घोषणा के एक साल बाद भी हेमंत सोरेन सरकार ने पत्थलगड़ी केस वापस नहीं लिया, मानवाधिकार हनन के मामले भी राज्य में बदस्तूर जारी…

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रिपोर्ट- ताजा खबर झारखंड ब्यूरो…

रांचीः शुक्रवार को झारखंड जनाधिकार महासभा द्वारा राजधानी रांची में एक सेमिनार का आयोजन किया गया, जिसमें विभिन्न जनसंगठनों के साथ-साथ कई सामाजिक व मानवाधिकार कार्यकर्ताओं ने भाग लिया। इसके अलावा इस सेमिनार में पत्थलगड़ी मामलों के कई पीड़ित और पश्चिमी सिंहभूम ज़िले के चिरियाबेरा गाँव के पुलिस/CRPF द्वारा प्रताड़ित ग्रामीणों ने भी भाग लेकर अपनी आपबीती साझा की। सेमिनार में पत्थलगड़ी मामलों के स्थिति की समीक्षा और झारखंड में लगातार हो रहे मानवाधिकार हनन के घटनाओं की समीक्षा की गई।

सरकार ने अपनी घोषणा पर अमल नहीं कियाः  

ज्ञात हो कि मुख्यमंत्री पद की शपथ लेने के तुरंत बाद, 29 दिसम्बर 2019 को मुख्यमंत्री, हेमंत सोरेन ने पत्थलगड़ी से सम्बंधित सभी पुलिस केस को वापस लेने की घोषणा की थी, लेकिन एक वर्ष बीत जाने के बाद भी अब तक केस वापस नही लिया गया है। पत्थलगड़ी प्रकरण के दौरान खूंटी और अन्य जिलों की पुलिस ने लगभग 200 नामज़द लोगों और 10000 से भी अधिक अज्ञात लोगों पर कई आरोप दर्ज किया था, जैसे भीड़ को उकसाना, सरकारी अफसरों के काम में बाधा डालना, समाज में अशांति फैलाना, आपराधिक भय पैदा करना और देशद्रोह का मामला भी।

सूचना के अधीकार से मिली ये जानकारीः

सूचना के अधिकार से प्राप्त जानकारी के अनुसार पत्थलगड़ी सम्बंधित जिलावार FIR निम्नलिखित हैं : खूँटी-23, सराइकेला-खरसाँवा- 5 और पश्चिमी सिंहभूम- 2, यानि कूल 30 एफआईआर दर्ज किए गए हैं। खूँटी ज़िला समिती ने सात मामलों में सिर्फ़ धारा 124A/120A/B को हटाने की अनुशंसा की है। राज्य गृह विभाग ने ज़िला समितियों द्वारा भेजे गए अनुशंसा पर कार्यवाई के बारे में सिर्फ़ इतना कहा है कि कार्यवाही हो रही है।

हेमंत सरकार जनता के उम्मीदों पर खरा नही उतर रही हैः

विधान सभा चुनाव प्रचार के दौरान महागठबँधन दलों ने हेमंत सोरेन के अगुवाई में ज़ोर-शोर से तात्कालीन राज्य सरकार के दमनकारी नीतियों और आदिवासियों पर हो रहे लगातार हमलों के विरुद्ध आवाज़ उठाई थी, जिसे देखते हुए जनता ने महागठबंधन में शामिल दलों को जनमत दिया था लेकिन यह देख कर निराशा हुई कि हेमंत सोरेन सरकार ने न तो पूर्व के मामलों पर निर्णायक कार्यवाई की न ही वर्तमान में ऐसे कृत्यों को रोकने की इच्छाशक्ति का प्रदर्शन किया है।

