विकास की आड़ में लाखों आदिवासी किये जा चुके है विस्थापित, अब मांग रहे हैं भीख… गोड्डा में न्याय यात्रा निकाल कर आदिवासियों ने लगाई मदद की गुहार…

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गोड्डा से संजय वर्मा की रिपोर्ट….

गोड्डाः 9 अगस्त को पुरे विश्व में “विश्व आदिवासी दिवस” मनाया जा रहा है। आदिवासी समुदाय इसे लेकर उत्साहित है और इस दिवस विशेष के अवसर पर अपने हक् अधिकारों की बात भी कर रहे हैं। इस दिन आदिवासी समाज एक ओर ढ़ोल-नगाड़ों और मांदर की थाप पर झुम रहे है, तो दूसरी ओर इन्हें अपने अस्तित्व, आत्म सम्मान और संस्कृति की रक्षा कैसे की जाए? इस बात की चिंता भी सता रही है। आदिवासी समाज अपनी चिंता विभिन्न मंचों से अपने समुदाय और समुदाय के अगुवा लोगों के साथ साझा कर रहे हैं।

वर्तमान में विस्थापन का मुद्दा, विश्व भर के आदिवासियों के लिए सबसे बड़ा चिंता का विषय है। 2011 में हुवे सर्वे की रिपोर्ट बताती है कि देश में 40 करोड़ लोग आंतरिक विस्थापन का शिकार हुए हैं, जिसमें 90 प्रतिशत संख्या महिलाओं की है। आधुनिकता और विकास की भेंट सबसे ज्यादा आदिवासी समुदाय ही चढ़ रहे है। झारखंड के कोने-कोने से विस्थापन के विरोध में आवाज उठ रही है, लेकिन विरोध करने वाले लोगों की आवाज, लाठी डंडे और झुठा मुकदमा दर्ज कर दबा दिया जा रहा है।

अपनी जमीन बचाने के लिए तालझाड़ी गांव की सीमा पर ग्रामसभा द्वारा लगाया गया बोर्ड.

जबरन खनन विस्तार के क्रम में बोआरीजोर प्रखंड के तीन ग्रामसभा के आदिवासियों के साथ हो चुकी है झड़पः

ताजा मामला संथालपरगणा के बोआरीजोर प्रखंड की है। यहां ईसीएल (इस्टर्न कोल फिल्ड लिमिटेड) कंपनी गैर संवैधानिक तरीके से बोआरीजोर प्रखंड अंतर्गत तालझारी गांव की 125 एकड़ जमीन पर विस्तार करने की कोशिश में है, लेकिन तालझारी के रैयतों के अलावा पहाड़पुर और रेवेंडा गांव के ग्रामीणों के भारी विरोध के कारन ईसीएल अपने मंसुबे पर कामयाब नहीं हो पा रही है। जमीन सीमांकन के दौरान तालझाड़ी गांव में कई बार पुलिस और आदिवासियों के बीच झड़प हो चुकी है। अंतिम बार जनवरी 2023 में पुलिस ने बर्बरतापूर्ण कार्रवाई करते हुए तालझाड़ी गांव के रैयतों की पीटाई की थी और गांव के कई लोगों पर झुठा मुकदमा दर्ज किया था। गांव के ग्राम प्रधान अब भी जेल मे हैं। ईसीएल के विस्तारीकरण का विरोध अब भी जारी है।

न्याय यात्रा निकाल कर, जिले के उपायुक्त समेत बीडीओ, सीओ और जनप्रतिनिधियो से लगाई गई मदद की गुहारः

