इस पहाड़ पर पूजा-पाठ और नाच-गान करने पर इंद्र देव करते थें झमाझम बारिश, 27 अगस्त को यहां आयोजित होगा मेला…

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रिपोर्ट- अन्नू साहू…
रांची(बुड़मू प्रखंड)- राजधानी रांची मुख्यालय से लगभग बाईस किलोमीटर की दूरी पर स्थित है बुड़मू प्रखँड, जो कांके विधानसभा क्षेत्र अंतर्गत आता है। इसी प्रखंड के ठाकुरगांव में स्थित है बड़का डोंगरी जिसे कुलवे पहाड़ के नाम से भी जाना जाता है। इस पहाड़ के उपर स्थापित है भगवान कृष्ण और राधा का मंदिर। यहां जन्माष्टमी के अवसर पर हर वर्ष मेले का आयोजन किया जाता है, यहां आस पास स्थित सैंकड़ों गांव के ग्रामीण मेला देखने के लिए पहुंचते हैं। ये मेला इस वर्ष सत्ताईस अगस्त को आयोजित किया जाएगा। मेला आयोजक समिति के सदस्य ने बताया की 27 अगस्त को होने वाले मेले में कई तरह के सांस्कृतिक कार्यक्रम आयोजित किए जाएंगे। लाखों की संख्या में इस मेले में शामिल होने के लिए दूर दराज में स्थित सैंकड़ों गांवों के ग्रामीण पहुंचेंगे।

पूर्व में बारिश के लिए पहाड़ के उपर पूजा-पाठ और नाच-गान किया जाता था, जो वर्तमान में भी जारी हैः

इस पहाड़ के बारे में ठाकुरगांव के स्थानीय ग्रामीण बताते हैं कि, पूर्व में हमारे पुर्वज इस पहाड़ के उपर पूजा-पाठ और नाच-गान किया करते थें। जब पहाड़ के उपर पूजा-पाठ और नाच गान किया जाता था, तब आसमान के उपर काले घनघोर बादल छा जाया करता था और यहां जोरदार बारिश होने लगती थी। वर्तमान में भी लोग इस पहाड़ के उपर पूजा पाठ करते हैं।


यहां की संपुर्ण जानकारी देते स्थानीय ग्रामीण.

पहाड के नीचे हाथी और पहाड़ की चोटी पर सुप-दौरा, नगाड़ा और ढेंकी की है आकृतिः

वहीं कुछ ग्रामीण ये भी बताते हैं, कि इस पहाड़ के उपर कुछ अजिबोगरीब आकृति भी देखने को मिलती है। हमारे गांव के बुजुर्ग बताते हैं कि पूर्व में गांव के कुछ लोग बारात लेकर लौट रहे थें, तभी जोरदार बारिश होने लगी। बारिश से बचने के लिए सभी बाराती पहाड़ के उपर बने गुफानुमा स्थान पर चले गएं, लेकिन जिस हाथी पर सवार होकर दुल्हा-दुल्हन वहां पहुंचे थें, वो हाथी नीचे ही रह गया, और वो उसी समय पत्थर का बन गया। हाथी का आकृति वर्तमान में भी पहाड़ के नीचे मौजुद है। वहीं जो बाराती उपर गुफा में शरण लिये थें, उसमें से कुछ लोग गुफा में ही सट कर पत्थर बन गएं। इसी दौरान उस स्थल पर धान कुटने का ढेंकी, सूप-दौरा, खाने का सामान अपने आप प्रकट गो गया, जिस पर बचे हुए लोगों ने खाना बना कर खाया फिर अपने घरों की ओर लौट गएं। ढेंकी, सूप दौरा और नगाड़े का आकृति वर्तमान में भी पहाड़ के उपर स्पष्ट दिखाई पड़ता है।


पहाड़ के उपर पत्थर पर सुप और दौरा की आकृति.

धान कुटने वाले ढेंकी की आकृति.

पहाड के दूसरे छोर पर है बाघ लता, यहां बाघों का था डेराः

इसी पहाड़ के दूसरे छोर पर एक और गुफा है, जिसे स्थानीय लोग बाघ लता कहते हैं। स्थानीय ग्रामीण बताते हैं कि पूर्व में इस पहाड़ पर और आस-पास के जंगलों में काफी संख्या में बाघ निवास करते थें। कुछ बाघ पहाड़ के इसी गुफा में रहते थें, जिसके कारन इसी बाघ लता कहा जाता है।

पर्यटन स्थल के रुप में विकसित किये जाने की जरुरतः पर्यटक

जन्माष्टी के अवसर पर इस राधा-कृष्ण मंदिर में पहुंच कर श्रद्धालु पूजा-अर्चना करते हैं। यहां पहुंचे श्रद्धालु बताते हैं कि ये काफी रमणिक स्थल है। झारखंड में कहीं-कहीं ही इस तरह का नजारा देखने को मिलता है। सरकार को इस स्थल को पर्यटन स्थल घोषित कर विकसित करना चाहिए। इससे क्षेत्र का विकास भी होगा और लोग यहां की कला संस्कृति को भी जान पाएंगे।

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