जमाअत इस्लामी हिन्द यूनिट चकला के तरफ़ से 25 जरुरत मंदों को इफ़्तार किट्स का वितरण किया गया.

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रिपोर्ट- इमामुल हक़, चकला, रांची…..

रांचीः आज दिनांक 13/04/2023 को जमाअत इस्लामी हिन्द यूनिट चकला के तरफ़ से 25 जरुरत मंदों को इफ़्तार किट्स का वितरण किया गया। इस मौके पर अमीर-ए-मुक़ामी जनाब इसराईल अंसारी साहब, मिडिया प्रभारी इमामुल हक़, अब्दुल कय्यूम और जाबीर अंसारी मौजूद थे ।

रोज़ा हर उम्मत पर रोजा़ फ़र्ज़ किया गयाः

रोजा़ से मुराद यह है कि सुबह से शाम तक आदमी खाने-पीने और सहवास से परहेज़ करे। इस्लाम का असल मक़सद इनसान की पूरी ज़िंदगी को अल्लाह की इबादत बना देना है।

रोज़ा मुकम्मल इबादत हैः

रोज़ा ईमान की मज़बूती की अलामत हैं। रोज़ा एक माह की लगातार ट्रेनिंग है। रोजा़ सामोहिक माहौल बनाता है। रोजा़ परहेज़गार बनने का जरिया है। रोजा़ का असल मक़सद झूठ से बचना है। गुनाहों से बचने की ढाल है। जिसने रमज़ान में किसी रोज़ेदार को इफ़तार कराया तो यह उसके गुनाहों की बख़्शिश का जरिया है‌। जनसेवा का मौका मिलता है और गरीबों की सेवा करने का मौका मिलता है।

# क़ुरआन सारांश (ख़ुलासा क़ुरआन)

بِسْمِ اللَّهِ الرَّحْمَٰنِ الرَّحِيمِ

(अल्लाह के नाम से जो बड़ा कृपाशील, अत्यन्त दयावान है

पारा  (22)  व मन यक़नुत

(1) सूरह अल अहज़ाब (बाक़ी हिस्सा)

(2) सूरह सबा मुकम्मल

(3) सूरह फ़ातिर मुकम्मल

(4) सूरह यासीन (इब्तेदाई हिस्सा)

सूरह (033) अल अहज़ाब (बाक़ी हिस्सा)

(i) उम्महातुल मोमेनीन के लिए सात अहकाम

लेकिन इसके मुख़ातिब सभी औरतें है यह आम (general) हुक्म भी है।

  • नज़ाकत (नरमी) के साथ बात न करें।
  • बिना अति आवश्यक ज़रूरत के घर से बाहर न निकलें।
  • ज़माना जाहिलियत की औरतों की तरह बनाव सिंगार और अपने सतर को ज़ाहिर करते हुए बाहर न निकलें।
  • नमाज़ की पाबंदी करें
  • ज़कात अदा करें
  • अल्लाह और उसके रसुल की इताअत करें
  • क़ुरआन की तिलावत किया करें। (34)

(ii) जिस के अंदर यह दस सिफ़ात हों उसके लिए जन्नत की ख़ुशख़बरी

1, मुस्लिम होना. 2, मोमिन होना. 3, फ़रमाबरदारी. 4, सच्चाई. 5, अल्लाह का ख़ौफ़. 6, सदक़ा करना. 7, सत्यवादी (रास्तबाज़ी). 8, सब्र. 9, शर्मगाह (secret parts) की हिफ़ाज़त. 10, अल्लाह का ज़िक्र  (35)

(iii) नबी के फ़ैसले के बाद किसी को कोई इख़्तियार नहीं

किसी मोमिन मर्द या किसी मोमिन औरत के लिए जाएज़ हो नहीं है कि जब अल्लाह और उसके रसूल कोई फ़ैसला कर दें तो उनको अपने उस काम (के करने न करने) का इख़्तियार हो। और जिसने भी अल्लाह और उसके रसूल की नाफ़रमानी की वह यक़ीनन खुली हुई गुमराही में जा पड़ा। (आयत 36)

