Categories
Education अपराध मुद्दा

जी.एस. पब्लिक स्कुल विद्यालय प्रबंधन समिति में अध्यक्ष पिता और पुत्र सचिव, शिक्षा अधिकार कानून के धारा 21 का खुला उल्लंघन : ओंकार विश्वकर्मा

ब्यूरो रिपोर्ट…

डोमचांच (कोडरमा) : डोमचांच स्थित ज्ञान सरोवर पब्लिक स्कुल में शिक्षा अधिकार कानून 2009 का पालन नहीं किया जा रहा है। स्कूल का ये मामला राष्ट्रीय बाल अधिकार संरक्षण आयोग नई दिल्ली में विचाराधीन है।  उक्त बाते मानवाधिकार कार्यकर्ता ओंकार विश्वकर्मा ने कही। ओंकार विश्वकर्मा ने बताया कि, विद्यालय को मान्यता मिलने के बाद, शिक्षा अधिकार कानून का पूर्ण रूपेन पालन करना अनिवार्य है।

विद्यालय के प्रबंधन समिति में अध्यक्ष के पद पर पिता प्रदीप सिंह और सचिव के पद पर पुत्र नितेश सिंह हैं काबिजः

आगे ओंकार विश्वकर्मा ने बताया गया कि इस पुरे मामले की क्रॉस जाँच मेरे द्वारा की गई थी, जिसमे यह पुष्टि हुआ था कि, उक्त विद्यालय शिक्षा अधिकार कानून का पालन नहीं कर रहा है। स्कूल में जिन बच्चों को निःशुल्क पढ़ाने की बात कही जा रही थी, जांच में ये पाया गया की बच्चों से शुल्क लिया जा रहा था। जिसके बाद माननीय आयोग ने पुनः उक्त विद्यालय के जाँच के आदेश दिए थे, जिस पर दिनांक 15 मई 2023 को उपायुक्त, कोडरमा द्वारा आयोग को सौंपे गए रिपोर्ट से इस बात की पुष्टि हुई है कि, उक्त विद्यालय के प्रबंधन समिति में अध्यक्ष के पद पर प्रदीप सिंह एवं सचिव के पद पर नितेश सिंह है जो रिश्ते में पिता और पुत्र हैं, जो शिक्षा अधिकार कानून 2009 के धारा 21 का उलंघन है। अधिनियम की धारा 21 के तहत खून के रिश्ते के लोग पद पर सदस्य नहीं हो सकते हैं।

कोडरमा उपायुक्त द्वारा बाल संरक्षण आयोग को सौंपा गया जांच प्रतिवेदन का पत्र.

स्कूल में कई ऐसे शिक्षकों का नाम दिया गया है, जो दुसरे राज्यों में काम कर रहे हैः

विद्यालय प्रबंधक ने इस बात की जानकारी नहीं दी है, कि उनके विद्यालय में कितने बच्चे शिक्षा प्राप्त कर रहे है और कितने बच्चे शिक्षा अधिकार कानून के सेक्शन 12 (1) (c) के तहत नि:शुल्क शिक्षा प्राप्त कर रहे है। वहीं स्कूल में कई ऐसे शिक्षकों का नाम दिया गया है, जो दुसरे राज्यों में काम कर रहे है, और उनका नाम विद्यालय के शिक्षण कार्य में दिखाया गया है

क्या कहता है शिक्षा अधिकार कानून का धारा 12 (1) (c)

शिक्षा अधिकार कानून के धारा 12 (1) (c) कहता है कि गैर अल्पसंख्यक निजी गैर सहायता प्राप्त स्कूल ऐसे बच्चों को जो आर्थिक रूप से कमजोर वर्ग से हैं और शिक्षा से वंचित हैं ऐसे बच्चों को प्रवेश स्तर ग्रेड में कम से कम 25 प्रतिशत सीटों को आरक्षित किया जाए, और वर्ग 8 अर्थात 14 वर्ष के उम्र तक के बच्चों को नि:शुल्क शिक्षा प्रदान की जाए|

Categories
Education अपराध

कांके के उरुगुट्टू स्थित स्कूल में छात्रों से ढुलवाया जा रहा था ईंट, एक छात्र गंभीर रुप से हुआ घायल, अस्पताल में चल रहा है ईलाज…

रिपोर्ट- वसीम अकरम…

राँची(कांके प्रखण्ड)- कांके प्रखंड के ऊरगुट्टू पंचायत स्थित राज्यकृत उत्क्रमित मध्य विद्यालय के 8वीं कक्षा का छात्र साहिल अंसारी शनिवार को बेहोशी की हालत में स्कूल में पाया गया। बच्चे के चेहरे और सर में चोट का निशान है। स्थानीय लोगों से बच्चे के अभिभावक को जानकारी मिली कि उनका बच्चा स्कूल में बेहोश पड़ा हुआ है, जिसके बाद बच्चे के अभिभावक ने स्कूल पहुंच कर बच्चे को अस्पताल में भर्ती करवाया, जहां बच्चे का ईलाज चल रहा है।

