रांची मुख्यालय से दूरी मात्र 30 कि.मीटर, लेकिन खटिया और टोकरी में ढ़ोते हैं मरीज और पीते हैं नदी का पानी…

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रिपोर्ट- वसीम अकरम…

पतरातु घाटी के समीप स्थित है कई टोला.

टोलो तक पहुंचने के लिए नही है सड़क.

सिर्फ एक चापाकल, लेकिन वो भी है खराब.

नदी और दाड़ी का पानी पीने को विवश हैं 650 लोग.

पूर्व सांसद रामटहल चौधरी समस्या से अवगत होेने के बाद भी आंखें मोड़ ली.

राँची: राजधानी रांची से महज 30 किलोमीटर की दूरी पर स्थित है लगभग 150 आदिवासी परिवारों का गांव, जहां के लोग वर्तमान में भी अपने मरीजों को खटिया या टोकरी में ढ़ो मुख्य सड़क पर पहुंचते हैं, फिर मुख्य सड़क पर वाहन से अस्पताल तक का सफर तय करते हैं। जी हां हम बात कर रहे हैं, राँची मुख्यालय से मात्र 30 किलोमीटर की दूरी पर स्थित आदिवासी बहुल गांव की जहां के कोनकी, उरुगुट्टू और राढ़हा पंचायत के अंतर्गत कतरिया बेड़ा, महुवा जारा, धनकचरा, डरिया डेरा टोला की, जहां आज तक पहुंच पथ नही बना है, लोग पथरीले रास्ते, नदी-नालों को पास कर आना जाना करते हैं। इस गांव में बिजली पहुंच गई, लेकिन पीने की पानी नहीं, एक चापाकल है, लेकिन खराब पड़ा हुआ है। गर्मी के दिनों में यहां के लोग नदी नालों का पानी पी कर अपनी प्यास बुझाते हैं और बरसात के दिनों में टापू में कैद हो कर रह जाते हैं। गर्मी के दिनों में प्यास बुझाने के लिए यहां के लोगों को मीलों दूर का सफर पथरीले रास्ते पर चल कर तय करना पड़ता है, तब जाकर इनकी प्यास बुझ पाती है।

पूर्व के जनप्रतिनिधियों ने सिर्फ जनता को ठगा हैः ग्रामीण

टोले के लोगो की मानें तो पास के नदी या दाड़ी से हमलोग कपड़े से छान कर पानी पीते है। सड़क नही होने की वजह से गाड़िया नही चलती, जब गांव में कोई बीमार या प्रसव जैसी आपातकालीन स्थिति होती है तो उन्हें टोकरी के भार में 5 किलोमीटर दूर मुख्य सड़क पर ले जाया जाता है, जिसके बाद वाहन से अस्पताल पहुँचाया जाता है। गांव में मुखिया द्वारा हैंडपंप भी लगाया गया, लेकिन वो भी मरम्मती के अभाव में पिछले कई महिनों से बन्द पड़ा हुआ है। नेता लोग सिर्फ वोट के समय ही टोलों में नजर आते है, बड़े-बड़े वादे करते हैं फिर दुबारा कभी नजर नही आतें।

बरसात में 150 परिवार कैद हो जाते हैं टापू मेंः

मुख्य सड़क और टोलों के बीच एक बड़ी नदी है। कई बार जनप्रतिनिधियों के द्वारा सरकार से पुल निर्माण कराने का आग्रह कराया गया, लेकिन आज तक नदी पर पूल बनाने की दिशा में कोई कार्रवाई नही हुई। गर्मी में तो नदी पैदल पार हो जाते है, पर बरसात में पानी का बहाव बढ़ जाता है, जिससे आवागमन बिल्कुल बन्द हो जाता है। टोलों के अधिकतर लोग दिहाड़ी मजदूरी, खेती और सुखी लकड़ियां बेच कर ही अपना जीवन बसर करते है, लेकिन लॉकडाउन में सब बन्द हो गया है।  कुछ के पास तो राशनकार्ड है लेकिन बहुत से लोगो का राशनकार्ड अब तक नही बना है। जिस कारन ऐसे लोगों को दाने दाने के लिए तरसना पड़ रहा है।

जिला परिषद् सदस्य, हकीम अंसारी ने मुख्यमंत्री को समस्याओं से अवगत कराने का दिया आश्वासनः

समाचार संकलन के दौरान इस क्षेत्र के जिला परिषद् सदस्य, हकीम अंसारी ग्रामीणों के बीच खाद्य सामग्रियों का वितरण करने पहुचें, तभी ताजा खबर झारखंड की टीम ने हकीम अंसारी से क्षेत्र और क्षेत्र के लोगों की समस्या के बारे में बातचीत की। जीप सदस्य हकीम अंसारी ने बताया कि मैं पिछले 4 सालों से इस क्षेत्र का जनप्रतिनिधि हूं और लगातार यहां के लोगों के साथ खड़ा हूं। क्षेत्र की समस्या को लेकर कई बार  मैंने जिला परिषद् सदस्यों के साथ बैठक भी की है।  पूर्व सांसद सांसद रामटहल चौधरी को भी मैंने इस क्षेत्र का भ्रमण करवाया था ताकि वे यहां के लोगों की समस्याओं से रुबरु हो सकें, लेकिन उन्होंने भी यहां के लोगों की समस्याओं की ओर कोई ध्यान नहीं दिया। विकास से जुडे अधिकारियों के साथ भी पत्राचार किया जा चुका है, लेकिन वहां से भी कोई सहायता नही मिली । चुंकि जिला परिषद् सदस्यों को आज तक कोई पावर नही दिया गया है, जिसके कारन मैं चाह कर भी कुछ नही कर सका। लेकिन इनकी छोटी-छोटी समस्याओं का निदान में लगातार करता रहा हूं और आगे भी करता रहूंगा। राज्य सरकार को इस क्षेत्र में विशेष ध्यान देने की आवश्यकता है।

दिशोम गुरु और मुख्यमंत्री, हेमंत सोरेन से 150 परिवारों को है उम्मीद

झारखंड अलग राज्य का गठन ही आदिवासियों और क्षेत्र के विकास को लेकर किया गया था, लेकिन वर्तमान में इनके विकास का मुद्दा पूरी तरह गौण हो चुका है। इनके विकास के नाम पर सिर्फ राजनीति हो रही है। आदिवासियों की स्थिति आज भी जस की तस है। 20 साल बाद एक बार फिर राज्य के आदिवासी मुख्यमंत्री हेमन्त सोरेन से इन आदिवासियों को काफी उम्मीदें है। क्योंकि हेमन्त सोरेन और उनके पिता, दिशोम गुरु शिबू सोरेन हमेशा जल-जंगल और जमीन की बातें करते रहे है।

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