ईसीएल द्वारा बहुफसलिय जमीन का जबरन कब्जा के खिलाफ विरोध-प्रदर्शन का क्रम अब भी जारी है। इसी कड़ी में विश्व आदिवासी दिवस से पूर्व तालझाड़ी, वेरेंडा और पहाड़पुर ग्रामसभा के ग्रामीणों ने सामाजिक सुरक्षा मंच गोड्डा के बैनर तले दो दिवसीय न्याय यात्रा कार्यक्रम का आयोजन किया। न्याय यात्रा के दौरान आम लोगों के साथ-साथ जिला से लेकर प्रखंड स्तर तक के अधिकारी और पंचायत जन प्रतिनिधियों से मदद की गुहार लगाई गई। इस न्याय यात्रा के दौरान गोड्डा जिला के उपायुक्त, एसडीओ, एसडीएम सभी प्रखंडों के प्रखंड विकास पदाधिकारी, अंचलाधिकारी और जनप्रतिनिधियों को न्याय के लिए मांग पत्र सौंपा गया।

जमीन के बगैर हम आदिवासी जल बीन मछली हैः

न्याय यात्रा से पूर्व वेरेंडा गांव में वीर योद्धा सह स्वतंत्रता सेनानी, सिद्धु-कान्हू के प्रतिमा पर माल्यार्पण कर अन्याय के विरुद्ध लड़ने की शपथ ली गई। मौके पर रैयतों ने बताया कि हमलोगों की जमीन ईसीएल जबरन लेना चाहती है। हमारी जमीन बहुफसलिय है। इसी जमीन पर हमारे पूर्वज खेती करके जिन्दा रहें और वर्तमान में हमलोग भी जिन्दा हैं। जमीन के बगैर हम लोग जल बीन मछली की तरह हैं। अगर हम से हमारी जमीन लूट ली गई, तो हम नहीं बचेंगे। गांव में ईसीएल के अधिकारी हजारों हजार की संख्या में पुलिस लेकर आते है और हमारे साथ मारपीट करते है। गांव के तीन दर्जन से भी अधीक लोगों पर झुठा मुकदमा स्थानीय ललमटिया थाने में दर्ज किया गया है। गांव के ग्राम प्रधान अब भी जेल मे हैं। पुलिस ईसीएल मैनेजमेंट का लठैत बना हुआ है, जबकि पुलिस का काम ग्रामीणों पर हो रहे अत्याचार और जुल्म को रोकना है। लेकिन पुलिस पैसा लेकर झुठ का साथ दे रही है। तालझारी गांव की पीड़ित महिला ने आगे कहा कि हमारे मुख्यमंत्री आदिवासी हैं, लेकिन आदिवासियों को बेघर होते हुए देख रही है। मुख्यमंत्री को अगर जर सा भी आदिवासियों की चिन्ता है, तो हमारे साथ न्याय करे। हमारे उपर हो रहे अत्याचार को रोकने का काम करें।

तालझाड़ी में रैयतों के सैंकड़ो ताड़ के पेड़ ईसीएल ने जबरन काट दिया, ग्रामीणों के जीविका पर पड़ रहा है असर.

क्या हम आदिवासियों को जीने का अधिकार नहीं?

वहीं एक दूसरी महिला ने बताया कि ईसीएल आदिवासियों को मार देना चाहती है, ताकि वो जमीन लूट में सफल हो जाए। खान में जब विस्फोट किया जाता है, उस समय लगता है कि भूकंप आ गया है। घर हिलने लगता है, कई घरों का दीवार फट गया है, बरसात के दिनों में भी कुंवां सुखा पड़ा है। गांव की सड़क में जगह जगह तालाब बन गया है। सड़क पर चलना गांव वालों के लिए मुश्किल हो चुका है। हमलोगों की जमीन पर ही हमलोगों को जाने नहीं दिया जाता है। अपनी जमीन पर लगे सैंकड़ों ताड़ के पेड़ से हमलोग ताड़ी बेच कर कुछ पैसा कमा लेते थें, लेकिन उन सभी पेड़ों को भी ईसीएल ने पुलिस के साथ गांव में आकर काट दिया। जब हमलोग इसका विरोध कियें तो पुरे गांव वालों को पीटा गया। महिला सवाल करते हुए कहती है कि, क्या हम आदिवासियों को जीने का अधिकार नहीं है?

बरसात के मौसम में खनन के कारन कुंवों में पानी नहीं, टैंकर से मुहैया किया जा रहा है पीने का पानी.