खबर लिखे जाने तक छात्र का उपचार अस्पताल में चल रहा है, लेकिन बच्चे को अब तक होंश नही आया था। छात्र साहिल अंसारी के चेहरे पर गंभीर चोट के निशान है। बच्चे के पिता आलम अंसारी ने स्कूल के प्रधानाध्यापिका अंजना ज्योत्सना बाड़ा पर आरोप लगाते हुवे कहा कि, रोजाना की तरह वह स्कूल गया हुआ था। सुबह साढ़े नौं से दस बजे के बीच गांव वालों से सूचना मिली कि आपका बेटा स्कूल में जख्मी हालत में बेहोश पड़ा है। हम लोग तुरंत स्कूल पहुंचे, तो देखा कि मेरा बेटा स्कूल में बेहोश पड़ा हुआ है। जब पता किया तो पता चला कि स्कूल में बाथरूम का रिपेयरिंग का काम चल रहा है। और इसी कार्य के लिए बच्चों से ईंट ढुलवाया जा रहा था। ईंट ढोने के क्रम में ही मेरा बेटा गीर कर गंभीर रुप से घायल हो गया और अपनी होंश खो बैठा। मैंने कुछ लोगों के सहयोग से बच्चे को नजदिकी अस्पताल में भर्ती करवाया है, जहां वो अब तक बेहोश है।

बच्चा कक्षा से भाग गया थाः प्रधानाचार्या

इस घटना के बारे में जब स्कूल की प्रधानाचार्या से जब जानकारी लिया गया, तो उन्होंने कहा कि यह हादसा स्कूल में नहीं हुआ है। स्कूल से छात्र भाग गया था और साइकिल चलाने के दौरान बाहर बेहोश होकर पड़ा हुआ था।

अपनी जिम्मेवारी से मुकर नही सकती प्रधानाचार्याः

घटना कैसे हुई? ये जांच का विषय है। चुंकि घटना छात्र के स्कूल में जाने के बाद हुई है और प्रधानाचार्या का ये कह कर पल्ला झाड़ना कि बच्चा स्कूल से भाग कर साईकिल चलाने के दौरान चोटिल हुआ है, तो फिर आप स्कूल में किस काम के लिए बैठी हुई हैं। बच्चे बढ़ाई के दौरान अगर स्कूल से भाग जा रहे हैं, तो उन्हें कक्षा के अंदर रखना, ये किसकी जिम्मेदारी है?  इसलिए मामले की गंभीरता से जांच होनी चाहिए और दोषियों पर कठोर कार्रवाई, ताकि इस तरह के घटना क पुनर्रावृति ना हो।

Categories
Education ब्रेकिंग न्‍यूज

पिठोरिया के 6 युवाओं ने रेलवे की परीक्षा में किया शानदार प्रदर्शन, सफलता में स्वर्गीय बी.पी. केशरी का महत्वपूर्ण योगदान…

रिपोर्ट- वसीम अकरम…

रांची(कांके प्रखंड)- पिठोरिया के 6 युवाओं ने एक साथ रेलवे की परीक्षा में उत्तीर्ण हो कर पुरे कांके प्रखंड में इतिहास रचने का कार्य किया है। भारतीय रेलवे की परीक्षा में पिठोरिया के छ: छात्रों ने सफलता प्राप्त कर रेलवे की नौकरी ज्वाईन कर लिया है। पिठोरिया के धीरज कुमार साहू (रेलवे स्टेशन मास्टर), शुभम कुमार, राकेश कुमार बैठा, धनंजय लहकार (तीनों रेलवे गुड्स गार्ड) बसंत केसरी और अर्चना कुमारी (दोनों रेलवे ट्रैक मेंटेनर) के पद पर रेलवे की नौकरी में योगदान दे चुके हैं।

सफल छात्रों के अभिभावक और क्षेत्र के लोगों में खुशी की लहारः

गौरतलब है कि ये सभी छात्र नागपुरी संस्थान, शोध एवं प्रशिक्षण केंद्र पिठोरिया में नियमित अध्ययन कर इस सफलता को प्राप्त किए हैं। छात्रों की इस सफलता पर पूरे पिठोरिया क्षेत्र में खुशी की लहर है और अभिभावक गौरवान्वित महसूस कर रहे हैं। नागपुरी संस्थान की ओर से इनके उज्जवल भविष्य की कामना की गई है।

नागपुरी संस्थान शोध एवं प्रशिक्षण केंद्र का सफलता में महत्वपूर्ण योगदानः

जानकारी देते चले की नागपुरी संस्थान, शोध एवं प्रशिक्षण केंद्र की स्थापना स्वर्गीय साहित्यकार डा. बी.पी. केसरी ने सन् 2002 में किया था। इस संस्थान में छात्र-छात्राओं को निःशुल्क सेवा दी जाती है। संस्थान में एक बड़ा लाइब्रेरी हैं जहां छात्र-छात्रा परीक्षा की तैयारी करते हैं।  संस्थान में छात्र-छात्राओं की पढाई को कोई बाधा उत्पन्न ना हो, इसके लिए संस्थान में पढ़ाई के लिए एक बड़ा कमरा, विभिन्न परीक्षाओं की तैयारी के लिए अलग अलग किताबें, टेबल, लाइट, और बाथरूम की निःशुल्क सुविधा उपलब्ध है। संस्थान में छात्र-छात्राओं को तैयारी के लिए एक सुन्दर और स्वच्छ माहौल दिया गया है, जहां छात्र पुरी एकाग्रता के साथ पढ़ाई करते हैं। पूर्व में भी इस संस्थान में पढ़ाई कर कई छात्र छात्रा सफलता हांसिल कर चुके है। क्षेत्र के लोग बताते हैं कि क्षेत्र की खुशहाली में स्वर्गीय डा. बीपी केसरी का महत्वपूर्ण योगदान है। उन्हीं की देन है कि, वर्तमान में कई छात्र-छात्रा सरकारी नौकरी में नियुक्त हैं।

