रेलवे द्वारा बेघर किए गए रांची के आदिवासी-दलित परिवार कई दिनों से ठण्ड में खुले आसमान के नीचे रहने को विवश…

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ब्यूरो रिपोर्ट…

रांचीः 28 दिसम्बर 2022 को ओवरब्रिज, रांची के नीचे बसी बस्ती (लोहरा कोचा) को रेलवे द्वारा अतिक्रमण हटाने के नाम पर धराशायी कर दिया गया, जिसके बाद वहाँ बसे लगभग 40 दलित-आदिवासी-पिछड़े परिवार बेघर हो गए हैं। तबाही के एक सप्ताह बाद भी अधिकांश परिवार इस कड़कड़ाती ठंड में वहीँ खुले आसमान के नीचे रहने के लिए विवश हैं। एक ओर सर्वोच्च न्यायालय ने हल्द्वानी, उत्तराखंड में रेलवे द्वारा अतिक्रमण हटाने के नाम पर लोगों को बेघर करने पर रोक लगा दी है, वहीँ दूसरी ओर रांची में रेलवे व जिला प्रशासन ने बेघर कर ठंड के हवाले कर मरने के लिए छोड़ दिया है।

यहां बसे अधिकांश लोग दैनिक मजदूरः

लोहरा कोचा में लोग 50-60 सालों से बसे हैं। कई परिवारों की तीन पीढ़ी यहीं बीत गई। रोज़गार और काम की तलाश में आए लोग रेलवे लाइन के किनारे थोड़ी सी ज़मीन पर बस गएं। ध्यान देने की बात है कि, यहाँ लगभग सभी परिवारों के पास राशन कार्ड, आधार व वोटर कार्ड है जिसपर इस बस्ती का ही पता चढ़ा हुआ है। लोगों के घर में बिजली का कनेक्शन भी था। यहाँ बसे अधिकांश लोग दैनिक मज़दूरी कर जीवन यापन करते हैं। जिस दिन से इनके घरों को तोड़ कर इन्हें बेघर किया गया है, कई मज़दूर उसी दिन से मजदूरी करने के लिए नही जा रहे हैं।

कड़ाके की ठंड में लोग खुले आसमान के नीचे रहने के लिए हुएं विवश.

स्थानीय नेताओं ने दिया था आश्वासनः 

बस्ती तोड़ने से पहले लोगों को रेलवे द्वारा कई बार नोटिस भेजा गया था। कुछ महीने पहले पक्ष-विपक्ष के कई नेता बस्ती के लोगों के साथ मीटिंग कर उन्हें आश्वासन भी दिए थें कि, बिना वैकल्पिक व्यवस्था के उनके घरों को तोड़ने नहीं दिया जाएगा। लेकिन बस्ती टूटने के दिन से उन सभी नेताओं का रुख बदल गया है। अब तक किसी भी पार्टी के नेता इनकी सुध लेने के लिए नही पहुंचे हैं। लगभग एक महीने पहले भी हटिया व बिरसा चौक के आसपास से रेलवे द्वारा लोगों को बेघर किया गया था।

पी.एम, नरेन्द्र मोदी का वादा खोखला साबित हुआः

ठण्ड के समय गरीबों को बेघर करना रेलवे व प्रशासन के अमानवीय चेहरे को उजागर करता है। एक ओर राज्य के सत्ताधारी दल व विपक्ष आदिवासी-दलित-पिछड़े अस्तित्व व गरीबों के नाम पर राजनीति करने से बाज नही आ रहे हैं, तो वहीँ दूसरी ओर ठण्ड में बेघर हुए गरीब आदिवासी-दलित-पिछड़ों के लिए कोई सामने नहीं आएं। इन परिवारों की स्थिति ने फिर से 2022 तक सभी परिवारों को पक्का मकान मिलने के प्रधान मंत्री के वादे के खोखलेपन को उजागर किया है।

झारखंड किसान परिषद् और झारखंड जनाधिकार महासभा मांग करती है कि रेलवे अविलंब अतिक्रमण हटाने के अपने अभियान को रोके एवं राज्य सरकार व केंद्र सरकार से निम्न मांग करती है:

  • लोहरा कोचा समेत अन्य क्षेत्रों में रेलवे द्वारा बेघर किए गए लोगों को तुरंत मूलभूत सुविधाओं के साथ वैकल्पिक ज़मीन व घर दिया जाए। साथ ही, इनके साथ हुए हिंसा के एवज़ में मुआवज़ा दिया जाए।
  • सभी परिवारों को तुरंत ठण्ड से राहत के लिए कम्बल, गर्म कपड़े, टेंट आदि दिया जाए।
  • ठंड में लोगों को बेघर करने के लिए ज़िम्मेवार पदाधिकारियों के विरुद्ध न्यायसंगत कार्यवाई की जाए।

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