लॉक डाउन के कारन लगभग 10 करोड़ वन क्षेत्र के निवासी 6 माह के आय से हुए वंचित…

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रिपोर्ट- संजय वर्मा…

रांचीः सामान्यतः लोग ये मान रहे हैं, कि कोरोना महामारी को लेकर देश में लागू लॉक डाउन का असर गरीब, दिहाड़ी मजदूर और मीडिल क्लास के लोगों पर ज्यादा पड़ा है। लेकिन उस तबके की ओर किसी का ध्यान नही गया, जो वन उत्पादों को बेच कर पूरे 6 माह तक अपना एवं अपने परिवार वालों का भरन-पोषण करते हैं….जी हां, हम बात कर रहे हैं वन क्षेत्र में रहने वाले लोग और ग्रामीण आदिवासियों की जो महुवा, ईमली, लाह, करंज, कुसूम, केन्दू पत्ता सरैय फूल और जंगल में मिलने वाले फलों की बिक्री कर अपने लिए दो वक्त का भोजन, बच्चों के लिए शिक्षा और अन्य उपयोगी सामानों का जुगाड़ करते हैं।

वन क्षेत्र मे रहने वाले लोग और आदिवासियों पर लॉक डाउन का पड़ा व्यापक प्रभावः

सरकारी आंकड़ों के अनुसार लगभग 10 करोड़ वनक्षेत्र में रहने वाले लोग, वन उत्पादों की बिक्री कर नगद आय प्राप्त करते हैं। इस नगद राशि से ही ये लोग अपने जरुरत के सभी सामानों की खरीद कर पाते हैं, यानि पूरे 6 माह का खर्च ये लोग वन उत्पादों की बिक्री कर ही प्राप्त करते हैं। अप्रैल से जून माह तक वनों में निवास करने वाले लोग महुआ, ईमली, केन्दू पत्ता, करंज लाह, सरैय फूल ईत्यादी जंगलों से संग्रह करते हैं, फिर इसकी बिक्री कर नगद राशि प्राप्त करते हैं, लेकिन कोरोना महामारी को लेकर देश भर में लागू लॉक डाउन के कारन वन क्षेत्र में रहने वाले लोग नगद आय से इस बार पूरी तरह वंचित हो चुके हैं, जिसका वन क्षेत्र के निवासियों पर लंबे समय तक व्यापक असर देखने को मिलेगा।

लॉक डाउन के कारन जेएसएलपीएस का लाभ ग्रामीणों को नहीं मिलाः

ग्रामीण क्षेत्रों में जेएसएलपीएस, वन धन विकास बैंक और पी.जी. ग्रुप के माध्यम से वन उत्पादों की खरीद करती है, लेकिन लॉक डाउन लागू हो जाने के बाद से जेएसएलपीएस के इन सभी समुहों की पहुंच वन क्षेत्र में रहने वाले लोगों तक नही रही, जिसके कारन ये लोग अपने वन उत्पादों की बिक्री सही मुल्यों पर नहीं कर सकें।

औने-पौने मुल्यों पर ग्रामीण वन उत्पाद बेचने के लिए हो चुके हैं विवशः

बिते सप्ताह हमारी टीम ने झारखंड के कई जिलों का दौरा किया, और वन क्षेत्र के निवासियों से इस मुद्दे पर बात की। इनकी मानें तो लॉक डाउन के कारन जंगलों से जमा किया गया उत्पाद अब भी घरों में ही पड़ा हुआ है। हमलोग इसे बेचने के लिए बाजार या शहर तक नही जा पा रहे हैं। बाहर से कुछ व्यापारी उत्पाद खरीदने के लिए गांव में आ रहे हैं, लेकिन उचित मुल्य नही देते हैं। इससे हमलोगों को काफी नुकसान हो रहा है।

लॉक डाउन का धान और अन्य फसलों की खेती पर भी पड़ेगा प्रभावः

ग्रामीण बताते है कि वन उत्पादों की बिक्री करने से जो नगद राशि प्राप्त होती है, उसी से धान या अन्य फसलों की खेती के लिए खाद-बीज और कृषि कार्य में उपयोग होने वाले वस्तुओं की खरीद करते हैं, लेकिन इस बार वन उत्पादों की बिक्री उचित मुल्य पर नही होने के कारन आर्थिक नुकसान काफी ज्यादा हुआ है, जिसका प्रभाव मॉनसून के दौरान किए जाने वाले खेती पर पड़ेगा, साथ ही भोजन और रहन-सहन का स्तर भी गिरेगा। एक किसान ने मिट्टी का धंसा हुआ घर दिखाते हुए कहा कि लाह और करंज बीज बेच कर जो पैसा मिलता उससे घर का मरम्मत करवाने का सोंचे थें, लेकिन अब ये मुमकिन होता नही दिख रहा है। इतने कम पैसे से भोजन सामाग्री खरीदेंगे, धान रोपेंगे या घर का मरम्मत करवाएंगे।

वन क्षेत्र के लोगों को सरकारी मदद की जरुरतः 

वन क्षेत्र के निवासियों की समस्या देखने के बाद ये स्पष्ट हो चुका है, कि लॉक डाउन के कारन इनकी आर्थिक स्थिति काफी कमजोर हो चुकी है, ऐसे में जरुरत है सरकार को वन क्षेत्र में रहने वाले लोगों पर विशेष ध्यान देने की, अन्यथा पलायन ही इनके समक्ष एकमात्र विकल्प बचता है।

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