Categories
Education Latest News पर्यटन मुद्दा

राजधानी रांची के आनंद व अंजनी ने एवरेस्ट बेस कैंप पर लहराया तिरंगा…

रिपोर्ट- वसीम अकरम…

5364 मीटर की ऊंचाई पर माउंट एवरेस्ट के दक्षिणी बेस कैंप पर फहराया तिरंगा।

80 किलोमीटर की यात्रा कर 2900 मीटर की ऊंचाई पैदल यात्रा कर मिली सफलता।  

रांची(कांके प्रखंड)- राजधानी रांची के कांके प्रखंड निवासी आनंद व अंजनी ने एवरेस्ट बेस कैंप पर तिरंगा फहरा कर कांके प्रखंड सहित समस्त झारखंड का नाम रौशन किया है। अंजनी कुमारी ने अपने पति आनंद गौतम के साथ 13 मार्च को एवरेस्ट बेस कैंप पर तिरंगा झंडा लहराया।

अंजनी कुमारी पेशे से डाटा साइंटिस्ट है और शेल नामक एमएनसी में कार्यरत हैं। अंजनी के पिता विरेन्द्र प्रसाद, रांची यूनिवर्सिटी में इकोनॉमिक्स के प्रोफेसर रह चुके हैं। वहीं आनंद गौतम पेसे से कंसलटेंट हैं और केपीएमजी नामक एमएनसी में कार्यरत हैं।

गौरतलब है कि एवरेस्ट बेस कैंप की ऊंचाई समुंद्र तल से 17598 फीट (5364 मी) है। इतनी उंचाई पर ऑक्सीजन की मात्रा 50 फीसदी ही रहती है। मार्च के महीने में वहां का तापमान लगभग शून्य से 20 डिग्री सेल्सियस रहता है। अंजनी और आनंद ने इस ट्रेक की तैयारी 4 महीने पूर्व से की थी। दोनों ने इस ट्रेक की शुरुआत 6 मार्च को लुक्ला नामक स्थान से की थी जो नेपाल में स्तिथ है। लुक्ला एयरपोर्ट विश्व के खतरनाक एयरपोर्ट में से एक है। दोनों ने इस ट्रेक की शुरुआत लुक्ला से की और 7 किलोमीटर की दूरी तय करने के बाद दोनों अगले दिन फकडिंग पहुंचे। फकडिंग की ऊंचाई 2610 मी है। यहाँ रात गुजारने के बाद दूसरे दिन 7 मार्च को नामचे बाजार के लिए निकल पड़े। नामचे बाजार 3440 मी पर स्थित है, जिसकी दूरी फकड़िंग से 10 किलोमीटर है। अगले दिन दोनो देबुचे के लिए निकल पड़े, जिसकी ऊंचाई 3860 मी है और नामचे से 9 किलोमीटर दूर है और वहां खुखू छेत्र का सबसे विशाल बौद्ध मठ स्तिथ है। उसके अगले दिन 11 किलोमीटर की दूरी तय करके दोनो डिंगबोचे पहुंचे, जिसके ऊंचाई 4360 मी है। अब तक ऑक्सीजन का स्तर 75 फीसदी हो चुका था। अगले दिन 18 किलोमीटर की दूरी तय करके दोनों लोबुचे पहुंचे, जो कि 4940 मी की ऊंचाई पर है। इसके बाद अगले दिन लोबूचे से गोरक्षेप होते हुए दोनो एवरेस्ट बेस कैंप पहुंचे और वहां भारत का झंडा लहराया। इस तरह से 80 किलोमीटर की दूरी एवं 2900 मी की ऊंचाई पैदल यात्रा तय करके 5364 मीटर की ऊंचाई पर माउंट एवरेस्ट के दक्षिणी बेस कैंप पर भारत का झंडा अंजनी और आनंद ने फहराया।

गौरतलब है कि, यह रास्ता बेहद कठिन है और इन सभी कठिनाईयों को पार करते हुए दोनों ने एक मानसिक एवं शारीरिक साहस का कीर्तिमान स्थापित किया। दोनों ने बताया कि यह एवरेस्ट बेस कैंप ट्रेक, जीवन भर के लिए एक अनोखा अनुभव बन गया और यह उन्हें जिंदगी की दूसरी मुश्किल परिस्थितियों से लड़ने का भी जज्बा देती है। यह चढ़ाई कई तरह से बहुत ही कठिन मानी जाती है। उन्होंने बताया कि यात्रा शुरू करने से पहले ही ट्रेकर्स पर इसका प्रभाव पड़ सकता है। इस यात्रा के लिए कई महीनों कि तैयारी करनी पड़ती है।

Categories
Education मुद्दा

सीआरसी रांची द्वारा आयोजित वेबिनार में नैदानिक मनोवैज्ञानिक, श्रीमती अनुराधा वत्स ने आत्महत्या के विरुद्ध युवाओं को किया जागरुक….

