प्रदेश भाजपा

दूससरी तरफ प्रदेश भाजपा के प्रवक्ता प्रतुल शाहदेव का कहना है कि, सरकार स्थानीय नीति को लेकर गंभीर नही है।  1932 को आधार बनाने को लेकर कांग्रेस और राजद ने विरोध किया है, इसलिए एक कमिटी बनाकर मुख्यमंत्री इसे ठंडे बस्ते में डालना चाहते हैं। वहीं कांके से बीजेपी विधायक समरी लाल का कहना है कि स्थानीय नीति चुचु का मुरब्बा हो गया है।

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