प्रशासन और ईसीएल मैनेजमेंट समझौते का कर रही है उल्लंघनः

वहीं गांव के युवक पी. मुर्मू बताते हैं कि 2021 में तीनों गांव के ग्राम प्रधान और ग्रामीणों के साथ ईसीएल मैनेजमेंट, एडीएम महगामा, बीडीओ बोआरीजोर ने ग्रामीणों के साथ समझौता करते हुए आश्वासन दिया था, कि बिना ग्रामसभा से प्रमिशन लिये खनन कार्य नहीं किया जाएगा। समझौता में इन अधिकारियों ने हस्ताक्षर भी किया था। इस समझौते के बावजुद हमलोगों के साथ गलत किया जा रहा है। गांव के कुछ युवकों को नौकरी और पैसा देने का प्रलोभन भी ईसीएल के अधिकारियों द्वारा दिया गया है। तीन गांव, तालझारी, रेवेंडा और पहाड़पुर के ग्रामसभा ने ईसीएल की नौकरी लेने से मना कर दिया है। इन गांव के जो भी लोग ईसीएल में नौकरी करेंगे उन पर ग्रामसभा कार्रवाई करेगी। ईसीएल नौकरी का झांसा देकर हमलोगों की जमीन लूटना चाहता है।

जनवरी 2023 में ईसीएल मैनेजमेंट द्वारा वरीय अधिकारियों की उपस्थिति में तीन ग्रामसभा के ग्राम प्रधानों के साथ किया गया समझौता पत्र.

खनन कार्य खत्म होने के बाद भी ईसीएल मैनेजमेंट ने वादा पुरा नहीं कियाः

पूर्व का उदाहरण देते हुए युवक ने बताया कि, पास के गांव से कुछ रैयतों की जमीन 1981 में ईसीएल ने 20 साल के लिए लिज पर लिया था, उन लोंगों को 20 साल बाद जमीन समतल करके देने का वादा किया था, इसी शर्त पर ग्रामीणों ने जमीन ईसीएल को दिया था, लेकिन खनन कार्य खत्म होने के दो दशक बाद भी जमीन समतल करके रैयतों को वापस नहीं किया गया है।

जिला प्रशासन और पुलिस ईसीएल कंपनी की लठैत बनी हुई हैः अध्यक्ष, सामाजिक सुरक्षा मंच़ गोड्डा  

सामाजिक सुरक्षा मंच, गोड्डा की अध्यक्ष, मैरी निशा हांसदा बताती हैं कि, जमीन अधिग्रहण का एक प्रक्रिया होता है। लेकिन ईसीएल मैनेजमेंट उस प्रक्रिया का पालन नहीं कर रही है। जिलाधिकारी की ओर से अब तक तालझाड़ी, वेरेंडा और पहाड़पुर के ग्रामीणों को नोटिस नहीं भेजा गया है। खनन कार्य के लिए किसी भी गांव के ग्रामसभा ने ईसीएल को सहमति पत्र नहीं दिया है। ईसीएल कहती है कि ग्रामीणों को पूर्व में मुआवजा दिया गया है। लेकिन गांव के लोग कह रहे हैं कि किसी भी गांव के लोगों ने मुआवजा नहीं लिया है। हम आदिवासी कानून को मानने वाले लोग है, हमारा क्षेत्र पांचवीं अनुसूची क्षेत्र है और यहां पेशा कानून भी लागू है। हम सभी चाहते हैं कि प्रशासन जो भी काम करे, उसमें ग्राम सभा की सहमति हो। देश के संविधान ने हमें ये अधिकार दिया है। जिला और पुलिस प्रशासन का काम संविधान और नागरिकों को दिये गए संवैधानिक अधिकारों की रक्षा करना है। लेकिन संवैधानिक पद पर बैठे जिला प्रशासन के लोग और संविधान की रक्षा करने वाली पुलिस ही संविधान के विरुद्ध जा कर गलत कार्य कर रही है। इन लोगों पर केस दर्ज होना चाहिए, क्योंकि संविधान का उल्लंघन ये लोग कर रहे हैं। जिला प्रशासन और पुलिस ईसीएल कंपनी की लठैत बनी हुई है। कंपनी के गलत कार्यों को ये लोग जायज करार देते हैं और ग्रामीणों को प्रताड़ित करते हैं।

न्याय यात्रा के दौरान भोगनाडीह पंचायत सचिवालय में रात्री विश्राम करती आदिवासी महिलाएं.