रिपोर्ट- संजय वर्मा…

रांचीः एक अनुमान के अनुसार प्रत्येक वर्ष 703,000 लोक आत्महत्या कर अपनी जान गंवाते हैं। अनुमान ये भी लगाया जाते है कि प्रतिदिन 20 लोग आत्महत्या करने की कोशिश में भी रहते हैं। आत्महत्या करने वाले ज्यादातर वैसे लोग होते हैं, जो अपने जीवन में अत्यधीक दुःखों को सहन करते हुए जीवन व्यतित कर रहे थें। दूसरे वे लोग आत्महत्या करते हैं, जिन्हें कहीं से मदद या उनके आशानुकूल मदद का नहीं मिलना।

विश्व भर में चिंता का विषयः

वर्तमान में आत्महत्या सार्वजनिक रुप से चिंता क विषय है, क्योंकि प्रत्येक आत्महत्या का समाज पर गहरा प्रभाव पड़ता है। ऐसे में जरुरत हैं समाज के बीच जाकर जागरूकता बढ़ाया जाए, ताकि आत्महत्या करने की घटनाओं पर कमी लाई जा सके। आत्महत्या की घटना संपूर्ण विश्व के लिए चिंता का विषय है।

सन् 2003 में विश्व स्वास्थ्य संगठन(WHO) के साथ मिल कर इंटरनेशनल एसोसिएशन फॉर सुसाईड प्रिवेंशन संगठन द्वारा विश्व आत्महत्या रोकथाम दिवस(World sucide prevention day) मनाने का निर्णय लिया गया, जो प्रत्येक वर्ष 10 सितंबर को मनाया जाता है। आत्महत्या रोकथाम दिवस(World sucide prevention day) मनाने का मुख्य उद्देश्य आत्माहत्या की घटना पर सामाजिक संगठनों, सरकार और जनता को जागरुक करना है।

इसी कड़ी में 10 सितंबर 2022 को सीआरसी रांची ने विश्व आत्महत्या रोकथाम दिवस के दिन, “स्कूल समुदाय में आत्महत्या रोकथाम प्रथाओं में सुधार” पर एक ऑनलाइन वेबिनार आयोजित किया। इस वेबिनार में सीआरसी रांची के निदेशक, जितेन्द्र यादव ने सत्र का उद्घाटन किया और सभी प्रतिभागियों का स्वागत किया। नैदानिक मनोवैज्ञानिक, श्रीमती अनुराधा वत्स, इस वेबिनार की मुख्य वक्ता थीं। श्रीमती अनुराधा वत्स ने वेबिनार में प्रतिभागियों को आत्महत्या के प्रमुख कारण क्या हैं? युवा पीढ़ी आत्महत्या का प्रयास क्यों करती है? इस स्थिति से कैसे निपटा जाए? आत्महत्या की घटना रोकने में माता-पिता और समाज की भूमिका क्या होनी चाहिए और समाज की जिम्मेदारियां क्या-क्या हैं, इस बारे में प्रतिभागियों को बताया।

आत्महत्या करने के कई कारन हो सकते हैंः

वेबिनार में हाई स्कूल के बच्चों को फोकस हुए डा. अनुराधा वत्स ने युवाओं में आत्महत्या की रोकथाम के लिए योजना और प्रोग्रामिंग पर विशेष रुप से जानकारी दी। उन्होंने बताया कि युवाओं में आत्महत्या के कई कारन देखें गएं हैं, जिनमें छात्रों के जीवन में तनाव, तलाकशुदा या अलग हो चुके माता-पिता के साथ संबंध संतुलित करना, घर में परिवार के बीच रिश्ते में आने वाली दिक्कतें, युवाओं के शरीर/हार्मोन में बदलाव, परिवार की गतिशीलता बदलना, स्कूल का परिवर्तन, कैरियर का चुनाव, शिक्षा के दौरान महाविद्यालय/विश्वविद्यालय का चयन करना, डेटिंग या रिश्ता टूटना, स्कूल में कठिनाइयों का सामना और ऐसे वातावरण का सामना, जो शराब और सेक्स के दौरान प्रोत्साहित कर सकता है।

परिवार के सदस्य और समाज की भूमिकाः

डा. अनुराधा वत्स ने रोकथाम पर बताया कि परिवार के सदस्य और समाज की जिम्मेदारी एसे लोगों के प्रति काफी सहायक साबित हो सकती है। हमें ऐसे युवाओं पर ध्यान देना चाहिए जो एकाकी पसंद कर रहा हो, लोगों से कटा-कटा रहा हो, परिवार के सदस्यो या अपने मित्रों से दुरी बना रहा हो। बात-बात पर गुस्सा हो जाना, ये सभी मानसिक तनाव के लक्षण है, जिसे समय रहते पहचान कर हम युवाओं के परेशानियों, तनाव के कारन को जान सकते हैं और उन्हें उचित और सही सलाह देकर समाज के मुख्यधारा में जोड़ सकते हैं।

कार्यक्रम का समापन पुनर्वास अधिकारी, अविनाश मोहंती के धन्यवाद ज्ञापन के साथ हुआ।

Categories
Education मुद्दा

बाजार में बढ़ी पेपर बैग की मांग को देखते हुए स्नेह ने ग्रामीण महिलाओं को दिया पेपर बैग बनाने का प्रशिक्षण….

