आदिवासी जनप्रतिनिधि भी कर रहे हैं गरीब आदिवासियों का शोषण…..

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रिपोर्ट- संजय वर्मा…

नामकुम प्रखंड़, राजाउलातु पंचायत के भुक्तभोगी ग्रामीण.

आदिवासी जनप्रतिनिधि भी कर रहे हैं गरीब आदिवासियों का शोषण…..

रांचीः अशिक्षित भोले-भाले आदिवासियों से जमीन लीज पर लेना काफी आसान है, इसके लिए करना सिर्फ आपको इतना है कि उस गांव के स्थानीय जनप्रतिनिधियों को अपने पक्ष में किजीए और जिन रैयतों से जमीन लेना है उन्हें प्रलोभन देते हुए दारू मुर्गा और खस्सी खिला दिजीए, फिर तो अशिक्षित भोले भाले रैयत आसानी से अपनी जमीन आपके नाम कर देंगे। मेरे कहे बातों पर आपको गुस्सा जरुर आ रहा होगा, लेकिन हकीकत यही है…. ये जानकारी मुझे राजाउलातु पंचायत, सोगोद गांव, पीढ़ीटोला के भुक्तभोगी ग्रामीणों ने दी, पीड़ितों की मानें तो गांव में 17 एकड़ जीएम लैंड के लीज को लेकर ग्राम सभा हुआ था, जिसमें मात्र 12 से 15 ग्रामीण मौजुद थें। ग्रामसभा की बैठक में ग्रामीणों से सादे पेपर पर हस्ताक्षर लिया गया था। और इसी पेपर को आधार बनाते हुए उत्खनन कार्य में लगे कंपनी को लीज दिया गया था, जबकि हर ग्रामसभा की बैठक में 11 टोलों के कम से कम 5-6सौ ग्रामीण सम्मिलित होते हैं।

वर्तमान में ग्रामीण कंसट्रक्शन कंपनी पर ये आरोप लगा रहे हैं कि कंपनी निर्धारीत भू-भाग से कई गुणा अधीक जमीन पर उत्खनन कर रही है, जिसमें रैयती जमीन भी शामिल है। पीड़ित रैयतों की मानें तो उन्हें पैसे का भुगतान नही किया गया है, जबकि क्षेत्र की मुखिया पुरगुन सुरीन रैयतों के बीच 9 लाख रुपये दिए जाने की बात कही है। पीड़ित ये भी कह रहे हैं कि, यहां हो रहे पत्थर उत्खनन से आसपास के लगभग 9 टोला के हजारो लोग सीधे तौर पर प्रभावित हैं। ग्रामीण लाह की खेती नही कर पा रहे हैं, प्रदुषण का असर रबी और खरीफ के फसलों पर भी पड़ा है, पशुओं को चराने में भी मुश्किल हो रही है।

फर्जी ग्रामसभा की जानकारी देते ग्रामीण.

बताते चलें कि बीते वर्ष दिनांक 22 अक्टूबर को इस गांव के सैंकड़ों ग्रामीणों ने नामकुम प्रखंड मुख्यालय में प्रदर्शन करते हुए कंपनी के लीज को रद्द करने की मांग करते हुए अंचलाधिकारी और बीडीओं को मांग पत्र सौंपा था। ग्रामीणों ने अपने मांग पत्र में कहा है कि, ग्राम सभा से प्रमिशन के लिए 3 चौथाई ग्रामीणों का बहुमत होना चाहिए, लेकिन ग्राम प्रधान और मुखिया ने कंपनी के पक्ष में काम करते हुए मात्र 1 चौथाई बहुमत होने के बावजुद इसे ग्राम सभा से पारीत कर दिया जो फर्जी है। इस लिए ग्रामसभा में लिए गए निर्णय के सत्यता की जांच करते हुए लीज को रद्द किया जाए।

 इस मामले में हमारी टीम ने सोगोद गांव की मुखिया पुरगुन सुरीन से भी फोन पर बात की। इन्होने कहा कि गांव वालों ने स्वयं से ग्रामसभा का बैठक किया था, उस बैठक में मैं शामिल नही थी। लेकिन जब मैनें कहा कि रैयतों ने मुझे जानकरी दी है कि आपने 9 लाख रुपये रैयतों के बीच वितरित किया है। इसे उन्होंने स्वीकार किया, लेकिन साथ ही आक्रोशित भी हो गई। जो आप भी सून सकते हैं……

ग्रामसभा की बैठक में लिए गए निर्णय के बारे में जानकारी हांसिल करने के लिए अपहरण के बाद रिहा हुए ग्राम प्रधान संदीप शांडिल से भी दिनांक 6 जनवरी को कई बार फोन कर बात करने की कोशिश की गई, लेकिन उन्होंने फोन रिसिव नही किया।  पीड़ित ग्रामीणों ने कैमरे पर नही लाने की शर्त पर बताया कि 2014 में भी इनका अपहरण हुआ था, उस दौरान लेवी की रकम देकर ही रिहा हुए थें। ग्रामीणों ने ये भी बताया कि ग्राम प्रधान के साथ पूर्व में ही दर्जनों रैयतों की नोंकझोंक हो चुकी है। अपहरण की दोनो ही घटनाओं में ग्रामप्रधान संदीप शांडिल के परिजनों ने पुलिस को सूचना नही देते हुए मामले को छुपाने का काम किया, जो जांच का विषय है। हलांकि पुलिस के समक्ष ग्राम प्रधान, संदीप शांडिल ने ये कहा है कि पहले हुए अपहरण में वो अपहरणकर्ताओं के चंगुल से भागने में सफल रहे थें।

नोटः कुछ और नये खुलाशों के साथ रिपोर्ट आगे भी जारी रहेगी….

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