गारु में 12 जून की घटना मुठभेड़ नही थी, सुरक्षाबल द्वारा निर्दोष ग्रामीणों पर गोलियां बरसाई गईः झारखंड जनाधिकार महासभा

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रिपोर्ट- ताजा खबर झारखंड ब्यूरो

रांचीः बीते 13 जून 2021 को विभिन्न समाचार पत्र और ईलेक्ट्रोनिक मीडिया में ये खबर आई थी, कि सुरक्षाबलों की गोली से लातेहार जिला, गारु थाना क्षेत्र अंतर्गत मुरुपीड़ी जंगल में शिकार करने के दौरान एक आदिवासी युवक ब्रह्मदेव सिंह की मौत हो गई। ये समाचार मिलने के बाद घटना की जांच के लिए झारखंड जनाधिकार महासभा की ओर से विभिन्न संगठनों के प्रतिनिधि, पत्रकार, अधिवक्ता व सामाजिक कार्यकर्ताओं की एक टीम द्वारा घटना की जांच की गई। जांच टीम ने 17 जून को गांव का दौरा कर पीड़ित परिवारों से मुलाकात कर पुरे घटनाक्रम की जानकारी ली।

जांच टीम द्वारा जारी की गई रिपोर्टः

लातेहार जिला मुख्यालय से लगभग 35 किलोमीटर की दूरी पर स्थित घांसीटोला पंचायत अन्तर्गत गनईखांड़ टोली स्थित है, जहां ये घटना घटी। गनईखाड़ तक पहुंचने के लिए कई नदी-नालों को पार करना पड़ता है। गांव के लोग मुख्य तौर पर खेती और जंगल के उत्पादों पर निर्भर हैं। इस के अलावा विशेष अवसरों पर जंगल में शिकार भी करते हैं। गांव में लगभग 100 परिवार हैं, जिसमें ज्यादातर खेरवार समुदाय के आदिवासी है।

भरठुआ बंदूक का उपयोग इस क्षेत्र में पीढ़ी दर पीढ़ी छोटे शिकार और जानवरों को भगाने के लिए किया जा रहा हैः

सुरक्षाबलों की गोली से मारा गया 24 वर्षीय युवक ब्रह्मदेव सिंह भाड़े का ऑटो चलाते थें। ब्रह्मदेव सिंह की शादी दो साल पहले हुई थी। उनके परिवार में उनकी पत्नी जीरामनी देवी और एक वर्ष का बेटा प्रिंस है। 13 जून को पिरी गांव में सरहुल पूजा मनाया जाना था, जिसके लिए 12 जून को गांव के 10-11 आदिवासी पुरुष सरहुल मनाने की तैयारी के लिए सुबह लगभग 8 बजे गांव के ही राजेश्वर सिंह के घर के सामने ईक्ट्ठा हुएं। यहां से सभी युवक छोटे जानवरों का शिकार करने निकलें, ताकि सरहुल पूजा में उपस्थित होने वालों मेहमानों को भोजन में खिला सकें। यहां हर साल सरहूल पूजा से एक दिन पूर्व शिकार करने की परंपरा है। शिकार करने के लिए युवक भरठुआ बंदूक का उपयोग करते हैं। इस पारंपरिक बंदूक में बारुद भर कर फायरिंग किया जाता है। इस बंदूक का उपयोग छोटे जानवरों का शिकार और खेती के दौरान जानवरों को भगाने के लिए किया जाता है। पीड़ित परिवारों ने बताया कि इस बंदूक का उपयोग पीढ़ी दर पीढ़ी किया जा रहा है। शिकार करने के दौरान ब्रह्मदेव सिंह हरे रंग का टी-शर्ट और कार्गों पैंट पहना हुआ था, उनके साथ अन्य पांच लोग टी-शर्ट और हाफ पैंट पहने हुए थें।

सुरक्षाबल के जवानों को फायरिंग करता देख पीड़ितों ने भरठुआ बंदूक जमीन पर रख कर आवाज लगाई थीः

शिकार करने के दौरान पहले समुह में उपस्थित देनेनाथ को जंगल के किनारे सुरक्षा बल के जवान दिखें, तभी दिनेनाथ ने अपने साथियों को थोड़ा पीछे हटने के लिए कहा, तभी दिनेनाथ के पीछे मौजुद युवक दौड़ने लगें, इतने में ही सुरक्षाबल के जवानों की नजर उन पर पड़ी और जवानों ने फायरिंग करनी शुरु कर दी। इस दौरान शिकार करने में शामिल एक समुह के रघुनाथ, राजेश्वर, सुकुलदेव सिंह और गोविंद पास ही स्थित महुआ पेड़ के समिप खड़े हो गएं और ब्रह्मदेव दिनेनाथ व इन चारों ने बंदूक जमीन पर नीचे रख कर हांथ उठा लिए और आवाज लगाई कि हम सभी आम जनता है माओवादी नहीं, और गोली नहीं चलाने का अनुरोध किया। इस दौरान ब्रह्मदेव अपना टी-शर्ट और कार्गों पैंट भी खोलने लगे ताकि सुरक्षाबलों को किसी तरह का भ्रम ना हों, लेकिन इस दौरान सुरक्षाबल के जवान लगातार फायरिंग करते रहें जैसा की ग्रामीणों ने बताया।