रिपोर्ट- सीता देवी, चास़ बोकारो…
बोकारोः सरकार द्वारा प्लास्टिक बैग पर प्रतिबंध लगाए जाने के बाद से बाजार में पेपर बैग की मांग एका एक काफी बढ़ गई है। इसे देखते हुए महिलाओं को आत्मनिर्भर बनाने के लिए कई तरह के प्रशिक्षण दे रही संस्था, बिरसा कंपेनियन स्नेह कार्यक्रम के तहत अब पेपर बैग बनाने का प्रशिक्षण देना शुरु किया है। इसी कड़ी में स्नेह द्वारा बोकारो जिला, चास प्रखंड अन्तर्गत लबुडीह और भवानी पुर के दो दर्जन से अधीक ग्रामीण महिलाओं को पेपर बैग बनाने का प्रशिक्षण दिया है। पेपर बैग बनाने में ज्यादा पूंजी की आवश्यता नही पड़ती साथ ही ग्रामीण महिलाएं घर पर अपने परिवार के सदस्यों के साथ मिल कर पेपर बैग का निर्माण कर अच्छी आमदनी घर बैठे ही कर सकते हैं।
3 सितंबर को बिरसा कंपेनियन के कार्यालय में 2 दर्जन से भी अधीक ग्रामीण महिलाओं को पेपर बैग की ट्रैनर पूजा देवी और रेमका भगत ने प्रशिक्षण दिया। ट्रेनर पूजा देवी ने पेपर बैग का इतिहास बताया वहीं ट्रैनर रेमका भगत ने पेपर बैग के निर्माण में लगने वाले सामाग्रियों और पेपर बैग तैयार करने का तरीका बताया।

पेपर बैग बनाने का प्रशिक्षण देतीं ट्रेनर पूजा देवी और रेमका भगत साथ में स्नेह की एच.आर. सीता देवी.

ट्रैनर पूजा देवी ने बताया की पूर्व में लोग अपने साड़ी के आंचल में सामान रख कर लाना-लेजाना किया करते थें, इसके बाद पत्तों से बने दोने का उपयोग किया जाने लगा, फिर पेपर से बने बैग का दौर आया। पेपर से पेपर बैग बनाने का अविष्कार सन् 1852 में अमेरिका में हुआ था। लेकिन पेपर बैग के बाद प्लास्टिक का उपयोग किया जाने लगा, जो स्वास्थ्य और पर्यावरण के लिए काफी नुकशान दायक साबित हो रहा है, जिसे देखते हुए सरकार ने प्लास्टिक बैग के उपयोग पर प्रतिबंध लगा दिया है।

वहीं ट्रैनर रेमका भगत ने पेपर बैग बनाने का तरीका, ग्रामीण महिलाओं को बताया। इसके निर्माण में पेपर, कैंची, अरारोट, मैदा, कुट, डोरी, इंची टेप का उपयोग किया जाता है। रेमका भगत ने प्रशिक्षण ले रही महिलाओं को पेपर बैग बना कर दिखाया और ग्रामीण महिलाओं से भी बनवाया।

कूल मिला कर इस ट्रैनिंग कार्यक्रम से ट्रैनिंग प्राप्त कर ग्रामीण महिलाएं कम पूंजी में ही अपनी आर्थिक स्थित सुधार सकती हैं। इस प्रशिक्षण कार्यक्रम में स्नेह के सदस्य चण्डी बाउरी, बिरेन्दर कुमार, आरती देवी, हेमंती देवी, अनिता देवी, लक्ष्मी, फूलकुमारी, पुजू रानी और संस्था की एच.आर. सीता देवी ने अहम योगदान दिया।

Categories
Education

रांची के संत जेवियर कॉलेज की बस सिक्किम में हुई दुर्घटनाग्रस्त, कॉलेज के 22 छात्र थें सवार…

रिपोर्ट- बिनोद सोनी…

रांचीः राजधानी रांची के संत जेवियर कॉलेज की बस सिक्किम में दुर्घटनाग्रस्त हो गई है। इस बस में कॉलेज के 22 छात्र सवार थें। मिली जानकारी के अनुशार कुल 66 छात्र और 4 शिक्षक शैक्षणिक भ्रमण के लिए सिक्किम गए हुए थें।

शैक्षणिक भ्रमण में बीएड फाईनल ईयर के कूल 66 छात्र और 4 शिक्षक गए हुए हैः

संत जेवियर कॉलेज प्रबंधन के अनुशार कॉलेज की बस सिक्किम में दुर्घटनाग्रस्त हुई है। इस बस में कॉलेज के B.Ed फाइनल ईयर के 22 बच्चे सवार थें। सभी शैक्षणिक भ्रमण के लिए गए हुए थें। 66 छात्रों के साथ 4 शिक्षक भी इस टीम में शामिल हैं। कुल 3 बस में इन छात्रों का शैक्षणिक टूर का आयोजन था। न्यू जलपाईगुड़ी में स्टूडेंट्स को रांची के लिए ट्रेन पकड़ना था और इसी दौरान गंगटोक में बस दुर्घटनाग्रस्त हुई है। इनका बस अनियंत्रित होकर पलट गया, जिसमें 20 बच्चे घायल बताए जा रहे हैं, जिनका इलाज मणिपाल अस्पताल में चल रहा है। कुछ छात्रों की स्थिति गंभीर भी बताई जा रही है। मामले की पूरी जानकारी कॉलेज के प्रिंसिपल फादर एन लकड़ा ने दी।

सिक्किम गवर्नमेंट स्वयं इस मामले की मोनिटरिंग कर रही हैः

प्रिंसिपल ने कहा कि तमाम स्टूडेंट कल ट्रेन से लौटेंगे। जो गंभीर रूप से घायल हैं, उनका इलाज फिलहाल सिक्किम में ही चलेगा। सिक्किम गवर्नमेंट स्वयं इस मामले को देख रही हैं।

 

