2014 में तीन बच्चों से शुरु किया गया रात्रि पाठशाला, वर्तमान में झारखंड के तीन जिलों के 97 केन्द्रो में लगभग 5000 बच्चों को कर रहा है निःशुल्क शिक्षित….

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रिपोर्ट- संजय वर्मा…
रांचीः 2014 में मात्र 3 बच्चों के साथ राजधानी रांची मुख्यालय से लगभग 25 किलोमीटर दूर स्थित उचरी गांव में रात्री पाठशाला का पहला केन्द्र खोला गया था, लेकिन मात्र 7 साल बाद झारखंड के तीन जिले, रांची, लोहरदगा और गुमला में रात्रि पाठशाला के 97 केन्द्रों में लगभग 5000 गरीब बच्चे निःशुल्क शिक्षा प्राप्त कर रहे हैं और लगभग 400 शिक्षित छात्र-छात्राएं देश के भविष्य निर्माण में निःशुल्क अपना बहुमुल्य योगदान दे रहे हैं। परिषद् द्वारा संचालित रात्री पाठशाला में बच्चों को सिर्फ शिक्षित ही नहीं किया जाता, बल्कि बच्चों के बौद्धिक विकास, सामाजिक और सांस्कृतिक समझ को भी बढ़ाने का काम किया जाता है।

कुछ इस तरह हुई रात्रि पाठशाला की शुरुआतः

उचरी स्थित रात्रि पाठशाला केन्द्र के प्रभारी सह प्रथम शिक्षक, अनिल उरांव बताते हैं, कि आपीएस की नौकरी से वालेंटरी रिटायरमेंट लेने के बाद, डा अरुण उरांव रांची के हेहल स्थित अखिल भारतीय आदिवासी विकास परिषद् के केन्द्र में बच्चों को पढ़ाने के साथ-साथ कंप्यूटर की भी शिक्षा दिया करते थें। मैं मैट्रिक की परीक्षा पास करने के बाद उनके पास कंप्यूटर की पढ़ाई करने के लिए जाया करता था। एक दिन अरुण सर ने मुझ से गांव की समस्या के बारे में पुछा, इसके बाद अरुण सर स्वयं उचरी गांव पहुंचे और वहां के हालात देख कर कहें, कि इन समस्याओं का एक ही समाधान है “शिक्षा”। चुंकि यहां के लोग काफी गरीब हैं, कोई दिन भर खेतों में काम करता है, कोई मजदूरी करने शहर में चले जाते हैं और कुछ बच्चों के माता-पिता तो दूसरे प्रदेशों में जा कर मजदुरी करते हैं। कुछ बच्चे सरकारी स्कूलों में जाते जरुर हैं, लेकिन सही तरीके से पढ नही पाते हैं, इसलिए क्यों ना यहां बच्चों को निःशुल्क शिक्षा प्रदान किया जाए। बस यहीं से शुरुआत हो गई रात्रि पाठशाला की। अरुण सर के मार्गदर्शन में मैंने तीन बच्चों से रात्रि पाठशाला आरंभ कर दिया, और वर्तमान में सिर्फ उचरी गांव के रात्रि पाठशाला केन्द्र में 150 से भी अधीक बच्चे निःशुल्क शिक्षा ग्रहण कर रहे हैं। इस कार्य में गांव के ही कुछ पढ़े लिखे छात्र-छात्राएं भी योगदान दे रहे हैं।

डा. अरुण उरांव ने उठाया अखिल भारतीय आदिवासी विकास परिषद् के बैनर तल्ले समाज के गरीब, शिक्षा से वंचित बच्चों को शिक्षित करने का बीड़ाः

डा. अरुण उरांव किसी पहचान के मोहताज नही है। एमबीबीएस, आईपीएस, और बेहतर स्पोर्ट पर्सन के साथ-साथ एक कुशल राजनीतिज्ञ के रुप में भी इनकी पहचान है। डा. अरुण उरांव, पंजाब में आईजी रहने से पूर्व भारत के चार-चार प्रधानमंत्री, स्वर्गीय राजीव गांधी, स्वर्गीय चन्द्रशेखर, स्वर्गीय बी.पी. सिंह और पी.बी. नरसिम्हा राव के चिकित्सा टीम में वरीष्ठ चिकित्सा पदाधिकारी के पद पर रह चुके हैं। वहीं झारखंड में स्पोर्टस को बढावा देने में इनका महत्वपूर्ण योगदान रहा है। डा. अरुण उरांव स्वयं भी एक बेहतर क्रिकेटर रह चुके हैं। आदिवासी समाज के पिछडेपन का मुख्य कारन डा. अरुण उरांव ने अशिक्षा पाया और इसे देखते हुए उन्होंने पढे-लिखे युवाओं को समुदाय के गरीब बच्चों को शिक्षित करने का आह्वान किया और लग गएं समाज को शिक्षित करने में। डा. अरुण उरांव और उनकी पत्नी गीताश्री उरांव ने कार्तिक बाबा के सपने को साकार करने के लिए दिन-रात मेहनत की, जिसका परिणाम है झारखंड के तीन जिलों में 97 रात्रि पाठशाला, जहां लगभग 400 शिक्षित छात्रःछात्राएं निःशुल्क अपना बहुमुल्य योगदान देते हुए लगभग 5000 गरीब बच्चों को शिक्षित कर रहे हैं।

रात्रि पाठशाला में बच्चों को निःशुल्क शिक्षा के साथ-साथ बौद्धिक, सामाजिक और सांस्कृतिक चेतना विकसित करने में भी दिया जाता है जोरः

