कहीं राजनीतिक आरोप-प्रत्यारोप के बीच सही आरोपी बच ना निकलें, इसलिए जांच जरुरीः अरविंद अविनाश, राज्य सचिव, पीयूसीएल
लेखक- अरविंद अविनाश, राज्य सचिव, पीयूसीएल…
रांचीः सिमडेगा जिले के कोलेबिरा थाना क्षेत्र में हुई घटना, अब तक की सबसे जघन्य लिंचिग की घटना है। आरोपियों की गिरफ्तारी हो रही है और 13 नामजद व भारी संख्या में अज्ञात लोगों पर प्राथमिकी दर्ज हुई है। यह मैं मीडिया में आई खबरों के हवाले से कह रहा हूं। लेकिन, प्रत्यक्षदर्शियों के अनुसार घटना के समय मूर्कदर्शक बन खड़ी रहने वाली पुलिस पर सवाल खड़ा नहीं होना साल रहा है।
पुलिस भी इस मामले में कम दोषी नहींः अरविंद अविनाश
ग्रामीण कानून को हाथ में लेने के कारण दोषी हैं, लेकिन पुलिस भी इस जघन्य घटना में कम दोषी नहीं है। उनको यूं ही छोड़ देना ठीक नहीं है। सबसे खतरनाक कि, दूसरे किसी समुदाय, सामाजिक संगठन या राजनीतिक दल भी चुप हैं। इस मुद्दे पर सिर्फ भारतीय जनता पार्टी सिर्फ बोल रही है, लेकिन उसके भी निहितार्थ हैं। यही घटना यदि किसी अल्पसंख्यक समुदाय के साथ घटती तो विरोध का तांता लग जाता। नागरिक समाज व संगठन भी चुप हैं। राजनीतिक आरोप-प्रत्यारोप से पीयूसीएल को कुछ लेना-देना नहीं है।
बिते कुछ दिनों में कोलेबिरा में दलित, सिसई में आदिवासी और धनबाद में अल्पसंख्यक को बनाया गया है निशानाः
कोलेबिरा में मृतक संजू प्रधान, भोग्ता समुदाय, यानि दलित है। लेकिन दलित समाज भी चुप है। सिसई का पीड़ित आदिवासी है, फिर भी आदिवासी समुदाय से विरोध के स्वर नहीं उठ रहे हैं। भले इस घटना में जान बच गई लेकिन ओझा-डयन के नाम पर हर महीने जान ली जाती है। यहाँ तक कि अखड़ा में बुला कर भी। धनबाद में पीड़ित अल्पसंख्यक समुदाय से है, जो मानसिक रूप से बीमार था। उसके साथ हुई ज्यादती भी निंन्दीय है, चाहे कारण जो हो, कानून किसी को हाथ में लेने का समर्थन नहीं किया जा सकता। हिंसा का पीयूसीएल सिद्धांत: विरोधी है। पीयूसीएल कानून के सहारे भी दिये जाने वाली फांसी की सजा का विरोध करती हैं, फिर कैसे हम किसी की जान लेने का पक्षधर हो सकते हैं।
धनबाद, कोलेबिरा व सिसई की घटना के विरोध में मुखर होने की जरूरत है। यह इसलिए भी जरूरी है कि कहीं राजनीतिक आरोप-प्रत्यारोप के बीच मामले की गंभीरता कम न हो जाए और सही आरोपी बच न निकलें।