झारखंड मिल्क फेडरेशन के प्रस्ताव पर सरकार करे अमल, तो सुधर सकती है दुग्ध उत्पादकों की स्थिति…
रिपोर्ट- संजय वर्मा
रांचीः मेधा डेयरी झारखंड के 16 जिलों से लगभग 20,000 दुग्ध उत्पादकों से प्रतिदिन 1,15,000 लीटर दुग्ध की खरीद करती है, लेकिन लॉक डाउन लागू हो जाने के बाद से मेधा डेयरी दुग्ध उत्पादकों से एक टाईम(सुबह) ही दुध की खरीद कर रही है, जिससे किसानों को भारी नुकशान उठाना पड़ रहा है। वर्तमान में कई दुग्ध उत्पाद अपने एक टाईम का दुध नाली में बहाने के लिए विवश हो चुके हैं। किसान बताते हैं कि मेधा डेयरी ही हमलोगों का एक मात्र सहारा है, जो दुध की गुणवत्ता के आधार पर 30 से 45 रुपये तक प्रति लीटर दुध की खरीद करती है, लेकिन उनके द्वारा एक टाईम का दुध नही लिए जाने के बाद, स्थानीय लोग 10 रुपये लीटर भी दुध खरीदने के लिए तैयार नही है और हम लोगों के पास दुध को सुरक्षित रखने का कोई साधन भी नही है, जिसके कारन दुध फेंकना पड़ रहा है।

बैंक का कर्ज, पशु चारा का बोझ और दुध की बिक्री नहीं होने से टुटी दुग्ध उत्पादकों की कमरः
ताजा खबर झारखंड की टीम ने दुग्ध उत्पादकों पर आई इस परेशानी को देखते हुए ठाकुरगांव और मांडर प्रखंड स्थित मुड़मा पंचायत अन्तर्गत आने वाले कई दुग्ध उत्पादक गांवों का दौरा कर किसानों से इस मामले में बात की और उनकी समस्यों को जाना। मुड़मा पंचायत में लगभग 450 ग्रामीण दुग्ध उत्पादन से जुड़े हुए हैं। यहां कई दुग्ध उत्पादक ऐसे भी हैं, जो पूर्व में दूसरे राज्यों में पलायन कर ईंट भट्टों में काम किया करते थें, लेकिन मेधा डेयरी के सहयोग से वर्तमान में दुग्ध उत्पादन कर अपने परिवार का जिविकोपार्जन सही तरीके से कर रहे हैं। लेकिन मेधा द्वारा एक ही टाईम दुध की खरीद करने से इनके सामने आर्थिक समस्या खड़ी हो गई है। एक टाईम का दुध पूरी तरह बर्बाद हो जा रहा है। इसमें ज्यादा उन दुग्ध उत्पादकों को रहा है, जिनके पास 10-12 गाये हैं, इन्हें प्रतिदिन 2500-3000 रुपये का नुकशान उठाना पड़ रहा है।
जेएमएफ के पास 5 लाख लीटर दुध का स्टॉक जमा होने के बाद, किसानों से एक टाईम का ही दुध लेना शुरु किया गया हैः एमडी, जेएमएफ
इस बाबत हमारी टीम ने झारखंड मिल्क फेडरेशन के एमडी, सुधीर कुमार सिंह से बात की। इनकी मानें तो लॉक डाउन के पूर्व तक मेधा डेयरी के सभी दुग्ध संग्रह केन्द्रों के माध्यम से प्रतिदिन 1,15,000 लीटर दुग्ध का उठाव किया जाता रहा है, लेकिन देशभर में लॉक डाउन लागू कर दिए जाने के बाद से बाजार में दुध की मांग काफी घट गई, बाजार में बिक्री नही हो पाने के कारन हमारे पास काफी मात्रा में दुध का स्टॉक जमा हो गया, ये स्थिति सिर्फ झारखंड में मेधा की नहीं, बल्कि देश के अन्य राज्यों में स्थित मिल्क फेडरेशन की भी है। जब हमारे पास 5 लाख लीटर स्टॉक जमा हो गया, उसके बाद हमने एक टाईम दुध लेना शुरु किया। मेधा दुध की खपत 26 प्रतिशत रेस्टोरेन्ट, 30 प्रतिशत टी वेंडर्स और 45 प्रतिशत आम लोगों में होती थी, लेकिन लॉक डाउन के बाद रेस्टुरेन्ट और टी वेंडर्स का कारोबार बंद है, जिसके कारन मात्र 45 प्रतिशत ही दुध की खपत हो रही है, जिसका उपयोग घरों में हो रहा है।

बैंक से कर्ज लेकर दुग्ध उत्पादकों को किया जा रहा है भुगतानः सुधीर कुमार सिंह, एमडी, जेएमएफ