Categories
Education

राज्यपाल को शिकायत करना पड़ा महंगा- नौकरी से धोना पड़ा हाथ-नेट क्वालीफाई दिव्यांग राजेश है मजबूर

 

रिपोर्ट-श्वेता भट्टाचार्य…

रांची: यूजीसी नेट क्वालिफाई दिव्यांग राजेश कुमार पिछले 33 दिनों से राजभवन के समक्ष अपनी मांग को लेकर राज्यपाल से गुहार लगा रहे हैं। लगातार धरने पर बैठे हैं ।लेकिन अब तक इस ओर ध्यान नहीं दिया गया है। इस बीच उनकी तबीयत भी बिगड़ी प्रशासन की ओर से स्वास्थ्य जांच भी किया गया।लेकिन उनकी मूल परेशानी को किसी ने भी समझने की कोशिश नहीं की है…

गौरतलब है कि शारीरिक रूप से 70% दिव्यांग राजेश कुमार राज भवन के पास न्याय की गुहार लेकर पिछले 32 दिनों से बैठा है। वह हाथ में तख्तियां लिए धूप बारिश की चिंता किए बगैर अकेले ही लगातार धरना दे रहे हैं।लेकिन इस और ना तो राज भवन का ध्यान अब तक गया है और ना ही जिला प्रशासन ही इस संबंध में कोई पहल की है।बताते चलें कि राजेश को दुमका स्थित सिद्धू कान्हू विश्वविद्यालय में रोजगार देकर कुछ समय बाद उसे हटा दिया गया।दरअसल राजेश ने 4 महीने का वाकया मानदेय विश्वविद्यालय प्रबंधन से मांगा था और जब उन्हें उनका मानदेय नहीं मिला ,तब राजेश ने राज्यपाल को चिट्ठी के माध्यम से इस मामले की शिकायत कर दी. होना क्या था राजेश को नौकरी से हाथ धोना पड़ा।

33 दिनों से राजभवन के समक्ष बैठा है राजेश.

राजेश लगभग 33 दिनों से राजभवन के समक्ष धरने पर बैठे हैं।इस बीच राजेश की तबीयत बिगड़ी जिला प्रशासन ने स्वास्थ्य सुविधा मुहैया कराते हुए धरना स्थल पर ही चिकित्सीय जांच भी करवाया। लेकिन राजेश की मूल समस्या क्या है इस ओर ध्यान नहीं दिया गया। राजेश ने बातचीत करते हुए अपनी पीड़ा जाहिर की है ।राजेश का कहना है कि जल्द से जल्द उन्हें न्याय मिले। मामला काफी गंभीर है मामले पर राजभवन को स्वत संज्ञान लेना चाहिए।

Categories
Education

शिक्षा विभाग के खिलाफ बच्चों का धरना- जाने क्यों, पढ़ें पूरी रिपोर्ट…..

रिपोर्ट:- श्वेता भट्टाचार्य

रांची: राजभवन के समक्ष आज सातवीं से आठवीं वर्ग के बच्चे धरना देते दिखे। हालांकि इस दौरान अपने विभिन्न मांगों को लेकर कई संगठन धरने पर बैठे थे। लेकिन यह नजारा थोड़ा अटपटा सा लगा। ताजा खबर की टीम ने जब इन बच्चों से बातचीत की तब उन्होंने जो कहा वह वाकई सोचने वाली बात तो जरूर है।

झारखंड के सरकारी स्कूलों के बच्चों को इंग्लिश की बेसिक जानकारी नहीं दी जा रही है। ऐसा कहना है पतरातू के एक माध्यमिक स्कूल के सातवीं के छात्र श्रीकांत पांडे का। बताते चलें कि अन्य दिनों की तरह राजभवन के समीप धरना प्रदर्शन का दौर चल रहा था। समाचार संकलन के दौरान हमारी टीम की नजर 3 बच्चों पर पड़ी। जो झारखंड सरकार द्वारा जारी किए गए अपने पाठ्यक्रम के अंग्रेजी किताबों को लिए खड़े थे। जब इन बच्चों से बात की गई तो इनका कहना था कि उन्हें अंग्रेजी की बेसिक नॉलेज सरकारी स्कूलों से नहीं मिल रही है। इनका मानना है कि झारखंड के प्राथमिक और माध्यमिक सरकारी विद्यालय में पढ़ने वाले छात्र छात्राओं को अंग्रेजी भाषा को सीखने के लिए अंग्रेजी भाषा के पाठ्य पुस्तकों को पढ़ने की जरूरत ही नहीं है। विद्यार्थियों की मानें तो प्रथम कक्षा से आठवीं कक्षा तक के विद्यार्थियों को हिंदी से इंग्लिश सीखने का सामान्य पुस्तक झारखंड सरकार द्वारा पाठ्यक्रम में शामिल किया जाए तो बेहतर होगा।

सरकार से अपील

छात्रों ने शिक्षा विभाग से अपील की है कि उन्हें स्कूलों में इंग्लिश की बेसिक जानकारी दी जाए ना कि एकाएक पोयम और स्टोरी की किताबें थमा दिया जाए। उनका यह भी मानना है कि विद्यार्थियों को इंग्लिश का बेसिक नॉलेज नहीं होने के कारण वह किताबें नहीं पढ़ पाते हैं और यह समस्या पूरे झारखंड के सरकारी विद्यालयों में पढ़ने वाले विद्यार्थियों का है।

Categories
Education

2014 में तीन बच्चों से शुरु किया गया रात्रि पाठशाला, वर्तमान में झारखंड के तीन जिलों के 97 केन्द्रो में लगभग 5000 बच्चों को कर रहा है निःशुल्क शिक्षित….