(iv) ज़ैनब बिन्ते जहश का निकाह

नबी सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने एक जाहिली क़ौमी घमंड को उस वक्त तोड़ा था जब आपने अपनी फुफीज़ाद बहन ज़ैनब बिन्ते जहश का निकाह अपने आज़ाद किये हुए ग़ुलाम ज़ैद बिन हारिसा से करा दिया। लेकिन दोनों में निबाह न हो सका और उनके दरमियान जुदाई हो गई। अब जाहिली दस्तूर के मुताबिक़ नबी सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम से उनका निकाह नहीं हो सकता था क्योंकि वह मुंह बोले बेटे की बीवी बन चुकी थीं। चुनाँचे इस जाहिली तस्व्वुर को भी तोड़ा गया और अल्लाह ने आप को निकाह का हुक्म दिया और आप ने उनसे निकाह कर लिया। (37)

कशफुल महजूब (शैख़ अली हुजैरी) और क़ससुल अंबिया (ग़ुलाम नबी बिन इनायतुल्लाह) में लिखा हुआ है कि नबी सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने एक बार  ज़ैनब को देख लिया और आप के मन में ख़्याल आया जब ज़ैद को यह पता चला तो उन्होंने ने ज़ैनब को तलाक़ दे दिया। और आपने शादी कर ली (نعوذباللہ من ذالك  यह एक इल्ज़ाम है ऐसी बातों से हम अल्लाह की पनाह चाहते हैं) यह मालूम होना चाहिए कि ज़ैनब बिन्ते जहाश कोई और नहीं थीं बल्कि आप सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम की फूफी उमैमा बिन्ते अब्दुल मुत्तलिब रज़ियल्लाहु अन्हा की बेटी थीं, उनकी पूरी ज़िंदगी आप के सामने गुज़री थी। इसलिए देख कर आशिक़ होने का सवाल ही पैदा नहीं होता।

(v) मुहम्मद सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम आख़िरी नबी हैं

مَّا كَانَ مُحَمَّدٌ أَبَآ أَحَدٖ مِّن رِّجَالِكُمۡ وَلَٰكِن رَّسُولَ ٱللَّهِ وَخَاتَمَ ٱلنَّبِيِّ‍ۧنَۗ وَكَانَ ٱللَّهُ بِكُلِّ شَيۡءٍ عَلِيمٗا

मुहम्मद (सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम) तुम्हारे मर्दों में से किसी के बाप नहीं हैं बल्कि वह अल्लाह के रसूल और आख़िरी नबी हैं और अल्लाह को तमाम चीज़ों का इल्म है। (40) (अब जो भी अपने नबी होने का दावा करे वह झूठा होगा)

(vi) नबी की तारीफ़

  • अल्लाह खुद नबी पर दरूद (रहमत) भेजता है
  • फ़रिश्ते रहमत की दुआ करते हैं
  • ईमान की रौशनी
  • गवाह और ख़ुशख़बरी सुनाने वाला
  • अल्लाह के अज़ाब से डराने वाला।
  • दावत देने वाला और रौशन चिराग़ बनाकर भेजा है। (43 से 47)

(vii) नबी पर दरूद व सलाम का हुक्म

إِنَّ اللَّهَ وَمَلَائِكَتَهُ يُصَلُّونَ عَلَى النَّبِيِّ ۚ يَا أَيُّهَا الَّذِينَ آمَنُوا صَلُّوا عَلَيْهِ وَسَلِّمُوا تَسْلِيمًا

बेशक अल्लाह और उसके फरिश्ते नबी पर दुरूद भेजते हैं तो ऐ ईमान वालो तुम भी दुरूद व सलाम भेजते रहो। (आयत 56)

(viii) इंसान बड़ा ज़ालिम, जाहिल है

إِنَّا عَرَضْنَا الْأَمَانَةَ عَلَى السَّمَاوَاتِ وَالْأَرْضِ وَالْجِبَالِ فَأَبَيْنَ أَن يَحْمِلْنَهَا وَأَشْفَقْنَ مِنْهَا وَحَمَلَهَا الْإِنسَانُ ۖ إِنَّهُ كَانَ ظَلُومًا جَهُولًا

बेशक हमने (रोज़े अज़ल) अपनी अमानत को आसमान, ज़मीन और पहाड़ों के सामने पेश किया तो उन्होंने उसका बोझ उठाने से इंकार किया और डर गए और इंसान ने उसे उठा लिया बेशक इंसान (अपने हक़ में) बड़ा ज़ालिम और नादान है। (72)