जमीन जाने के बाद, मसानजोर के विस्थापित भीख मांग कर जीवन बसर कर रहे हैः  

मैरी निशा हांसदा दुमका के मसानजोर डैम से विस्थापित हुए लोगों का उदाहरण देते हुए कहती है कि, मसानजोर डैम से 140 गांव के लोग विस्थापित हुए थें। उस दौरान उन्हें कुछ मुआवजा भी दिया गया था, लेकिन वर्तमान में उन परिवारों की स्थिति काफी दयनीय है। मसानजोर के कुछ विस्थापित परिवारों को दुमका और आसपास के क्षेत्रों में भीख मांग कर गुजारा करते हुए देखा जा सकता है। सरकार को अच्छी तरह पता है कि आदिवासियों का जमीन से गहरा रिश्ता है। जैसे पानी के बगैर मछली जिन्दा नहीं रह सकती है, उसी तरह जमीन के बगैर अदिवासी जिन्दा नही रह सकते हैं। आदिवासियों को सिर्फ खेती करना आता है और खेती करके ही वे लोग अपना गुजर बसर करते हैं। सरकार को चाहिए की विकास के नाम पर उनकी जमीनें ना लूटें, बल्कि उनको कृषि कार्य में मदद करे, जिससे उनका तो पेट भरेगा ही देशवासियों का भी पेट भरेगा।

जानकारी देते चलें कि, झारखँड में विस्थापन आयोग नहीं है, जिस कारन खनन, बांध निर्माण, बड़े बड़े उद्योगों की स्थापना और शहरीकरण के साथ-साथ सरकार के विभिन् परियोजनाओं से विस्थापित हुए लोगों का सही आंकड़ा सरकार के पास मौजुद नही है। जानकार बताते हैं कि झारखंड के कूल आबादी मे से 30 प्रतिशत से भी ज्यादा लोग विस्थापित हुए हैं और वर्तमान में भी विस्थापन के कागार पर हैं।

2015 में रघुवर सरकार ने 22.50 लाख एकड़ भूमि का लैंड बैंक तैयार करवाया है। जिस दिन ये लैंड बैक की जमीन, नीजि कंपनियों को हस्तांतरित किया जाएगा, वैसे ही और भी लाखों लोग विस्थापित होंगे।

वर्तमान में झारखंड के वन क्षेत्रों में निवास करने वाले वैसे लोग जिनके पास पूर्व से जमीन का पट्टा है, उनके पट्टों को वन विभाग निरस्त कर रही है,। कुछ लोगों का रशीद काटना बंद कर दिया गया है। वन विभाग की ये तैयारी बताती है कि वन क्षेत्र में रहने वाले लोगों को वनों से खदेड़ा जाएगा। वन विभाग द्वारा इस तरह की कार्रवाई सिमडेगा, गुमला, गढ़वा, पलामू और लातेहार जिले में शुरु हो चुकी है।

वहीं दूसरी ओर वन विभाग नये सर्वे के अनुशार वन क्षेत्र का सीमांकन करते हुए पीलर लगाने का काम कर रही है। नये सीमांकन में वन क्षेत्र से लगभग एक किलोमीटर बाहर जा कर पीलर लगाया जा रहा है। पीलर लगाने के दौरान जो भी घर वन सीमा के अंदर आ रही है, उसे ध्वस्त कर दिया जा रहा है। वन विभाग की इस कार्रवाई से सैंकड़ों परिवार विस्थापित हो रहे हैं।

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