जेएमएफ के एमडी, राजीव कुमार सिंह ने ये भी कहा कि, लॉक डाउन के बीच दुग्ध उत्पादकों से एक टाईम का दुध लेने के बावजुद प्रतिदिन 80,000 लीटर दुध का उठाव हो रहा है, लेकिन काफी कोशिशों के बाद भी बाजार में मात्र 43,000 लीटर दुध की ही बिक्री हो पा रही है। स्थिति ये है कि बैंक से कर्ज ले कर दुग्ध उत्पादकों को भुगतान किया जा रहा है।
जेएमएफ के पास मिल्क पाउडर बनाने का प्लांट नहीः सुधीर कुमार सिंह, एमडी, जेएमएफ
चुंकि जेएमएफ के पास मिल्क पाउडर बनाने का अपना कोई प्लांट नही है, जिसके कारन अतिरिक्त दुध का मिल्क पाउडर भी बना पाने में जेएमएफ सक्षम नही है, अगर मिल्क पाउडर बना पाने में जेएमएफ सक्षम होता, तो किसानों से सभी दुध लिया जा सकता था। लॉक डाउन लागू होने के बाद जेएमएफ के पास 5 लाख लीटर दुध का स्टॉक जमा हो गया था, जिसे मिल्क पाउडर बनाने के लिए लखनऊ भेजा गया, जो बन कर तैयार भी हो गया है, लेकिन अब लखनऊ की कंपनी मिल्क पाउडर बनाने से ईन्कार कर रही है।
किसानों को इस समस्या से उबारने के लिए सरकार के पास भेजा गया है प्रस्तावः
एम.डी. राजीव कुमार सिंह ने बताया कि किसानों को इस समस्या से उबारा जा सकता है, बशर्ते कि झारखंड सरकार सहयोग करे। इसके लिए सरकार को एक प्रस्ताव भी जेएमएफ के द्वारा भेजा गया है। इसमें कहा गया है कि जेएमएफ किसानों से दोनों टाईम के दुध का उठाव करेगी। लेकिन बाजार में बिक्री के बाद जो दुध बच जाता है, उसे झारखंड सरकार खरीद ले और इस दुध की खपत सरकार द्वारा संचालित दीदी किचेन और मीड डे मील के साथ-साथ सरकार द्वारा संचालित अन्य योजनाओं में किया जाए, इससे सरकार को भी बचत होगी और गरीबों का टेस्ट भी बदलेगा साथ ही पौष्टिक भोजन भी मिलेगा। अन्य राज्यों की सरकार ने इस तरह की योजना लागू कर अपने मिल्क फेडरेशन को सहयोग किया है। कुछ राज्यों की सरकार अनुदान भी दे रही है, लेकिन झारखंड में अब तक ऐसा संभव नही हो सका है।
झारखंड सरकार के पास मिल्क फेडरेशन का करोड़ो बकायाः
वर्तमान में झारखंड सरकार के पास जेएमएफ का लगभग करोड़ों रुपया बकाया है। गिफ्ट मिल्क में लगभग 9 करोड, झारखंड के तीन जिलों में बन रहे मेधा के प्लांट निर्माण का 42 करोड़ और कैटल फीड में जो अनुदान पूर्व में दुग्ध उत्पादकों को दिया गया था, उसका भी भुगतान सरकार ने जेएमएफ को नही किया है। इस तरह करोड़ों रुपये सरकार के पास जेएमएफ का बकाया है। जेएमएफ के पास फंड नही रहने के कारन बैंकों से कर्ज लेकर किसानों को भुगतान किया जा रहा है।
झारखंड से पलायन रोकने में दुग्ध उत्पादन काफी कारगार साबित हुई हैः
झारखंड में कृषि कार्य सिर्फ मौसमी बारिश पर निर्भर है। यहां सिंचाई की व्यवस्था नही होने के कारन ज्यादातर ग्रामीण क्षेत्र के लोग रोजगार के लिए महानगरों की ओर पलायन कर जाते हैं। ऐसे में दुग्ध उत्पादन, यहां के ग्रामीणों के लिए रोजगार का एक अच्छा साधन साबित हो रहा है। मांडर प्रखंड में कई ऐसे दुग्ध उत्पादक हैं, जो पूर्व में पलायन कर ईंट भट्टों में काम किया करते थें, लेकिन वर्तमान में जेएमएफ के प्रयास से अब ये लोग अपने घरों में ही दुग्ध उत्पादन कर खुशहाली के साथ जीवन यापन कर रहे हैं। ऐसे में सरकार को चाहिए कि ज्यादा से ज्यादा ग्रामीणों को इस रोजगार से जोड़ा जाए।
Hello,
It’s very sad to know that milk producers are not getting their reasonable price.
Government must do something to for poor farmers.