(ix) कुछ अहम बातें

  • ले पालक को अपना नसब देना हराम है। (4, 5)
  • नबी मोमिनों पर उनकी जान से ज़्यादा अज़ीज़ हैं और उनकी बीवियां मोमिनों की माएं हैं। (6)
  • अल्लाह के रसूल की ज़िंदगी ही लोगों के लिए उसवा ए हसना (role model) है। (21)
  • हमबिस्तरी से पहले तलाक़ देने पर कोई इद्दत नहीं है। (49)
  • चाचा की बेटी, फूफी की बेटी, मामू की बेटी और ख़ाला की बेटी से शादी कर सकते हैं। (50)
  • पिता के घर, बेटों के घर, भाइयों के घर, भतीजों के घर, भांजों के घर और अपनी ससुराल में जाने की इजाज़त दी गई है। (55)
  • जो अल्लाह और रसूल को तकलीफ़ या दुख पहुंचाए उनपर दुनिया और आख़िरत दोनों में अल्लाह की लानत और अपमान करने वाला अज़ाब है। (57,58)

सूरह (034) सबा मुकम्मल

(i) तौहीद

आसमान, ज़मीन और तमाम चीज़ों का मालिक अल्लाह है, ज़मीन के अंदर क्या दाख़िल होता है, और उसमें से क्या निकलता है, आसमान से क्या उतरता है या उसपर चढ़ता है। सरसों के दाने से भी छोटी चीज़ हो या बड़ी सब अल्लाह के इल्म में है और किताब में दर्ज है। (1 से 3).

(ii) दाऊद और सुलैमान अलैहिमस्सलाम का वाक़िआ

दाऊद अलैहिस्सलाम के लिए अल्लाह ने लोहे को मोम की तरह नरम कर दिया था और हुक्म दिया कि वह कुशादा ज़िरह बनाएं और उसकी कड़ियों को मुनासिब अंदाज़ से लगाएं और साथ में ज़िक्र व तस्बीह भी करते रहें। अल्लाह ने उन्हें ऐसी दिलकश आवाज़ अता की थी कि पहाड़ और परिंदे भी अल्लाह के हुक्म से उनके साथ तस्बीह बयान करते थे।

अल्लाह ने हवा को सुलैमान अलैहिस्सलाम के अधीन कर दिया। उसकी सुबह की रफ़्तार एक महीने की होती थी और शाम की एक महीने की। तांबे को पिघला कर चश्मा जारी कर दिया। जिन्नों को उनके अधीन कर दिया था कि सुलेमान अलैहिस्सलाम को जो बनवाना मंज़ूर होता (जैसे) मस्जिदें, महल, क़िले और तस्वीरें और हौज़ों के बराबर प्याले या (एक जगह) गड़ी हुई (बड़ी बड़ी) देग़ें वग़ैरह, यह जिन्नात उनके लिए बनाते थे। (10 से 13).

(iii) जिन्नात को ग़ैब का इल्म नहीं

कुछ लोगों का ख़्याल है कि जिन्नात ग़ैब का इल्म जानते हैं तो क़ुरआन ने उसका खंडन करते हुए कहा “जब सुलेमान की मौत हो गई तो किसी को उनकी मौत का पता न चला। ज़मीन की दीमक सुलैमान की लाठी को खाती रही। फिर लाठी जब खोखली होकर टूट गई तो सुलैमान की लाश गिर पड़ी तब जिन्नों को सुलैमान अलैहिस्सलाम की मौत का पता चला। अगर वह लोग ग़ैबदां (ग़ैब के जानने वाले) होते तो फिर उनकी मौत से इतने लंबे समय तक बे ख़बर न रहते। (14)