हेमंत सरकार के 1 वर्ष के कार्यकाल में भी हुआ है मानवाधिकार का उल्लंघनः

हेमंत सोरेन सरकार के एक वर्ष के कार्यकाल में भी मानवाधिकार हनन की घटनाएँ लगातार घटती रही है। इनमें सबसे चर्चित घटना थी पश्चिम सिंहभूम ज़िले के चिरियाबेरा गाँव की, जहां 20 आदिवासियों को जून 2020 में CRPF के जवानों ने नक्सल सर्च अभियान के दौरान बेरहमी से पीटा था, जिसमें तीन ग्रामीण बुरी तरह घायल हुए थें। ग्रामीणों का दोष यही था की वे CRPF के जवानों को हिंदी में जबाब नहीं दे पा रहे थे। उन्हें माओवादी कहा गया और डंडों, जूतों, कुंदों से पीटा गया। हालाँकि पीड़ितों ने पुलिस को अपने ब्यान में स्पष्ट रूप से बताया था कि सीआरपीएफ ने उन्हें पीटा था, लेकिन पुलिस द्वारा दर्ज प्राथमिकी में कई तथ्यों को नज़रंदाज़ किया गया और हिंसा में सीआरपीएफ की भूमिका का कोई उल्लेख नहीं है। पीड़ितों को अब तक कोई मुआवज़ा भी नहीं दिया गया है। पिछले एक साल के दौरान राज्य के विभिन्न जिलों में सुरक्षा कर्मियों द्वारा आम जनता पर हिंसा की वारदातें होते रही है।

हेमंत सरकार ये ना भूले कि, पिछली सरकार के दमनकारी और जन विरोधी नीतियों के विरुद्ध हेमंत सरकार को मीला है जनमतः

महासभा हेमंत सोरेन सरकार को याद दिलाना चाहती है की विधान सभा चुनाव में उनके गठबंधन की निर्णायक जीत, पिछले सरकार के दमनकारी और जन विरोधी नीतियों के विरुद्ध एक जनमत था। इसलिए वर्तमान सरकार से उम्मीद की जाती है कि शोषण और मानवाधिकारों के उल्लंघन के प्रति कठोर रवैया अपनाया जाएगा। झारखंड जनाधिकार महासभा आशा करती है, की सरकार सुरक्षा बलों पर लगाम लगाएगी और उन्हें आम जनता और आदिवासियों के प्रति ज़िम्मेवार बनाया जाएगा।

झारखंड सरकार से महासभा की निम्नलिखित माँग हैः

  1. पत्थलगड़ी से सम्बंधित मामलों को अविलम्ब वापस लिया जाय, खूँटी के मानवाधिकार हनन के मामलों में कार्यवाई की जाए और पीड़ितों को मुआवज़ा मिले।
  2. चिरियाबेरा घटना की न्यायिक जाँच हो, दोषी CRPF पुलिस और प्रशासनिक कर्मियों पर हिंसा करने के लिए कार्यवाई हो और पीड़ितों को उचित मुआवज़ा दिया जाय।
  3. स्थानीय प्रशासन और सुरक्षा बलों को स्पष्ट निर्देश दें, कि वे किसी भी तरह से लोगों का शोषण न करें। मानव अधिकारों के उल्लंघन की सभी घटनाओं से सख्ती से निपटा जाए। नक्सल विरोधी अभियानों की आड़ में सुरक्षा बलों द्वारा लोगों को परेशान न किया जाए। मानवाधिकार हनन के मामलों को सख़्ती से निपटाया जाय साथ ही आम जनता को नक्सल-विरोधी अभियान के नाम पर बेमतलब परेशान न किया जाए।
  4. स्थानीय प्रशासन और सुरक्षा बलों को आदिवासी भाषा, रीति-रिवाज, संस्कृति और उनके जीवन-मूल्यों के बारे में प्रशिक्षित किया जाय और संवेदनशील बनाया जाये।
  5. लिंचिंग से सम्बंधित सुप्रीम कोर्ट के आदेशों को सही मायनो में लागू किया जाय, दोषियों को बचाने वाले पुलिस और अधिकारियों पर कार्यवाही हो, पीड़ितों को मुआवज़ा मिले और लिंचिंग के विरुद्ध कठोर क़ानून बनाया जाये।
  6. निर्जीव पड़े हुए राज्य मानवाधिकार आयोग को पुनर्जीवित किया जाय और यह जनता के लिए सुलभ हो। मानवाधिकार उल्लंघन मामलों के लिए स्वतंत्र शिकायत निवारण तंत्र बनाया जाय।

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