रिपोर्ट- संजय वर्मा…
रांचीः 2014 में मात्र 3 बच्चों के साथ राजधानी रांची मुख्यालय से लगभग 25 किलोमीटर दूर स्थित उचरी गांव में रात्री पाठशाला का पहला केन्द्र खोला गया था, लेकिन मात्र 7 साल बाद झारखंड के तीन जिले, रांची, लोहरदगा और गुमला में रात्रि पाठशाला के 97 केन्द्रों में लगभग 5000 गरीब बच्चे निःशुल्क शिक्षा प्राप्त कर रहे हैं और लगभग 400 शिक्षित छात्र-छात्राएं देश के भविष्य निर्माण में निःशुल्क अपना बहुमुल्य योगदान दे रहे हैं। परिषद् द्वारा संचालित रात्री पाठशाला में बच्चों को सिर्फ शिक्षित ही नहीं किया जाता, बल्कि बच्चों के बौद्धिक विकास, सामाजिक और सांस्कृतिक समझ को भी बढ़ाने का काम किया जाता है।

कुछ इस तरह हुई रात्रि पाठशाला की शुरुआतः

उचरी स्थित रात्रि पाठशाला केन्द्र के प्रभारी सह प्रथम शिक्षक, अनिल उरांव बताते हैं, कि आपीएस की नौकरी से वालेंटरी रिटायरमेंट लेने के बाद, डा अरुण उरांव रांची के हेहल स्थित अखिल भारतीय आदिवासी विकास परिषद् के केन्द्र में बच्चों को पढ़ाने के साथ-साथ कंप्यूटर की भी शिक्षा दिया करते थें। मैं मैट्रिक की परीक्षा पास करने के बाद उनके पास कंप्यूटर की पढ़ाई करने के लिए जाया करता था। एक दिन अरुण सर ने मुझ से गांव की समस्या के बारे में पुछा, इसके बाद अरुण सर स्वयं उचरी गांव पहुंचे और वहां के हालात देख कर कहें, कि इन समस्याओं का एक ही समाधान है “शिक्षा”। चुंकि यहां के लोग काफी गरीब हैं, कोई दिन भर खेतों में काम करता है, कोई मजदूरी करने शहर में चले जाते हैं और कुछ बच्चों के माता-पिता तो दूसरे प्रदेशों में जा कर मजदुरी करते हैं। कुछ बच्चे सरकारी स्कूलों में जाते जरुर हैं, लेकिन सही तरीके से पढ नही पाते हैं, इसलिए क्यों ना यहां बच्चों को निःशुल्क शिक्षा प्रदान किया जाए। बस यहीं से शुरुआत हो गई रात्रि पाठशाला की। अरुण सर के मार्गदर्शन में मैंने तीन बच्चों से रात्रि पाठशाला आरंभ कर दिया, और वर्तमान में सिर्फ उचरी गांव के रात्रि पाठशाला केन्द्र में 150 से भी अधीक बच्चे निःशुल्क शिक्षा ग्रहण कर रहे हैं। इस कार्य में गांव के ही कुछ पढ़े लिखे छात्र-छात्राएं भी योगदान दे रहे हैं।

डा. अरुण उरांव ने उठाया अखिल भारतीय आदिवासी विकास परिषद् के बैनर तल्ले समाज के गरीब, शिक्षा से वंचित बच्चों को शिक्षित करने का बीड़ाः

डा. अरुण उरांव किसी पहचान के मोहताज नही है। एमबीबीएस, आईपीएस, और बेहतर स्पोर्ट पर्सन के साथ-साथ एक कुशल राजनीतिज्ञ के रुप में भी इनकी पहचान है। डा. अरुण उरांव, पंजाब में आईजी रहने से पूर्व भारत के चार-चार प्रधानमंत्री, स्वर्गीय राजीव गांधी, स्वर्गीय चन्द्रशेखर, स्वर्गीय बी.पी. सिंह और पी.बी. नरसिम्हा राव के चिकित्सा टीम में वरीष्ठ चिकित्सा पदाधिकारी के पद पर रह चुके हैं। वहीं झारखंड में स्पोर्टस को बढावा देने में इनका महत्वपूर्ण योगदान रहा है। डा. अरुण उरांव स्वयं भी एक बेहतर क्रिकेटर रह चुके हैं। आदिवासी समाज के पिछडेपन का मुख्य कारन डा. अरुण उरांव ने अशिक्षा पाया और इसे देखते हुए उन्होंने पढे-लिखे युवाओं को समुदाय के गरीब बच्चों को शिक्षित करने का आह्वान किया और लग गएं समाज को शिक्षित करने में। डा. अरुण उरांव और उनकी पत्नी गीताश्री उरांव ने कार्तिक बाबा के सपने को साकार करने के लिए दिन-रात मेहनत की, जिसका परिणाम है झारखंड के तीन जिलों में 97 रात्रि पाठशाला, जहां लगभग 400 शिक्षित छात्रःछात्राएं निःशुल्क अपना बहुमुल्य योगदान देते हुए लगभग 5000 गरीब बच्चों को शिक्षित कर रहे हैं।

रात्रि पाठशाला में बच्चों को निःशुल्क शिक्षा के साथ-साथ बौद्धिक, सामाजिक और सांस्कृतिक चेतना विकसित करने में भी दिया जाता है जोरः

