Categories
मुद्दा

पैलापत्थल में 15,064 साल और महुआ का पेड़ काटे जाने के साथ पलामू व्याघ्र परियोजना स्थित 5 गांव के लोगों को गढ़वा वन क्षेत्र में विस्पुथापित एवं पुनर्वास कराने का है प्रस्तावः

4

लेखक- जेरोम जेराल्ड कुजूर

लातेहारः क्या आपने मौसम परिवर्तन को महसूस किया है? शायद आपने ग़ौर किया होगा कि वर्ष दर वर्ष गर्मी की भीषण ताप बढ़ती जा रही है। हर साल, तापमान के कई रिकॉर्ड टूट रहे हैं। बारिश की अनियमितता से तो सभी भली भाँति परिचित होंगे।
बात करें झारखंड की तो जहाँ अधिकांश किसान मौसम पर निर्भर रहते हैं, ऐसे में बारिश का कम या ज़्यादा होना कइयों की आर्थिक कमर तोड़ कर रख देती है। वैज्ञानिक पद्धति से देखा जाय तो इस परिवर्तन के कई कारण सामने आए हैं, जिसमें एक मूख्य कारण पेड़ों तथा जंगलों का पतन है। इस संदर्भ में राज्य एवं केंद्र सरकार, दोनो की ज़िम्मेदारी बनती है कि इस पतन पर रोक लगाया जाय। अगर ज़मीनी स्तर पर सरकारी तंत्र की बात कि जाय, तो यह ज़िम्मेदारी वन विभाग की है (वन अधिकार क़ानून 2006 के बाद ये ज़िम्मेदारी मुख्यतः वन क्षेत्रों में बसे ग्रामीणों की भी है)। वन क्षेत्र में रह रहा कोई भी परिवार इस बात की गवाही दे सकता है कि, अगर किसी वन अधिकारी ने उन्हें वन से कुछ लकड़ियाँ लाते देख लिया (चूल्हा जलाने हेतु) तो उनपर शामत आ जाएगी।

पैलापत्थल में 15,064 पेड़ काटे जाने का प्रस्तावः

अब बात करते हैं मुद्दे की… पलामू व्याघ्र परियोजना के कोर एरिया में बसे 8 वन गाँव – लाटू, कुजरूम, रमनदाग, हेनार, विजयपुर, पंडरा, गुटवा, गोपखार को वन विभाग विस्थापित एवं पुनर्वास करना चाहता है। अनेक विफल प्रयासों के बाद वन विभाग राज्य सरकार के समक्ष एक आवेदन प्रस्तुत करता है, जिसके तहत लाटू, कुजरूम एवं अन्य गाँव को लाई एवं पैलापत्थल नामक जगह पर पुनर्वास कराना है। लाई एवं पैलापत्थल, दोनो गाँव रिसर्व फ़ॉरेस्ट क्षेत्र में आते हैं, और यह पूरा इलाक़ा ईको-सेन्सिटिव ज़ोन का हिस्सा है। ‘लाटू, कुजरूम एवं अन्य गाँव’ के पुनर्वास के लिए वन विभाग ने लाई और पैलापत्थल में कुल 410.18 एकड़ भूमि उपलब्ध ‘कराई’ है। इस उपलब्ध भूमि में पेड़ों की कुल संख्या 52876 है, जिनमें सखुआ एवं महुआ के पेड़ मुख्य रुप से शामिल हैं। वन विभाग के औपचारिक आवेदन में कुल 15064 पेड़ों को काटे जाने का प्रस्ताव है।

क्या है 15064 साल और महुआ के पेड़ों की कीमत?

रुपयों में तौलना तो नहीं आता पर हाँ, अपने भविष्य, अपने भावी पीढ़ी और अपनी प्रकृति को हम निःसंदेह दांव पर लगा रहे हैं। सवाल यहाँ यह नहीं है कि, क्या वन विभाग ऐसा कर सकता है, क्योंकि न्यायिक दृष्टि से वन विभाग (राज्य एवं केंद्र की अनुमति के उपरांत) ऐसा बिल्कुल कर सकता है। वरन सवाल यह है कि, क्या वन विभाग को ऐसा करना चाहिए? और क्या आप और मैं इस बाबत कुछ कर सकते हैं?

पलामू व्याघ्र परियोजना स्थित पोलपोल, तनवई, नवरनागो, चपिया एवं टोटकि गांव के लोगों को गढ़वा वन क्षेत्र में विस्थापन एवं पुनर्वास कराने का है प्रस्तावः

मैं आपके समक्ष दो जानकारी रखूँगा कि, क्यों वन विभाग को ऐसा नहीं करना चाहिए। पहला, इन पेड़ों का पातन एक सिलसिला है जो चला आ रहा है, और अगर रोका नहीं गया, तो चलता रहेगा। अगर आप वन विभाग के आपसी पत्रचार के तर्कों को पढ़ें (तस्वीरें संलग्न हैं) तो कुछ यूँ प्रतीत होता है कि – पहले भी विकास कार्यों के लिए पेड़ों को काटा गया है और वर्तमान में भी काटा जा रहा है, अतः अब इसमें रोक लगाने का कोई तर्क नहीं है। दूसरा, इस सिलसिले में कोई नहीं छूटेगा, सभी प्रभावित होंगे, सभी जोड़े जाएँगे। अगर आप वन विभाग के 2-3 वर्ष पूर्व के विस्थापन-पुनर्वास प्रस्ताव को देखेंगे तो पाएँगे कि लाई और पैलापत्थल के अलावा (लाटू और कुजरूम के) विस्थापितों को पोलपोल गाँव में भी बसाने का इरादा वन विभाग का था। किन्हीं कारणों से ये प्रस्ताव ठंडे बस्ते में चला गया। अब 2022 में वन विभाग द्वारा एक और आवेदन दिया जाता है, जिसमें पलामू व्याघ्र परियोजना स्थित पोलपोल सहित 5 अन्य गाँव (तनवई, नवरनागो, चपिया एवं टोटकि) को विस्थापित एवं पुनर्वास (गढ़वा वन क्षेत्र में) कराने का प्रस्ताव है। अब ये तो नहीं पता की और कितने गाँवों को इस व्याघ्र परियोजना के कोर एरिया में शामिल किया जाएगा, कितने गाँवों को विस्थापित किया जाएगा, और कितने ही वनों और पेड़ों को नष्ट किया जाएगा। पर इतना पता है कि यह सिलसिला अब नहीं थमा तो शायद बचाने के लिए कुछ बचा ही नहीं रहेगा।

By taazakhabar

"TAAZA KHABAR JHARKHAND" is the latest news cum entertainment website to be extracted from Jharkhand, Ranchi. which keeps the news of all the districts of Jharkhand. Our website gives priority to news related to public issues.

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *