अफीम- तस्करों के लिए मुनाफे का सौदा, और पंचायत जनप्रतिनिधियों के लिए बना परेशानी का सबब…

रिपोर्ट संजय वर्मा…

खूंटी के इन क्षेत्रों में की गई है अफीम की खेतीः 
कुरुंगा, गुटीगड़ा, बारुहातु, कोता, सरवदा, हाकादुआ, मारंगहादा, बीरबांकी, गंडमारा, कुद्दा, नामसिल्ली, बारीगांव, ज्युरी और रांची-खूंटी जिला के बॉर्डर ईलाके में स्थित दशम फॉल क्षेत्र में...

रांचीः पूर्व में चतरा, हजारीबाग और पलामू जिले की पहचान अवैध अफीम उत्पादक जिले के रुप में थी, लेकिन वर्तमान में अवैध अफीम की खेती में खूंटी जिले का नाम टॉप पर हैं। पुलिस की लाख कोशिशों के बावजुद इस सीजन में भी खूंटी जिले के सुदूरवर्ती क्षेत्रों में जमकर अफीम की खेती हुई है। खूंटी जिले के हाकादुआ, मारंगहादा, बीरबांकी, गंडमारा, कुद्दा, नामसिल्ली, गुटीगढ़ा, दाउगड़ा, कोटा, सरवदा, तपड़ी, ज्युरी, बारीगांव के अलावा रांची-खूंटी जिला के बॉर्डर में स्थित दशम फॉल के  आसपास के क्षेत्रों में अफीम की फसल लहलहा रही है। हलांकि इस बार खूंटी मुख्यालय से 8-10 किलोमीटर की दूरी पर पूर्व की अपेक्षा अफीम की खेती कम की गई है।

खूंटी पुलिस जारी कर चुकी है फरमानः

लगभग एक माह पूर्व खूंटी एसपी ये फरमान जारी कर चुके हैं कि, खूंटी के किसी भी क्षेत्र में अफीम की खेती होती है, तो इसकी सूचना वहां के जनप्रतिनिधि पुलिस को देने का काम करें, अन्यथा उनपर भी कार्रवाई हो सकती है। लेकिन खूंटी एसपी के इस फरमान को कोई असर होता नही दिख रहा है। जिले के कई पंचायतों में पूर्व की तरह इस सीजन में भी अफीम की खेती हुई है, और सिर्फ खूंटी मुख्यालय से 8-10 किलोमीटर की दूरी पर स्थित कुछ क्षेत्रो(ज्युरी, बारीगांव) में ही पुलिस को अफीम की खेती नष्ट करने में सफलता मिली है।

जनप्रतिनिधि क्यों नही देते हैं पुलिस को सूचनाः

दक्षिणी छोटानागपुर का खूंटी जिला, अलग जिला बनने के पूर्व से ही सीपीआई माओवादी और पीएलएफआई उग्रवादियों की गिरफ्त रहा हैं, इसके अलावा पत्थलगड़ी करने वाले नेता भी इसी क्षेत्र(कुरुंगा, गुटीगड़ा, कोचांग) के निवासी हैं और इन्हीं क्षेत्रों के ग्रामीण अफीम की अवैध खेती से भी जुडे हुए हैं, जिसके कारन यहां के पंचायत जनप्रतिनिधि शुरु से ही इनके निशाने पर रहे हैं।

जनप्रतिनिधियों पर हो चुका है हमलाः

कोचांग पंचायत के ग्राम प्रधान, सुखराम मुंडा की हत्या पूर्व में हो चुकी है और कुड़ापूर्ति पंचायत के मुखिया, दसई मुंडा पर जानलेवा हमला भी किया जा चुका है। इसके अलावा सोयको थाना से मात्र तीन किलोमीटर की दूरी पर स्थित ज्युरी गांव निवासी बिनसय मुंडा को भी पूर्व में अफीम कारोबारी गांव से खदेड़ चुके हैं। कूल मिला कर खूंटी जिले के पंचायत जनप्रतिनिधि भय के साये में जीने को विवश हैं। जो जनप्रति सक्षम हैं, वे लोग अपने परिवार के साथ गांव छोड़ कर खूंटी जिला के शहरी क्षेत्र में निवास कर रहे हैं।

ये जनप्रतिनिधि छोड़ चुके हैं गांवः-

दसई मुंडा(मुखिया)- कुड़ापूर्ति पंचायत

गीता समद(मुखिया)- बोंडा पंचायत

उप मुखिया और पंचायत समिति सदस्य- बोंडा पंचायत

उप मुखिया और पंचायत समिति सदस्य- बोंडा पंचायत

दुलारी हेम्ब्रोम(मुखिया)- कोचांग पंचायत

सलोमी कंडीर(मुखिया)- कंडीर पंचायत

मुखिया- तिनतिला पंचायत

इनके अलावा भी कई जनप्रतिनिधि अपना कार्यक्षेत्र छोड़ कर शहरी क्षेत्र में रह रहे हैं, जिनकी सूची उपलब्ध नही हो पायी है।

खूंटी के पूर्व सांसद और विधायक, अफीम की अवैध खेती रोकने में दिलचस्पी नही दिखाईः

खूंटी जिले में अफीम की खेती करने की शुरुआत पिछले पांच वर्षों से काफी गति पकड़ी है। सन् 2018 में यहां के तात्कालीन सांसद कड़िया मुंडा और विधायक सह मंत्री नीलकंठ सिंह मुंडा के भवन के उपर से भी दूर-दूर तक अफीम की फसल खेतों में लहलहाती दिखाई पड़ रही थी। स्वाभाविक है कि इस बात की जानकारी इन्हें भी थी, लेकिन सांसद और विधायक ने कभी भी इस ओर ध्यान नही दिया। जानकार बताते हैं कि, जो लोग अफीम की खेती कर रहे थें या वर्तमान में भी कर रहे हैं, यही लोगो चुनाव के वक्त इनके पक्ष में काम किया करते हैं, ऐसे में इनके साथ पंगा लेना इन्हें भारी पड़ सकता था, इसलिए सांसद और विधायक ने इस अवैध खेती को रोकने में कोई दिलचस्पी नही दिखाई।

