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जल-जंगल जमीन पर उसका अधिकार, जो वहां रह रहा हैः राकेश टिकैत

6रिपोर्ट- बिनोद सोनी… रांचीः किसान आंदोलन के दिग्गज नेता राकेश टिकैत सोमवार को रांची पहुंचे। राकेश टिकैत 22-23 मार्च को नेतरहाट में केन्द्रीय जन संघर्ष समिति द्वारा आयोजित कार्यक्रम में शामिल होंगे। रांची के बिरसा मुंडा एयरपोर्ट पर केन्द्रीय जनसंघर्ष समिति के सचिव, जेरोम जेराल्ड कुजूर और झारखंड की आयरन लेडी, दयामणि बारला ने गर्मजोशी से पुष्प गुच्छ देकर उनका स्वागत किया। राकेश टिकैत ने मीडिया से बात करते हुए किसान आंदोलन में मिली जीत के बारे में जानकारी दी। वहीं रांची पहुंचने के सवाल पर बताया कि, झारखंड में जल-जंगल और जमीन की लड़ाई काफी लंबे समय से जारी है। कई संगठन अपने-अपने तरीके से जबरन जमीन अधिग्रहण का विरोध कर रहे हैं। उन्होंने बताया की नेतरहाट में भी इसी तरह का विरोध सन् 1993 से चल रहा है। नेतरहाट फील्ड फायरिंग रेंज के विरोध में हर साल 22-23 मार्च को यहां बड़ा कार्यक्रम आयोजित किया जाता है, जिसमें हजारों हजार की संख्या में दो-तीन जिले के लोग शामिल होते हैं। मैं इसी कार्यक्रम में शामिल होने के लिए यहां पहुंचा हूं।
जल जंगल जमीन के मालिक वे, जो वहां रहते हैः राकेश टिकैत
राकेश टिकैत ने कहा कि, झारखंड एक आदिवासी बहुल ईलाका है। पांचवी अनुसूचि क्षेत्र में जल जंगल जमीन के मालिक वे लोग हैं, जो वहां रहते हैं। यहां के ज्यादातर जंगलों में आदिवासी रहते हैं, इसलिए जल-जंगल जमीन के मालिक आदिवासी ही हैं। लेकिन सरकार किसी ना किसी विकास योजना या वन्य जीव अभ्यारण्य के नाम पर जंगलों से आदिवासियों को भगाने का काम कर रही है। नेतरहाट में सेना के फील्ड फायरिंग रेंज और वन्य जीव आश्रयणी निर्माण के नाम पर इन ईलाकों में रहने वाले आदिवासियों को हटाया जा रहा है, जिसका विरोध कई दशक पूर्व से ही यहां के लोग कर रहे हैं। मैं इस लड़ाई में केन्द्रीय जनसंघर्ष समिति के साथ हूं, इसलिए समिति द्वारा आयोजित दो दिवसीय कार्यक्रम में शामिल होने के लिए आया हूं।
2,50,000 लोगों पर मंडरा रहा है विस्थापित होने का खतराः
ज्ञात हो कि 1956 में बिहार सरकार द्वारा जारी अधिसूचना के बाद से नेतरहाट के पठार में सन् 1964 से 1994 तक सेना द्वारा फायरिंग और तोपाभ्यास किया जाता रहा है। उक्त अधिसूचना की अवधि समाप्त होने के पूर्व ही तात्कालीन बिहार सरकार ने 1991 एवं 1992 में अधिसूचना जारी कर सेना के अभ्यास के लिए क्षेत्र विस्तार करते हुए 1471 वर्ग किलोमीटर क्षेत्र अधिसूचित कर दिया, जिसमें कूल 245 गांव शामिल है। इस अधिसूचना के लागू हो जाने के बाद लगभग 2,50,000 लोगों के उपर विस्थापित होने का खतरा मंडरा रहा है।
22-23 मार्च 1994 को पहली बार विरोध में आयोजित किया गया था सत्याग्रह कार्यक्रमः
केन्द्रीय जन संघर्ष समिति के आह्वान पर प्रभावित क्षेत्र के ग्रामीणों ने 22-23 मार्च 1994 को सत्याग्रह करते हुए सेना के जवानों द्वारा किए जा रहे अभ्यास को रोक दिया था और उन्हें वापस जाने के लिए मजबुर किया था, तब से लेकर लगातार नेतरहाट के टुटुवापानी मोड़ पर 22-23 मार्च को विरोध में कार्यक्रम आयोजित किया जाता है।

By taazakhabar

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