ब्रह्मदेव सिंह को गोली मारने के बाद शव का कपड़ा बदल दिया गया थाः ग्रामीण

गोली सबसे पहले दिनेनाथ सिंह के अंगुली में लगी, उसके बाद ब्रह्मदेव सिंह को गोली लगी। ब्रह्मदेव सिंह गोली लगते हुए गिर पड़े। सुरक्षाबल के जवान लगभग आधे घंटे तक गोलियां चलाते रहें। इस दौरान महुआ पेड़ के समिप खड़े चार युवक और दिनेनाथ भाग कर पास ही स्थित राजेश्वर सिंह के घर में घुस गएं। जब गोलियों की आवाज थमी, तब ब्रह्मदेव सिंह की चाची घटनास्थल पर ब्रह्मदेव सिंह को देखने के लिए पहुंची, लेकिन सुरक्षाबल के जवानों ने उन्हें अपशब्द कहते हुए डरा धमका कर भाग जाने के लिए कहा। इस दौरान कुछ ग्रामीणों ने देखा कि सुरक्षाबल के जवान ब्रह्मदेव सिंह को एक हांथ और एक पैर पकड़ कर उठाते हुए नदी पार कर रहे हैं। नदी पार करने के बाद भी ब्रह्मदेव सिंह सिंह का हांथ पैर हिल रहा था। लेकिन इसी दौरान जवानों ने ब्रह्मदेव सिंह को जमीन पर रख कर तीन और गोली मारी, जिससे ब्रह्मदेव सिंह की मौत हो गई। इसके बाद सुरक्षाबलों ने ब्रह्मदेव सिंह का कपड़ा बदल दिया। ब्रह्मदेव सिंह को नीले रंग का जिंस पैट और पीले रंग का टी-शर्ट पहनाया। यहीं फोटो स्थानीय अखबारों में भी छापा गया है।

भरठुआ बंदूक से एक भी फायरिंग नहीं किया गया थाः पीड़ित

स्थानीय ग्रामीणों के अनुशार 60 से 100 की संख्या में सुरक्षाबल के जवान जंगल के किनारे मौजुद थें। ब्रह्मदेव सिंह के साथ मौजुद दिनेनाथ, रघुनाथ, राजेश्वर और सुकुलदेव सिंह ने जांच टीम को बताया कि हमलोगों ने अपने भरठुआ बंदूक से एक भी गोली नही चलाई। अगर हमलोगों को सुरक्षाबलों के जंगल में मौजुद होने की जानकारी रहती, तो हमलोग शिकार करने के लिए जंगल में नहीं जाते। ब्रहमदेव सिंह को गोली मारने के बाद जवान राजेश्वर सिंह के घर पहुंचे जहां हमलोग डर से छुपे हुए थें। कुछ देर में जवान राजेश्वर सिंह के घर पहुंचे और घर के अंदर रहे सभी लोगों को बाहर आने के लिए आवाज लगाई। हमलोगों को कपड़ा खोल कर घर से बाहर आने के लिए कहा गया, जिसके बाद हमलोग गंजी और अंडरवीयर में ही घर से बाहर आएं। यहां हमलोगों को एक तरफ बैठाया गया और महिलाओं को दूसरी तरफ भेज दिया गया। फिर जवानों ने पुछा कि तुमलोग वहां से क्यों भागे, इस पर हमलोंगों ने बताया कि गोली चलने के कारन जान बचाने के लिए हमलोग वहां से भागे। फिर हमलोगों से पुछा गया कि, नक्ससी कहां हैं, उन्हें कहां छुपा कर रखा गया है। यहां ये भी पुछा गया कि गांव में माओवादी आते हैं या नहीं। इस दौरान राजेश्वर सिंह के घर की तलाशी भी सुरक्षा बल के जवानों ने ली। तलाशी के क्रम में एक जवान ले गोली चल गई और गोली उसी जवान के पैर में लगी।

भरठुआ बंदूक से घटना के बाद जबरन फायरिंग करवाया गयाः पीड़ित

राजेश्वर सिंह के घर की तलाशी के बाद हम पांचों को नदी किनारे ले जाया गया और वहां हम सभी को अपने भरठुआ बंदूक से जबरन बारुद भर कर फायरिंग करवाया गया। इसके बाद हम पांचो को जंगल के अंदर ले जाया गया और कई घंटे तक जंगल में ही बैठा कर रखा गया।