पूर्व में दूसरे जिलों के अफीम तस्कर लगाते थें पूंजी, अब ग्रामीण स्वयं लगा रहे हैं पूंजीः

2008 से पूर्व खूंटी जिला पूरी तरह नक्सलियों की गिरफ्त में था। उस दौरान जिले के सुदूरवर्ती क्षेत्रों में पुलिस का आवागमण भी नही था, जिसके कारन दूसरे जिलों के अफिम कारोबारी विकास से कोसो दूर ग्रामीणों के गरीबी का फायदा उठाते हुए इन्हें कम मेहनत में अधीक मुनाफा का प्रलोभन देते हुए अफीम की खेती करने का ट्रैनिंग देने के साथ-साथ पूंजी और खाद-बीज भी उपलब्ध करवाया। ग्रामीणों का काम सिर्फ फसल तैयार कर फसल से अफीम जमा करना था, और अफीम जमा होने के बाद अफीम तस्कर इनसे अफीम लेकर प्रति एकड़ 10 हजार रुपये दिया करते थें। अगर कोई किसान 5 एकड़ में अफीम की खेती करता है तो तीन माह बाद उसे 10 हजार प्रति एकड़ के हिसाब से 50 हजार का भुगतान अफीम तस्कर किया करते हैं। यानि कम मेहनत और पूंजी में अधीक मुनाफा। आगे चल कर यही मुनाफा यहां के युवाओं को अफीम की खेती की ओर अग्रसर किया, और अब यहां के युवा स्वयं की पूंजी लगाकर अफीम की खेती कर रहे हैं।  

अफीम तस्करों का आवागमण हुआ कम, बिचौलिए हुए हावीः

पूर्व में अफीम तस्कर स्वयं किसान के खेतों तक पहुंच कर अफीम की खरीददारी किया करते थें, लेकिन अब इस धंधे में दलालों का प्रवेश हो चुका है। पूर्व में अफीम खरीदने खूंटी पहुंचे दूसरे जिले के अफीम तस्करों को पुलिस मोटी रकम और उनके वाहन के साथ गिरफ्तार कर चुकी है, जिसके कारन उन्हें काफी नुकशान उठाना पड़ा है, इसलिए अब खरीद बिक्री का काम दलालों के माध्यम से हो रहा है।

दलालों के सक्रीय होने से अवैध अफीम उत्पादकों का मुनाफा हुआ कमः

पूर्व में अफीम तस्कर सीधे किसानों के खेतों तक पहुंच कर अफीम के क्वालिटी के अनुशार अफीम का रेट दिया करते थें, लेकिन अब दलालो के सक्रीय हो जाने से अफीम का मुल्य काफी कम हो गया है। अवैध अफीम की खेती से जुड़े एक युवक ने बताया कि पूर्व में 1लाख रुपये प्रति किलोग्राम की दर से अफीम बेच चुके हैं, लेकिन वर्तमान में 50 हजार रुपये प्रति किलोग्राम की दर से बेचना पड़ रहा है।  दलाल हमलोगों से सस्ते में खरीद कर अधीर रेट पर अफिम तस्करों को बिक्री करता है। दलाल कहते हैं कि हम लोग पहुंचाने का रिस्क ले रहे हैं, तूम लोगों को पहुंचाना नही पड़ रहा है, इसलिए हमलोगों को भी मुनाफा होना चाहिए।

खूंटी पुलिस के सूचना तंत्र बहती गंगा में धो रहे हैं हांथः

सूत्र बताते हैं कि अपराधी, नक्सली और उग्रवादियों की सूचना पुलिस तक पहुंचाने वाले लोगों को भी अवैध अफीम की खेती होने की जानकारी रहती है, लेकिन ये लोग इसकी सूचना पुलिस तक नही पहुंचाते हैं, क्योंकि अफीम की खेती करने वाले लोग पुलिस तक सूचना नहीं पहुंचाने के एवज में इन्हें भी अपने मुनाफे में हिस्सा देते हैं।

साईकल से चलने वाले युवक अब बाईक से लगा रहे हैं दौड़ः

कुछ वर्षों पूर्व तक विकास से कोसो दूर गरीब ग्रामीणों की इतनी क्षमता नही थी कि वे लोग साईकल भी मेन्टेन कर सकें, लेकिन जैसे ही ये लोग अफीम की खेती और कारोबार से जुड़ें इनके पास नये नये बाईक देखी जा रही है। यानि भटके हुए युवा अफीम का कारोबार कर बाईक की खरीददारी कर रहे हैं। सुत्र ये भी बताते हैं कि खूंटी जैसे छोटे जिले में अफीम की खेती समाप्त होने के बाद एकाएक बाईक की बिक्री बढ़ जाती है। यानि मार्च, अप्रैल माह में बाईक मार्केट में होने वाले उछाल से भी ये साबित होता है कि अफीम की अवैध कमाई से ही बाईक की खरीददारी होती है। कूल मिला कर ये कह सकते हैं कि अफीम का काला कारोबार खूंटी जिले के युवाओं को अपनी गिरफ्तर में ले चुका है, अगर इस अवैध कारोबार पर जल्द ही नकेल नही कसा गया तो शायद आने वाले समय में यहां के युवाओं के लिए काफी घातक सिद्ध होगा।     

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