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मुद्दा अपराध

प्लास्टिक चावल नहीं, ये है फोर्टिफाइड चावल, आयरन,फोलिक एसिड और विटामीन बी-12 युक्त.

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रिपोर्ट- संजय वर्मा…

रांचीः सरकार के सब्सिडी वाले चावल में प्लास्टिक चावल मिलाया गया है, ये जनता कह रही है।  प्लास्टिक चावल का मुद्दा वर्तमान में हर क्षेत्र में चर्चा का विषय बना हुआ है। ग्रामीण जनता, स्कूल के शिक्षक, इस चावल से काफी भ्रमित हैं और अपने-अपने तरीके से इस चावल की जांच कर रहे हैं। कोई चावल तवे में भून कर जानने की कोशिश कर रहा है, तो कोई पानी में उबाल कर, तो कोई चबा कर।

ग्रामीणों की शंका का निवारण नही कर पा रहे हैं राशन डीलर, शिक्षकों को भी नही फोर्टिफाइड चावल की जानकारीः

इस ज्वलंत मुद्दे पर ताजा खबर झारखंड की टीम और भोजन का अधिकार कैंपेन की सदस्य तारामणि साहू ने सिमडेगा जिले के जलडेगा प्रखंड अंतर्गत कई गांवों के ग्रामीण, आंगनबाड़ी केन्द्र, स्कूल और जन वितरण प्रणाली के दुकानदारों से मामले पर बात की। आंगनबाड़ी केन्द्र की सहिया, राशन डीलर और शिक्षकों को इस बात की कोई जानकारी नहीं कि, बच्चों को जो चावल दिया जा रहा है, वो फोर्टिफाइड चावल है और ये चावल आयरन, फोलिक एसिड, और बिटामीन बी-12 से युक्त है। 1 किलोग्राम सामान्य चावल में 10 ग्राम फोर्टिफाइड चावल मिलाया गया है, जो सफेद रंग का होता है। चावल के बोरे में लगे स्टीकर में ये जानकारी स्पष्ट रूप से अंकित है।

स्कूल के शिक्षक भी भ्रम की स्थिति में.

एनीमिक और कुपोषित बच्चों को पहले से ही दी जा रही है आयरन और फोलिक एसीड की दवाः शिक्षक

फोर्टिफाइड चावल की पुरी जानकारी जब स्कूल के प्राचार्य को दिया गया, तो उन्होंने बताया कि हर महिने सरकारी स्कूलों में चिकित्सकों की टीम पहुंचती और बच्चों का स्वास्थ्य जांच करने के बाद आयरन, फोलिक एसिड और विटामीन की दवा देते हैं, जिसका सेवन बच्चे पहले से ही कर रहे हैं। इस स्थिति में अगर बच्चों को मीड-डे-मील में भी आयरन और विटामीन युक्त चावल दिया जाता है, तो बच्चों के स्वास्थ्य पर इसका बुरा प्रभाव पड़ेगा। सरकार को फोर्टिफाईड चावल बच्चों को देने से पहले इसकी जानकारी देनी चाहिए थी, लेकिन शिक्षा विभाग द्वारा हम लोगों को ऐसी कोई जानकारी नही दी गई है।

आंगनबाड़ी केन्द्र में सहिया को फोर्टिफाइट चावल की जानकारी देते सामाजिक कार्यकर्ता, तारामणि साहू.

सफेद चावल चबाने से टुटता नही है, इसलिए चुन कर फेंक देते हैः ग्रामीण

वहीं ग्रामीणों ने बताया कि चावल में प्लास्टिक चावल मिलाया गया है, उसे चुन कर अलग फेंक देते हैं। सफेद चावल के बारे में जब ग्रामीण जनता को बताया गया, कि ये प्लास्टिक का चावल नहीं, बल्कि चावल की पोष्टिकता बढ़ाने के लिए इसमें पौष्टिक तत्व मिलाया गया है। तो उन्होंने बताया कि, हमलोगों को इसकी जानकारी नही हैं, चुंकी सफेद चावल चबाने पर सामान्य चावल के दानों की तरह टुटता नही है, इसलिए हमलोग इसे चुन कर फेंक देते हैं। गांव के सभी लोग यही कह रहे हैं कि ये प्लास्टिक का चावल है, खाने पर पचेगा नहीं।

फोर्टिफाइड चावल पर सरकार का पक्षः

भारत सरकार के स्वास्थ्य विभाग के अनुशार भारत में काफी महिलायें और बच्चे कुपोषण के शिकार हैं। खाद्य मंत्रालय के मुताबिक देश में हर दूसरी महिला एनीमिक और हर तीसरा बच्चा अविकसित हैं। भारत 116 देशों के ग्लोबल हंगर इंडेक्स(सीएचआई) 2021 में 101 वें स्थान पर फिसल गया है, जो 2020 में 94वें स्थान पर था। सरकार ये मानती है कि भारत के प्रमुख खाद्य पदार्थों में चावल है, जिसका उपयोग देश की दो-तिहाई आबादी करती है। साथ ही भारत में प्रति व्यक्ति चावल की खपत 6.8 किलोग्राम प्रतिमाह है। इसलिए चावल में ही पोषक तत्वों को मिला देने से कुपोषण और एनिमिया से पीड़ित लोगों की संख्या कम किया जा सकता है, इसलिए सूक्ष्म पोषक तत्वों के साथ चावल को मजबूत करना गरीबों के आहार को पूरक करने का एक विकल्प है।

