रिपोर्ट- बिनोद सोनी…
रांचीः जैन धर्म ग्रंथों के अनुसार झारखंड में स्थित सम्मेद शिखर तीर्थ स्थल, पारसनाथ का अस्तित्व सृष्टि के समानांतर है, इसलिए इसे शाश्वत माना जाता है। यही कारण है कि जब सम्मेद शिखर तीर्थ यात्रा शुरू होती है, तो हर तीर्थयात्री का मन तीर्थ करो का स्मरण कर अपार श्रद्धा, आस्था, व उत्साह से भरा होता है। काफी प्राचीन समय से पूर्ण सात्विकता के साथ यहां आने वाले जैन धर्मावलंबी तीर्थ करते हैं। लेकिन झारखंड सरकार की ओर से यह घोषणा की गई है, कि पारसनाथ के क्षेत्रों को पर्यटन स्थल के रूप में विकसित किया जाएगा, जिसका जैन धर्मावलंबी विरोध कर रहे हैं। जैन धर्मावलंबियों ने पर्यटन स्थल के रुप में विकसित किए जाने का विरोध किया है।
शुक्रवार को राजधानी रांची के ह्रदय स्थली, अल्बर्ट एक्का चौक पर जैन धर्मावलंबी और शहर के प्रबुद्ध नागरिकों द्वारा शांतिपूर्वक मानव श्रृंखला बना कर सांकेतिक रूप से झारखंड सरकार के घोषणा का विरोध किया है। मानव श्रृंखला में शामिल महिला जैन धर्मावलंबी का कहना है कि, पारसनाथ पहाड़ी झारखंड का ऐतिहासिक धरोहर है। पारसनाथ पर्यटन स्थल नहीं धार्मिक स्थल है और यदि इस धार्मिक स्थल को पर्यटन स्थल के रूप में विकसित किया गया, तो जो भी पर्यटक पर्यटन की दृष्टि से वहां जाएंगे, तो जैन धर्मावलंबियों के सात्विकता का हनन होगा।
वहीं एक दूसरी जैन धर्मावलंबी सह स्वतंत्रता सेनानी महिला का कहना है कि पारसनाथ पर्वत और शिखर जी महाराज का पूरा क्षेत्र हमारे लिए आस्था का केंद्र बिंदु है। शिखर में स्थित मंदिर के दर्शन के बाद ही जैन धर्मावलंबी जल का ग्रहण करते हैं। लेकिन जब इसे पर्यटन स्थल के रुप में इसे विकसित किया जाएगा तो यहां पहुंचने वाले पर्यटक सात्विक नहीं होंगे, उनका खानपान अलग होगा। इसलिए सरकार को चाहिए कि पारसनाथ पहाड़ी के क्षेत्र के धार्मिक स्थल ही रहने दिया जाए, इसे पर्यटन स्थल ना बनाया जाए।