लॉक डाउन में भिक्षाटन कर गुजारा करने वाले और दिहाड़ी मजदूरों का बुरा हाल, कोई सरकारी सहायता नहीं…

0
2

रिपोर्ट- संतोष तिवारी, गिरिडिह

गिरिडीहः लॉकडाउन में दिहाड़ी मजदूरों के साथ-साथ उन गरीबों पर आफत आन पड़ी है, जिनका जिविकोपार्जन भिक्षाटन कर होता है। ऐसे लोगों की संख्या झारखंड में लाखो में है, जो वर्तमान में किसी तरह आधा पेट खा कर अपना गुजर बसर कर रहे हैं, झारखंड के नौकरशाह इस तरह इनलोगों से मुंह फेरे हुए हैं मानों ये लोग इन्सान नही, या फिर सरकार ने ऐसे लोगों का बहिष्कार कर रखा है।

2 दर्जन में से मात्र पांच परिवारों के पास राशन कार्डः

मामला है झारखंड के गिरिडीह शहर से सटे भलसुनिया गांव का, जहां दो दर्जन आदिवासी परिवार निवास करते हैं, इनमें से मात्र पांच परिवारों के पास राशन कार्ड है और कुछ एक को ही विधवा और वृद्धा पेंशन मिलता है। बाकि लोग भगवान भरोषे ही अपना जीवन यापन कर रहे हैं।

अनाज की जगह, चावल का पानी दे कर बच्चों को बहलाया जाता हैः

वर्तमान लॉक डाउन के कारन इन परिवारों के समक्ष भुखमरी की स्थिति उत्पन्न हो गई है। इस दौरान अगर किसी की मौत भूख से हो जाए, तो कोई बड़ी बात नही होगी। सरकार ये कह कर अपना पल्ला झाड़ लेगी की सरकार ने अधिकारियों को हर संभव मदद पहुंचाने का आदेश दे रखा है, लेकिन सरकार के अधिकारी इस आदेश का कितना पालन करते हैं, ये जगजाहीर है। वर्तमान में इनके समक्ष अनाज के लाले पड़े हुए हैं। एक मुट्ठी चावल में इतना ज्यादा पानी डालते हैं कि बच्चों के बार-बार खाना मांगने पर उन्हें चावल का पानी देकर फुसलाया जा सके, ये स्थिति यहां निवास कर रहे सभी 2 दर्जन परिवारों के घर की है।

मुखिया ने 15 दिन पहले दिया था सभी को 5-5 किलो चावलः

इस गांव के जवान लोग दिहाड़ी मजदूरी का काम करते हैं और बुजुर्ग लोग भिक्षाटन, लेकिन लॉक डाउन के कारन ये लोग मजदूरी और भिक्षाटन दोनों से ही वंचित हो चुके हैं, गांव में पहुंचने पर ग्रामीणों ने अपना दर्द साझा करते हुए बताया कि स्थानीय मुखिया ने पांच-पांच किलो चावल दिया था. इसके बाद कुछ लोग आए तो एक दिन पूड़ी-सब्जी दी गयी, और एक दिन खिचड़ी भी मिला. लेकिन उसके बाद से लगातार दिए गए पांच किलो चावल से ही गुजारा करना पड़ा है। उसी चावल को थोड़ा-थोड़ा करके माड़-भात बना कर खाएं, लेकिन अब बो चावल भी खत्म हो गया है।

सामाजिक और जेएमएम कार्यकर्ताओं ने की थोड़ी मददः

मामले की जानकारी जब कुछ स्थानीय सामाजिक कार्यकर्ता और जेएमएम के लोगों को मिली, तो वे लोग अपने स्तर से कुछ अनाज मुहैया करवाया। जिसके चार-पांच दिन और ये लोग चावल का पानी पीकर जिन्दा रह सकते हैं, लेकिन गरीबों को इस स्थिति ने सरकारी सुविधाओं की भी पोल खोल कर रख दी है, कि धरातल पर सरकार के योजनाओं का कितना लाभ गरीबों को मिल रहा है। यूथ फाउंडेशन के आशुतोष बताते हैं कि इस गांव के दो दर्जन परिवारों में बुजुर्गों की संख्या ज्यादा है। एक बुजुर्ग महिला इस गांव में नेत्रहीन भी है। सरकार इन गरीबों की ओर नजरें इनायत करे, अन्यथा हेमंत सोरेन सरकार पर भी भूख से मौत का बदनूमा दाग लगने से कोई रोक नही सकता।

Leave A Reply

Your email address will not be published.