फोर्टिफाइड चावल खिला कर जनता के स्वास्थ्य से खिलवाड़ करना बंद करे झारखंड सरकारः

बीते दिनों फोर्टिफाइड चावल मामले में रोजी-रोटी अधिकार अभियान और अलायंस फॉर सस्टेनेबल एंड होलिस्टिक एग्रीकल्चर की टीम द्वारा झारखंड में 3 दिवसीय फैक्ट फाईंडिंग किया गया था। इस टीम में सार्वजनिक स्वास्थ्य विशेषज्ञ डा. वंदना प्रसाद, कविता कुरुंगती, झारखंड में भोजन का अधिकार अभियान से जुड़े बलराम और जेम्स हेरेन्ज, ग्रीनपीस इंडिया से रोहित कुमार, आशा किसान स्वाराज से सौमिक बनर्जी, रोजी रोटी अभियान-राष्ट्रीय सचिवालय के राज शेखर सिंह शामिल थें। टीम ने अपनी जांच में पाया था कि, फोर्टिफाईड चावल एनीमिया से निपटने में सक्षम है, इसका कोई प्रमाण सरकार के पास मौजूद नही है। केन्द्र सरकार ने पायलट अवधि के तीन साल पुरा होने से पहले ही बिना मुल्याकंन और निष्कर्षों के सार्वजनिक रुप से देश के 257 जिलों में फोर्टिफाईड चावल का वितरण करना शुरु करवा दिया। झारखंड में भी सरकारी पोर्टल पर उपलब्ध अधिकारिक आंकड़ों से पता चलता है कि पूर्वी सिंहभूम जिला के दो प्रखंडों में अक्टूबर-2021 से फोर्टिफाइड चावल का वितरण किया जा रहा है। हलांकि अन्य जिलों की जानकारी पोर्टल में साझा नही है। वर्तमान में झारखंड के कई जिलों में फोर्टिफाईड चावल का वितरण जारी है। ऐसे में सवाल ये खड़ा होता है कि, पायलट उतारने का मक्सद क्या था? जब इसे बिना स्वास्थ्य पर हुए नफा-नुकशान का आंकलन किये बगैर ही उतार दिया गया।

थैलेसीमिया और सिकल सेल पीड़ितों को चिकित्सकों की सलाह पर ही दिया जाना है फोर्टिफाइड चावलः  

फैक्ट फाईंडिंग टीम ने इस बात पर जोर दिया है कि, झारखंड में एनीमिया का उच्च स्तर होने के बावजुद, जिसमें मुख्यतः आदिवासी जनसंख्या है और जिनमें थैलेसीमिया और सिकेल सेल जैसे गंभीर रक्त विकार मौजुद है, वहां आयरन फोर्टिफाईड चावल एनीमिया और कुपोषण से लड़ने का सही उपाय नही है। हकीकत में फोर्टिफाईड चावल पर एफएसएसएआई(FSSAI)के नियमों के अनुशार अनिवार्य चेतावनी वाली लेबलिंग देने का प्रावधान है, जिसमें स्पष्ट रुप से ये लिखा है कि, थैलेसीमिया और सिकल सेल बीमारी से ग्रसीतों को बिना चिकित्सक के सलाह पर फोर्टिफाइड चावल ना दिया जाए।

थैलेसीमिया और सिकल सेल से पीड़ित मरीजों का नही है कोई सरकारी आंकड़ाः

झारखंड में अधिकारिक तौर पर सरकार के पास थैलेसीमिया और कुपोषण के शिकार लोगों का कोई आंकड़ा मौजुद नही है। कई लोग थैलेसीमिया और सिकल सेल के शिकार हैं, लेकिन जांच नही हो पाने के कारन इससे पीड़ित लोगों को इस बारे में जानकारी ही नही है, ऐसे में हर व्यक्ति को फोर्टिफाइड चावल देना, जानबुझ कर उन्हें मौत के मुंह में धकेलने जैसी बात होगी।

प्रमाणित तरीकों पर ध्यान केन्द्रीत करना होगाः

जांच टीम ये मानती है कि एनीमिया और कुपोषण की स्थिति से प्रभावी तरीके से निपटना होगा। खाद्य फोर्टिफिकेशन के माध्यम से जल्दबाजी एवं जोखिम फरे अप्रमाणित तरीकों पर ध्यान केन्द्रीत करने से आहार विविधता के महत्व को दरकिनार करना सही नही है। नागरिक सामाजिक संगठनों ने अपने पूर्व के कई पहलों से ये प्रदर्शित किया है कि, समग्र रुप से कुपोषण की समस्या से निपटने के लिए कई प्रभावी तरीके हैं। विभिन्न खाद्य पदार्थों के साथ-साथ स्थानीय समुदाय के नेतृत्व वाले दृष्टिकोण में सहभागी शिक्षा एक महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं। सरकार को खाद्य योजनाओं में बाजरा, दाल, अंडे, खाद्य तेल और दूध को शामिल करने के लिए अपनी खाद्य सुरक्षा टोकरी में विस्तार करना होगा। पोषण उद्यानों को व्यापक पशुधन प्रणालियों के समर्थन के साथ बढ़ावा दिया जाना चाहिए, जो पोषण प्रदान करने के साथ-साथ आजीविका का समर्थन करती है। इसके अलावा टीम सरकार से ये मांग करती है कि, एक अच्छी तरह से प्रबंधित सुक्ष्म पोषक तत्व पूरक कार्यक्रम, ऐसे सुक्ष्म पोषक तत्वों की आपूर्ति के साथ सुचारु रुप से चलाए जा सकते हैं, जो अंतिम मील वितरण सुनिश्चित करने में सक्षम हो।

 

By taazakhabar

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