रिपोर्ट- संजय वर्मा…
रांचीः मंगलवार को कोलेबिरा थाना क्षेत्र स्थित बेसराजारा गांव के ग्रामीणों ने दिल दहला देने वाली घटना को अंजाम दिया। ग्रामीणों ने लकड़ी कारोबारी संजू प्रधान की पहले पीट-पीट कर हत्या कर दी, इसके बाद शव को आग के हवाले कर दिया।
सूत्रों से मिली जानकारी के अनुशार मृतक संजू प्रधान, पार्टी विशेष का नेता था और लंबे समय से लकड़ी के कारोबार से जुड़ा हुआ था। पूर्व में वह ठेठईटांगर स्थित कई खूंटकटी जमीन के जंगलों से साल के पेड़ों की अवैध कटाई कर चुका है, जिस पर गांव वालों ने सामुहिक रुप से उसे ऐसा करने से मना किया था, बावजुद इसके संजू प्रधान पेड़ो की कटाई करता रहा। ठेठईटांगर के बाद संजू प्रधान ने बेसराजारा गांव में भी यही करना शुरु किया, जिससे ग्रामीण काफी आक्रोशित थें। इसके बाद ग्रामीणों ने सामुहिक रुप से इस घटना को अंजाम दिया।
कोलेबिरा थाना प्रभारी ने फोन रिसिव करना मुनासिब नहीं समझाः
इस घटना की और अधीक जानकारी के लिए ताजा खबर झारखंड की टीम ने कोलेबिरा थाना प्रभारी के फोन न. 94317-06235 पर फोन भी किया, लेकिन थाना प्रभारी महोदय ने फोन रिसिव नहीं किया।
घटना के लिए ग्रामीणों से ज्यादा वन विभाग और पुलिस दोषी हैः दयामणि बारला, सामाजिक कार्यकर्ता
बेसराजारा में हुए घटना की निंदा करते हुए प्रसिद्ध सामाजिक कार्यकर्ता, दयामणि बारला ने कहा कि, घटना के लिए ग्रामीणों से ज्यादा दोषी वन विभाग और पुलिस है। वन विभाग बड़े-बड़े होर्डिंग लगा कर कहती है कि, पेड़ ही जीवन है…ऑक्सीजन लेना है, तो पेड़ बचाएं। अब सवाल ये कि, पेड़ों की सुरक्षा की बात कहने वाली वन विभाग कहां सोई हुई है? झारखंड के जंगलों से बड़े पैमाने पर साल, सागवान और शीशम के पेड़ो की कटाई हो रही है, ये किसके संरक्षण में हो रहा है? ऐसे में क्या वन विभाग दोषी नहीं? रात के अंधेरे में 12 चक्का, 16 चक्का ट्रकों से लकड़ी की ढुलाई हो रही है, और पुलिस की टीम इन ट्रक चालकों से पैसे वसुलते नजर आती हैं, ऐसे में संजू प्रधान की सेंदरा के लिए ग्रामीणों से ज्यादा दोषी दोनों ही विभाग है। अगर दोनों ही विभाग ईमान्दारी से अपना काम करती, तो ग्रामीणों को कानून अपने हांथ पर लेना नहीं पड़ता। नेतरहाट थाना के थानेदार पूर्व में काले शीशम के लकड़ी की तस्करी करते रंगे हांथ ग्रामीणों द्वारा दबोचे जा चुके हैं। ये घटना प्रथम लॉक डाउन के दौरान की है।
जल-जंगल और जमीन की रक्षा को लेकर आदिवासी समुदाय काफी संवेदनशीलः दयामणि बारला
प्रसिद्ध सामाजिक कार्यकर्ता, दयामणि बारला ने आगे बताया कि, झारखंड के आदिवासी अपने जल, जंगल और जमीन की रक्षा को लेकर काफी लंबे समय से संघर्षशील है। अगर इनके जल-जंगल और जमीन की लूट कोई करता है, तो उनके प्रति इनका आक्रोश ग्रामसभा से लेकर सड़कों तक दिखाई पड़ता है, ऐसे में अगर बार-बार मना करने के बावजुद जंगलों की अवैध कटाई हो रही है, तो निश्चित रुप से इस अवैध कार्य में और भी लोगों की मिली भगत है। पुलिस को पुरे मामले की जांच गंभीरता से करनी चाहिए।