अखिल भारतीय आदिवासी विकास केन्द्र के रात्रि पाठशालाओं में सिर्फ बच्चों को शिक्षा का ही ज्ञान नही दिया जाता, बल्कि उनके बौद्धिक विकास के साथ-साथ सामाजिक, सांस्कृतिक समझ को भी बढ़ाई जाती है। जिन-जिन गांवों में रात्रि पाठशाला संचालित है, वहां बच्चों के अभिभावकों के साथ हर तीन माह पर बैठकें आयोजित की जाती है, जिसमें डा. अरुण उरांव और परिषद् की प्रदेश अध्यक्ष, गीताश्री उरांव भी मौजुद रहती हैं। इन बैठकों में बच्चों की शिक्षा के साथ-साथ परिवार की स्थिति और गांव की समस्याओं पर भी चर्चा की जाती है। समस्याओं को जानने के बाद, उन समस्याओं का निराकरण भी परिषद् द्वारा किया जाता है।

रात्रि पाठशाला का संचालन किसी अखड़ा या सामुदायिक भवन में किया जा रहा हैः

झारखंड के तीन जिलों में परिषद् दवारा जो 97 रात्रि पाठशाला केन्द्रों का संचालन किया जा रहा है, वो किसी अखड़ा या सामुदायिक भवन में किया जा रहा है। अखडा गांव का वो स्थल होता है, जहां आदिवासी समाज के लोग गांव के किसी मुद्दे को लेकर बैठक या कोई सांस्कृतिक कार्यक्रम आयोजित करते हैं। इसी तरह सामुदायिक भवन का उपयोग समुदाय के किसी कार्य के लिए किया जाता है, जिसमें समुदाय के सभी लोग शामिल होते हैं।

समय-समय पर रात्रि पाठशाला के शिक्षकों के लिए कार्यशाला भी आयोजित किया जाता हैः

अखिल भारतीय आदिवासी विकास परिषद् द्वारा संचालित कूल 97 केन्द्रों में लगभग 400 शिक्षित छात्र-छात्राएं गरीब बच्चों को शिक्षित करने में लगे हुए हैं। चुंकि ये लोग प्रशिक्षित शिक्षक नही है, इसलिए ग्रामीण, गरीब बच्चों को कैसे अच्छी शिक्षा दी जा सके, इसके लिए इन छात्र-छात्राओं के लिए कार्यशाला का भी आयोजन परिषद् द्वारा किया जाता है। इन कार्यशालाओं में समाज के बुद्धिजीवि, नौकरी-पेशा लोग निःशुल्क सेवा देने वाले छात्र-छात्राओं को प्रशिक्षण देने का काम करते है, जिससे इन शिक्षित छात्र-छात्राओं को बच्चों को पढ़ाने में काफी सुविधा होती है।

कुछ केन्द्रों में डिजिटल क्लास भी चलाई जा रही हैः

परिषद् द्वारा कुछ रात्रि पाठशाला केन्दों में कंप्यूटर और प्रोजेक्टर मुहैया करवाया गया है, जिससे गरीब, वंचित वर्ग के बच्चे भी अब परिषद् के माध्यम से डिजिटली शिक्षा प्राप्त करने लगे हैं। यहां बच्चों को उन विषयों की पढ़ाई पर ज्यादा जोर दिया जाता है, जिस पर अमुमन बच्चे काफी कमजोर होते हैं, जैसे गणित, अंग्रेजी और विज्ञान।

बच्चों के बौद्धिक विकास के लिए सेवा भाव से भी कुछ लोग अपनी सेवा दे रहे हैः

समय-समय पर रात्रि पाठशालाओं में कुछ गणमान्य लोग, जो सेवा कार्य से भी जुड़े हुए हैं, वे अपना योदगान केन्द्रों में जा कर देते रहते हैं। बिते दिनों नैदानिक मनोवैज्ञानिक, डा. अनुराधा वत्स ने उचरी स्थित रात्रि पाठशाला केन्द्र मे जाकर बच्चों का ज्ञानवर्द्धन किया। डा. अनुराधा ने बच्चों को बताया कि अगर आप कुछ अच्छा करते हैं, जिसके लिए आपको शाबासी मिलती है, तो उसके लिए सबसे पहले आप अपने आप को थैंक्स बोलिए। क्योंकि आपने अच्छा कार्य किया, तभी आपको शाबासी मिली। वहीं डा. अनुराधा ने बच्चों को ये भी बताया, कि मोबाईल का उपयोग कम से कम करना चाहिए। अगर आपलोगों को कुछ जानना है, तो आप अपने अभिभावक, शिक्षक या किसी और से पुछें, लेकिन मोबाईल पर निर्भर नही रहें। बौद्धिक विकास के लिए लोगों से बातचीत करना काफी जरुरी है। पूर्व के कई उदाहरण देते हुए उन्होंने बताया कि, पहले मोबाईल नही हुआ करता था, लेकिन लोगों में बौद्धिक ज्ञान काफी ज्यादा थी। मोबाईल का ज्यादा उपयोग करने से हम सभी कई तरह की बीमारियों से भी ग्रसित हो जाते हैं और हमारे व्यवहार मे भी चिड़चिडापन आ जाता है।

कूल मिला कर अखिल भारतीय आदिवासी विकास परिषद् बच्चों के भविष्य निर्माण में अहम योगदान दे रहा है। परिषद् के कार्यों की जितनी भी सराहना की जाए, कम है।