बाजार में बढ़ी पेपर बैग की मांग को देखते हुए स्नेह ने ग्रामीण महिलाओं को दिया पेपर बैग बनाने का प्रशिक्षण….

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रिपोर्ट- सीता देवी, चास़ बोकारो…
बोकारोः सरकार द्वारा प्लास्टिक बैग पर प्रतिबंध लगाए जाने के बाद से बाजार में पेपर बैग की मांग एका एक काफी बढ़ गई है। इसे देखते हुए महिलाओं को आत्मनिर्भर बनाने के लिए कई तरह के प्रशिक्षण दे रही संस्था, बिरसा कंपेनियन स्नेह कार्यक्रम के तहत अब पेपर बैग बनाने का प्रशिक्षण देना शुरु किया है। इसी कड़ी में स्नेह द्वारा बोकारो जिला, चास प्रखंड अन्तर्गत लबुडीह और भवानी पुर के दो दर्जन से अधीक ग्रामीण महिलाओं को पेपर बैग बनाने का प्रशिक्षण दिया है। पेपर बैग बनाने में ज्यादा पूंजी की आवश्यता नही पड़ती साथ ही ग्रामीण महिलाएं घर पर अपने परिवार के सदस्यों के साथ मिल कर पेपर बैग का निर्माण कर अच्छी आमदनी घर बैठे ही कर सकते हैं।
3 सितंबर को बिरसा कंपेनियन के कार्यालय में 2 दर्जन से भी अधीक ग्रामीण महिलाओं को पेपर बैग की ट्रैनर पूजा देवी और रेमका भगत ने प्रशिक्षण दिया। ट्रेनर पूजा देवी ने पेपर बैग का इतिहास बताया वहीं ट्रैनर रेमका भगत ने पेपर बैग के निर्माण में लगने वाले सामाग्रियों और पेपर बैग तैयार करने का तरीका बताया।

पेपर बैग बनाने का प्रशिक्षण देतीं ट्रेनर पूजा देवी और रेमका भगत साथ में स्नेह की एच.आर. सीता देवी.

ट्रैनर पूजा देवी ने बताया की पूर्व में लोग अपने साड़ी के आंचल में सामान रख कर लाना-लेजाना किया करते थें, इसके बाद पत्तों से बने दोने का उपयोग किया जाने लगा, फिर पेपर से बने बैग का दौर आया। पेपर से पेपर बैग बनाने का अविष्कार सन् 1852 में अमेरिका में हुआ था। लेकिन पेपर बैग के बाद प्लास्टिक का उपयोग किया जाने लगा, जो स्वास्थ्य और पर्यावरण के लिए काफी नुकशान दायक साबित हो रहा है, जिसे देखते हुए सरकार ने प्लास्टिक बैग के उपयोग पर प्रतिबंध लगा दिया है।

वहीं ट्रैनर रेमका भगत ने पेपर बैग बनाने का तरीका, ग्रामीण महिलाओं को बताया। इसके निर्माण में पेपर, कैंची, अरारोट, मैदा, कुट, डोरी, इंची टेप का उपयोग किया जाता है। रेमका भगत ने प्रशिक्षण ले रही महिलाओं को पेपर बैग बना कर दिखाया और ग्रामीण महिलाओं से भी बनवाया।

कूल मिला कर इस ट्रैनिंग कार्यक्रम से ट्रैनिंग प्राप्त कर ग्रामीण महिलाएं कम पूंजी में ही अपनी आर्थिक स्थित सुधार सकती हैं। इस प्रशिक्षण कार्यक्रम में स्नेह के सदस्य चण्डी बाउरी, बिरेन्दर कुमार, आरती देवी, हेमंती देवी, अनिता देवी, लक्ष्मी, फूलकुमारी, पुजू रानी और संस्था की एच.आर. सीता देवी ने अहम योगदान दिया।

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