अखिल भारतीय आदिवासी विकास केन्द्र के रात्रि पाठशालाओं में सिर्फ बच्चों को शिक्षा का ही ज्ञान नही दिया जाता, बल्कि उनके बौद्धिक विकास के साथ-साथ सामाजिक, सांस्कृतिक समझ को भी बढ़ाई जाती है। जिन-जिन गांवों में रात्रि पाठशाला संचालित है, वहां बच्चों के अभिभावकों के साथ हर तीन माह पर बैठकें आयोजित की जाती है, जिसमें डा. अरुण उरांव और परिषद् की प्रदेश अध्यक्ष, गीताश्री उरांव भी मौजुद रहती हैं। इन बैठकों में बच्चों की शिक्षा के साथ-साथ परिवार की स्थिति और गांव की समस्याओं पर भी चर्चा की जाती है। समस्याओं को जानने के बाद, उन समस्याओं का निराकरण भी परिषद् द्वारा किया जाता है।

रात्रि पाठशाला का संचालन किसी अखड़ा या सामुदायिक भवन में किया जा रहा हैः

झारखंड के तीन जिलों में परिषद् दवारा जो 97 रात्रि पाठशाला केन्द्रों का संचालन किया जा रहा है, वो किसी अखड़ा या सामुदायिक भवन में किया जा रहा है। अखडा गांव का वो स्थल होता है, जहां आदिवासी समाज के लोग गांव के किसी मुद्दे को लेकर बैठक या कोई सांस्कृतिक कार्यक्रम आयोजित करते हैं। इसी तरह सामुदायिक भवन का उपयोग समुदाय के किसी कार्य के लिए किया जाता है, जिसमें समुदाय के सभी लोग शामिल होते हैं।

समय-समय पर रात्रि पाठशाला के शिक्षकों के लिए कार्यशाला भी आयोजित किया जाता हैः

अखिल भारतीय आदिवासी विकास परिषद् द्वारा संचालित कूल 97 केन्द्रों में लगभग 400 शिक्षित छात्र-छात्राएं गरीब बच्चों को शिक्षित करने में लगे हुए हैं। चुंकि ये लोग प्रशिक्षित शिक्षक नही है, इसलिए ग्रामीण, गरीब बच्चों को कैसे अच्छी शिक्षा दी जा सके, इसके लिए इन छात्र-छात्राओं के लिए कार्यशाला का भी आयोजन परिषद् द्वारा किया जाता है। इन कार्यशालाओं में समाज के बुद्धिजीवि, नौकरी-पेशा लोग निःशुल्क सेवा देने वाले छात्र-छात्राओं को प्रशिक्षण देने का काम करते है, जिससे इन शिक्षित छात्र-छात्राओं को बच्चों को पढ़ाने में काफी सुविधा होती है।

कुछ केन्द्रों में डिजिटल क्लास भी चलाई जा रही हैः

परिषद् द्वारा कुछ रात्रि पाठशाला केन्दों में कंप्यूटर और प्रोजेक्टर मुहैया करवाया गया है, जिससे गरीब, वंचित वर्ग के बच्चे भी अब परिषद् के माध्यम से डिजिटली शिक्षा प्राप्त करने लगे हैं। यहां बच्चों को उन विषयों की पढ़ाई पर ज्यादा जोर दिया जाता है, जिस पर अमुमन बच्चे काफी कमजोर होते हैं, जैसे गणित, अंग्रेजी और विज्ञान।

बच्चों के बौद्धिक विकास के लिए सेवा भाव से भी कुछ लोग अपनी सेवा दे रहे हैः

समय-समय पर रात्रि पाठशालाओं में कुछ गणमान्य लोग, जो सेवा कार्य से भी जुड़े हुए हैं, वे अपना योदगान केन्द्रों में जा कर देते रहते हैं। बिते दिनों नैदानिक मनोवैज्ञानिक, डा. अनुराधा वत्स ने उचरी स्थित रात्रि पाठशाला केन्द्र मे जाकर बच्चों का ज्ञानवर्द्धन किया। डा. अनुराधा ने बच्चों को बताया कि अगर आप कुछ अच्छा करते हैं, जिसके लिए आपको शाबासी मिलती है, तो उसके लिए सबसे पहले आप अपने आप को थैंक्स बोलिए। क्योंकि आपने अच्छा कार्य किया, तभी आपको शाबासी मिली। वहीं डा. अनुराधा ने बच्चों को ये भी बताया, कि मोबाईल का उपयोग कम से कम करना चाहिए। अगर आपलोगों को कुछ जानना है, तो आप अपने अभिभावक, शिक्षक या किसी और से पुछें, लेकिन मोबाईल पर निर्भर नही रहें। बौद्धिक विकास के लिए लोगों से बातचीत करना काफी जरुरी है। पूर्व के कई उदाहरण देते हुए उन्होंने बताया कि, पहले मोबाईल नही हुआ करता था, लेकिन लोगों में बौद्धिक ज्ञान काफी ज्यादा थी। मोबाईल का ज्यादा उपयोग करने से हम सभी कई तरह की बीमारियों से भी ग्रसित हो जाते हैं और हमारे व्यवहार मे भी चिड़चिडापन आ जाता है।

कूल मिला कर अखिल भारतीय आदिवासी विकास परिषद् बच्चों के भविष्य निर्माण में अहम योगदान दे रहा है। परिषद् के कार्यों की जितनी भी सराहना की जाए, कम है।

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