सरना धर्म कोड़ 2015 में रिजेक्ट किया जा चुका है, इसलिए आदिवासी/सरना धर्म कोड़ का स्वागत किया जाना चाहिएः गीता श्री उरांव
रिपोर्ट- ताजा खबर झारखंड ब्यूरो…
रांचीः अखिल भारतीय आदिवासी विकास परिषद् की प्रदेश अध्यक्ष सह पूर्व मानव संसाधन मंत्री, गीता श्री उरांव ने आदिवासी समाज से निवेदन करते हुए कहा कि, धर्मकोड़ को लेकर झारखंड के सरना धर्मावलंबी आदिवासी समाज किसी भी तरह के भ्रम में ना रहे हैं और ना ही किसी तरह का विरोधाभास रखें। क्योंकि हमें पूरे देश के 15 करोड़ आदिवासियों के बारे मे भी सोचना होगा। हम अपने हठधर्मिता के कारण अन्य राज्यों के आदिवासियों को अपने से अलग नहीं कर सकते। क्योंकि धर्म कोड का मामला राज्य सरकार के बाद अंततः केंद्र सरकार के हाथों देय होगा। केंद्र सरकार एवं महामहिम राष्ट्रपति महोदय यह तय करेंगे कि पूरे देश के आदिवासियों को कौन सा धर्म कोड दिया जाए।
अलग अलग धर्मकोड़ की मांग के कारन अब तक आदिवासियों को उनका धर्मकोड़ नही मिला हैः गीताश्री उरांव
पिछले कई वर्षों से पूरे देश के प्रकृति पूजक आदिवासी अपनी – अपनी धार्मिक मान्यताओं के अनुरूप धर्मकोड की मांग केंद्र सरकार से करते आ रहे हैं, जैसे- सरना धर्म, आदि धर्म, सनी माही, कोया पुनेम, गोंडी धर्म, भीली धर्म ,आदिवासी धर्म, विदिन धर्म, सारी धर्म डोनी पोलो,बिरसायत धर्म, बैगा धर्म जैसे सैकड़ों धर्मों की मांग की जा रही है जो कि असंवैधानिक और अव्यवहारिक मांगे हैं। इन्हीं सब कारणों से भारत के जनगणना रजिस्ट्रार से हमारा कोड रिजेक्ट किया जाता रहा है ।और हम आदिवासी आज तक अपने मौलिक अधिकारों से वंचित रहे हैं।
सरना धर्मकोड़ की मांग 2015 में केद्र सरकार द्वारा खारिज किया जा चुका हैः गीताश्री उरांव
सरना धर्म कोड की मांग वर्ष 2015 में ही केंद्र सरकार द्वारा खारिज किया जा चुका है, क्योंकि वर्ष 2011 की जनगणना के अनुसार सरना धर्मावलंबी पूरे देश में नहीं है। वर्ष 2011 की जनगणना के अनुसार देश के कुछ एक राज्य जैसे- झारखंड में आदिवासियों की कुल जनसंख्या 86, 45,042 है जिसमें सरना लिखने वालों की संख्या मात्र 41,31,282 है। उसी तरह उड़ीसा में आदिवासियों की कुल जनसंख्या लगभग 96 लाख है, जिसमें मात्र 4,03,350 लोगों ने ही सरना लिखा है। पश्चिम बंगाल में आदिवासियों की कुल जनसंख्या लगभग 53 लाख है, जिसमें सरना लिखने वालों की संख्या मात्र 4,03,250 है ।
अशिक्षा और जनगणना कर्मियों की लापरवाही के कारन दूसरे धर्मों में अंकित करा दिया जाता हैः
पूरे देश में 15 करोड़ से भी अधिक आदिवासी बीहड़ जंगलों, पहाड़ों एवं शहरों में निवास करते हैं और गरीबी और अशिक्षा के साथ जनगणना कर्मियों की लापरवाही के कारण अपने को अन्य धर्मों में अंकित करा देते हैं, जिसे हमें रोकने की आवश्यकता है।
आदिवासी/सरना धर्मकोड़ का स्वागत किया जाना चाहिएः
गीताश्री उरांव ने आगे कहा कि झारखंड के वर्तमान मुख्यमंत्री, हेमंत सोरेन आदिवासी/सरना धर्म कोड़ लिख कर केन्द्र सरकार को अगर भेज रहे हैं, तो हम सभी को इनका स्वागत करना चाहिए, ना कि विरोध।
हम सभी आदिकाल से आदिवासी थें, आदिवासी है, और आगे भी आदिवासी ही रहेंगेः गीताश्री उरांव
आदिवासी धर्म लिखने से हम झारखंडियों की सरना धर्म समाप्त नहीं होगी। हम सभी आदिकाल से आदिवासी थें, आदिवासी है, और आगे भी आदिवासी ही रहेंगे। आदिवासी का मतलब ही है – मूल धर्म अर्थात प्रकृति धर्म को मानने वाले। हमारी पूजा पद्धति, संस्कृति, परंपरा, रीति-रिवाज अन्य समुदायों और धर्मों से मेल नहीं खाती है, इसलिए हम सभी अन्य समुदायों से बिल्कुल अलग हैं और हम अपनी पहचान लेकर रहेंगे, इसी संकल्प से हमें राज्य सरकार का तहे दिल से आभार व्यक्त करना चाहिए।