(iv) क़ौमे सबा की तबाही

क़ौमे सबा को अल्लाह ने बड़ी नेअमतों से नवाज़ा था। उन के दोनों जानिब पहाड़ थे जहां से नहरें और चश्मे बह बह कर उनके शहरों में आते थे, उसी तरह नाले और दरया भी इधर उधर से आते थे। यमन की राजधानी सना से तीन मंज़िल दूर मआरिब में एक दीवार थी जो सददे मआरिब के नाम से मशहूर थी। पानी की कसरत और उपजाऊ ज़मीन होने की वजह से यह इलाक़ा बहुत हरा भरा रहता था। बाग़ों की इतनी कसरत थी कि क़तादह के ब क़ौल कोई औरत टोकरा सिर पर रख कर निकलती तो कुछ दूर जाने के बाद टोकरा फलों से भर जाता था। दरख़्तों से इतने फल गिरते थे कि हाथ से तोड़ने की ज़रूरत नहीं पड़ती थी लेकिन जब वहां के लोग अल्लाह के हुक्म की खुली नाफ़रमानी करने लगे तो बांध टूट के सैलाब आ गया। सारी नेअमतें ख़त्म हो गईं, पूरा इलाक़ा वीरान हो गया और झाड़ झनकार और कुछ बेरी के पेड़ के इलावा कुछ नहीं बचा। (15 से 18).

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(3) सूरह (035) फ़ातिर मुकम्मल

(i) तौहीद के दलाएल

  • ज़मीन व आसमान की तख़लीक़ (creation), फ़रिश्तों की ताख़ीक़ और उनके अक़्साम (दो दो, तीन तीन, चार चार और उस से भी ज़्यादा बाज़ुओं वाले), जिसके लिए रहमत के दरवाज़े खोल दे कोई बंद नहीं कर सकता और जिसका रोक ले कोई खोल नहीं सकता (1 से 3) ● इंसान की तख़लीक़ और ज़िन्दगी के मुख़्तलिफ़ मराहिल, (11)
  • जो लोग अल्लाह के साथ किसी को शरीक करते हैं तो वह शरीक खुजूर की गुठली की झिल्ली के बराबर भी इख़्तियार नही रखते। (13)
  • हक़ीक़त में अल्लाह ही आसमान और ज़मीन को थामे हुए है कि कहीं वह झूल ही न जाएं और अगर यह अपनी जगह से झूल जाएं तो फिर उसके सिवा कौन है जो उसे थाम सके। बेशक अल्लाह बड़ा बुर्दबार (और) बड़ा बख़्शने वाला है। (आयत 41)

(ii) रिसालत

नबी सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम को तसल्ली दी गयी है कि आप काफ़िरों के इंकार से घबराएं नहीं क्योंकि आप से पहले जितने रसूल आये हैं वह भी झुठलाए जा चुके हैं। इसलिए आप अपना काम जारी रखिये और रंजीदा मत हों। (4)

(iii) कभी एक जैसे नहीं हो सकते

जिस तरह मीठा और खारा पानी, अंधे और देखने वाले, अंधेरे और उजाले, धूप और छाया, ज़िन्दा और मुर्दा बराबर नहीं हो सकते ऐसे ही ईमान और कुफ़्र का बराबर होना भी कभी संभव नहीं। (12, 19 से 21)

(iv) अल्लाह की निशानियां

हवा, बारिश, मुर्दा ज़मीन को ज़िंदा करना, समुद्र में मीठे और खारे पानी को मिलाने के बावजूद अलग अलग रखना, ताज़ा गोश्त और ज़ेवर का हुसूल, रात को दिन में और दिन को रात में दाख़िल करना, सूरज और चांद को एक दायरे में कंट्रोल में रखना, वगैरह  (12, 19, 21)

(v) उलेमा कौन हैं?

  • जो अल्लाह से डरते हैं। ● अपने नफ़्स का तज़किया करते (पाक साफ़ रखते) हैं। ● अल्लाह की किताब की तिलावत (क़ुरआन को पढ़ते, समझते, उसे लोगों में फैलाते और उसी के अनुसार फ़ैसला) करते हैं। ● नमाज़ क़ायम करते हैं। ● अल्लाह ने जो कुछ दिया है उसमें से अल्लाह के रास्ते में खुले और छुपे तौर पर ख़र्च करते हैं। (18, 28, 29)

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(4) सूरह (036) यासीन, इब्तेदाई हिस्सा

सूरह के इब्तेदाई हिस्से का ज़िक्र भी अगले पारे में बाक़ी हिस्से के तहत होगा।

आसिम अकरम (अबु अदीम) फ़लाही

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