गांव के किसी भी व्यक्त का संबंध माओवादियों से नहीः ग्रामीण

जांच टीम द्वारा ग्रामीणों से पुछा गया कि गांव में माओवादी आते हैं या नहीं, इस पर ग्रामीणों ने बताया कि कुछ साल पहले तक आते थें, लेकिन अब नही आते हैं। ग्रामीणों ने ये भी बताया कि गांव के किसी भी व्यक्ति का संबंध माओवादियों से नही है।

पीड़ितों से सादे पेपर और कुछ लिखित पेपरों पर हस्ताक्षर करवाया गयाः

घटना का कुछ देर बाद गारु थाना की पुलिस वहां पहुंची और ब्रह्मदेव सिंह के शव को लेजाकर चिपरु स्थित प्राथमिक विद्यालय में रख दिया। इस दौरान ग्रामीण खाश कर महिलाएं पुलिस की इस कार्रवाई का विरोध भी कर रही थीं। विरोध के दौरान महिला फुलवा देवी की पुलिस ने पिटाई भी की। दोपहर बाद पुलिस लाश को लेकर लातेहार चली गई। इस दौरान पांचो पीड़ितों को एक बोलेरो बाहन में बैठा कर पहले सरयू कैंप ले जाया गया, फिर वहां से लातेहार थाना ले जाया गया। थाने में उन लोगों से कुछा सादे और कुछ लिखित कागज पर हस्ताक्षर भी करवाया गया। इस दौरान किसी को भी कुछ कागज में लिखे बातों को पढ़कर नही सुनाया गया।

ब्रह्मदेव के शव को जलाने के लिए कहा, दफनाने से मना कियाः परिजन

घटना के दूसरे दिन, 13 जून को ब्रह्मदेव सिंह का शव उनके परिवार वालों को सौंप दिया गया। इस दौरान पुलिस द्वारा ब्रह्मदेव सिंह के शव का जल्द से जल्द जला देने का आदेश दिया। पुलिस ने ये भी कहा कि शव को दफनाना नही है। मौके पर ग्रामीणों ने कहा कि जब तक गिरफ्तार पांचो युवकों को पुलिस नही छोड़ती है, तब तक ब्रह्मदेव सिंह के शव का अंतिम संस्कार नही किया जाएगा। इसके बाद पुलिस ने गिरफ्तार पांचों युवकों को मुक्त किया।

पुलिस ने गलती मानी और माफ करने के लिए कहाः परिजन

मृतक ब्रह्मदेव सिंह की पत्नी और बड़े भाई ने बताया की घटना के बाद पुलिस ने परिवार को लगभग 30-35000 रुपये दिए और नौकरी देने का भी आश्वासन दिया। पुलिस ने परिवार के सदस्यों से कहा कि उनसे गलती हो गई है, उन्हें माफ किया जाए।

निष्कर्षः

ये स्पष्ट हो चुका है कि 12 जून की घटना मुठभेड़ नही थी, सुरक्षा बल द्वारा निर्दोष ग्रामीणों पर गोलिया बरसाई गई थी। जिससे ब्रह्मदेव सिंह की मौत हो गई और दिनेनाथ की अंगुली में गोली लगी थी। पुलिस ने ठंडे दिमाग से ब्रह्मदेव सिंह को नदी किनारे लेजाकर तीन गोलियां मारी जिससे उनकी मौत हुई। पुलिस इस घटना को माओवादियों के साथ हुई मुठभेड़ दर्शाना चाहती थी, लेकिन मामले का पर्दाफाश हो चुका है। सच्चाई जनता के सामने है।

सरकार से झारखंड जनाधिकार महासभा की मांगः

  1. सरकार घटना की सच्चाई को सार्वजनिक करे।
  2. मामले की निष्पक्ष जांच के लिए न्यायीक कमीशन का गठन हो। गोली चलाने के जिम्मेवार सुरक्षाबल के पदाधिकारी और जवानों पर प्राथमिकी दर्ज की जाए।
  3. पुलिस द्वारा दबाव डाल कर पीड़ितो से लिया गया ब्यान और एफिडेविट को रद्द किया जाए।
  4. मृतक ब्रह्मदेव की पत्नी को कम से कम 10 लाख का मुआवजा दिया जाए।
  5. स्थानीय प्रशासन और सुरक्षा बलों को स्पष्ट निर्देश दिया जाए कि नक्सल विरोधी अभियान की आड़ में लोगों को परेशान ना किया जाए।
  6. पांचवी अनुसूची के प्रावधानों व पेसा कानून को पूर्ण रुप से लागू किया जाए। किसी भी गांव या गांव के सीमाने में सर्च ऑपरेशन चलाने से पूर्व ग्रामसभा और पँचायत प्रतिनिधियों से सहमति ली जाए।      

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