ठाकुरगांव के बिंदू बसाईर में सप्तमी तिथी को किया जाएगा मेले का आयोजन, धरोहर बचाने का प्रयास
रिपोर्ट- अन्नू साहू…
रांची(बुड़मू प्रखंड)- बुढ़मू प्रखंड के ठाकुर गांव में स्थित बिंदू बसाईर, जिसे स्थानीय लोग बिंदू डोंगरी के नाम से भी जानते हैं। इसी स्थल पर सप्तमी तिथी को भव्य मेले का आयोजन किया जाएगा। मेले के आयोजन को लेकर बिते दिनों ग्रामीणों ने बैठक कर निर्णय लिया।
ग्रामीण बताते हैं कि यह एक इतिहासिक स्थल है, जो आदिवासियों का धरोहर है। इस स्थल को पर्यटन के रुप में विकसित किया जाए, ये ग्रामीणों का प्रयास है। इस स्थल से एक सच्ची घटना जुड़ी हुई है, जिससे लोगों को प्रेरणा लेने की जरुरत है।
ग्रामीण बताते हैं कि यहां सात भाई और उनकी एक बहन घर बना कर रहते थें। एक दिन सातो भाई शिकार करने के लिए जंगल चले गएं, लेकिन काफी समय बाद भी सातो भाई घर वापस नही लौटें। बहन को ये चिंता सताने लगी की जब सातो भाई थक हार कर घर पहुंचेंगे तो उन्हें खाने के लिए क्या देंगे। बहन खाना तैयार करने के लिए पास से ही साग तोड़कर लाई और उसे काटने लगी। इस क्रम में उसकी अंगुली कट गई, जिससे काफी खून बह रहा था। बहन को ये चिंता सताने लगी को अगर खून को किसी कपड़े या दिवार पर पोंछती हूं, तो भाई लोग देख लेंगे और दुखी होंगे। ये सोंच कर बहन ने कटी हुई साग से ही अपने बहते हुए खून को पोंछ लिया और साग बनाई। काफी देर सभी भाई शिकार से वापस लौटें, तब बहन ने सभी को खाना परोसा जिसमें साग भी था। खाने के दौरान एक भाई ने पुछा बहन आज साग काफी स्वादिष्ट बना है, इसमें क्या मिलाई हो? इस पर बहन ने सचाई बता दी कि मैंने अपनी अंगुली कटने पर अपने खून को इसी साग सो पोछा था। इस पर भाइयों के मन में विचार आया कि जब इसका खून इतना स्वादिष्ट है, तो मांस कितना स्वादिष्ट होगा। इस पर सभी भाईयों ने मिलकर उसे मारने का प्लान बनाया, लेकिन सबसे छोटा भाई इसके लिए तैयार नही था। छोटा भाई इसका विरोध करने लगा। इस पर भाईयों ने छोटे भाई को जान मारने की धमकी दी।
बिंदू बसाईर, वो स्थान जहां छोटे भाई ने अपने बहन का मांस दफन किया था, वहां उगा हुआ है बांस का पेड़.
भाईयों ने अपने बहन को उसका ससुराल दिखाने के बहाने ले गया और उसे पास ही स्थित एक मचान पर चढ़ने के लिए कहा। इस दौरान 6 भाईयों ने पहाड़ पर ही तीर की धार तेज की और उस पर बारी बारी से निशाना लगाया लेकिन 6 में से किसी भी भाई का तीन बहन को नहीं लगा। तब सभी 6 भाईयों ने अपने छोटे भाई जो अंधा था उसे तीर से बहन को मारने के लिए कहा। छोटे भाई ने ईच्छा ना होने के बावजुद अपनी जान बचाने के डर से तीर चलाया और वो तीन बहन को लग गई, जिससे उसकी मौत हो गई। इसके बाद 6 भाइयों ने मिल कर अपनी बहन का मांस पकाया और खाया, लेकिन सबसे छोटा भाई अपनी बहन का मांस नहीं खाया। छोटे को जो मांस खाने के लिए दिया गया था, उसने इस मांस को गड्ढा खोद कर उसमें दफन कर दिया। जिस जगह पर छोटे भाई ने मांस दफन किया था, वहां कुछ समय बाद बांस का पेड़ उग आया जो वर्तमान में भी मौजुद है, इसे बिंदू बसाईर के नाम से जाना जाता है, ऐसा ग्रामीण बताते हैं।
ग्रामीण आगे बताते हैं कि, एक दिन एक जोगी बिंदू बसाईर के बगल से गुजर रहा था, तभी बांस के झुंड से कुछ आवाज आने लगा। योगी ये आवाज सुन कर काफी खुश हुआ और बांस को काटकर उससे सारंगी बनाया और उसे जगह जगह बजाने लगा। योगी अब सारंगी बजा कर लोगों के घरों में जा-जा कर भिक्षाटन करने लगा। योगी एक दिन भिक्षाटन करते करते सातो भाइयों के घर के पास पहुंचा। लेकिन भाईयों के घर पर सारंगी बजाने पर उससे आवाज नहीं निकली। लेकिन जैसे ही योगी सबसे छोटे भाई के घर पहुंचा जिसने अपनी बहन का मांस खाया नही, बल्कि मांस को जमीन में दफन कर दिया था, उसके घर के बाहर सारंगी से आवाज आने लगी। सारंगी का आवाज सुनकर छोटा भाई बहुत खुश हुआ और उसने सारंगी अपने पास रखने के लिए सोंचने लगा। छोटे भाई ने योगी को रात अपने घर पर ही गुजारने के लिए कहा। योगी मान गया और रात्रि पहर में छोटे भाई ने सारंगी बदल दिया।
ग्रामीण आगे बताते हैं कि सुबह में योगी भिक्षाटन के लिए चला गया और छोटा भाई अपने काम पर, लेकिन जब काम करके जब वह वापस लौटा तो उसने अपने घर को काफी साफ सुथरा पाया और घर को सारा काम भी हो चुका था। घर में खाना तैयार कर रखा हुआ था। ये क्रम अनवरत चलता रहा। एक दिन छोटे भाई ने ये जानने के लिए कि उसके घर से बाहर निकलने के बाद घर का सारा काम कौन करता है? ये देखने के लिए वह पास में ही छुप कर बैठ गया। उसने देखा कि उसकी बहन, जिसे मार दिया गया था, वह सारंगी से बाहर निकली और सारा काम करने लगी। ये देख कर छोटा भाई बहन के पास पहुंचा और गले लगा कर रोने लगा।
धर्म गुरु महेन्द्र मुंडा ने बताया कि ये सच्ची घटना है, जो हमारे पूर्वज हम लोगों को बताया करते थें। ये स्थल काफी रमणीय है। हमलोगों ने इसे पर्यटन स्थल बनाने का निर्णय लिया है और आगामी सप्तमी तिथी को यहां मेले का आयोजन किया जाएगा। मेला में पहुंचे लोगों को इस घटना के बारे बताया जाएगा ताकि हम सभी इस धरोहर को बचा सकें